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रविवार, 5 मई 2024

माँ छिन्नमस्तिका मंदिर, रामगढ़, झारखंड

 दस महाविद्याओं में पांचवी महाविद्या माँ छिन्नमस्ता का जागृत सिद्धपीठ झारखंड के रजरप्पा की मनोहारी सिकदरी घाटी में बसा है। रजरप्पा और रामगढ़ के निवासियों की कुल देवी माँ छिन्मस्तिका है। रामगढ़ गांव का यह क्षेत्र एक वनों से घिरा हुआ है। प्रकृति की गोद के मध्य बसे माता के मंदिर में मन तुरंत तन्मय हो जाता है। 



पौराणिक कथा:


माँ छिन्नमस्तिका मंदिर का इतिहास तकरीबन 6000 वर्ष पुराना है। सिकदरी घाटी के रहवासी एक 

किंवदंती बताते है। एक राजा और रानी जिनका नाम 'रज और रूपा' था वन में शिकार करते-करते रास्ता भटक गये और इस वन में आ पहुंचP। रात्रि के समय राजा-रानी को निद्रा आने लगी और माँ ने राजा को स्वप्न में दर्शन देकर आशीर्वाद दिया। माँ ने राजा को रानी के 11 वे दिन गर्भ धारण करने की बात बताई। रानी ने गर्भ धारण किया - फिर राजा माँ छिन्मस्तिका के लिये इस वन क्षेत्र में सुंदर मंदिर बनवाने का आदेश दिया था। 


रजरप्पा मंदिर 



माँ छिन्नमस्तिका मंदिर:


असम राज्य में स्तिथ नीलांचल पहाड़ियों में बसे कारू कामाख्या शक्तिपीठ के बाद सबसे अधिक शक्तिशाली कोई शक्ति धाम है तो वह रजरप्पा का माँ छिन्नमस्तिका सिद्धपीठ है। कामाख्या के जैसे रजरप्पा मंदिर में भी दश महाविद्या मंदिर भी है। जहाँ महाविद्या होती है वहाँ शिव अवश्य होते हैं। इसी श्रंखला में महादेव मंदिर के साथ हनुमान मंदिर, बाबा धाम मंदिर,सूर्य देव मंदिर,महाकाली मंदिर और दस महाविद्या मंदिर भी हैं।  सारे मंदिर ओडिशा मंदिर वास्तुकला में बनाये गए हैं।





झारखंड राज्य के प्रमुख मंदिरों में से एक रजरप्पा मंदिर में सालभर भक्तों का आना लगा रहता है। खासकर नवरात्रों में भक्ति का ज्वार दिखाई देता है। भक्त मंदिर में मनोकामना पूरी होने के लिये भैरवी या दामोदर नदी से पत्थर लाकर एक कपड़े पर बांधकर चले जाते हैं। मनोकामना पूरी होने पर वापिस आकर खोल और नदियों में प्रवाहित कर देते हैं। रजरप्पा मंदिर में बच्चों का मुंडन कराने की प्रथा बड़े लंबे काल से चली आ रही है। माँ बाप बच्चों की सेहत और विशेषकर बुद्धि के लिये मंदिर में प्रार्थना करते है। दीपावली के समय आनेवाली देव दीपावली पर तांत्रिकों और अघोरियों का जमावड़ा भी देखा जाता हैं। कुछ तांत्रिक और अघोरी खुले में या गुप्त तरीके से माँ छिन्मस्तिका की आराधना और अनुष्ठान करते है। जिस मनुष्य का कालसर्प या राहु की दशा चल रही हो वह रजरप्पा मंदिर में विशेष पूजा से कष्टों का निवारण पा जाते हैं।





माँ छिन्मस्तिका काली कुल की देवी है इसीलिये माँ को बकरे की बलि चढ़ाई जाती है। बलि के लिये मंदिर में अलग व्यवस्थता बनाई गई है। बकरे को एक झटके में माँ को समर्पित कर दिया जाता है।




 



माँ छिन्नमस्तिका की कथा क्या है?


माँ छिन्मस्तिका पांचवी महाविद्या है। 

मार्केंडेय पुराण बृहद धर्म पुराण, तंत्र सार और शक्ति संगम तंत्र में दश महाविद्याओं के प्रादुर्भाव और तंत्र पूजन् विधी के बारे में वर्णन किया गया है। इन ग्रँथों केअनुसार एक बार माँ पार्वती अपनी सखियाँ डाकिनी और पिशाचिनी के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गयी - और तभी दोनों सहेलियों को ज़ोर की भूख लगी। माँ ने सखियों को थोड़ी प्रतीक्षा करने के लिये कहा। किंतु दोनों से भूख सहन नहीं हुई - ऐसा देख माता ने अपने दाएं हाथ में तलवार प्रकट कर अपना मस्तक धर से छिन्न कर दिया। इस प्रकार माता पार्वती के छिन्मस्तिका अवतार का पादुर्भाव हुआ। रक्त की तीन धाराएं धड़ की ईडा, पिंगला और सुषम्ना नाड़ियों से प्रवाहित हुई। तीन में से दो धाराएं डाकिनी और पिशाचिनी के मुख में गिरने लगी और तीसरी धारा माँ छिन्नमस्तिका के मुंह में जाने लगीं। इस अवतार में माँ ने शरीर पर केवल मुंडमाला धारण की  की। दाएं हाथ मे तलवार और बाएं हाथ में अपना ही शीश। माँ के पांव के नीचे कामदेव और रती मैथुन की मुद्रा में होते हैं। माँ का बायां पैर आगे की ओर होता है। माँ के कमर सर्प बंधा हुआ है और केश खुले हुए थे माँ के इस रूप के चित्रण के पीछे के पीछे का मूल सन्देश देता है कि मनुष्य की पहचान उसके शरीर से विमुख होती है। माँ की साधना से माँ काम वासना का दमन कर देती है।


माँ छिन्मस्तिका मंदिर 


एक अन्य कथा में माता के पांचवे रूप का प्रादुर्भाव माँ काली, 64 योगिनियों और असुरों के विरुद्ध चले युद्ध के पश्चात् वर्णित है। जब माता चन्ड-मुंड, शुम्भ-निःशुम्भ और रक्तबीज जैसे असुरों के वध के बाद दो योगिनियां - डाकिनी और पिशाचिनी को तीव्र भूख लगी और कोई और उपाय न मिलता देख माता ने छिन्नमस्तिका रूप धर लिया था।

दस महाविद्या मंदिर



माँ छिन्नमस्तिका मंत्र:


।। ॐ हुं छिन्नमस्तयै नमो नमः ।।



आरती समय:


छिन्नमस्तिका मंदिर में पूरे दिन में 4 बार आरती होती है। पहली भोर 4 बजे, दूसरी 7 बजे, तीसरी दोपहर 12 बजे और संध्या 7 बजे होती है। अमावस्या और पूर्णिमा पर अर्ध रात्रि तक मंदिर खुला रहता है।






छिन्नमस्तिका मंदिर कैसे पहुँचे?


माँ छिन्नमस्ता मंदिर रांची से 90 किमी दूर है। मंदिर से सबसे करीबी रामगढ़ कैंट स्टेशन 28 किमी दूर है। यह दूरी 2 से तीन घण्टे में पूरी की जा सकती है। रांची का रेलवे स्टेशन और बिरसा मुंडा हवाई अड्डा देश के सारे शहरों से सम्पर्क में है। 


✒️स्वप्निल.अ

1 टिप्पणी:

  1. मेरे रांची के मित्र ने मंदिर के वारे में बताया, लेकिन इतने विस्तार से जानकारी देने के लिए धन्यवाद।

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