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शनिवार, 11 मई 2024

योगमाया मंदिर,मेहरौली,दिल्ली

देश की राजधानी दिल्ली के दक्षिण में स्तिथ  माँ योगमाया का शक्तिपीठ मंदिर है। देवी योगमाया भगवान श्री कृष्ण की बड़ी बहन हैं। मेहरौली इलाके में सिद्धपीठ माँ योगमाया मंदिर का रिश्ता विंध्याचल की माँ विंध्यवासिनी मंदिर से भी एक रिश्ता है।


Maa Yogmaya

शनिवार, 17 फ़रवरी 2024

मोढेरा सूर्य मंदिर, मेहसाणा, गुजरात

पौराणिक इतिहास:

गुजरात के मेहसाणा जिले के मोढेरा के सूर्य मंदिर का इतिहास त्रेतायुग में लंका दिग्विजय पश्चात् के समय का माना जाता है। प्रभू श्री राम अपने गुरु वशिष्ट ऋषि के आदेश पर इस स्थान पर आए थे; रावण वध से हुए ब्राह्मण हत्या के पाप प्रायश्चित किया था। इसका वर्णन स्कंद पुराण और ब्रह्म पुराण में मिलता है। उस समय इसे 'धर्मारण्य' नाम से जाना जाता था। इसी स्थान पर श्री राम ने यज्ञ भी करवाया था। 


           

           

इतिहास:


मोढेरा सूर्य मंदिर का निर्माण राजा भीम देव प्रथम ने सन् 1026-1027 CE के मध्य करवाया था। वे चालुक्य वंश के थे और इनके कुल देवता सूर्य देव थे जिस कारण वे सूर्य वंशी भी कहलाते थे। उस काल में गुजरात के इस भाग ने इस्लामी आक्रांताओं के अनेकों हमले झेले और अनगिनत मंदिरों का विनाश होते देखा। महमूद गज़नी सोमनाथ मंदिर में रक्तपात,लूट और विध्वंस करते हुए मोढेरा पहुँचा। मोढेरा मंदिर को बचाने के लगभग असफल प्रयास में तकरीबन 20,000 योद्धाओं ने अपना बलिदान दिया। इतिहासकार ए.के.मजूमदार के अनुसार मोढेरा सूर्य मंदिर का निर्माण मोढेरा पर हुए हमले के बचने के उत्साह में बनवाया गया था। पश्चिमी दीवार के एक पत्थर पर लापरवाही से लिखे देवनागरी में सन् 1083 इसवी की तारीख लिखी है जो मंदिर बनने के असल वर्ष को 1026-27CE दर्शाता है। इसे पुख्ता प्रमाण नहीं माना जाता है क्योंकि इसके अलावा और कोई तारीख का वर्णन मंदिर के किसी दूसरे स्थान पर नहीं है। उस तारीख को मंदिर के निर्माण की जगह मंदिर के ध्वस्त की तारीख माना गया है। बाहर बने सरोवर का निर्माण पहले किया जा चुका था और इसके अंदर छोटे-छोटे मंदिर राजा भीम देव के सत्ता में लौटने के बाद बनाये गए थे। बारहवीं सदी के तीसरे भाग में राजा कर्ण द्वारा नृत्य मंडप जोड़ा गया था।





इस्लामी विध्वंस


बारहवीं सदी में मंदिर आक्रांता अल्लाउदीन खिलजी ने हमला किया था। इस हमले में मंदिर में अधिक विध्वंस हुआ। खिलजी ने मंदिर के गर्भ से सूर्य देव की सोने की मूर्ति जो हीरे से जड़ित थी अपने साथ ले गया। बाकी मूर्तियाँ भी तोड़ी गयी और मंदिर की दीवारों पर बने देवी देवताओं के सुंदर शिल्प खंडित हो गये।


मोढेरा सूर्य मंदिर:


 मोढेरा सूर्य मंदिर उस समय मध्य भारत की प्रचलित गुर्जर-मारू शैली में बनाया गया था। मंदिर को बनाने में ग्रेनाइट के पत्थर का उपयोग है किंतु चूने का उपयोग इंठों को चिपकाने के लिए नहीं किया गया है।इस मंदिर का विमान आड़ा बनाया गया था और शिखर मेरु पर्वत जैसा जो काफी सदियों पहले गिर चुका था। मंदिर का आधार उलटे रखे कमल के आकार पर बना है। मंदिर के तीन भाग है, गर्भ-गृह, सभामंडप, और कुंड। गर्भ-गृह गूढ़ मंडप का भाग है।



 गर्भगृह की लंबाई अंदर से 51 फ़ीट 9 इंच और चौड़ाई 25 फीट 8 इंच है। यह तीनों, मंदिर संकुल का अक्षीय गठबंधन है। सभामंडप गूढ़मंडप के समककक्ष नहीं है बल्कि अलग बना है। इन दोनों को छत लंबे समय पहले गिर गयी थी, अब केवल नीचे का भाग बचा है। मंदिर के बाहर की तरफ की दीवारों पर कई देवी-देवताओं के शिल्प खंडित है। हिंदू परंपरा अनुसार एक खंडित मंदिर में पूजा कभी नहीं होती है।गूढ़मंडप की बाहरी दीवार पर तीन खिड़कियां बनी है। बगल में सूर्य देव की मूर्ति रथ में अश्वों द्वारा खींचते हुए बनी है। और तो और सूर्य की अलग-अलग मुद्राओं में मूर्तियाँ बनी है जो सूर्य की प्रति महीने रहने वाली स्तिथि को दर्शाती है। 


   सभामंडप में 52 स्तम्भ है जो एक वर्ष में बावन हफ़्तों का प्रतिनिधित्त्व करते हैं। साल के 365 दिनों के प्रतिनिधित्त्व के लिए 365 हाथी बने हैं। स्तम्भों को देखने पर मंदिर नीचे की ओर से अष्टकोणाकर और ऊपर से देखने पर गोल दिखाई देता है। मंदिर के अंदर और बाहर मूर्तियों को बारीकी से तराशा गया है। इन मूर्तियों में समस्त हिंदु देवी-देवताओं को उनके वाहन के साथ बनाया गया है। जैसे अग्नि देव को भेड़ के साथ दिखाया गया है। आंठ दिशाओं के दिगपालों की मूर्तियों को उनकी दिशाओं के अनुसार स्थान पर शिल्पित किया गया है। भगवान सूर्य की एक मूर्ति गर्भगृह की बाहर की दीवार पर दोनों पत्नीयों, छाया और संध्या के साथ दिखाया है। सभामंडप के अंदर ध्यानाकर्षण करते है, रामायण, महाभारत के प्रसंगों को सटीकता उकेरा गया है।


मंदिर न केवल अभियांत्रिक पक्ष से उत्कृष्टता की निशानी है बल्कि धर्म और अध्यात्म के संगम को रोचकता से समझाने के लिये भी निर्मित है।इस समय मंदिर का रख रखाव भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा किया जा रहा है। मंदिर राष्ट्रीय स्मारकों की सूची में शामिल है और यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर की सूची में दिसम्बर 2022 में शामिल किया गया था।


सूर्य मंदिर विज्ञान और रहस्य:


मोढेरा के सूर्य मंदिर की सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस मंदिर के गर्भगृह पर साल के दो दिन - 21 मार्च और 21 जून को सूर्य की किरणे सीधी गिरती है। साल का सबसे लंबा दिन 21 जून(Summer Solstice) है जिसे अंग्रेज़ी में समर सोलस्टिस कहते है। और 21 मार्च(Equinox) के दिन, दिन और रात्री समान अवधि की होती है। सूर्य देव का यह मंदिर कोई साधारण मंदिर नहीं अपितु वैदिक खगोलशास्त्र की वेदशाला होने का अनुमान है। कर्क रेखा पृथ्वी पर 23.6° अक्षांश पर गुजरती है और मंदिर बीबी ठीक इसी दायरे में बनाया गया है। इन दो दिनों पर कोई व्यक्ति दिन के उजाले में खड़ा रहे तो उसकी या किसी भी वस्तु की परछाई धरातल पर नहीं दिखती है।पर्यटक इस बात को आंखोंदेखी कर अनुभव कर सकते हैं।


हर वर्ष पृथ्वी का अक्षीय झुकाव बदलते रहता है। फिर भी इस झुकाव का एक सीमित दायरा है। मोढेरा का मंदिर कुछ वर्षों में इस दृश्य की अनुभूति करता रहता है। अनुसंधानकर्ताओं ने इस पर समग्र शोध किया है किंतु मंदिर का हजार वर्ष पहले बिना किसी आधुनिक तकनीक के कैसे निर्माण हुआ यह कल्पना से परेह है। 


गर्भगृह के नीचे कुछ अनुसंधानकर्ताओं द्वारा पता करने पर एक विशाल गढ़े के होने की जानकारी मिली थी जिसे अब बंद करके रखा गया है। उनके अनुसार इस गड्ढे में सूर्य देव की सोने की हीरों से जड़ित मूर्ति हुआ करती थी। यह मूर्ति हवा में किसी विद्युतीय उपकरण द्वारा मैग्नेटिक लेविटेशन प्रणाली से तैर सकती थी। सूर्यदेव की इस मूर्ति का क्या हाल हुआ इसकी कोई जानकारी नहीं है। हालांकि सोने की मूर्ति आदि बात केवल मिथ्या मनोरंजन के लिए गढ़ी गयी हो यह भी माना जा सकता है - वैसे ऐसी बात भारत के प्राचीन मंदिरों के संदर्भ में अगर कहि जा रही हो तो उसमें लेशमात्र सत्य तो होगा ही। 


कर्क रेखा को मंदिर के मध्य से गुजरता दर्शाने के लिये मंदिर की बाहरी दीवार पर दो लकीरें खींची दिखाई देती हैं।


राम कुंड


  मंदिर के प्रमुख आकर्षणों में से एक इस कुंड को श्री राम कुंड, सूर्य कुंड और 'सीता नी चोड़ी' भी कहा जाता है। कीर्ती तोरण से होते हुए कुंड की तरफ रास्ता है। इसे चारों तरफ से पत्थरों से बनाया गया है।पश्चिम दिशा में मुख्य प्रवेश द्वार है। कुंड आयताकार आकर का बनाया गया है। उत्तर से दक्षिण की ओर 176 फ़ीट और पूर्व से पश्चिम की ओर 120 फ़ीट क्षेत्र में है। कुंड के जल तक पहुँचने के लिये चारों ओर से छत बनी है जिसके नीचे से सीढियां है।  इसमें 28 सीढियां हैं जो महीने के 28 दिनों का प्रतीक हैं। ब्रह्मांड में 27 नक्षत्रों को दिखाने के लिये राम कुंड में 27 छोटे-बड़े मंदिर भी बने है जिनमे वैष्णव देवों के विग्रह विराजीतहैं। कुंड के निर्माण के बाद इसमें सातों महाद्वीपों का जल एकत्रित कर मिलाया गया था।






मोढेरा नृत्य महोत्सव:


गुर्जरत पर्यटन विभाग द्वारा हर वर्ष मकर संक्रांति पर सूर्य देव के उत्तरायण होने पर मोढेरा सूर्य मंदिर के बाहर भव्य नृत्य कार्यक्रम किया प्रस्तुत किया जाता है। इसमें देश-विदेश के लोग भाग लेते हैं और देखने पहुँचते हैं।





मोढेरा सूर्य मंदिर कैसे पहुँचे:


मोढेरा सूर्य मंदिर से मेहसाणा रेलवे स्टेशन की दूरी तकरीबन 30 किमी है। यह दूरी 40 मिनट में प्राइवेट कैब या सरकारी बस द्वारा पूरी की जा सकती है। 


मेहसाणा से सबसे नजदीक गुजरात का अहमदाबाद शहर है। यह दूरी 76 किमी है और 2 घण्टे में चार पहिया द्वारा पूरी की जा सकती है। 


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)

 

सोमवार, 29 जनवरी 2024

कोपेश्वर महादेव मंदिर, खिद्रापुर, महाराष्ट्र

पौराणिक इतिहास:

पौराणिक कथा अनुसार दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती द्वारा प्राण त्यागने पश्चात् दक्ष को महादेव ने वीरभद्र द्वारा मृत्यु दंड दिया था। सति की मृत्यु पर महादेव कुपित हो गए। इसी कथा अनुसार भगवान शिव के कोप को शांत कर संसार को सर्वनाश से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने उन्हें इस स्थान और लेकर आये थे।

 


एक अन्य कथा में इस स्थान का पौराणिक महत्त्व भगवान विष्णु के लिंग रूप में अवतरित होने का उल्लेख है। भगवान शिव के इस शिवलिंग रूप के साथ साथ अगर कोई एक समय में सनकेश्वर, बंकनाथ कोपेश्वर के दर्शन कर लेगा तो उसके हर दुर्लभ मनोरथ और इक्छाएँ पूर्ण होंगी। इस वरदान का देव, दानव, गन्धर्व, ऋषि और मानव दुरुपयोग करने लगे थे। इसका उपाय श्री हरि के पास ही उपलब्ध था। इस मंदिर के गर्भ गृह में पहुँचने पर सबसे पहले ध्यान भगवान विष्णु के लिंग के ऊपर आता है। सबसे प्रथम श्री हरि जो दोपेश्वर के रूप में विराजित हैं। यह संसार का एक मात्र मंदिर है जहां भगवान हरि लिंग रूप में पौराणिक महत्व से विराजित है।



रविवार, 21 जनवरी 2024

जगत शिरोमणि मंदिर, आमेर, राजस्थान

जगत शिरोमणि मंदिर राजस्थान के आमेर के प्रमुख धार्मिक और ईतिहासिक विरासतों में से एक है जिसका इतिहास जयपुर की सीमा के बाहर सर्वजन के ज्ञान में नहीं है।

मध्यकालीन इतिहास:


आमेर के राजा सेनापति मानसिंह और उनकी पत्नी द्वारा जगत शिरोमणि मंदिर का निर्माण करवाया गया था। इन दोनों का एक पुत्र हुआ जिसका नाम था जगत सिंह। जगत सिंह 18 वर्ष की आयु में एक युद्ध के लिए निकल पड़े। युद्धभूमि मे जाते समय कुछ हमलावरों ने उनकी हत्या कर दी। अल्प आयु में अपने इकलौते पुत्र को खोने के वियोग में रानी कनकवती ने उसकी स्मृति में एक भव्य इमारत बनाने को सोची। वासुदेव श्रीकृष्ण की उपासक रानी ने भगवान श्री कृष्ण को समर्पित यह मंदिर बनवाया। सन् 1599 से 1608 के बीच मंदिर बनकर तैयार हुआ।


श्रीकृष्ण-मीराबाई



जगत शिरोमणि मंदिर:


मंदिर का नामकरण रानी के पुत्र जगत और श्री कृष्ण के एक और नाम शिरोमणि से मिलाकर रखा गया है। आमेर के पुरातन मंदिरों में से एक जगत शिरोमणि मंदिर राजपुताना महामेरू वास्तुकला में बना है। इसमें मकराना से मंगवाए गए सफेद और मलाई रंग के संगमरमर का उपयोग किया गया है। मंदिर में एक बरोठा, मंडप, स्वर्ग मंडप और गर्भ गृह है। मंडप दो मंजिला जिसके दो भाग एक दूसरे को काट रहे है। आमेर की मुख्य सड़क से मंदिर का मुख्य द्वार सम्पर्क में है। तथा राज महल से मंदिर के पीछे बने द्वार तक भी एक दरवाजा जुड़ा है। 

     
      


छत पर मंदिर के सामने भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ देव बने हुए हैं। गर्ब ग्रह के द्वार पर विष्णु जी के दशावतारों और निवास, क्षीरसागर का दृश्य मंदिर को को दिव्यता प्रदान करता है। बाहर खड़े विष्णु जी के द्वारपाल जय-विजय शिल्पित हैं। भगवान श्री कृष्ण उरुश्रृंगों और कर्णश्रृंगों से क्रमबद्ध सुशोभित है। मंदिर बनाने में उस समय के मूल्य अनुसार 9 लाख रुपये का खर्च आया था। जगत शिरोमणि मंदिर के द्वार पर ऊंचा भव्य तोरण बना हुआ है जिसपे देवी देवता और दो हाती आगन्तुकों का स्वागत करती मुद्रा में देखे जाते हैं। 


स्वर्ग मंडप
स्वर्ग मंडप



"श्री कृष्ण के साथ अमूमन राधा रानी या रुक्मिणी/सत्यभामा बगल में दिखती हैं। किंतु इस मंदिर में उनकी परम भक्त मीराबाई साथ में विराजी हैं।"



मंदिर महत्व:


जगत शिरोमणि मंदिर के बारे में माना गया है कि गर्भ-गृह में श्री हरि का वही विग्रह प्रतिष्ठित है जिसकी मीराबाई 600 वर्ष पहले पूजा किया करती थी। आखरी समय मे मीराबाई द्वारका में इसी श्री कृष्ण के विग्रह के साथ देखी गयी थी। और मीराबाई की देह इसके पश्चात् नहीं मिली सो माना यही गया कि कृष्ण के प्रेम में वे देह सहित वैकुंठ प्रस्थान कर गयी या विग्रह में समा गई थी मीराबाई के विग्रह होने के पीछे का कारण यह समझा गया की, क्योंकि राधा रानी या देवी रुक्मिणी का विग्रह श्री कृष्ण के बराबर रखी जाती है किंतु इस मंदिर में मीराबाई का विग्रह कृष्ण से सिमटे हुए ना हो के नीचे अलग रखी गयी है। किसी कृष्ण भक्त के साथ यह मूर्ति महाराणा प्रताप के राज्य में आ पहुंची। हल्दीघाटी के युद्ध मे मुग़ल सेना के हमलों में बचते बचाते इस मूर्ती को आमेर के सेनापति राजा मानसिंह को किसी के द्वारा प्राप्ति हुई और फिर उन्होंने मंदिर में प्राण प्रतिष्ठिता की। 








जगत शिरोमणि मंदिर कहाँ है?


जगत शिरोमणि मंदिर जयपुर के आमेर में देवी सिंहपुरा में स्तिथ है। मंदिर की जयपुर रेलवे स्टेशन से दूरी 11 किमी और जयपुर अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे से 19 किमी है। पर्यटक स्थलों के लिये प्राइवेट कैब और टैक्सी की सेवा उपलब्ध रहती है। साथ ही सरकारी बसें भी आमेर के किलों तक सुविधा प्रदान करती हैं।


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

पावागढ़ महाकाली मंदिर, चंपानेर, गुजरात

गुजरात राज्य के चंपानेर जिले में माँ काली एक दिव्य शक्तिपीठ पावागढ़ स्तिथ है। पश्चिम भारत में पावागढ़ महाकाली मंदिर एक मात्र देवी मंदिर है जो सर्वाधिक ऊंचाई पर बसा माँ का दिव्य दरबार है।

पौराणिक इतिहास:

पावागढ़ मंदिर का पौराणिक इतिहास सतयुग के आरंभ के काल का है। इस धाम की उत्तपत्ति माता सती के देह से कट के गिरे अंगों में से निर्मित हुई थी। हालांकि यह स्पष्ट नहीं कि यहाँ माता के शरीर का कौन सा अंश गिरा था। पुराणों में कहीं माँ के किसी एक पैर की 5 उंगलियाँ तो कहीं वक्ष स्थल कहा गया है। इस मंदिर के नाम करण के पीछे का सत्य स्पष्ट रूप से वर्णित नहीं है। क्योंकि पावागढ़ का नाम तो माता के पांव से गिरी उंगलियों के कारण या तो गुजरात के इस भूभाग में पवन के अति वेग से चलने की वजह से पड़ा हो सकता है। 

                  



                



माँ सति के पुनीत अंगों से बनी इस भूमि पर माँ काली के विग्रह को ऋषि विश्वामित्र ने स्थापित किया था। विश्वमित्र के नाम पर चंपानेर क्षेत्र की नदी विश्वमित्री नाम से जानी जाती है। इस धाम में भगवान श्री राम का भी आगमन रावण के वध पश्चात हुआ था। रावण वध के ब्राह्मण हत्या के दोष के निवारण हेतु प्रभू ने यहीं प्राश्चित किया था। भगवान के दोनों पुत्र लव-कुश के भी याँ आने की बात यहाँ के निवासी मानते हैं।


मध्यकालीन इतिहास:


पावागढ़ के उपलब्ध साक्ष्यों के अनुसार काली मंदिर का इतिहास 1000 वर्षों का माना गया है। उस समय मंदिर में माँ के दर्शन बहुत दुर्लभ हुआ करते थे। घने जंगलों के मध्य पहाड़ी पर बने मंदिर पर अधिकांश सौराष्ट्र वासी नहीं चल पाते थे। 

 मुग़ल काल के भारत में सत्ता लेने के बाद सन् 1484 में क्रूर इस्लामी हमलावर महमूद बेगड़ा ने पावागढ़ पहाड़ीपर सेना के साथ चढ़ाई कर मंदिर क्षतिग्रस्त कर दिया और पीर सदन शाह की दरगाह बनवा दी। 


पावागढ़ मंदिर:


पावागढ़ मंदिर को प्राचीन समय में शत्रुंजय मंदिर कहा जाता था। माँ महाकाली के इस भव्य और अद्धभुत मंदिर कुल 1525 फ़ीट(550मीटर) की ऊंचाई पर है। इसकी चढ़ाई में 2500 से ज़्यादा सीढियां चढ़नी पढ़ती है। सन् 2017 से 2022 के बीच मंदिर से पीर सदन शाह की दरगाह हटाकर पहाड़ी के अन्य स्थान पर करवाया गया है। माँ काली दक्षिण मुख किये हुई हैं। माँ की पूजन विधि तंत्र परम्परा के नियमों के अंतर्गत होती है। जैसे के अन्य शक्तिपीठों और देवी मंदिरों में देखने को मिलता है, पावागढ़ मंदिर में माता काली के साथ माँ लक्ष्मी और माँ सरस्वती विराजी हैं। 

            



मंदिर पूरे 500 वर्षों के बाद माँ के विग्रह के ऊपर शिखर बनवाई गई है और ध्वजारोहण भी किया गया है। यह प्रशंसनीय कार्य माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्य सरकार के भरपूर प्रयास से संभव हो पाया है। एक और कारण, पावागढ़ गुजरात के प्रमुख तीर्थो में से एक है। वर्ष 2017 से पहाड़ी के शिखर से दरगाह हटाने का कार्य 2022 मे निष्पादित हुआ जिसके बाद दरगाह पहाड़ी के अन्य कोने में स्थानांतरित करवा दि गयी।


माँ काली के दुर्लभ से सुलभ दर्शन की यात्रा का इतिहास पावागढ़ मंदिर ने रचा है।


पहाड़ पर चढ़ाई करते समय आगंतुक मध्य में दुधिया और तलइया तालाब देख सकते हैं। रोपवे से ऊपर-नीचे जाते समय नज़ारा और भी विहंगम दिखाई देता है।  सीढ़ियों की शुरुआत से लेके रोपवे के अंत स्टेशन तक यहाँ भक्तों के उपयोग की हर खाद्य और दूसरी वस्तुएं यहाँ बनी दुकानों में उपलब्ध रहती है।






नवरात्र में माता काली यह प्राचीन मंदिर भक्तों को पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान और बाकी राज्यो से खींच लाता है। दूर से पावागढ़ की पहाड़ी पर मंदिर मानों माँ का मुकुट जैसा प्रतीत होता है।


पावागढ़ माँ काली गरबा:


गुजरात पावागढ़ की महाकाली को समर्पित एक प्रेम और भक्ति से परिपूर्ण गरबा लिखा गया है जिसे गुजरात मे हर वर्ष नवरात्रों और अन्य उत्सवों में गाया और मनाया जाता है। गरबे की पंक्तियां यह रही- 


पावली लई ने हूँ तो पावागढ़ गयी थी,

पावली लई ने हूँ तो पावागढ़ गयी थी,

पावागढ़ वाली मने दर्शन दे, दर्शन दे। 


नई तो मारी पावली पाछी दे, 

नई तो मारी पावली पाछी दे।


अर्थ: भक्त माँ से नटखट और प्रेममय भाव से कह रहा है "पावागढ़ वाली माँ के लिए मैं 5 पैसे लेके गई थी, पावागढ़ वाली मुझे दर्शन दो, नहीं तो मेरे 5 पैसे वापिस दो। 


पावागढ़ मंदिर समयसारिणी:


पावागढ़ मंदिर खुलने का समय सुबह 5 बजे और बंद होने का समय संध्या 7 बजे का है। माँ काली की आरती का समय सुबह 5 बजे और संध्या 6:30 बजे का है।


पावागढ़ मंदिर कैसे पहुँचे:


पावागढ़ पहुँचने के लिए रास्ता दो भागों में बंटा है। 

पावागढ़ के सबसे निकट पहले वडोदरा और दूसरा अहमदाबाद शहर है। दोनों की दूरी 46 और 150 किमी है। 


चंपानेर से अहमदाबाद और वडोदरा सड़क मार्ग से अच्छे से समर्पक में है तथा रेल और हवाई मार्ग से देश के अन्य कोनों से भी जुड़े हुए हैं। चंपानेर के बस स्टैंड से बस दिन के हर समय चलती है। 


चंपानेर पहुंचकर ऑटो या टैक्सी में पहले 5 किमी अंदर का सफर कर मंदिर के पहाड़ के नीचे पहुंचना होता है। और पश्चात रोपवे(उड़नखटोला) से कुछ ही मिनट में मंदिर के नीचे पहुंचा जा सकता है। 

यहां से 250 सीढियां और चढ़कर मा काली के दर्शन किये जाते हैं।


✒️स्वप्निल.अ

गुरुवार, 7 दिसंबर 2023

मुंडेश्वरी मंदिर,कैमूर,बिहार

पौराणिक इतिहास:

बिहार के मुंडेश्वरी देवी मंदिर का इतिहास सतयुग के समय का है और यहां सबसे पहले महादेव का शिवलिंग था और इसके पश्चात माता पार्वती का मुंडेश्वरी रूप में विराजमान हुई। मुंडेश्वरी मंदिर स्थान का सबसे पहले विवरण स्कंद पुराण में मिलता है। इसके अलावा मार्कण्डेय पुराण अनुसार यही वह स्थल है जहां माँ दुर्गा ने काली रूप धर, चंड-मुंड नामक राक्षस का वध किया था। राक्षस मुंड का सिर कैमूर को इस पहाड़ी पर गिरने की वजह से यह मंदिर मुंडेश्वरी मंदिर कहलाया।




प्राचीन इतिहास: 


मंदिर का सबसे पहला शिलालेख साल 389 ईसवी का बताया जाता है। इस बात का दावा यहां मिले शिलालेख में मिलता है। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध से बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध के बीच कई अंग्रेज़ अधिकारियों ने इस क्षेत्र का दौरा कर मंदिर की जानकारी जुटाई। मुंडेश्वरी माता का यह स्वर्ग से धाम भी देश के लाखों मंदिरों की  ही तरह मुग़लों और दिल्ली सलतनत के हमलों से बच ना पाया। देवी मुंडेश्वरी वराही रूप में है। वराही को काशी की रक्षिका देवी भी माना जाता है। 



         

कुल मिलाकर पौराणिक और प्राचीन इतिहास को मिलाकर देखें तो यह देवी मंदिरों में और भगवान शिव, विष्णु आदि देवों से भी अधिक पुराना है। 

मुंडेश्वरी मंदिर:


पँवरा पहाड़ी पर बसे मुंडेश्वरी मंदिर 608 फ़ीट की ऊंचाई पर स्तिथ है। मंदिर काले पत्थर से बना अष्टकोणीय आकर में है और दोनों बगल में बहुत सारे टूटे हुए अवशेष बिखरे पड़े है। मंदिर के पश्चिम में विशाल नंदी कि मूर्ति है और पूर्व मुख् किये हुए आज भी उसी तरह तटस्थ बैठे है। माता की मूर्ति में इतनी शक्ति होने के कारण मूर्ति को ज़्यादा समय ना देखने की हिदायत यहां के पुजारी आनेवाले भक्तों को दे देते हैं। माँ मुंडेश्वरी मंदिर में वराही रूप में विराजी है।



माता मुंडेश्वरी मूर्ति


देश के अनेकों मंदिर मुग़ल और इस्लामी शासन काल में  तहस-नहस कर दिए गए थे उनमें से एक माँ मुंडेश्वरी का यह मंदिर भी है। मात्र इतना फर्क है कि जहाँ अनेकों मंदिरों पर दरगाह और मस्जिदें बना दी गयी वहीं मुंडेश्वरी धाम मेन मंदिर ईश्वर की विशेष कृपा से बचा रहा। काफी सदियों तक आम जनता की दृष्टि से दूर रहने के कारण मंदिर 


ऐसी बलि और कहीं नहीं:


मंदिर में किसी भक्त की मनोकामना पूरी होने के पूर्व बलि देने का संकल्प लेके मनोकामना पूरी होने पर बकरे की बलि माता को समर्पित करते हैं। मुंडेश्वरी मंदिर में दी जाने वाली पशु बली में पशु के शरीर से रक्त की एक बूंद भी नहीं निकलती क्योंकि पशु को केवल माता की मूर्ति के नीचे रख कर कुछ चावल चढ़ा कर मंत्र बोले जाते हैं। कुछ ही क्षण में बकरा बेशुद्ध हो कर वापिस होश में आ जाता है मानो जैसे परलोक से लौटकर आया हो। 



यह केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि उससे कहीं ज़्यादा एक आध्यात्मिक रीति है जो 1700 वर्ष से मंदिर में निर्बाधित चली आ रही है। 


 पँवरा पहाड़ी के नीचे बने संग्रहालय में पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित मंदिर के अनेक अवशेष जैसे खंडित मूर्तियाँ, स्तम्भ इत्यादि संग्रहित है। इन मूर्तियों में भगवान, गणेश, कालभैरव, विष्णु, सरस्वती और महालक्ष्मी है। 


पंचमुखी शिवलिंग:


मंदिर महादेव का पंचमुखी शिवलिंग विराजमान है जो दिन के तीन पहर में तीन बार रूप बदलता है। जिस पत्थर से यह पंचमुखी शिवलिंग निर्मित किया गया है उसमे सूर्य की स्थिति के साथ साथ पत्थर का रंग भी बदलता रहता है।


  बलि की यह सात्विक परंपरा पुरे भारतवर्ष में अन्यत्र कहीं नहीं है I एक तरफ मंदिर तक पहुँचने के लिए  524 फीट तक सड़क मार्ग की सुविधा है जहाँ हल्की गाड़ियाँ जा सकती है I राजधानी पटना से प्रतिदिन कई वातानुकूलित एवं सामान्य गाड़ियाँ भभुआ के लिए प्रस्थान करती है। वाराणसी तथा पटना से रेल द्वारा  आने के लिए गया -मुगलसराय रेलखंड पर  स्थित भभुआ रोड (मोहनियाँ) स्टेशन उतरना होता है


पंचमुखी शिवलिंग




मुंडेश्वरी माता मंदिर सुबह 6 से 7 बजे तक दर्शन के लिये खुला रहता है।


बौद्ध मंदिर?

हाल ही के दशकों में मुंडेश्वरी मंदिर को एक बौद्ध मंदिर साबित करने की काफी कोशिशें नव-बौद्धों द्वारा मार्क्सवादी और वामपंथी विचारधारा और षड्यंत्र के चलते करने की कोशिश की गई है। अनर्गल तथ्य बिना किसी ईतिहासिक प्रमाण के चलते यह दिव्य रचना नव बौद्धों के हाथों में जाने से बची है। 


यहाँ मिली लगभग हर मूर्ति को भगवान का रूप बताने का प्रयास किया गया है। किंतु यह प्रामाणित नहीं हो पाया क्योंकि मंदिर पक्ष के पास इसके कुछ लिखित साक्ष्य संरक्षित मिले हैं। जैसे बौद्ध मंदिरों में जो शिलालेख मिलते है वह केवल पाली लिपी में होते हैं जबकि प्राचीन मंदिरों में ब्राह्मी लिपी, संस्कृत या तमिल भाषा का उपयोग होता है। 


यहां देवियों की मूर्ति जिनपे स्त्री संकेत स्पष्ट दिखाई देते हैं, नव बौद्ध इसे भी भगवान बुद्ध की कहकर मूर्खता करते है।


मुंडेश्वरी मंदिर कैसे पहुँचे:


कैमूर से निकटतम शहर वाराणसी और पटना है। वाराणसी से कैमूर 101 किमी है और साढ़े 3 घण्टे में पहुँचा जा सकता है। पटना से कैमूर की दूरी 223 किमी है। यह दूरी 6 घण्टे में पूरी की जा सकती है। 

पटना और वाराणसी रेलवे स्टेशन देश के बाकी शहरों अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। 

वाराणसी का लालबहादुर शास्त्री हवाई अड्डा और पटना हवाई अड्डा से देश के अन्य राज्यों के लिए विमान सर्व उपलब्ध रहती है।


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)



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