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गुरुवार, 23 नवंबर 2023

बूढ़ानीलकंठ मंदिर, काठमांडू, नेपाल

पौराणिक मान्यता:

किंवदंती अनुसार जब सत्युग में समुद्र मंथन हुआ तब सारे ब्रम्हांड में समुद्र मंथन से निकला विष जीव-जंतुओं का विनाश करने लगा। तब महादेव ने आपने कंठ में सारे विष को निगल लिया। इसके के पश्चात, कंठ में जलन हुई तो महादेव नेपाल के इस स्थान की ओर आ कर त्रिशूल से प्रहार किया और जल धारा प्रकट की। यह जल धारा से एक कुंड का निर्माण हुआ जिसे आज गोसाईं कुंड के नाम से जाना जाता हैं।


निद्रा में भगवान विष्णु

इतिहास:


भगवान विष्णु की यह प्रतिमा कथा अनुसार एक किसान को खेत मे काम करते वक़्त मिली थी और दूसरी किंवदंती के अनुसार इसे 7वी शताब्दी में कहीं बनवाया गया था और राजा विष्णुगुप्त ने इस प्रतिमा को स्थापित करवाया था। श्री हरि की मूर्ति के नीचे भगवान महादेव अप्रत्यक्ष रूप से विराजित है जो साल में एक बार दर्शन देते हैं।





मंदिर मूर्ति:


मूर्ति की लंबाई 5 मीटर और सरोवर की 13 मीटर है। इस झील का नाम गोसाई कुंड कहते हैं। मूर्ति को एक विशाल काले बेसाल्ट पत्थर पर कलात्मक सुंदरता के साथ उकेरा गया है। गोसाई कुंड समुद्र तल से 436 मीटर ऊंचाई पर स्थित है।  इस सरोवर में भगवान नारायण शेषनाग की कुंडली मे सोई मुद्रा में है। यह सरोवर ब्रह्मांडीय समुद्र का प्रतिनिधित्व भी करता है। भगवान विष्णु के 4 चिन्ह: शंख, गदा, कमल और चक्र चार दिव्य गुणों को दर्शाते हैं। शंख 4 तत्व को, चक्र मन को, कमल का फूल चलते ब्रह्मांड को और गदा ज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हैं। भगवान का शरीर चांदी के बाजूबंद से सजाया हुआ है। 


मंदिर में सुंदर नक्काशियों की भरमार है। नेपाल के अन्य मंदिरों की तरह बूढानीलकंठ मंदिर में भी भगवान श्री हरि के वाहन गरुड़ देव जी, मंदिर के द्वारपाल बनके विराजे हैं। भगवान विष्णु की मूर्ति के पैर शेषनाग की कुंडली के पार है। 




यह रहस्यम मंदिर नेपाली राज परिवार के लिए श्रापित माना गया है। कहते हैं की राज परिवार का कोई भी सदस्य अगर यहां भगवान के दर्शन कर ले या चूक से भी आ जाये तोह उसकी मृत्यु हो जाएगी। 


विष्णु या बुद्ध:


 नेपाल के इस प्राचीन मंदिर में न केवल हिंदू किंतु नेपाल के बौद्ध भी बड़ी गहरी आस्था रखते है। नेपाली बौद्ध भगवान विष्णु की इस मूर्ति को बुद्ध की मूर्ति मान पूजते है तथा इस मंदिर को एक बौद्ध मंदिर। बौद्ध धर्म सनातन के अंतर्गत होने की वजह से नेपाली हिंदू और बौद्धों में आजतक इस पर कभी-कोई विवाद या वैमनस्य पैदा नहीं हुआ है। 






त्यौहार एवं महोत्सव:


नेपाल के विशेष विष्णु तीर्थों में से एक होने की वजह से नेपाल, भारत और बाकी देशों से अनेक आगंतुक और श्रद्धालू, बूढानीलकंठ मंदिर हर वर्ष देव शयनी और प्रबोधिनी एकादशी पर भारी संख्या में आते हैं।  इस महीने में भगवान विष्णु अपने 4 महीने की निद्रा से जागते है और इसीलिए इस समय बड़े मेले का आयोजन मंदिर में करवाया जाता है।


लोगों का मानना है कि जुलाई से अगस्त में होनेवाले श्रावण उत्सव के दौरान भगवान शिव का चेहरा दिखाई देता है। 


मंदिर समय सारिणी:


मंदिर सवेरे 5 बजे से संध्या 7 बजे तक आगंतुकों के लिए खुला रहता है।

 

✒️स्वप्निल. अ


बुधवार, 22 नवंबर 2023

लक्ष्मी नरसिंह स्वामी मंदिर, वारंगल, तेलंगाना

स्थानीय किंवदंती:

मल्लुर, वारंगल का यह क्षेत्र अपनी लाल मिर्च की पैदावार के लिए बहुत प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र से जुड़ी हुई प्रचलित किंवदंती है। एक गरीब किसान था जिसके पास धन बिल्कुल नहीं था सिवाय मिर्च के एक पौधे के। किसान ने उस पौधे से कुछ मिर्च उगाई और भगवान नरसिंह स्वामी की इस मूर्ति को अर्पित कर दी। तब से इस क्षेत्र की मिर्च उत्कृष्ट किस्म की और सबसे अधिक उगाई जाती है। 




भगवान नरसिंह देव

इतिहास:


नरसिंह स्वामी मंदिर का पहला प्रमाण देखा हुआ प्रमाण 6वी सदी का है जबकि मंदिर तकरीबन 5000 वर्ष पुराना है। अगस्त्य ऋषि ने इस पर्वत को हेमाचल् नाम दिया था। इसी स्थान पर भगवान राम ने खर और दूषण समेत 14000 राक्षसों का वध भी किया था। तथा यह क्षेत्र दशानन रावण ने अपनी बहन शूर्पणखा को उपहार स्वरूप भेंट दिया था।


 नरसिंह देव की मूर्ति के प्राकट्य की कथा कुछ रहस्यों से घिरी हुई है। हेमाचल की पहाड़ियों में भगवान की मूर्ति एक तेज प्रकाश के फैलने के बाद खोजी गयी थी। यह मंदिर मल्लुर के सागर गांव में स्थित और यहां के निवासी बताते हैं कि यहां पहले अनायस कभी भी आग लग जाया करती थी। फिर पंडितों ने बताया कि भगवान नरसिंह उग्र रूप लिए हुए और उनके तेज के कारण आग लग जाती थी। इसका निवारण भगवन को यःज्ञ- अनुष्ठान से प्रसन्न कर शांत किया गया और आग लगने की घटना पर विराम लगा।




लक्ष्मी नरसिंह स्वामी मंदिर


लक्ष्मी नृसिंह स्वामी मंदिर समुद्र से 1500 फ़ीट ऊपर हेमाचल की पहाड़ी पर घने पुत्तकोंडा जंगलों के बीच स्थित है। प्रभु दर्शन करने के लिए 150 सीढियां चढ़नी पड़ती है। नरसिंह मंदिर के रास्ते मे बजरँगबली को समर्पित मंदिर भी आता है। इस मंदिर ने बजरंगी शिखानजने के रूप में विराजे है। शिखानजने इस मल्लुर क्षेत्र के क्षेत्रपाल(राजा) कहलाये जाते हैं।




 

विष्णु अवतार नरसिंह की मूर्ति ज्वालामुखी पर्वत में स्वयम्भू प्रकट हुई थी। नरसिंह स्वामी कक विग्रह 9.2 फ़ीट का है। इस हैरत के देने वाली मूर्ति के अलावा संसार में ऐसी कोई देव प्रतिमा नहीं जो किसी मानव शरीर जैसी नरम हो। यहां के पुजारी बताते है कि इस मूर्ति में अगर कोई अपनी उंगली दबाता है तो उस गड्ढे के निशान उंगली उठाने पर साफ दिखाई देते है। मूर्ति के शरीर पर मानव जैसे बाल भी देखे जाते हैं। पूरे पर्वत की जांच-पड़ताल करने पर भी एक भी दूसरा कोई ऐसा पत्थर ना मिला जी भगवान की मूर्ति जितना मुलायम हो। यह ताज्जुब कर देने वाली बात आज भी शोधकर्ताओं के लिए बड़ा विषय बना हुआ है। 


भगवान की नाभी से पवित्र जल निकलता है। पुजारी नाभि की हल्दी का लेप से लगाये रहते हैं। भक्त इसे पवित्र तीर्थम मान अपने साथ ले जाते हैं। इसमें अनेक बीमारियाँ और पाप ठीक करने की चमत्कारिक शक्ति मानी जाती है। जब रानी रुद्रमादेवी एक भयानक रोग से ठीक नहीं हो पा रही थी तब एक वैद्य के सुझाव पे भगवान नरसिंह के दिव्य तीर्थम जल का सेवन कर ठीक हो गयी। इस जल को कोनेरू कहा जाता है। इसकी सुगंध चंदन जैसी होती है सो इसे "चंदना ध्वरम" कहा जाता है। विदेश से आनेवाले भक्त भी इसे अपने साथ बोतल में बंद कर ले जाते हैं। इस जल की धारा का अंत कहाँ होता है इसका आज तक ज्ञान किसी को ना हुआ।






मंदिर शाम 5 बजे के बाद बंद कर दिया जाता है क्योंकि भगवान नरसिंह स्वयं इस क्षेत्र में सिंह रूप में घूमते है। सिंह की दहाड़ यहां मंदिर अगल-बगल वन क्षेत्र में सुनी जाने का दावा किया गया है। 


राज्य सरकार ने इस विस्मय कर देनेवाले धाम को अभी तक ज़्यादातर बाहर की जनता को अनभिज्ञ कर रखा है। मंदिर आज भी तेलंगाना राज्य सरकार के कब्जे में है। मंदिर को जड़ी-बूटियों की जैव विविधता क्षेत्र की श्रेणी में रखा गया है। 


हर 12 वर्ष होनेवाले गोदावरी पुष्कर मेले का आयोजन किया जाता हैं। सन् 2003 के मेले में मंदिर का पुनरूत्थान किया गया था। 


 त्यौहार और उत्सव:


मंदिर में वैकुंठ एकादशी, श्री ब्रह्मोत्सवम और नरसिंह जयंती विशेषतः मनाई जाती है। लाखों की संख्या में इन तिथियों पर भक्त मंदिर नरसिंह भगवान की झलक पाने पहुँचते हैं। 

 

मंदिर गर्भ-गृह


मंदिर दर्शन समय सारिणी:


रविवार से शनिवार सुबह 8 से ही बजे तक शाम 3 से 5 बजे तक।

  

पूजा और सेवा का समय:


सुप्रभातम -  सुबह 4 से 4:30 बजे तक

बिंदर तीर्थम - सुबह 4:30 कम से 5 बजे तक 

बाल भोगम - सुबह 5 से 5:30 बजे तक 

निजभिषेकम- सुबह 5:30 से 6:30 बजे तक

अर्चन- सुबह 6:30 से 7:15 बजे तक

दर्शन- सुबह 7:15 से 11:30 बजे तक


मल्लुर अन्य मंदिर:


मल्लुर में लक्ष्मी नरसिंह मंदिर के अलावा मलाग्नि मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर, समक्का सरलम्मा मंदिर और श्री रामलिंगेस्वर मंदिर भी दर्शनीय है।


लक्ष्मी नरसिंह मंदिर कैसे पहुँचे:


मंदिर से सबसे निकट हवाई अड्डा हैदराबद का शमशाबाद हवाई अड्डा है। 


सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन मानुगुरु रेलवे स्टेशन है।


सड़क मार्ग से एडुलपुरम रोड पर वारंगल के लिए बहुत सारी बसे और प्राइवेट गाड़ियां उपलब्ध रहती है ।






✒️स्वप्निल. अ

(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


सोमवार, 7 अगस्त 2023

तिरुपति बालाजी मंदिर, जम्मू

जम्मू की तवी नदी के शांत किनारों और शिवालिक पहाड़ियों 15 जून 2023 जम्मू के हिन्दू रहवासियों और बाहर से आनेवाले पर्यटकों के दर्शन के लिए भारत और राज्य सरकार के समर्थन के साथ खोल है गया है आंध्र प्रदेश का तिरुपति बालाजी मंदिर। तिरुपति बालाजी मंदिर आंध्र प्रदेश का एक सबसे प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है जो भगवान वेंकटेश्वर का निवास स्थान है। देश में आंध्र प्रदेश के बाहर प्रभू तिरुपति बालाजी के अब कुल छः मंदिर बन चुके हैं। 


बालाजी मंदिर, जम्मू

 

मंदिर:


मंदिर में प्रमुख देवता भगवान वेंकटेश्वर है औऱ साथ में भगवान शिव, गणेश और माँ दुर्गा की प्रतिमाएं भी हैं। जम्मू कश्मीर में मंदिर बनाने का प्रमुख उद्देश्य में विविधता और पर्यटन को बढ़ावा देना। आंध्र प्रदेश के तिरुमला बोर्ड द्वारा मंदिर संचालित है और 45 पुजारी पंडितों द्वारा मंदिर का उद्घाटन और मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा की गई है। 


जम्मू के सिध्रा क्षेत्र में 62 एकड़ में बनाया गया है और लागत 30 करोड़ से ज्यादा की रुपये बताई गई है। भगवान बालाजी की कूप 2 प्रतिमाएं, 8 और 6 फ़ीट की लगाई गई हैं। इनमें 6 फ़ीट की प्रतिमा मंदिर के गर्भ गृह में और 8 फ़ीट गर्भ गृह के बाहर स्थापित है। मंदिर में पत्थर कर्नाटक और आंध्र से लाये गए थे। 

                   
    


         


"भगवान व्यंकटेश बालाजी" की आंखों पर पट्टी हफ्ते के 6 दिन बंधी रहती है और गुरुवार को, जो कि भगवान विष्णु का दिन है इसी दिन यह पट्टी खुली रहती है। यह नियम सारे बालाजी मंदिरों में अनुसरित किया जाता है। यह मान्यता है कि भगवान बालाजी के नयनों में अत्यंत प्रकाश होता है।

 


      


'मंदिर के मंडप में कदम रखने के पूर्व श्रधालुओं से मंदिर अनुरोध करता है कि अपने फोन बंद करके रखें या बाहर ना निकाले।'


मंदिर पुजा समयसारिणी

इन्हें भी देखें:

      


तिरुपति बालाजी कैसे पहुँचे:


जम्मू से वैष्णदेवी जाते समय सिध्रा होते हुए श्रद्धालु दर्शन कर सकते है। 


मंदिर से जम्मू तवी स्टेशन की दूरी 12 किमी जो 15 से 20 मिनट में पूरी की जा सकती है। टैक्सी, प्राइवेट कैब और बस दिन के हर समय उपलब्ध रहती है। 

जम्मू तवी स्टेशन से दिल्ली, पंजाब, हरयाणा, हिमाचल, और कश्मीर, लेह-लद्दाख, सभी बेहतर रोड और रेल मार्ग से जुड़े हुए है जिससे उत्तर भारत के वासी बालाजी के इस अनुपम तीर्थ से धन्य हो सकते हैं। 


             


।। ॐ नमो वेंकटेशाय ।। 


🙏🕉️🌷🚩🙏


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करें:-




सोमवार, 12 जून 2023

जगन्नाथ मंदिर, जाजपुर, ओडिशा

हम सबने चार धामों में से एक, पुरी के विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के बारे में तोह सुना ही होगा पर क्या आप जानते हैं ओडिसा एक और पुरातन जगन्नाथ मंदिर के बारे में? तो आइए जानते है छतिया बाटा के बारे में जिसे ओडिसा के छोटे जगन्नाथ धाम के रूप में भी पूजा जाता है।  इस बात की जानकारी अधिक लोगों को नहीं पता है। चाटिया जगन्नाथ मंदिर, पुरी के जगन्नाथ मंदिर जितना ही रहस्यमयी है। 

योगमाया मंदिर,मेहरौली,दिल्ली

देश की राजधानी दिल्ली के दक्षिण में स्तिथ  माँ योगमाया का शक्तिपीठ मंदिर है। देवी योगमाया भगवान श्री कृष्ण की बड़ी बहन हैं। मेहरौली इलाके में...