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गुरुवार, 25 मई 2023

माँ बम्बलेश्वरी मंदिर, डोंगरगढ़ , छत्तीसगढ़

  डोंगरगढ़ के पर्वत पर बसा माँ बम्बलेश्वरी का मंदिर लगभग 2200 वर्ष पुरानी एक प्रेम कहानी की गाथा की गवाही दे रहा है। सोहला सौ फीट पर बना मंदिर जैसे डोंगरगढ़ पर्वत पर माता रानी के मुकुट की भांति सजा दिखता हो। इतनी ऊंचाई पर बना माता का धाम छतीसगढ़ राज्य में कहीं और नहीं हैं। इस प्राचीन मंदिर की अदिष्ठात्री देवी अष्टम महाविद्या माँ बगलामुखी हैं। 

प्राचीन समय मे डोंगरगढ़ को कामाख्या नगरी के नाम से जाना जाता था। कामाख्या नगरी से डोंगरगांव नाम पड़ना और माधवनल - कामकंदला प्रेमी जोड़े की कथा यहाँ आनेवाले तीर्थयात्री भी अनभिज्ञ हैं।

इतिहास:

बम्बलेश्वरी माता मंदिर के बनने की कथा के पीछे राजा वीरसेन और उनकी भगवान शिव और माता भक्ति की असीम श्रद्धा से जुड़ी है। राजा वीरसेन की कोई संतान नहीं थी। प्राचीन काल से यहाँ केवल माँ का पिंडी रूप ही था और सो राजा अपनी रानी के साथ यहां आकर माता से संतान के लिए प्रार्थना की और एक वर्ष के भीतर उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ती हुई। इस पुत्र का नाम उन्होंने मदनसेन रखा। 



 

राजा मदनसेन को एक पुत्र हुआ कामसेन जो अगले राजा बने। इनके राज दरबार एक कामकंदला नाम की एक सुंदर और कुशल नर्तकी थी जिसका नृत्य सारे दरबारियों को मोह लेता था। एक बार राजा ने अनजाने में कामकंदला के प्रतिभाशाली नृत्य की अपेक्षा करते हुए माधवानल(संगीतज्ञ) को पुरस्कृत कर दिया जो उसी समय कामकंदला के नृत्य को संगीत दे रहा था। अपनी प्रेयसी कि प्रतिभा की उपेक्षा होते देख माधवनल ने राजा के सामने वह पुरस्कार उसे ही दे दिया। राजा कामसेन को क्रोध आया और तुरंत माधवानल को राज्य से निकल जाने के लिए कहा।


माधवानल राज्य से बाहर जाने के बजाए डोंगरगढ़ की गुफाओं को अपना स्थाई निवास बना लिया। प्रेम में तड़पती कामकंदला चोरी-चोरी उससे मिलने आया करती थी। वहीं दूसरी ओर कामसेन का पुत्र मदनादित्य राजसी-तामसी प्रवृतियों वाला था और कामकंदला से मन-ही-मन प्रेम करता था। मदनादित्य को माधवानल - कामकंदला का चुपके से मिलना अच्छा नहीं लग रहा था। उसे समझ आ गया था कि वह कामकंदला को पा नहीं सकता इसीलिए उसने कामकंदला को राजद्रोह के आरोप में फंसवा कर माधवानल से अलग कर दिया। राज्य में अस्थिरता की स्थिति उतपन्न हो गयी। 


अपने समक्ष अन्याय होता देख माधवनल सीमा पार कर अवन्तिकापुरी जा पहुंचा और उस समय के भारतवर्ष के सर्वश्रेष्ठ राजा; सम्राट विक्रमादित्य, अपनी न्यायप्रियता के लिए जाने जाते थे, उन्हें सारी व्यथा सुनाई। दयावान राजा विक्रमादित्य ने न्याय करने के लिए अपनी सेना लेकर कामाख्या नगरी पर हमला बोल दिया। कई दिनों के युद्ध के बाद राजा मदनादित्य की पराजय हुई। माधवानल ने मदनादित्य को मार डाला लेकिन इसके बाद कामख्या नगरी पूरी उजड़ गयी। नगर में केवल डोंगड़ पहाड़ियाँ बची और तब से इसे डोंगड़गढ़ कहा जाने शुरू हुआ।





 

कामकंदला को पता चला कि माधवानल युद्ध मे मारा गया है और इस वेदना को सेहन ना कर पायी। यह बात असत्य थी किंतु इसके पहले यह स्पष्टीकरण होता इससे पूर्व कामकंदला ने एक सरोवर में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। इस सरोवर को कामकंदला सरोवर के नाम से भी जाना जाता है। अपनी प्रेमिका के प्राणोत्सर्ग का समाचार सुनकर माधवानल ने भी प्राण त्याग दिए।


भारी उथल - पुथल और कार्य सिद्ध ना होता देख, माता अपने जागृत रूप में पहाड़ी में विराजित होने के लिए राजा विक्रमादित्य ने आह्वाहन किया।तब से माता बम्बलेश्वरी मंदिर की अदिष्ठात्री देवी है।


रोपवे (उड़नखटोला)

छीरपानी तालाब


माँ बम्बलेश्वरी मंदिर:


मंदिर का ऐतिहासिक सम्बंध उज्जैन और राजा विक्रमादित्य से रहा है क्योंकि माँ बम्बलेश्वरी राजा विक्रमादित्य के वंश की कुलदेवी थी। उस समय के पूर्व का डोंगड़गढ़ के इतिहास के कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं है। सोलहवीं सदी से डोंगड़गढ़ मंदिर गोंड राजाओं के राज्य के अधीन आ गया। गोंड राजाओं के समृद्ध और कुशल शासन के अंदर मंदिर की महत्व आस पड़ोस के राज्यों में फैला। 


मंदिर के अन्य मंदिरों में नाग वासुकी मंदिर, शीतला माता मंदिर, दादी माँ मंदिर और बजरँगबली मंदिर है।


  • देवी मंदिर तक कुल 1100 सीढियां चढ़ने पर माता के दर्शन होते हैं। 

  • मंदिर पहाड़ी के नीचे छीरपानी तालाब है जिसमे बोटिंग की व्यवस्थता है। 

  • मंदिर में उड़नखटोला(रोपवे) की व्यवस्था हफ्ते के 6 दिन उपलब्ध रहती है।



राजनांदगांव से डोंगरगढ़ जाते समय राजनांदगांव में मां पाताल भैरवी(महाकाली) दस महाविद्या पीठ मंदिर है, जो अपनी भव्यता के चलते दर्शनीय है। जानकार बताते हैं कि विश्‍व के सबसे बडे शिवलिंग के आकार के मंदिर में मां पातालभैरवी विराजित हैं। तीन मंजिला इस मंदिर में पाताल में मां पाताल भैरवी, प्रथम तल में दस महाविद़़यापीठ और ऊपरी तल पर भगवान शंकर का मंदिर है।




मंदिर दर्शन का श्रेष्ठ समय:

 मंदिर का पट सुबह चार बजे से दोपहर एक बजे तक और फिर दोपहर दो बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता है। रविवार को सुबह चार बजे से रात दस बजे तक मंदिर लगातार खुला रहता है। नवरात्रि के मौके पर मंदिर का पट चौबीसों घंटे खुला रहता है ।
साल भर श्रद्धालु मंदिर में जीवन से जुड़े जरूरी संस्कार जैसे यज्ञ या मुंडन संस्कार भी करवाते रहते है । 

कैसे पहुँचे:

राजनादगांव से 35 व राजधानी रायपुर से यह 105 किलोमीटर दूर है। हावड़ा-मुंबई रेलमार्ग से भी यह जुड़ा हुआ है। यहां रेल और सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
डोंगरगढ़ राजनांदगांव जिला मुख्यालय से 57 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। वहाँ जाने के लिए सबसे अच्छा साधन है ट्रेन, बस, और फिर खुद की ट्रांसपोर्ट व्यवस्था है। अगर आप ट्रेन से यात्रा करना चाहते है तो निकटतम रेल्वे स्टेशन है डोंगरगढ़।
फ्लाइट से: निकटतम हवाई अड्डा है रायपुर। जो घरेलु उड़ानों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

।। जय माँ बम्बलेश्वरी ।।

🙏🌷🙏

✒️स्वप्निल.अ

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शनिवार, 20 मई 2023

भेरूजी नाथ मंदिर, कोडमदेसर , बीकानेर, राजस्थान

 
"कुछ समय पहले जब मैं अपने ब्लॉग के विषय में ऐसे अद्धभुत किंतु अनजाने मंदिरों की सूची ढूंढ रहा था, तब एक भक्तिन मित्र की व्हाट्सएप स्टोरी में मुझे बाबा भेरूजी ने दर्शन दिए। इसे में एक दिव्य संयोग कहता हूँ। भक्त ने बाबा और बाबा ने भक्त ढूंढ लिए"।

 


यह मंदिर और इसमें स्थापित भगवान कालभैरव की मूर्ति मानों जैसे अपने भक्तों को पुकार रही हो, मैंने जब भैरुजी मंदिर के बारे में सुना तोह मानों मुझे ऐसा आभास हुआ मेरे गहरे मैन में। 

मंगलवार, 16 मई 2023

लिलोरी मैय्या मंदिर , धनबाद, झारखण्ड

 इतिहास:

माँ लिलोरी मंदिर कतरासगढ़ के का राजा की कुलदेवी थी।  बात उस समय की है जब कतरासगढ़ के राजा सुजान सिंह थे। राजा ने मध्य प्रदेश के रीवा के राजघराने के एक सदस्य की सहायता से 800 साल पहले कतरास के इस घने जंगल में माता की मूर्ति स्थापित की थी। यह इलाका कभी घने जंगल से आच्छादित था।

मां की मूर्ति की स्थापना के साथ ही यह मंदिर राजपरिवार के लिए कुल देवी मंदिर बन गया और तब से अब तक यहां सिर्फ राजपरिवार की प्रथम पूजा और दैनिक बलि दी जाती है। 

लिलोरी माता यश:

आठ सौ साल पहले  मूर्ति स्थापना के बाद से ही माँ का मंदिर प्रसिद्ध होने लगा। शाही परिवार माँ के बारे में अच्छी तरह जानता है; यदि कोई भक्त माँ के दरबार में हृदय से अपनी मनोकामना माँगता है, तो माँ निस्संदेह उसकी मनोकामना पूर्ण करती है; नतीजतन, बड़ी संख्या में श्रद्धालु झारखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल आते हैं और ओडिशा से आते हैं।

मां लिलोरी मंदिर में लोगों की इतनी आस्था है कि भारत ही नहीं बाहर से भी अपनी मन्नत मांगने और चुनरी की गांठ बांधने आते हैं; यदि उनकी मन्नतें पूरी हो जाती हैं, तो वे भेंट चढ़ाते हैं और लौट जाते हैं।

लिलोरी माँ के मंदिर में लोग कई प्रकार की मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए आते हैं, जैसे कि एक नया ऑटोमोबाइल खरीदना, अपने बच्चे का मुंडन कराना, या पवित्र जनेऊ संस्कार करना, कई अन्य प्रकार की मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए हर दिन कई भक्त आते हैं।

मां लिलोरी स्थान न केवल एक पवित्र स्थल है, बल्कि यह एक लोकप्रिय विवाह स्थल भी है, जहां लोग शादी समारोह करने के लिए लंबी दूरी की यात्रा करते हैं। शादी की कई सुविधाएं सुलभ हैं, साथ ही वाहनों के लिए पर्याप्त पार्किंग स्थान भी है।

लगन के दौरान इतने लोग आते हैं कि एक पैर रखने की भी जगह नहीं बचती। वातावरण उत्तम प्रतीत होता है। और धर्मशालाएं 1 से 2 महीने पहले से तय होनी चाहिए, तो सोचिए लगान में एक ही दिन में कितनी शादियां होंगी। 

अपने पवित्र क्षेत्र और माँ के विग्रह में अपार शक्ति होने के कारण यहां कमज़ोर दिलवालों को आने से बचना चाहिए।


मां मंदिर मार्केट - लिलोरी स्थान मार्केट:

लिलोरी मंदिर कतरास के आसपास कई बूथ हैं, जहां मेकअप से लेकर स्नैक्स और भोजन तक कुछ भी उपलब्ध है। मां मंदिर में कई अच्छी धर्मशालाएं हैं। इसके अलावा, किसी भी प्रकार की पार्टी या उत्सव के लिए सभी प्रकार की वस्तुएं सुलभ हैं।



नवमी के दिन लिलोरी स्थल:

लिलोरी माँ मंदिर कतरास, धनबाद, झारखंड मन्नतों के लिए बहुत प्रसिद्ध है, इसलिए नवमी के दिन आपको आश्चर्य होगा कि यहाँ लगभग 1000 यज्ञ किए जाते हैं। बहुत से लोग इस दिन का इंतजार करते हैं क्योंकि नवमी का दिन पूजा के लिए अच्छा दिन माना जाता है। जिसके चलते आपको लिलोरी मां के मंदिर में पहले से रजिस्ट्रेशन कराना होता है, तभी आप पूजा के लिए आहुति दे सकते हैं।

परंपरा के अनुसार राजपरिवार के सदस्य मां के मंदिर में पहली पूजा और पहला यज्ञ करते हैं, उसके बाद ही अन्य लोग पूजा करते हैं और बलि का कार्यक्रम शुरू होता है। इस दिन इतनी भीड़ होती है कि वहां का माहौल मेले जैसा लगता है।

झारखंड कई धार्मिक स्थलों का घर है। देवगढ़ बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के लिए प्रसिद्ध है, जबकि कतरास माता मंदिर झारखंड के बाहर कम जाना जाता है। जब आप झारखंड लौटते हैं, तो इस गूढ़ मंदिर में विराजमान देवी माँ को अपना सम्मान देना न भूलें।

मंदिर में प्रवेश से पहले:

  1. मंदिर में रोज़ बलि दी जाती हैं और बलि प्रसाद स्वरूप भक्तों में बांटा जाता है। 
  2. मंदिर के अंदर देवी की छवि, फ़ोटो लेना वर्जित है इसीलिए फोन या कैमरा ले जाना बिल्कुल मना है। 


मंदिर परिसर और मार्केट

कैसे पहुँचे:

कतरसगढ़ से धबद की दूरी 17 किमी की दूरी पर है और NH18 छताबाद रोड पर पड़ता है। धनबाद झारखंड की राजधानी रांची से पूरी तरह से रोड और रेल मार्ग से कनेक्टेड है। 

धनबाद से कतरसगढ़ मंदिर की दूरी आप टैक्सी और बस 35 मिनट में पूरी कर सकते हैं।


।। जय माता दी ।। 

🙏🕉️🌷🌿🚩🔱

✒️ स्वप्निल. अ


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www.burningjharia.com/2022/06/lilori-sthan-katras-dhanbad.html/amp


- https://www.prabhatkhabar.com/topic/katras-lilori-sthan


- https://www.manonmission.co/2023/01/lilori-dham-dhanbad-jharkhand.html

सोमवार, 15 मई 2023

प्रभु श्रीराम का ननिहाल, चंदखुरी, छत्तीसगढ़

छतीसगढ़ के आदिवासियों से भरे वन क्षेत्र के पास दुनिया से दूर है एक प्राचीन मंदिर। यह मंदिर प्रभु श्री राम की माता कौशल्या का है। वाल्मिकी रामायण और रामचरितमानस के अनुसार माता कौशल्या के पिता राज्य इसी क्षेत्र में था।छतीसगढ़ी आदिवासी आज भी इसे दक्षिण कौशल प्रदेश मानते हैं।

शुक्रवार, 5 मई 2023

बावे वाली माता मंदिर(Bagh-e-Bahu), जम्मू

इतिहास

 बावे वाली माता मंदिर के रूप में प्रसिद्ध महाकाली मंदिर एक ऊंचे मंच पर बनाया गया है और इसमें देवी महाकाली की एक काले पत्थर की मूर्ति है। काली माता मंदिर बहू किले के परिसर के भीतर बनाया गया है, जो शक्तिशाली तवी नदी को देखता है। आसपास के वन क्षेत्र को "बाग-ए-बहू" के रूप में जाना जाने वाला एक सुंदर पार्क में बदल दिया गया है। मुगल उद्यानों से प्रभावित, पार्क जम्मू शहर का शानदार दृश्य प्रदान करता है। एक नवनिर्मित मछलीघर भी एक अतिरिक्त पर्यटक आकर्षण है। किले का निर्माण लगभग 3000 साल पहले राजा बहुलोचन ने करवाया था।

मंदिर को माता वैष्णोदेवी मंदिर के बाद दूसरा माना जाता है। इस क्षेत्र की आध्यात्मिक आभा में डूबने के लिए हर साल बड़ी संख्या में भक्त जम्मू जाते हैं। लगभग 3.9 फीट ऊंचे मंच पर सफेद संगमरमर का उपयोग करके निर्मित, इस मंदिर में काले पत्थर में देवी महाकाली की मूर्ति है। यह अंदर से एक छोटा मंदिर है इसलिए समय पर कुछ ही भक्त प्रवेश कर सकते हैं।

बावे वाली माता काली


काली माता मंदिर की कथा और इतिहास (बावे वाली माता मंदिर)

माना जाता है कि महाराजा गुलाब सिंह के सत्ता में आने के कुछ समय बाद 1822 में 8वीं शताब्दी के दौरान मंदिर का निर्माण किया गया था। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि लगभग 300 साल पहले, देवी महाकाली पंडित जगत राम शर्मा के सपने में प्रकट हुईं और उन्होंने पहाड़ी की चोटी पर एक पिंडी या पत्थर के रूप में अपनी उपस्थिति के बारे में बताया। उसके कुछ ही समय बाद एक पत्थर मिला और पहाड़ी पर एक मंदिर बनाया गया। कहा जाता है कि काला पत्थर जो देवी का प्रतीक है, अयोध्या से सौर वंश के राजाओं, राजा बहू लोचन और राजा जम्बू लोचन द्वारा मंदिर के निर्माण से बहुत पहले प्राप्त किया गया था।

मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था इसलिए यह एक नया मंदिर प्रतीत होता है। अतीत में पशु बलि का व्यापक रूप से अभ्यास किया जाता था, लेकिन आजकल मंदिर के पुजारी कुछ अनुष्ठान करते हैं और एक भेड़ या बकरी को बलि के प्रतीकात्मक प्रस्तुति के रूप में मुक्त करने से पहले उस पर पवित्र जल छिड़कते हैं। इस अनुष्ठान को शिल्ली चरण के नाम से जाना जाता है। अब मंदिर में बलि किये गए भेड़ को प्रसाद के रूप में नहीं बांटा जाता और इसके स्थान पर केवल मिठाई, फल या मुरमुरे का प्रसाद बांटा जाता है।

"मंदिर में विराजी माता काली के प्रति जम्मू वासियों की मान्यता है कि माता ही उन्हें पाकिस्तान द्वारा हवाई हमलों से बचाती आयी है "। 

भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद देवी को कड़ाह के रूप में जाना जाने वाला एक मीठा हलवा चढ़ाते हैं। मार्च-अप्रैल और सितंबर-अक्टूबर के महीने में प्रत्येक नवरात्र के दौरान साल में दो बार काली माता मंदिर में बहू मेले का आयोजन किया जाता है। मंदिर बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करता है। सप्ताह में दो बार मंगलवार और रविवार को यहां विशेष पूजा भी की जाती है। 

हर सुबह कुंवारी कन्याएं यहां अपनी मनोकामनाएं पूरी करने माँ काली को लाल चुन्नी, चूड़ियाँ, मिठाई और कपड़े दान करती है ।

वैष्णोदेवी, सुधा देवी और शिव मंदिर आनेवाले भक्तों ने हाल ही में इस मंदिर में आना भी शुरू कर दिया है हाल ही के सालों में । बाहू किले के पास बाबा अंबू की एक समाधि भी इसके प्रशंसकों, विशेषकर खजुरिया ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई है।

नवरात्रों के बीच, आम लोगों को देवी महाकाली के दर्शन करने के लिए कम से कम 4 से 6 घंटे या उससे भी अधिक समय तक बैठना पड़ता है।


सावधनियाँ और नियम :


यहां पर्यटकों और भक्तों को रेसस प्रजाति के बंदरों की टोलियां भी दिखेंगी । यह बंदर बहुत उपद्रवी किस्म के हैं । अनाज, फल ओर मंदिर आनेवाले भक्तों के हाथों से कोई भी खाद्य वस्तु छीनकर भाग जाते हैं ।


मंदिर के भीतर काले चस्मे, टोपी और किसी भी प्रकार का इलेक्ट्रिक उपकरण लेके जाना निषेध है । यह सब बाहर जमा कराने की व्यवस्थता भी मंदिर ट्रस्ट द्वारा उपलब्ध है ।


इन्हें भी देखें:


- तिरुपति बालाजी मंदिर, जम्मू

कैसे पहुंचे :

मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा जम्मू हवाई अड्डा है जो मंदिर से लगभग 13.5 किमी दूर है। लगभग सभी एयरलाइंस दिल्ली, श्रीनगर, चंडीगढ़ और लेह जैसे प्रमुख शहरों से जम्मू के लिए नियमित उड़ानें संचालित करती हैं। 

रेल द्वारा जम्मू तवी जम्मू का प्रमुख रेलवे स्टेशन है और मंदिर के सबसे नजदीक है। भारत के प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई और त्रिवेंद्रम से नियमित ट्रेन सेवाएं उपलब्ध हैं। मंदिर रेलवे स्टेशन से लगभग 5.5 किमी की दूरी पर स्थित है। 

सड़क द्वारा जम्मू एक व्यापक बस और टैक्सी नेटवर्क से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। निजी पर्यटक बसें जम्मू और दिल्ली, मनाली, अमृतसर, शिमला और लुधियाना जैसे प्रमुख भारतीय शहरों के बीच चलती हैं। मंदिर तक पहुँचने के लिए जम्मू शहर से टैक्सी किराए पर ली जा सकती है जो जम्मू शहर के केंद्र से 5 किमी की दूरी पर है ।

।। जय बावे वाली माता ।। 🙏🕉️🌷🌿🚩🔱

✒️ Swapnil. A


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तवी नदी

बाघ-ए-बहू मछली घर(aquarium) के ऊपर

बहू किला



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गुरुवार, 4 मई 2023

श्री गणेश टेकड़ी टेम्पल, नागपुर

इतिहास:

   गणेशटेकड़ी मंदिर कम से कम 250 साल पुराना माना जाता है। मंदिर समिति के सचिव श्री एस.बी. कुलकर्णी कहते हैं कि विग्रह (मूर्ति) एक स्वयंभू मूर्ति (लगभग 4 फीट) है, जिसका अर्थ है कि कोई प्राण प्रतिष्ठा संस्कार नहीं किया गया था क्योंकि इसे प्रतिष्ठित नहीं किया गया था। विग्रह को मूल रूप से बहुत छोटा कहा जाता था जब यह 1875 में ब्रिटिश भारत के दौरान रेलवे लाइन के निर्माण के लिए पहाड़ी की चट्टानों को नष्ट करने के बाद पाया गया था और तब से इसके आकार में वृद्धि हुई है।

                                   


मंदिर एक साधारण टिन झोंपड़ी के भीतर एक मूर्ति के साथ शुरू हुआ। 1970 के दशक में सेना ने इस संगठन को संभाला और विकसित किया, हालांकि 1978 में प्राथमिक संशोधन हुआ। मंदिर का निर्माण एक प्रमुख उपक्रम के रूप में किया गया था, और उपासकों ने उदारतापूर्वक इस कारण से योगदान दिया। 1984 में, वर्तमान ढांचे ने आकार लिया। दिवंगत श्री गणपतराव जोशी और कुछ अन्य भक्तों ने इसे किया। समय बीतने के साथ, यह स्पष्ट हो गया कि मंदिर परिसर तीर्थयात्रियों की विशाल संख्या को संभाल नहीं सकता था। मंदिर के न्यासियों ने रक्षा मंत्रालय को एक आवेदन दिया, तब रक्षा मंत्रालय ने अतिरिक्त 20,000 वर्ग फुट भूमि प्राप्त करने में सहायता की।


पुरानी दुर्लभ छवि



पुरानी इमारत


Ganesh Chaturthi day

वर्तमान मंदिर:

मूर्ति को माथे पर कई सोने और चांदी के आभूषणों से सजाया गया है। गहनों में मुकुट (मुकुट) नाम का एक विशेष टुकड़ा है जिसे केवल चतुर्थी और एकादशी के अवसर पर प्रदर्शित किया जाता है।

मंदिर का हाल ही के वर्षों में जीर्णोद्वार का कार्य पूर्ण हुआ है । पहले के मुकाबले, अब मंदिर में भक्तों की चहल-पहल और ज़्यादा बढ़ गयी है । श्री गणेश की मूर्ति मूर्ति के अलावा आप यहां भगवान शिव का लिंग, श्री राम परिवार, भगवान कालभैरव, श्री राधाकृष्ण की मूर्तियों के भे दर्शन कर सकते है ।

श्रीराधाकृष्ण

हर दिन, बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में आते हैं, विशेष रूप से महत्वपूर्ण त्योहारों और धार्मिक समारोहों में। हर साल पौष महीने में संकष्टी चतुर्थी के दिन एक बड़ी यात्रा निकाली जाती है जिसे टेकड़ी गणपति यात्रा के नाम से जाना जाता है। मंदिर की विशेषता आरती समारोह है, जो प्रतिदिन चार बार (सुबह 6.30 बजे, दोपहर 12.30 बजे, शाम 7. बजे, 11.30 बजे) किया जाता है और मोदक को दिव्य उपहार के रूप में आरती के बाद वितरित किया जाता है। मंदिर के ट्रस्टी टेकड़ी गणपति मंदिर का प्रबंधन करते हैं, जो सुबह 6 बजे खुलता है। 

श्रीराम दरबार

श्री बजरंगबली

संपूर्ण देश में मनाए जानेवाले गणेशोत्सव के दसों दिन मंदिर को बड़ी भव्यता से सजाया जाता है और मंदिर परिसर में मानो मेले जैसा माहौल बना होता है। गणेशोत्सव के नौवें दिन एक विशालकाय मोतीचूर के लड्डू का भोग भगवान को चढ़ाया जाता है और शाम के समय मंदिर आनेवाले भक्तों को वितरित किया जाता है । 

मंदिर में ठीक इसी समय भक्त अपने नए वाहन सबसे पहले मंदिर में पूजा करवाके शुभारंभ करते है।

श्री गणेश की स्वयम्भू मूर्ति की अलावा मंदिर के पूर्व(मुख्य) द्वार से दाईं तरफ शिव लिंग और शिव रूप भगवान कालभैरव विराजे हैं। वहीं दक्षिण दिशा में श्री कृष्ण और राधा रानी की सुंदर सफेद संगमरमर के विग्रह है। पश्चिम दिशा में भगवान श्री राम, लक्ष्मण माता सीता और बगल में श्री हनुमान जी के विग्रह है प्रतिष्ठित है। 

महालक्ष्मी मंदिर:



मंदिर के दाहिनी ओर एक माँ महालक्ष्मी मंदिर तीन मंजिला इमारत में स्थित है । मंदिर में महालक्ष्मी की भव्य मूर्ति है जिसे राजस्थानी कलाकारों द्वारा संगमरमर से बनाया गया था। यह नागपुर की चुनिंदा महालक्ष्मी मंदिरों में से एक है। मंदिर में मूर्ति समक्ष बहुत काफी मात्रा में जगह होने के कारण यहां भक्तगण यहां ध्यान लगाते है ।

दुनिया भर के कई प्रमुख लोग अपनी परियोजनाओं और साहसिक कार्यों को शुरू करने से पहले मंदिर में आए और पूजा की। यदि आप नागपुर की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो टेकडी मंदिर में वृघ्नहर्ता के आशीर्वाद के साथ अपने दिन की शुरुआत करने का प्रयास करें।

कैसे पहुंचे :

श्री गणेशटेकड़ी मंदिर मध्य नागपुर रेलवे स्टेशन के बिल्कुल समीप स्थित है और अन्य रेलवे स्टेशन जैसे अजनी और इतवारी रेलवे स्टेशन से 5 और  3 किमी की दूरी पर है जहाँ से आपको 10 से बीस मिनट का समय लगेगा टैक्सी, ऑटो रिक्शा या बस द्वारा ।

नागपुर के बाबासाहब अम्बेडकर एयरपोर्ट से तकरीबन 20 किमी की दूरी आपको नागपुर मेट्रो से लगबग आधा घण्टे में श्री गणेश टेकड़ी से सबसे निकटम मेट्रो स्टेशन आधा घण्टे में पहुंचा देती है ।

तो जयकारा लगाइए -

 "गणपति बप्पा मोरया" 

🙏🕉️🌿🌷🚩🔱

✒️ Swapnil. A


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मंगलवार, 2 मई 2023

रामटेक श्रीराम मंदिर, नागपुर

 इतिहास:

रामटेक में एक प्राचीन राम मंदिर देखा जा सकता है। रामटेक को इसका नाम इसलिए मिला क्योंकि ऐसा माना जाता है कि हिंदू नायक राम ने अपना वनवास रामटेक में बिताया था और वहीं विश्राम किया था। हिंदू ऋषि अगस्त्य का आश्रम हिंदू परंपरा के अनुसार रामटेक के करीब कहा जाता है। नागपुर के मराठा राजा रघुजी भोंसले, जिन्होंने छिंदवाड़ा में देवगढ़ के किले को हराया था, ने 18वीं शताब्दी में वर्तमान मंदिर का निर्माण किया था।

 यह पवित्र स्थल संस्कृत कवि कालिदास से भी जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि मेघदाता को रामटेक पहाड़ियों में कालिदास ने लिखा था।

रामटेक मंदिर, जिसे राम धाम, राम मंदिर और रामटेक किला मंदिर भी कहा जाता है, में व्रत लेने पर व्यक्ति का जीवन धन्य हो जाएगा। मंदिर समुद्र तल से 345 मीटर ऊपर स्थित है और इसका 600 साल का इतिहास है। 350 फुट लंबी ओम संरचना जो हनुमान, साईं बाबा और गजानन महाराज की मूर्तियों से सजी हुई है और रामायण के विवरण हैं जो इसे इतना प्रसिद्ध बनाती है। भगवान राम के 'पादुका' (दिव्य पैर) यहां पूजनीय हैं।

इन्हें भी देखे:

-कोराडी माता मंदिर, नागपुर

 शांतिनाथ का जैन मंदिर:

रामटेक अपने प्राचीन जैन मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें जैन तीर्थंकरों की कई मूर्तियाँ हैं। सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ की मुख्य मूर्ति लोककथाओं से घिरी हुई है। यह 1993, 1994, 2008, 2013 और 2017 में प्रसिद्ध हो गया, जब आचार्य विद्यासागर, एक प्रसिद्ध दिगंबर जैन आचार्य, रामटेक चले गए और बरसात के मौसम में चार महीने के चातुर्मास के लिए अपने संघ के साथ वहाँ रहे। उनके प्रभाव से एक विशाल जैन मंदिर का निर्माण हुआ। गोंड राजाओं ने सोलहवीं शताब्दी तक इस क्षेत्र पर शासन किया, जब नागपुर के भोंसले शासकों ने नियंत्रण पर कब्जा कर लिया।

संस्कृत कवि कालिदास का भी इस स्थान से संबंध है। माना जाता है कि मेघदाता को रामटेक पहाड़ियों में कालिदास ने लिखा था।

सिंदूर बावली किले के मंदिर के ठीक बगल में, पार्किंग स्थल के करीब स्थित है। हालांकि इस लोकेशन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। यहां तक कि गूगल मैप्स पर भी हम उसका पता नहीं लगा पाए। हमने इस बाओली को केवल क्षेत्र की खोज करके खोजा। मैं जिस पर्यटक से मिला उसके अनुसार, माता सीता धार्मिक अनुष्ठानों और स्नान के लिए सिंदूर बावली का उपयोग करती थीं।

 जब भी आप भारत की शीतकालीन राजधानी की यात्रा करें तो पूरे उत्साह के साथ इस कम प्रसिद्ध रामधाम की यात्रा अवश्य करें ।

मंदिर दर्शन का सबसे उत्तम समय सर्दीयों के महीने का होता है जब नागपुर, विदर्भ क्षेत्र का मौसम घूमने फिरने के अनुकूल मन जाता है। 

पहुंचे कैसे:

श्री राम रामटेक मंदिर की दूरी नागपुर रेलवे स्टेशन से 55 किमी दूर है और टैक्सी या बस द्वारा 2 घण्टे का समय पहुंचने में लगता है ।

नागपुर विमानतल से श्री राम रामटेक मंदिर लगभग 80 किमी दूर है । बस और टैक्सी के सेवा सदैव सेवा में रहती है ।

।। जय श्री राम ।। 🙏🌷🚩🙏

✒️Swapnil. A



Sindoor Baoli

Aereal Top view







मंदिर के बारे में अधिक जानकारी के लिए इन लिंक्स पर क्लिक कीजिए:-




श्री महालक्ष्मी मंदिर, नागपुर

इतिहास:

कोराडी का पुराना नाम झाकापुर था जिसपे राजा झोलन राज किया करते थे। राजा के सात बच्चे थे और सारे के सारे लड़के । लड़कों का नाम था जनोबा, नानोबा, बनोबा, बैरोबा, खैरोबा, अग्रो, और दातासुर। एक भी कन्या रत्न ना होने के कारण राजा दुःखी रहा करते थे। कुछ समय पश्चात राजा ने अपनी रानी गंगासागर के साथ देवताओं को प्रसन्न करने हेतु एक यज्ञ और पूजा अनुष्ठान किया जिससे उन्हें एक कन्या रत्न की प्राप्ति हुई । इस कन्या के मुख पर एक दिव्य तेज था । कन्या के होने पर सम्पूर्ण नगर में खुशहाली छा गयी । प्रजा पहले से और ज़्यादा सुखी सम्पन रहने लगी। (इसिलए यहां आनेवाले भक्त जो निसंतान है वे संतान प्राप्ति का वर अवश्य मांगते है।)

आई महालक्ष्मी, कोराडी

यह कन्या जैसे-जैसे बड़ी होने लगी वैसे वैसे राजा और रानी को अपनी कन्या की दिव्यता का आभास होना शुरू हो गया।

फिर एक बार जब पड़ोसी नगर किराड़ ने झाकापुर पर हमला कर दिया तब राजा की दिव्य कन्या ने राजा और उनकी सेना का मार्गदर्शन किया और अपने नगर वासियों की रक्षा की ।

लड़ाई के पश्चात एक संध्या पर इस कन्या ने अपने दिव्य रूप के दर्शन दिए और जिस स्थान पे दर्शन दिए उसी स्थान पर कोराडी देवी मंदिर स्थित है।

मंदिर:

मंदिर परिसर का निर्माण हाल ही के चार वर्षों में नागपुर महानगर पालिका द्वारा संपन्न हुआ है । मंदिर की शोभा इसके प्रांगण ओर मंदिर के अंदर बनाया गया भव्य चांदी का दरबार है। मंदिर की नक्काशी राजस्थान के धौलपुर से बुलाये गए कारीगरों द्वारा की गई है।

मूर्ति (मूर्ति) को 'स्वयंभू' माना जाता है - भौतिक, क्योंकि इसे स्थापित नहीं किया गया था।

मंदिर में माता जगदम्बा का स्वरूप दिन में तीन बार बदलता है। ऐसा माना जाता है कि कोराडी मैय्या सुबह बालिका, दोपहर में एक स्त्री और श्याम होते एक प्रौढ़ बुज़ुर्ग का रूप धारण कर लेती है। 



 


कोराडी मंदिर को एक शक्तिपीठ के रूप में भी माना गया है । हर साल नवरात्र के समय यहां भक्तों का तांता लगा रहता है और साथ ही मेले का आयोजन भी किया जाता है । भक्त अपनी समस्त मनोकामना हेतु मंदिर में नवरात्र के समय घटस्थापना भी करते है।

आप जब भी नागपुर पधारे तोह माता के चरणों मे शीश झुखाने अवश्य आएं।

इन्हें भी देखे: 

श्री राम मंदिर, रामटेक, नागपुर

महालक्ष्मी मंदिर कैसे पहुँचे :

कोराडी मंदिर नागपुर रेलवे स्टेशन से 18 और नागपुर के बाबासाहब अंबेडकर एयरपोर्ट से 22 किमी की दूरी पर स्तिथ है। 

नागपुर - छिंदवाड़ा के लिए जाने वाली बस सेवा दिन के समय में उपलब्ध रहती है। इसके साथ ही टैक्सी सेवा भी एक न्यूनतम किराए पर आप ले सकते है। 

मंदिर दर्शन के लिए सबसे उपयुक्त समय फाल्गुन या चैत्र नवरात्र के महीने सबसे अच्छा समय होता है। 




|| जय माता जगदम्बा || 

🙏🕉️🌷🌿🚩🔱🙏

✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)

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सोमवार, 1 मई 2023

जमसावली मंदिर, छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश

हनुमान भक्त इस चमत्कारिक मंदिर से यहां पर मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाके यहां से वह सिंदुर अपने साथ ले जाते है अपनी समस्या का निवारण करने।






मंदिर

श्री जमसावली हनुमान मंदिर से जुड़ी एक अत्यंत विशेष किंवदंती यह है। एक बार कुछ चोर लुटा हुआ खज़ाना (शायद एक सोने की सनकल) लेके मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति के निकट जो विशाल पीपल का पेड़ है, वहां अंदर गाड़ दिया । जिसे भगवान बजरंगी ने देख लिया । जब चोर वहां वह खज़ाना छोड़ चले गए , तब भगवान वहां निद्रा वाली मुद्रा में सो गए । तब से निद्रा वाली मूर्ति यहाँ स्थापित हो गयी ।

जमसावली मंदिर छिंदवाड़ा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बीच सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। मंदिर के चमत्कार जगजाहिर हैं। यह सौसर शहर से 110 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह महाराष्ट्र राज्य के बाहरी इलाके में स्थित है। अभयारण्य में भगवान हनुमान आराम कर रहे हैं, जो भारत में बेहद असामान्य है। मंदिर में साल के किसी भी समय जाया जा सकता है।
यदि आप नागपुर क्षेत्र में रहते हैं तो यह विशेष रूप से आपके निकट है। यह भी कहा जाता है कि बिना भगवान के बुलाए कोई भी हनुमान मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता है। मंदिर में दो मुख्य मार्ग हैं। एक पुरुषों के लिए है, और दूसरा महिलाओं के लिए है। मास्टर हनुमान को इस संदर्भ में बाल ब्रम्हचारी कहा जाता है। मंदिर की संतता को बनाए रखने के लिए, महिलाओं को एक निर्धारित दूरी से भगवान को संबोधित करने की अनुमति है, लेकिन पुरुषों को मूर्ति के जितना संभव हो उतना करीब आने की अनुमति है। जाम सावली के हनुमानजी असंख्य आशीर्वाद देते हैं और आपकी झुंझलाहट का पता लगाते हैं, जिससे आपको सभी दर्द से राहत मिलती है। यह मंदिर विशेष रूप से अज्ञात बीमारियों से पीड़ित रोगियों को राहत देने और यहां तक कि इसकी ओझा शक्तियों के लिए भी प्रसिद्ध है। साथ ही यह मंदिर भूत-प्रेत और पिशाच बाधा अथवा तांत्रिक शक्तियों को खत्म करने के लिए मुख्यत जाना जाता है।  बजरँगबली की निद्रा में लीन मूर्ति और भी कष्टों को समाप्त करने के लिए जानी जाती है ।

श्री हनुमान जन्मोत्सव और श्री राम नवमी का वार्षिक उत्सव उच्च आत्माओं और आनंद से भरा होता है। पूरे भारत से भक्त शक्ति, ब्रह्मचर्य और भक्ति के भगवान को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आते हैं।

कैसे पहुंचे : 
जमसावली मंदिर से सबसे निकटम रेलवे स्टेशन, छिंदवाड़ा छोटी लाइन रेलवे स्टेशन है ओ 60 किमी है। यह दूरी स्थानीय बस या टैक्सी द्वारा उपलब्ध रहती है । दुपहिया या चार पहिया वाहन से 1 घण्टे 30 मिनट का समय लेता है । दूसरा सबसे निकटम रेलवे स्टेशन है नागपुर रेलवे स्टेशन जो जमसावली 70 किमी डोर स्तिथ है और यह दूरी 2 घन्टे 15 मैं तय की जा सकती है, रोड द्वारा ।

।। जय श्री राम ।।

।। जय बजरंगबली ।।

🙏🕉️🌷🌿🚩🔱🙏

✒️ Swapnil. A


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


गिरजाबंध हनुमान मंदिर, बिलासपुर, छतीसगढ़

  यूं तो भगवान श्रीराम भक्त हनुमान के देश में कई और विदेशों में कुछ मंदिर है, किंतु भारत के गांवों दराजों में ऐसे मंदिर है जिनकी खबर किसी को...