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शनिवार, 17 फ़रवरी 2024

मोढेरा सूर्य मंदिर, मेहसाणा, गुजरात

पौराणिक इतिहास:

गुजरात के मेहसाणा जिले के मोढेरा के सूर्य मंदिर का इतिहास त्रेतायुग में लंका दिग्विजय पश्चात् के समय का माना जाता है। प्रभू श्री राम अपने गुरु वशिष्ट ऋषि के आदेश पर इस स्थान पर आए थे; रावण वध से हुए ब्राह्मण हत्या के पाप प्रायश्चित किया था। इसका वर्णन स्कंद पुराण और ब्रह्म पुराण में मिलता है। उस समय इसे 'धर्मारण्य' नाम से जाना जाता था। इसी स्थान पर श्री राम ने यज्ञ भी करवाया था। 


           

           

इतिहास:


मोढेरा सूर्य मंदिर का निर्माण राजा भीम देव प्रथम ने सन् 1026-1027 CE के मध्य करवाया था। वे चालुक्य वंश के थे और इनके कुल देवता सूर्य देव थे जिस कारण वे सूर्य वंशी भी कहलाते थे। उस काल में गुजरात के इस भाग ने इस्लामी आक्रांताओं के अनेकों हमले झेले और अनगिनत मंदिरों का विनाश होते देखा। महमूद गज़नी सोमनाथ मंदिर में रक्तपात,लूट और विध्वंस करते हुए मोढेरा पहुँचा। मोढेरा मंदिर को बचाने के लगभग असफल प्रयास में तकरीबन 20,000 योद्धाओं ने अपना बलिदान दिया। इतिहासकार ए.के.मजूमदार के अनुसार मोढेरा सूर्य मंदिर का निर्माण मोढेरा पर हुए हमले के बचने के उत्साह में बनवाया गया था। पश्चिमी दीवार के एक पत्थर पर लापरवाही से लिखे देवनागरी में सन् 1083 इसवी की तारीख लिखी है जो मंदिर बनने के असल वर्ष को 1026-27CE दर्शाता है। इसे पुख्ता प्रमाण नहीं माना जाता है क्योंकि इसके अलावा और कोई तारीख का वर्णन मंदिर के किसी दूसरे स्थान पर नहीं है। उस तारीख को मंदिर के निर्माण की जगह मंदिर के ध्वस्त की तारीख माना गया है। बाहर बने सरोवर का निर्माण पहले किया जा चुका था और इसके अंदर छोटे-छोटे मंदिर राजा भीम देव के सत्ता में लौटने के बाद बनाये गए थे। बारहवीं सदी के तीसरे भाग में राजा कर्ण द्वारा नृत्य मंडप जोड़ा गया था।





इस्लामी विध्वंस


बारहवीं सदी में मंदिर आक्रांता अल्लाउदीन खिलजी ने हमला किया था। इस हमले में मंदिर में अधिक विध्वंस हुआ। खिलजी ने मंदिर के गर्भ से सूर्य देव की सोने की मूर्ति जो हीरे से जड़ित थी अपने साथ ले गया। बाकी मूर्तियाँ भी तोड़ी गयी और मंदिर की दीवारों पर बने देवी देवताओं के सुंदर शिल्प खंडित हो गये।


मोढेरा सूर्य मंदिर:


 मोढेरा सूर्य मंदिर उस समय मध्य भारत की प्रचलित गुर्जर-मारू शैली में बनाया गया था। मंदिर को बनाने में ग्रेनाइट के पत्थर का उपयोग है किंतु चूने का उपयोग इंठों को चिपकाने के लिए नहीं किया गया है।इस मंदिर का विमान आड़ा बनाया गया था और शिखर मेरु पर्वत जैसा जो काफी सदियों पहले गिर चुका था। मंदिर का आधार उलटे रखे कमल के आकार पर बना है। मंदिर के तीन भाग है, गर्भ-गृह, सभामंडप, और कुंड। गर्भ-गृह गूढ़ मंडप का भाग है।



 गर्भगृह की लंबाई अंदर से 51 फ़ीट 9 इंच और चौड़ाई 25 फीट 8 इंच है। यह तीनों, मंदिर संकुल का अक्षीय गठबंधन है। सभामंडप गूढ़मंडप के समककक्ष नहीं है बल्कि अलग बना है। इन दोनों को छत लंबे समय पहले गिर गयी थी, अब केवल नीचे का भाग बचा है। मंदिर के बाहर की तरफ की दीवारों पर कई देवी-देवताओं के शिल्प खंडित है। हिंदू परंपरा अनुसार एक खंडित मंदिर में पूजा कभी नहीं होती है।गूढ़मंडप की बाहरी दीवार पर तीन खिड़कियां बनी है। बगल में सूर्य देव की मूर्ति रथ में अश्वों द्वारा खींचते हुए बनी है। और तो और सूर्य की अलग-अलग मुद्राओं में मूर्तियाँ बनी है जो सूर्य की प्रति महीने रहने वाली स्तिथि को दर्शाती है। 


   सभामंडप में 52 स्तम्भ है जो एक वर्ष में बावन हफ़्तों का प्रतिनिधित्त्व करते हैं। साल के 365 दिनों के प्रतिनिधित्त्व के लिए 365 हाथी बने हैं। स्तम्भों को देखने पर मंदिर नीचे की ओर से अष्टकोणाकर और ऊपर से देखने पर गोल दिखाई देता है। मंदिर के अंदर और बाहर मूर्तियों को बारीकी से तराशा गया है। इन मूर्तियों में समस्त हिंदु देवी-देवताओं को उनके वाहन के साथ बनाया गया है। जैसे अग्नि देव को भेड़ के साथ दिखाया गया है। आंठ दिशाओं के दिगपालों की मूर्तियों को उनकी दिशाओं के अनुसार स्थान पर शिल्पित किया गया है। भगवान सूर्य की एक मूर्ति गर्भगृह की बाहर की दीवार पर दोनों पत्नीयों, छाया और संध्या के साथ दिखाया है। सभामंडप के अंदर ध्यानाकर्षण करते है, रामायण, महाभारत के प्रसंगों को सटीकता उकेरा गया है।


मंदिर न केवल अभियांत्रिक पक्ष से उत्कृष्टता की निशानी है बल्कि धर्म और अध्यात्म के संगम को रोचकता से समझाने के लिये भी निर्मित है।इस समय मंदिर का रख रखाव भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा किया जा रहा है। मंदिर राष्ट्रीय स्मारकों की सूची में शामिल है और यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर की सूची में दिसम्बर 2022 में शामिल किया गया था।


सूर्य मंदिर विज्ञान और रहस्य:


मोढेरा के सूर्य मंदिर की सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस मंदिर के गर्भगृह पर साल के दो दिन - 21 मार्च और 21 जून को सूर्य की किरणे सीधी गिरती है। साल का सबसे लंबा दिन 21 जून(Summer Solstice) है जिसे अंग्रेज़ी में समर सोलस्टिस कहते है। और 21 मार्च(Equinox) के दिन, दिन और रात्री समान अवधि की होती है। सूर्य देव का यह मंदिर कोई साधारण मंदिर नहीं अपितु वैदिक खगोलशास्त्र की वेदशाला होने का अनुमान है। कर्क रेखा पृथ्वी पर 23.6° अक्षांश पर गुजरती है और मंदिर बीबी ठीक इसी दायरे में बनाया गया है। इन दो दिनों पर कोई व्यक्ति दिन के उजाले में खड़ा रहे तो उसकी या किसी भी वस्तु की परछाई धरातल पर नहीं दिखती है।पर्यटक इस बात को आंखोंदेखी कर अनुभव कर सकते हैं।


हर वर्ष पृथ्वी का अक्षीय झुकाव बदलते रहता है। फिर भी इस झुकाव का एक सीमित दायरा है। मोढेरा का मंदिर कुछ वर्षों में इस दृश्य की अनुभूति करता रहता है। अनुसंधानकर्ताओं ने इस पर समग्र शोध किया है किंतु मंदिर का हजार वर्ष पहले बिना किसी आधुनिक तकनीक के कैसे निर्माण हुआ यह कल्पना से परेह है। 


गर्भगृह के नीचे कुछ अनुसंधानकर्ताओं द्वारा पता करने पर एक विशाल गढ़े के होने की जानकारी मिली थी जिसे अब बंद करके रखा गया है। उनके अनुसार इस गड्ढे में सूर्य देव की सोने की हीरों से जड़ित मूर्ति हुआ करती थी। यह मूर्ति हवा में किसी विद्युतीय उपकरण द्वारा मैग्नेटिक लेविटेशन प्रणाली से तैर सकती थी। सूर्यदेव की इस मूर्ति का क्या हाल हुआ इसकी कोई जानकारी नहीं है। हालांकि सोने की मूर्ति आदि बात केवल मिथ्या मनोरंजन के लिए गढ़ी गयी हो यह भी माना जा सकता है - वैसे ऐसी बात भारत के प्राचीन मंदिरों के संदर्भ में अगर कहि जा रही हो तो उसमें लेशमात्र सत्य तो होगा ही। 


कर्क रेखा को मंदिर के मध्य से गुजरता दर्शाने के लिये मंदिर की बाहरी दीवार पर दो लकीरें खींची दिखाई देती हैं।


राम कुंड


  मंदिर के प्रमुख आकर्षणों में से एक इस कुंड को श्री राम कुंड, सूर्य कुंड और 'सीता नी चोड़ी' भी कहा जाता है। कीर्ती तोरण से होते हुए कुंड की तरफ रास्ता है। इसे चारों तरफ से पत्थरों से बनाया गया है।पश्चिम दिशा में मुख्य प्रवेश द्वार है। कुंड आयताकार आकर का बनाया गया है। उत्तर से दक्षिण की ओर 176 फ़ीट और पूर्व से पश्चिम की ओर 120 फ़ीट क्षेत्र में है। कुंड के जल तक पहुँचने के लिये चारों ओर से छत बनी है जिसके नीचे से सीढियां है।  इसमें 28 सीढियां हैं जो महीने के 28 दिनों का प्रतीक हैं। ब्रह्मांड में 27 नक्षत्रों को दिखाने के लिये राम कुंड में 27 छोटे-बड़े मंदिर भी बने है जिनमे वैष्णव देवों के विग्रह विराजीतहैं। कुंड के निर्माण के बाद इसमें सातों महाद्वीपों का जल एकत्रित कर मिलाया गया था।






मोढेरा नृत्य महोत्सव:


गुर्जरत पर्यटन विभाग द्वारा हर वर्ष मकर संक्रांति पर सूर्य देव के उत्तरायण होने पर मोढेरा सूर्य मंदिर के बाहर भव्य नृत्य कार्यक्रम किया प्रस्तुत किया जाता है। इसमें देश-विदेश के लोग भाग लेते हैं और देखने पहुँचते हैं।





मोढेरा सूर्य मंदिर कैसे पहुँचे:


मोढेरा सूर्य मंदिर से मेहसाणा रेलवे स्टेशन की दूरी तकरीबन 30 किमी है। यह दूरी 40 मिनट में प्राइवेट कैब या सरकारी बस द्वारा पूरी की जा सकती है। 


मेहसाणा से सबसे नजदीक गुजरात का अहमदाबाद शहर है। यह दूरी 76 किमी है और 2 घण्टे में चार पहिया द्वारा पूरी की जा सकती है। 


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)

 

रविवार, 4 फ़रवरी 2024

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