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रविवार, 5 मई 2024

माँ छिन्नमस्तिका मंदिर, रामगढ़, झारखंड

 दस महाविद्याओं में पांचवी महाविद्या माँ छिन्नमस्ता का जागृत सिद्धपीठ झारखंड के रजरप्पा की मनोहारी सिकदरी घाटी में बसा है। रजरप्पा और रामगढ़ के निवासियों की कुल देवी माँ छिन्मस्तिका है। रामगढ़ गांव का यह क्षेत्र एक वनों से घिरा हुआ है। प्रकृति की गोद के मध्य बसे माता के मंदिर में मन तुरंत तन्मय हो जाता है। 


रविवार, 21 अप्रैल 2024

शिव पुत्री मनसा देवी मंदिर, हरिद्वार, उत्तराखंड

पौराणिक मान्यता:

माता मनसा को माँ पार्वती का ही रूप मन गया है। पुराणों और धार्मिक ग्रँथों के अनुसार माता मनसा के जन्म की कथा भिन्न-भिन्न है। अधिकतर कथाओं में माता मनसा को भगवान शिव की दूसरी पुत्री बताया गया है। उस कथा में उल्लेखहै कई महादेव का वीर्य सर्पों की माँ कद्रू को छूकर निकला था जिससे मनसा देवी का जन्म हुआ था। दूसरी कथा अनुसार माता मनसा की उत्तपत्ति कश्यप ऋषि के मस्तक से हुई थी। कद्रू कश्यप की पत्नी थी और मनसा देवी के गुरु भगवान महादेव थे। माता मनसा ने सैंकड़ो वर्ष तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। 


        


सतयुग में माता सती के शरीर का एक भाग बिलवा पहाड़ी पर गिरा था। यह केवल स्थानीय मान्यताओं में प्रचलित है। क्योंकि शास्त्र और पुराणों में ऐसा कोई विवरण स्पष्ट नहीं बताया गया है। एक अन्य कथा में बिलवा पहाड़ी को माता दुर्गा की महिषासुर मर्दन के बाद कि विश्राम स्थली माना गया है। 


बिलवा पहाड़ी


मनसा माता मंदिर:


 मनसा देवी मंदिर एक सिद्धपीठ है। यहां सारी मनोकामनाएं माता के आशीर्वाद और कृपा सो पूर्ण होती है। नागों के राजा वासुकी की बड़ी बहन माँ मनसा देवी है। यही नहीं माता सर्पों पर विराजमान है सो इस कारण सर्प दंश से बचने या सर्प द्वारा काटने पर माता की साधना की जाती है। 


माँ मनसा देवी


मनसा माता के विग्रह के चार मुख है। माता के नीचे माँ दुर्गा की सिंदूरी मूर्ति महिषासुर के वध की मुद्रा में विराजित है। गर्भ गृह चांदी और पीतल से बनाया गया है। बिलवा पहाड़ी पर माँ चामुंडा मंदिर भी है। इसी मंदिर में एक पेड़ पर मनोकामना पूर्ण करने के लिये भक्त धागा बांधते है। पूर्ण होने पर वापिस आकर इसे खोलते हैं। चैत्र और फाल्गुन नवरात्री में दूर-दूर से अनेक श्रद्धालु दर्शन करने पहुँचते है।



मनसा देवी मंदिर प्रातः 6 बजे संध्या 7:30 तक खुला रहता है। मंदिर तक पहुंचने के लिये सीढियां और सड़क मार्ग है। तथा केबल कार रोपवे की सुविधा भी उपलब्ध है। इन सब माध्यमो से मंदिर तक आधे घण्टे के भीतर पहुँचा जा सकता है। सड़क मार्ग 1 किमी है। सीढ़ियों की दूरी 800 मीटर है। मंदिर पहाड़ी पर कुछ पूजा सामग्री और अन्य आवश्यक वस्तुओं की दुकानें और एक कैंटीन भी है।


मनसा देवी मंदिर

रोपवे

मनसा देवी मंदिर कैसे पहुँचे:


हरिद्वार रेलवे स्टेशन से बिलवा पहाड़ी की दूरी चार किमी है। मंदिर से सबसे निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है। देहरादून रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डे की दूरी कुल दो घण्टे की है।


✒️ स्वप्निल. अ

शनिवार, 30 दिसंबर 2023

गढ़कालिका मंदिर, उज्जैन, मध्यप्रदेश

माँ गढ़कालिका मंदिर एक शक्तिपीठ और सिद्धपीठ है। इस अलौकिक मंदिर के अनसुलझे रहस्यों के बारे में आम जनता को अधिक जानकारी नहीं हैं। 


पौराणिक इतिहास:


उज्जैन की प्रचलित मान्यता अनुसार सत्ययुग में माता सति द्वारा प्रजापति दक्ष के यज्ञ में माता सति के प्राण त्यागने के पश्चात जब भगवान हरि द्वारा उनकी देह के टुकड़े करने पर माँ का एक ओष्ठ यहां के भैरव पर्वत पर गिरा था। हरसिद्धि माता मंदिर अवन्तिकापुरी का एक और शक्ति और सिद्धपीठ है जो उसी भैरव पर्वत है। इसी क्षेत्र में माता गढ़कालिका का धाम भी जाना जाने लगा। लिंग पुराण की कथा अनुसार जब प्रभू श्री रामचंद्र जब लंका पर दिग्विजय कर वापिस अयोध्या लौट रहे थे तब रास्ते मे रुद्र सागर तट के निकट रुके थे। उस रात्री माता कालिका भूख से व्याकुल नर भक्षण करने निकल पड़ी, तब उन्हें राम भक्त हनुमान दिखे और उन्हें पकड़ने माँ झपटी तो हनुमान जी ने भीम काय रूप धारण कर लिया और माता वहाँ से चली गयी। जाने के पश्चात जो अंश गालित हो कर गिर गया उस अंश से पिंडी प्रकट हुई।  ज्ञातव्य हो, इस स्थान को गढ़ नाम से जाना जाता था इसी से मंदिर का नाम गढ़कालिका कहा जाने लगा।


माँ गढ़कालिका

  

इतिहास:


मंदिर का जीर्णोद्धार सम्राट हर्ष द्वारा 606 ईसवी में करवाया गया था और मध्यकाल में राजा हर्षवर्धन ने भी अन्य कई कार्य करवाकर मंदिर की शोभा बढ़ाई। ग्वालियर के सिंधियाओं ने मंदिर का पुनःनिर्माण कार्य करवाया गया था। 



महामूर्ख कवि कालिदास:


उज्जैन नगरी को कालिदास की नगरी भी कहा जाता है। अपने जीवनकाल में कालिदास महानतम कवि के पहले महामूर्ख माने गए थे। उदाहरण के तौर पर एक बार वे एक वृक्ष की डाल पर बैठ वही डाल काटते देखे गए थे। इससे उनकी पत्नी विद्योत्तमा इस बात से चिंतित थी। फिर कालिदास माँ गढ़कालिका की आराधना में मग्न हो गए। फल स्वरूप माँ गढ़कालिका ने उन्हें इसी मंदिर स्थलीय पर दर्शन दे कर अभिभूत किया। माँ के वरदान के कारण वे "शामला दण्डक" महाकाली स्तोत्र और अन्य 6 संस्कृत महाकाव्यों की रचना कर पाए। यह स्तोत्र कालिदास की सबसे उत्तम और कालजयी रचनाओं में से एक है। उज्जैन या किसी भी स्थान पर कवि कालिदास के नाम पर किये जाने वाले कार्यक्रमों में माँ गढ़कालिका का आवाह्न अवश्य किया जाता है। माँ कालिका की कृपा से कालिदास परम् मूर्ख से महान कवि बन गए। 


    


गढ़कालिका मंदिर:


माँ गढ़कालिका के जीवंत से दिखनेवाले चेहरे पर सिंदूर गढ़ा है। सिर से मस्तक तक चांदी का मुकुट माँ की प्रतिमा में चार चांद लगाता है। मूर्ति की अनूठी बात है माँ के चांदी के दांत जो किसी और शक्तिपीठों में देखने को नहीं मिलते। माँ कालिका के दाएं ओर माँ लक्ष्मी और बाएं ओर माँ सरस्वती विराजी हैं। माँ को पुष्पों की माला और पुष्पों के स्थान पर तंत्र पूजन के नियमित नींबू से बनी माला चढ़ाई जाती है। तथा नींबू का प्रसाद भक्त लेके जाते हैं। इन नींबुओं को घर में रखने पर माँ उस घर की रक्षा करती हैं।


माँ गढ़कालिका शक्तिपीठ


वैसे साल के 12 मास इस मंदिर में तांत्रिकों का जमावड़ा बना रहता है किंतु नवरात्र और गुप्त नवरात्र में तांत्रिक इस मंदिर में विशेष साधना करने आते हैं। मंदिर के समक्ष एक प्राचीन दीप स्तम्भ भी खड़ा है जिसे नवरात्र में प्रज्वलित किया जाता है।


माँ गढ़कालिका मंदिर का सम्पूर्ण क्षेत्र अलग-अलग देवो के मंदिरों से अक्षरसः घेराव किये हुए हैं। मंदिर एक किमी दूर भैरव मंदिर है वहीं बगल में भगवान नारायण का चतुर्मुख मंदिर, गणेश मंदिर, हनुमान मंदिर और गोरे भैरव का मंदिर है।


इस देवी मंदिर के पास 52 स्नान कुंड है। इन कुंडों म् एक कुंड के नीचे एक शिवलिंग विराजमान है। इस कुंड की प्रसिद्धि इसके सिद्धि प्रदान करने के लिए मान्यता है। साधक हो या तांत्रिक, जिसे भी अपनी सिद्धि को सिद्ध करना हो तो उसे इस कुंड में जाना आवश्यक होता है। मंदिर के निकट क्षिप्रा नदी के घाट पर माता सती की मूर्तियां है और उज्जैन में हुई सारी सतियों की स्मृति में खड़ा किया हुआ स्मारक भी बना है

  

     


मंदिर आरती:


देश के अन्य तीर्थो या प्रसिद्ध मंदिरों की तुलना में गढ़कालिका मंदिर में आरती का समय बिल्कुल भिन्न है। यहां माँ की आरती सुबह 10 बजे और संध्या सूर्यास्त के समय होती है। कवक हफ्ते में शुक्रवार के दिन में दोपहर 12 बजे का समय आरती के लिए होता है। 

आरती में उपयोग किये जाने वाले छोटे और बड़े वाद्य यंत्र होते हैं जो बड़े उत्साह और हर्ष के साथ बजाए जाते हैं।


 ✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)



शनिवार, 16 दिसंबर 2023

तारापीठ शक्तिपीठ, बीरभूम, पश्चिम बंगाल

बंगाली हिंदुओं के प्रमुख हिन्दू देवी तीर्थों में कालीघाट, तारापीठ शक्तिपीठ और नबद्वीप विशेष स्थान रखते हैं। 


पौराणिक इतिहास:


तारापीठ शक्तिपीठ के स्थापना की कथा मुख्यतः सतयुग की ही मानी गयी है। जब माता सति दक्षयज्ञविनाशिनी हो कर आत्मदाह कर लिया,  दुख में डूबे भगवान शिव सारे संसार मे उनकी मृत देह लिए घूमने लगे, इस पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उस देह के टुकड़े किये। उन टुकड़ों में माता सती के नेत्र की पुतली जिसे तारा कहा जाता है बीरभूम की इस भूमि पर आ गिरी। आज यही मंदिर तारापीठ धाम के नाम से विख्यात है। बीरभूमि का पूरा अर्थ है वन से घिरी हुई भूमि है।


शिव को स्तनपान कराती माँ तारा



तारापीठ मंदिर(ऊपर से लिया गया)

तारापीठ मंदिर इमारत


दूसरी कथा अनुसार जब भगवान भोलेशंकर नीलकंठ हो गए तो उनके गले मे जलती ज्वाला को  द्वितीय महाविद्या माँ तारा ने शांत किया। जिसके लिए प्रभू ने बाल रूप धर लिया। फिर माँ ने उन्हें स्तनपान करवा कर शीतलता प्रदान की। तीसरी कथा वशिष्ठ ऋषि से जुड़ी है। इसी स्थल पर वशिष्ठ ऋषि को माँ तारा ने दर्शन दे कर सिद्धियां वरदान स्वरूप दी थी।


उत्तर भारत की सभी नदियों में यहाँ बहने वाली द्वारका नदी एक मात्र नदी है जो दक्षिण से उत्तर दिशा में बहती है। 


अघोरी बामाखेपा:


अघोरी बामाखेपा बंगाल के बीरभूम जिले के आटला गाँव मे जन्मे एक अघोरी थे जिन्हें कई सारे चमत्कारों के लिए जाना जाता है। बामाखेपा माँ तारा के परम भक्त थे। एक गरीब ब्राह्मण परिवार में जन्मे बामा को बचपन से ही ईश्वर के बारे में चिंतन करते रहने में बीतता था। फिर जब उन्हें तारापीठ का बुलावा आया तो उन्होंने यहां रहकर घोर साधना की। माँ तारा प्रसन्न होकर उन्हें अपने दुर्लभ दर्शन दे सिद्धियों से प्राप्त की। बामाखेपा बंगाल के ही संत रामकृष्ण परमहंस के समय के थे। जगजाहिर है, कैसे माँ काली परमहंस को स्वयं भोजन खिलाने आती थी और बामाखेपा को भी माँ तारा का स्नेह प्राप्त था। 



अघोरी बामाखेपा

अघोरी बामाखेपा के रहस्य


तारापीठ मंदिर:


रामपुरहाट उपप्रभाग में तारापीठ नगर का प्राचीन नाम चंडीपुर ग्राम था। माता तारा का मंदिर एक शक्तिपीठ और सिद्धिपीठ दोनों होने के कारण इसकी प्रसिद्धि बढ़ती गयी और चंडीपुर(माँ दुर्गा का प्रचलित उग्र रूप) ग्राम तारा पीठ बन गया। 


माँ तारा मूर्ति



तारापीठ नगर की परिसीमा में यह मंदिर मध्यम आकार का है। मंदिर लाल इटों से बना है। इसकी नींव भी मोटी और ठोस है। मंदिर भवन एक गलियारे द्वारा जुड़ा हुआ है जो मंदिर शिखर से जा मिलता है। माँ तारा की मूर्ति गर्भ गृह में छज्जे के नीचे सटीक विराजमान है। अपने दो चरित्र के दर्शन माँ दो मूर्तियों में देती है। एक तीन फीट ऊंची मूर्ति उग्र भाव में ज़िव्हा बाहर, मुंड माला धारण किये भगवान शिव के ऊपर खड़ी हुई। दूसरी सौम्य मातृत्व रूप लिए हुए विषपान किये त्रिपुरारी को स्तन से दूध पिलाति हुई। माँ पर चढ़ा हुए लाल कुमकुम के तिलक का पंडित जी मंदिर आनेवाले श्रद्धालुओं पर लगाते हैं। पंडित गेंदा, गुड़हल और गुलाब इत्यादि फूलों से सजी हुई माँ की प्रतिमाओं से दृष्टि नहीं हटती। देवी तारा को न केवल मिष्ठान, फल और नारियल का भोग अर्पित किया जाता है अपितु साथ ही मदिरा का भोग भी चढ़ाया जाता है। 


तारा माँ, मुण्डमालिनी मंदिर

माँ तारा के साथ महादेव मंदिर और माँ तारा का मुण्डमालिनी मंदिर भी स्थापित है।


तारापीठ मंदिर रहस्य:


मंदिर में बकरों की बलि भी दी जाती है। माँ तारा बगैर बलि के प्रसन्न नहीं होती। बकरों की बलि देनेवाला पहले स्वयं स्नान कर बकरों को अच्छी तरफ स्नान कर कर स्वच्छ करके एक तीखी तलवार से माँ तारा का नाम उच्चारण कर काट देते हैं। इसमें से एक कटोरा रक्त मा को मंदिर में माँ के विग्रह समक्ष अर्पित किया जाता है। 


प्रभू श्री रामचंद्र ने यहां राजा दशरथ का पिंड दान किया था। इसी के चलते मंदिर में मान्यता अनुसार पितरों का पिंड दान भी होता है।


श्मशान भूमी:


माँ तारा दूसरी महाविद्या है। उग्र महाविद्याओं में होने के कारण माँ श्मशान में निवास करती है। बीरभूमि में तारापीठ मंदिर एक श्मशान भूमि के मध्य स्तिथ है। श्मशान भी शक्तिपीठ का हिस्सा है। प्रतिदिन तारा माँ की पूजा अनुष्ठान बिना किसी चिता के हविष्य से आरम्भ नहीं होती। तारापीठ श्मशान में अघोरी साधु तपस्या में देखने को मिलते हैं। कई अघोरी साधुओं के परिवार यहां पीढ़ियों से विचरण कर रहे हैं। अत्यंत पुराने घने पीपल, बरगद आदि के वृक्षों के बीच अघोरी साधुओं की कुटिया झोपड़ी जिनपे मानव और जंगली और पालतू जानवरों की खोपड़ी रखी हुई दिखती हैं। इन खोपडियों में प्राणोत्सर्ग किये हुए लोगो की और कुंवारी कन्याओं के अवशेष मिलते हैं जिन्हें तंत्र क्रियाओं में अधिक प्रयोग में लाया जाता है। आसपास में सांप, बिच्छू रेंगते हुए और गीदड़, कुत्ते और दूसरे पशु रोते-चिल्लाते हुए दिखेंगे। देवी की तंत्र साधना में लीन ये साधू कोई सिद्धि पाने या सांसारिक माया से सम्पूर्ण छुटकारा पाने के उद्देश्यों में लगे हुए होते हैं। 


        
तारापीठ श्मशान भूमि


यहां दो श्मशान है जिसमे से एक तांत्रिक श्मशान और दूसरा सर्वजन श्मशान है। तांत्रिक श्मशान में तांत्रिक क्रिया यहाँ बसे अघोरी और तांत्रिक साधु उपयोग में लाते हैं। वहीं सर्वजन श्मशान आम जनता के उपयोग में है। 


मित्र हिमांशु श्रीवास्तव द्वारा बनाई


जीवित कुंड: 


रोग दोष निवारण हेतु मंदिर में अंदर प्रवेश करने पर जीवित कुंड स्थित है। माँ के मंदिर के बाहर इस कुंड में स्नान करने पर बीमारियों का समाधान होता हैं।


प्रसाद और भोग


मंदिर में भक्तों के लिए शुल्क और ननिशुल्क प्रसाद की भी व्यवस्था मंदिर ट्रस्ट द्वारा की गई है। इस भोग में माँ को मछली प्रसाद रूप में जो चढ़ाई जाता है उसी के साथ स्वादिष्ठ दाल-भात, रसगुल्ला और सब्जी- पूरी के साथ परोसा जाता है।


श्मशान तारा


मंदिर दर्शन:


माँ तारा के दर्शन के लिए वी.ऑय.पी. और साधारण दर्शन दोनों उपलब्ध हैं। वी.आई.पी दर्शन दो तरह के हैं और शुल्क भी। इसका मंदिर ट्रस्ट के दफ्तर में पता लगाया जा सकता है। 

साधारण दर्शन करने के लिए एक लंबी लाइन लगानी पड़ती है। देवी माँ के बेहतर दर्शन के लिए रात 7 से 10 बजे के बीच का समय उत्तम होता है। 


जो भक्त मंदिर में कार्य सफल करवाने के लिए यज्ञ हवन करवाना चाहते है उसका प्रबंध भी मंदिर के पुजारियों द्वारा किया जाता है। 


तारापीठ मंदिर कैसे पहुँचे:


 तारापीठ शक्तिपीठ मंदिर, बीरभूम जिले से कोलकाता के हावड़ा रेलवे स्टेशन तक कि दूरी 290 किमी है तथा यह दूरी NH12 और NH19 से 6 घण्टो में सड़क या रेल सर पूरी की जा सकती है। 


कोलकाता हवाई अड्डे से मंदिर की दूरी 260 किमी दूर है और 6 घण्टो में पूरी की जा सकती है। कोलकाता के डम डम हवाई अड्डे से भारत के हर कोने से हवाई सेवा शुरू रहती है।

 
तारापीठ मार्ग की द्वार


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


 . 

शनिवार, 12 अगस्त 2023

बगलामुखी मंदिर, नलखेड़ा, मध्यप्रदेश

 

महाकाल की नगरी उज्जैन से कुछ घण्टों की दूरी पर बसा आगर मालवा के शुजालपुर जिले में नलखेड़ा धाम माँ बगलामुखी के दिव्य और जागृत मंदिर के लिए सुप्रसिद्ध है।










पौराणिक मान्यता:


सबसे प्रचलित मान्यता द्वापरयुग के समय की बताई जाती है। द्वापरयुग में महाभारत युद्ध के 12वे दिन प्रभु श्री कृष्ण ने युधिष्ठर से आग्रह कर युद्ध मे विजय प्राप्ति के लिए यज्ञ- अनुष्ठान किये थे।  

कुछ और पौराणिक स्तोत्र बगलामुखी माता मंदिर की उतपत्ति ब्रह्माजी द्वारा माता की आराधना से सम्बंधित बताते हैं। माता ने भगवान ब्रह्माजी की आराधना पर इसी स्थान पर दर्शन दिए थे। 


त्रिशक्ति

इन्हें भी देखें:

बनखंडी बगलामुखी मंदिर, कांगड़ा

मंदिर:


यह अष्टम महाविद्या माँ बगलामुखी का सबसे प्राचीन मंदिर है। देवी यहाँ अनंतकाल से निवास कर रही हैं। 

मंदिर लखुंदरी नदी के किनारे बना हुआ है। यहां के निवासी बताते है कि यह मूर्ती स्वयंभू है। मूर्ति की ऊत्तपति का कोई एतिहासिक प्रमाण नहीं है केवल मान्यता यह है के माँ शमशान के मध्य स्वयंभू रूप में प्रकट हुई थी। मूर्ति त्रिशक्ति रूप में विराजित है। मध्य बगलामुखी, दाएं सरस्वती और बाएं माँ लक्ष्मी विराजित है। मंदिर के पीछे की दीवार पर स्वस्तिक बनाने की मान्यता है। ।


माँ बगलामुखी के साथ अन्य देवी-देवता - श्रीकृष्ण-राधाजी, बजरँगबली और माँ बगलामुखी के "भैरव" के मंदिर समाहित विराजे है। 


"मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है। आप मंदिर निर्माण कार्य में सहयोग हेतु दान भी कर सकते है।"



मंदिर यज्ञशाला:

 

बगलामुखी माँ के धाम अपनी यज्ञशालाओं के लिए प्रख्यात है। नलखेड़ा धाम में होनेवाले माँ के अनुष्ठान चमत्कारी परिणाम देनेवाले है।  साल के 365 दिन यज्ञ किए जाते है। नलखेड़ा धाम तंत्र साधनाओं के लिए एक विशेष स्थान है। 

◆ माँ के यज्ञ में जो छः षट्कर्म - मारण, मोहन/सम्मोहन, स्तम्भनं, उच्चहाटन और वशीकरण इनमें से यहाँ मारण छोड़ बाकी षट्कर्म किये जाते हैं। 

◆ कांगड़ा मंदिर और पीताम्बरा पीठ में लाल मिर्ची का प्रयोग होता है किंतु यहां अब लाल मिर्च के स्थान और काली मिर्च का प्रयोग होता है। लाल मिर्च से हवन अब विशेष अनुष्ठान की मांग पर किया जाता है।


कैसे पहुँचे:


  सड़क मार्ग से पहुँचने के लिए आगर मालवा रोड से नलखेड़ा पहुंचा जाता है। 

प्राइवेट कैब और टैक्सी की सुविधा भी यहाँ सदैव उपलब्ध रहती है। 

उज्जैन से दूरी 100 किमी, इंदौर से 156 किमी, भोपाल से 182 किमी, और कोटा से 151 किमी दूरी पर स्थित है। 

बस की सुविधा सुबह 7 बजे से शुरू हो जाती है। 

हवाई मार्ग सर सबसे निकटतम हवाई अड्डा इंदौर जा देवी अहिल्याबाई एयरपोर्ट है। दूसरा निकटतम एयरपोर्ट राजा भोज एयरपोर्ट, भोपाल है। 

।। जय माँ बगलामुखी ।। 

🙏🌷🕉️🔱🙏


✒️Swapnil. A


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


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योगमाया मंदिर,मेहरौली,दिल्ली

देश की राजधानी दिल्ली के दक्षिण में स्तिथ  माँ योगमाया का शक्तिपीठ मंदिर है। देवी योगमाया भगवान श्री कृष्ण की बड़ी बहन हैं। मेहरौली इलाके में...