मेंढक मंदिर उत्तर प्रदेश का एक उत्सुक्ता से भर देनेवाला मंदिर है जिसका नाम सुनने से मन अचंभित हो कर दिमाग सोचने में लग जाता है। यह मंदिर अपना विचित्र इतिहास के लिए जुड़ा हुआ है।
इतिहास:
ओयल के राजा बख्त सिंह ने सन् 1755 में मेंढक मंदिर का निर्माण करवाया था। भक्त सिंह ने गोसाईं सेना को हरा कर उनकी धन-संपत्ति अपने पास रख ली थी चूंकि गोसाईं सेना में ब्राह्मण थे सो उनके धन को राजा राज कोष में नहीं रख सकते थे। शैव धर्म के अनुयायी राजा ने अपने इष्ट को मेंढक मंदिर बना कर समर्पित करवाया था। बाहर इस अजीब से दिखने वाले शिव मंदिर के बनने के पीछे का प्रमुख कारण ओयल कस्बे में पड़ने वाला भयंकर अकाल भी था। राजा के शासन के दौरान यहां भीषण एक बार भीषण अकाल पड़ा था। धरती से अन्न का एक अंकुर नहीं फूट रहा था। जनता त्राहि त्राहि कर रही थी। कुछ अरसा बीता तो राजा ने ईश्वर की शरण में जाने को सोची। राजा ने कपिला नगर से एक तांत्रिक बुलाने की सोची। तांत्रिक ने मण्डूक तंत्र (मण्डूक यानी मेंढक) पर राज्य में मंदिर बनवाने का सुझाव दिया और मंदिर निर्माण कर ओयल नगरी वापिस फलने-फूलने लगी।
ओयल मेंढक मंदिर:
मंदिर एक मेंढक और उस पर बनाये गये मगरमच्छ के ऊपर बनाया गया है। स्का कुल क्षेत्र 18×25 वर्ग मीटर है। मेंढक का चेहरा 2.5×1.5×1 क्यूबिक मीटर है तथा मुंह उत्तर की ओर है। मंदिर का मुख्य दरवाजा पूर्व और दूसरा द्वार दक्षिण में स्तिथ है।
भगवान भोले का शिवलिंग “बानसुर प्रदरी नरमेश्वर नरदादा कंड” से लाया गया था और यह दिन में किसी भी प्रहर के मध्य 3 बार रंग बदलता है।
मेंढक और मगरमच्छ ऐसे जीव है जो पानी के अंदर और थल दोनों पर विचरण कर जीवन जी जीते हैं। इस अंतर्भूत को ध्यान में रखकर मंदिर निर्माण में मेंढक और मगरमच्छ के ऊपर बने मंदिर में महादेव के विराजमान होने के लिए चुना गया था। तंत्र और वाममार्ग में पंच मक्कार सामग्री जो मांस, मुद्रा, मछली, मैथुन और मदिरा मंदिर के बाहर चार मीनारों पर शिल्पित हैं।
मंदिर के चारो कोनो में एक-एक मीनार है। इन मीनारों में अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां शिल्पित है। इन्हें देख के यहां आनेवाले आगन्तुक जो तंत्र शास्त्र में रुचि नहीं रखते अथवा अज्ञानता के कारण इस मंदिर को भूतिया मंदिर भी मानते है। ऐसी मिथ्या इस मंदिर को प्रति बनाई गई है किंतु इसके विपरीत ओयल कस्बे का यह सबसे अधिक जाना जानेवाला मंदिर है।
वास्तुकला और पुरातत्व विभाग के अनुसार मंदिर की बनावट शिव यंत्र और श्री यंत्र को जोड़कर आकर दी गयी है। मेंढक की बनावट से ऊपर चलने पर समझ आता है कि मंदिर ओक्ट्रा हेड्राल कमल के पर बना है।
भगवान शिव के अगणित मंदिरों में नन्दी भगवान की ओर दृष्टि केंद्रित करके बैठे होते हैं किंतु इस मंदिर में नन्दी खड़ी मुद्रा में है। इस रहस्य का पर्दा अब तक किसी तंत्र विद या मंदिर आगम की समझ रखने वालों को नहीं आया है। मंदिर के बाहर बड़ा सुंदर बगीचा होने के बावजूद भी मंदिर का अंदरूनी भाग और कुछ बाहरी भाग में तुरंत मरम्मत की आवश्यकता है
✒️स्वप्निल. अ
(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)
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