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गुरुवार, 25 मई 2023

माँ बम्बलेश्वरी मंदिर, डोंगरगढ़ , छत्तीसगढ़

  डोंगरगढ़ के पर्वत पर बसा माँ बम्बलेश्वरी का मंदिर लगभग 2200 वर्ष पुरानी एक प्रेम कहानी की गाथा की गवाही दे रहा है। सोहला सौ फीट पर बना मंदिर जैसे डोंगरगढ़ पर्वत पर माता रानी के मुकुट की भांति सजा दिखता हो। इतनी ऊंचाई पर बना माता का धाम छतीसगढ़ राज्य में कहीं और नहीं हैं। इस प्राचीन मंदिर की अदिष्ठात्री देवी अष्टम महाविद्या माँ बगलामुखी हैं। 

प्राचीन समय मे डोंगरगढ़ को कामाख्या नगरी के नाम से जाना जाता था। कामाख्या नगरी से डोंगरगांव नाम पड़ना और माधवनल - कामकंदला प्रेमी जोड़े की कथा यहाँ आनेवाले तीर्थयात्री भी अनभिज्ञ हैं।

इतिहास:

बम्बलेश्वरी माता मंदिर के बनने की कथा के पीछे राजा वीरसेन और उनकी भगवान शिव और माता भक्ति की असीम श्रद्धा से जुड़ी है। राजा वीरसेन की कोई संतान नहीं थी। प्राचीन काल से यहाँ केवल माँ का पिंडी रूप ही था और सो राजा अपनी रानी के साथ यहां आकर माता से संतान के लिए प्रार्थना की और एक वर्ष के भीतर उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ती हुई। इस पुत्र का नाम उन्होंने मदनसेन रखा। 



 

राजा मदनसेन को एक पुत्र हुआ कामसेन जो अगले राजा बने। इनके राज दरबार एक कामकंदला नाम की एक सुंदर और कुशल नर्तकी थी जिसका नृत्य सारे दरबारियों को मोह लेता था। एक बार राजा ने अनजाने में कामकंदला के प्रतिभाशाली नृत्य की अपेक्षा करते हुए माधवानल(संगीतज्ञ) को पुरस्कृत कर दिया जो उसी समय कामकंदला के नृत्य को संगीत दे रहा था। अपनी प्रेयसी कि प्रतिभा की उपेक्षा होते देख माधवनल ने राजा के सामने वह पुरस्कार उसे ही दे दिया। राजा कामसेन को क्रोध आया और तुरंत माधवानल को राज्य से निकल जाने के लिए कहा।


माधवानल राज्य से बाहर जाने के बजाए डोंगरगढ़ की गुफाओं को अपना स्थाई निवास बना लिया। प्रेम में तड़पती कामकंदला चोरी-चोरी उससे मिलने आया करती थी। वहीं दूसरी ओर कामसेन का पुत्र मदनादित्य राजसी-तामसी प्रवृतियों वाला था और कामकंदला से मन-ही-मन प्रेम करता था। मदनादित्य को माधवानल - कामकंदला का चुपके से मिलना अच्छा नहीं लग रहा था। उसे समझ आ गया था कि वह कामकंदला को पा नहीं सकता इसीलिए उसने कामकंदला को राजद्रोह के आरोप में फंसवा कर माधवानल से अलग कर दिया। राज्य में अस्थिरता की स्थिति उतपन्न हो गयी। 


अपने समक्ष अन्याय होता देख माधवनल सीमा पार कर अवन्तिकापुरी जा पहुंचा और उस समय के भारतवर्ष के सर्वश्रेष्ठ राजा; सम्राट विक्रमादित्य, अपनी न्यायप्रियता के लिए जाने जाते थे, उन्हें सारी व्यथा सुनाई। दयावान राजा विक्रमादित्य ने न्याय करने के लिए अपनी सेना लेकर कामाख्या नगरी पर हमला बोल दिया। कई दिनों के युद्ध के बाद राजा मदनादित्य की पराजय हुई। माधवानल ने मदनादित्य को मार डाला लेकिन इसके बाद कामख्या नगरी पूरी उजड़ गयी। नगर में केवल डोंगड़ पहाड़ियाँ बची और तब से इसे डोंगड़गढ़ कहा जाने शुरू हुआ।





 

कामकंदला को पता चला कि माधवानल युद्ध मे मारा गया है और इस वेदना को सेहन ना कर पायी। यह बात असत्य थी किंतु इसके पहले यह स्पष्टीकरण होता इससे पूर्व कामकंदला ने एक सरोवर में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। इस सरोवर को कामकंदला सरोवर के नाम से भी जाना जाता है। अपनी प्रेमिका के प्राणोत्सर्ग का समाचार सुनकर माधवानल ने भी प्राण त्याग दिए।


भारी उथल - पुथल और कार्य सिद्ध ना होता देख, माता अपने जागृत रूप में पहाड़ी में विराजित होने के लिए राजा विक्रमादित्य ने आह्वाहन किया।तब से माता बम्बलेश्वरी मंदिर की अदिष्ठात्री देवी है।


रोपवे (उड़नखटोला)

छीरपानी तालाब


माँ बम्बलेश्वरी मंदिर:


मंदिर का ऐतिहासिक सम्बंध उज्जैन और राजा विक्रमादित्य से रहा है क्योंकि माँ बम्बलेश्वरी राजा विक्रमादित्य के वंश की कुलदेवी थी। उस समय के पूर्व का डोंगड़गढ़ के इतिहास के कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं है। सोलहवीं सदी से डोंगड़गढ़ मंदिर गोंड राजाओं के राज्य के अधीन आ गया। गोंड राजाओं के समृद्ध और कुशल शासन के अंदर मंदिर की महत्व आस पड़ोस के राज्यों में फैला। 


मंदिर के अन्य मंदिरों में नाग वासुकी मंदिर, शीतला माता मंदिर, दादी माँ मंदिर और बजरँगबली मंदिर है।


  • देवी मंदिर तक कुल 1100 सीढियां चढ़ने पर माता के दर्शन होते हैं। 

  • मंदिर पहाड़ी के नीचे छीरपानी तालाब है जिसमे बोटिंग की व्यवस्थता है। 

  • मंदिर में उड़नखटोला(रोपवे) की व्यवस्था हफ्ते के 6 दिन उपलब्ध रहती है।



राजनांदगांव से डोंगरगढ़ जाते समय राजनांदगांव में मां पाताल भैरवी(महाकाली) दस महाविद्या पीठ मंदिर है, जो अपनी भव्यता के चलते दर्शनीय है। जानकार बताते हैं कि विश्‍व के सबसे बडे शिवलिंग के आकार के मंदिर में मां पातालभैरवी विराजित हैं। तीन मंजिला इस मंदिर में पाताल में मां पाताल भैरवी, प्रथम तल में दस महाविद़़यापीठ और ऊपरी तल पर भगवान शंकर का मंदिर है।


मंदिर दर्शन का श्रेष्ठ समय:

 मंदिर का पट सुबह चार बजे से दोपहर एक बजे तक और फिर दोपहर दो बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता है। रविवार को सुबह चार बजे से रात दस बजे तक मंदिर लगातार खुला रहता है। नवरात्रि के मौके पर मंदिर का पट चौबीसों घंटे खुला रहता है ।
साल भर श्रद्धालु मंदिर में जीवन से जुड़े जरूरी संस्कार जैसे यज्ञ या मुंडन संस्कार भी करवाते रहते है । 

कैसे पहुँचे:

राजनादगांव से 35 व राजधानी रायपुर से यह 105 किलोमीटर दूर है। हावड़ा-मुंबई रेलमार्ग से भी यह जुड़ा हुआ है। यहां रेल और सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
डोंगरगढ़ राजनांदगांव जिला मुख्यालय से 57 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। वहाँ जाने के लिए सबसे अच्छा साधन है ट्रेन, बस, और फिर खुद की ट्रांसपोर्ट व्यवस्था है। अगर आप ट्रेन से यात्रा करना चाहते है तो निकटतम रेल्वे स्टेशन है डोंगरगढ़।
फ्लाइट से: निकटतम हवाई अड्डा है रायपुर। जो घरेलु उड़ानों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

।। जय माँ बम्बलेश्वरी ।।

🙏🌷🙏

✒️स्वप्निल.अ

(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)

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शनिवार, 20 मई 2023

भेरूजी नाथ मंदिर, कोडमदेसर , बीकानेर, राजस्थान

 
"कुछ समय पहले जब मैं अपने ब्लॉग के विषय में ऐसे अद्धभुत किंतु अनजाने मंदिरों की सूची ढूंढ रहा था, तब एक भक्तिन मित्र की व्हाट्सएप स्टोरी में मुझे बाबा भेरूजी ने दर्शन दिए। इसे में एक दिव्य संयोग कहता हूँ। भक्त ने बाबा और बाबा ने भक्त ढूंढ लिए"।

 


यह मंदिर और इसमें स्थापित भगवान कालभैरव की मूर्ति मानों जैसे अपने भक्तों को पुकार रही हो, मैंने जब भैरुजी मंदिर के बारे में सुना तोह मानों मुझे ऐसा आभास हुआ मेरे गहरे मैन में। 

सोमवार, 15 मई 2023

प्रभु श्रीराम का ननिहाल, चंदखुरी, छत्तीसगढ़




 इतिहास

राजधानी रायपुर से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चंदखुरी गांव को भगवान राम की माता कौशल्या की जन्मस्थली माना जाता है। 10वीं शताब्दी में बना माता कौशल्या का मंदिर तालाब के बीच में स्थित है। जानकारों का मानना है कि महाकौशल के राजा भानुमंत की बेटी कौशल्या का विवाह अयोध्या के राजा दशरथ से हुआ था। तीन दिनों तक चंदखुरी में रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कलाकारों और मंडलियों ने अपनी प्रस्तुति दी।

विवाह के उपहार के रूप में राजा भानुमंत ने अपनी पुत्री कौशल्या को 10 हजार गाँव दिए। उनके जन्मस्थान चंद्रपुरी का भी उल्लेख किया गया था। चंद्रपुरी चंदखुरी का प्राचीन नाम था। कौशल्या, हर किसी की तरह, अपने जन्मस्थान, चंद्रपुर के लिए मजबूत भावनाएँ रखती थीं। राजा दशरथ से विवाह के बाद कौशल्या के एक प्रतिभाशाली और निपुण पुत्र राम थे। इस विचार के अनुसार सोमवंशी शासकों द्वारा बनाई गई मूर्ति आज भी चंदखुरी के मंदिर में मौजूद है। लोक कथाओं के अनुसार, यहां के एक सोमवंशी राजा को माता कौशल्या ने स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि वह इस स्थान पर विराजी है। तुरंत राजा ने उस जमीन को खुदवाने के आदेश दिए और वहां मूर्ति भी मिली। फिर वहीं भव्य मंदिर बनवाकर मूर्ति की स्थापना की। सन् 1973 में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया। राम वनगमन पथ छत्तीसगढ़ की अनुपम सांस्कृतिक धरोहर है। पौराणिक कथाओं की जीवन शक्ति नौ चरणों पर केंद्रित है। इस परियोजना का पहला चरण अब शुरू हो गया है।

मंदिर:

मंदिर में भगवान श्री राम को गोद में लिए हुए माता कौशल्या की मूर्ति है। वनवास से लौटने के बाद भगवान राम का राज्याभिषेक हुआ था। उसके बाद तीनों माताएं कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी तपस्या करने के लिए चंदखुरी पहुंचीं। तीनों माताएँ तालाब के बीच में बैठी थीं।

कहा जाता है कि जब लोगों ने जलसन तालाब के पानी को गलत कामों के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया, तो माता सुमित्रा और कैकेयी क्रोधित हो गईं और चली गईं। लेकिन माता कौशल्या आज भी मौजूद हैं। अविश्वसनीय बात यह है कि इस मंदिर के बारे में पहले कोई नहीं जानता था। एक भैंस ने इस स्थान की खोज की। यहां पहले स्त्रियों का आना वर्जित था क्योंकि यह माना जाता था की श्रीराम के बाल्य रूप को लिए बैठी माँ कौशल्या को महिलाओं की नज़र लग जाएगी पर कुछ समय बाद वर्जित खत्म कर दिया गया। चंदखुरी को औषदि ग्राम या वैद्य चंदखुरी भी कहा जाता था क्योंकि यहां एक समय पर यहां वैद्य सुषेण का आश्रम भी था। 

कैसे पहुँचे:

 रायपुर से चंदखुरी की दूरी मात्र 27 किमी है । रायपुर शहर और रायपुर रेलवे स्टेशन से प्राइवेट टैक्सी और चंदखुरी गांव के लिये बस सेवा हमेशा उपलब्ध रहती है। जाने या आने में 45 मिनट का समय लगता है ।







 जैसा कि आपने अंदाजा लगा लिया होगा कि यह श्री मर्यादा पुरुषोत्तम की मां को समर्पित दुनिया का एकमात्र मंदिर है। फलस्वरूप छत्तीसगढ़ की राजधानी के पास स्थित इस पवित्र मंदिर के प्रति आपका सम्मान व्यक्त करना महत्वपूर्ण है।

।। जय माता कौशल्या ।।

।। जय श्री राम ।। 🙏🕉️🌷🙏

✒️ Swapnil A


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)




शुक्रवार, 5 मई 2023

बावे वाली माता मंदिर(Bagh-e-Bahu), जम्मू

इतिहास

 बावे वाली माता मंदिर के रूप में प्रसिद्ध महाकाली मंदिर एक ऊंचे मंच पर बनाया गया है और इसमें देवी महाकाली की एक काले पत्थर की मूर्ति है। काली माता मंदिर बहू किले के परिसर के भीतर बनाया गया है, जो शक्तिशाली तवी नदी को देखता है। आसपास के वन क्षेत्र को "बाग-ए-बहू" के रूप में जाना जाने वाला एक सुंदर पार्क में बदल दिया गया है। मुगल उद्यानों से प्रभावित, पार्क जम्मू शहर का शानदार दृश्य प्रदान करता है। एक नवनिर्मित मछलीघर भी एक अतिरिक्त पर्यटक आकर्षण है। किले का निर्माण लगभग 3000 साल पहले राजा बहुलोचन ने करवाया था।

मंदिर को माता वैष्णोदेवी मंदिर के बाद दूसरा माना जाता है। इस क्षेत्र की आध्यात्मिक आभा में डूबने के लिए हर साल बड़ी संख्या में भक्त जम्मू जाते हैं। लगभग 3.9 फीट ऊंचे मंच पर सफेद संगमरमर का उपयोग करके निर्मित, इस मंदिर में काले पत्थर में देवी महाकाली की मूर्ति है। यह अंदर से एक छोटा मंदिर है इसलिए समय पर कुछ ही भक्त प्रवेश कर सकते हैं।

बावे वाली माता काली


काली माता मंदिर की कथा और इतिहास (बावे वाली माता मंदिर)

माना जाता है कि महाराजा गुलाब सिंह के सत्ता में आने के कुछ समय बाद 1822 में 8वीं शताब्दी के दौरान मंदिर का निर्माण किया गया था। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि लगभग 300 साल पहले, देवी महाकाली पंडित जगत राम शर्मा के सपने में प्रकट हुईं और उन्होंने पहाड़ी की चोटी पर एक पिंडी या पत्थर के रूप में अपनी उपस्थिति के बारे में बताया। उसके कुछ ही समय बाद एक पत्थर मिला और पहाड़ी पर एक मंदिर बनाया गया। कहा जाता है कि काला पत्थर जो देवी का प्रतीक है, अयोध्या से सौर वंश के राजाओं, राजा बहू लोचन और राजा जम्बू लोचन द्वारा मंदिर के निर्माण से बहुत पहले प्राप्त किया गया था।

मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था इसलिए यह एक नया मंदिर प्रतीत होता है। अतीत में पशु बलि का व्यापक रूप से अभ्यास किया जाता था, लेकिन आजकल मंदिर के पुजारी कुछ अनुष्ठान करते हैं और एक भेड़ या बकरी को बलि के प्रतीकात्मक प्रस्तुति के रूप में मुक्त करने से पहले उस पर पवित्र जल छिड़कते हैं। इस अनुष्ठान को शिल्ली चरण के नाम से जाना जाता है। अब मंदिर में बलि किये गए भेड़ को प्रसाद के रूप में नहीं बांटा जाता और इसके स्थान पर केवल मिठाई, फल या मुरमुरे का प्रसाद बांटा जाता है।

"मंदिर में विराजी माता काली के प्रति जम्मू वासियों की मान्यता है कि माता ही उन्हें पाकिस्तान द्वारा हवाई हमलों से बचाती आयी है "। 

भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद देवी को कड़ाह के रूप में जाना जाने वाला एक मीठा हलवा चढ़ाते हैं। मार्च-अप्रैल और सितंबर-अक्टूबर के महीने में प्रत्येक नवरात्र के दौरान साल में दो बार काली माता मंदिर में बहू मेले का आयोजन किया जाता है। मंदिर बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करता है। सप्ताह में दो बार मंगलवार और रविवार को यहां विशेष पूजा भी की जाती है। 

हर सुबह कुंवारी कन्याएं यहां अपनी मनोकामनाएं पूरी करने माँ काली को लाल चुन्नी, चूड़ियाँ, मिठाई और कपड़े दान करती है ।

वैष्णोदेवी, सुधा देवी और शिव मंदिर आनेवाले भक्तों ने हाल ही में इस मंदिर में आना भी शुरू कर दिया है हाल ही के सालों में । बाहू किले के पास बाबा अंबू की एक समाधि भी इसके प्रशंसकों, विशेषकर खजुरिया ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई है।

नवरात्रों के बीच, आम लोगों को देवी महाकाली के दर्शन करने के लिए कम से कम 4 से 6 घंटे या उससे भी अधिक समय तक बैठना पड़ता है।


सावधनियाँ और नियम :


यहां पर्यटकों और भक्तों को रेसस प्रजाति के बंदरों की टोलियां भी दिखेंगी । यह बंदर बहुत उपद्रवी किस्म के हैं । अनाज, फल ओर मंदिर आनेवाले भक्तों के हाथों से कोई भी खाद्य वस्तु छीनकर भाग जाते हैं ।


मंदिर के भीतर काले चस्मे, टोपी और किसी भी प्रकार का इलेक्ट्रिक उपकरण लेके जाना निषेध है । यह सब बाहर जमा कराने की व्यवस्थता भी मंदिर ट्रस्ट द्वारा उपलब्ध है ।


इन्हें भी देखें:


- तिरुपति बालाजी मंदिर, जम्मू

कैसे पहुंचे :

मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा जम्मू हवाई अड्डा है जो मंदिर से लगभग 13.5 किमी दूर है। लगभग सभी एयरलाइंस दिल्ली, श्रीनगर, चंडीगढ़ और लेह जैसे प्रमुख शहरों से जम्मू के लिए नियमित उड़ानें संचालित करती हैं। 

रेल द्वारा जम्मू तवी जम्मू का प्रमुख रेलवे स्टेशन है और मंदिर के सबसे नजदीक है। भारत के प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई और त्रिवेंद्रम से नियमित ट्रेन सेवाएं उपलब्ध हैं। मंदिर रेलवे स्टेशन से लगभग 5.5 किमी की दूरी पर स्थित है। 

सड़क द्वारा जम्मू एक व्यापक बस और टैक्सी नेटवर्क से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। निजी पर्यटक बसें जम्मू और दिल्ली, मनाली, अमृतसर, शिमला और लुधियाना जैसे प्रमुख भारतीय शहरों के बीच चलती हैं। मंदिर तक पहुँचने के लिए जम्मू शहर से टैक्सी किराए पर ली जा सकती है जो जम्मू शहर के केंद्र से 5 किमी की दूरी पर है ।

।। जय बावे वाली माता ।। 🙏🕉️🌷🌿🚩🔱

✒️ Swapnil. A


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)






 

तवी नदी

बाघ-ए-बहू मछली घर(aquarium) के ऊपर

बहू किला



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सोमवार, 1 मई 2023

जमसावली मंदिर, छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश

हनुमान भक्त इस चमत्कारिक मंदिर से यहां पर मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाके यहां से वह सिंदुर अपने साथ ले जाते है अपनी समस्या का निवारण करने।






मंदिर

श्री जमसावली हनुमान मंदिर से जुड़ी एक अत्यंत विशेष किंवदंती यह है। एक बार कुछ चोर लुटा हुआ खज़ाना (शायद एक सोने की सनकल) लेके मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति के निकट जो विशाल पीपल का पेड़ है, वहां अंदर गाड़ दिया । जिसे भगवान बजरंगी ने देख लिया । जब चोर वहां वह खज़ाना छोड़ चले गए , तब भगवान वहां निद्रा वाली मुद्रा में सो गए । तब से निद्रा वाली मूर्ति यहाँ स्थापित हो गयी ।

जमसावली मंदिर छिंदवाड़ा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बीच सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। मंदिर के चमत्कार जगजाहिर हैं। यह सौसर शहर से 110 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह महाराष्ट्र राज्य के बाहरी इलाके में स्थित है। अभयारण्य में भगवान हनुमान आराम कर रहे हैं, जो भारत में बेहद असामान्य है। मंदिर में साल के किसी भी समय जाया जा सकता है।
यदि आप नागपुर क्षेत्र में रहते हैं तो यह विशेष रूप से आपके निकट है। यह भी कहा जाता है कि बिना भगवान के बुलाए कोई भी हनुमान मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता है। मंदिर में दो मुख्य मार्ग हैं। एक पुरुषों के लिए है, और दूसरा महिलाओं के लिए है। मास्टर हनुमान को इस संदर्भ में बाल ब्रम्हचारी कहा जाता है। मंदिर की संतता को बनाए रखने के लिए, महिलाओं को एक निर्धारित दूरी से भगवान को संबोधित करने की अनुमति है, लेकिन पुरुषों को मूर्ति के जितना संभव हो उतना करीब आने की अनुमति है। जाम सावली के हनुमानजी असंख्य आशीर्वाद देते हैं और आपकी झुंझलाहट का पता लगाते हैं, जिससे आपको सभी दर्द से राहत मिलती है। यह मंदिर विशेष रूप से अज्ञात बीमारियों से पीड़ित रोगियों को राहत देने और यहां तक कि इसकी ओझा शक्तियों के लिए भी प्रसिद्ध है। साथ ही यह मंदिर भूत-प्रेत और पिशाच बाधा अथवा तांत्रिक शक्तियों को खत्म करने के लिए मुख्यत जाना जाता है।  बजरँगबली की निद्रा में लीन मूर्ति और भी कष्टों को समाप्त करने के लिए जानी जाती है ।

श्री हनुमान जन्मोत्सव और श्री राम नवमी का वार्षिक उत्सव उच्च आत्माओं और आनंद से भरा होता है। पूरे भारत से भक्त शक्ति, ब्रह्मचर्य और भक्ति के भगवान को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आते हैं।

कैसे पहुंचे : 
जमसावली मंदिर से सबसे निकटम रेलवे स्टेशन, छिंदवाड़ा छोटी लाइन रेलवे स्टेशन है ओ 60 किमी है। यह दूरी स्थानीय बस या टैक्सी द्वारा उपलब्ध रहती है । दुपहिया या चार पहिया वाहन से 1 घण्टे 30 मिनट का समय लेता है । दूसरा सबसे निकटम रेलवे स्टेशन है नागपुर रेलवे स्टेशन जो जमसावली 70 किमी डोर स्तिथ है और यह दूरी 2 घन्टे 15 मैं तय की जा सकती है, रोड द्वारा ।

।। जय श्री राम ।।

।। जय बजरंगबली ।।

🙏🕉️🌷🌿🚩🔱🙏

✒️ Swapnil. A


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


योगमाया मंदिर,मेहरौली,दिल्ली

देश की राजधानी दिल्ली के दक्षिण में स्तिथ  माँ योगमाया का शक्तिपीठ मंदिर है। देवी योगमाया भगवान श्री कृष्ण की बड़ी बहन हैं। मेहरौली इलाके में...