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सोमवार, 29 जनवरी 2024

कोपेश्वर महादेव मंदिर, खिद्रापुर, महाराष्ट्र

पौराणिक इतिहास:

पौराणिक कथा अनुसार दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती द्वारा प्राण त्यागने पश्चात् दक्ष को महादेव ने वीरभद्र द्वारा मृत्यु दंड दिया था। सति की मृत्यु पर महादेव कुपित हो गए। इसी कथा अनुसार भगवान शिव के कोप को शांत कर संसार को सर्वनाश से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने उन्हें इस स्थान और लेकर आये थे।

 


एक अन्य कथा में इस स्थान का पौराणिक महत्त्व भगवान विष्णु के लिंग रूप में अवतरित होने का उल्लेख है। भगवान शिव के इस शिवलिंग रूप के साथ साथ अगर कोई एक समय में सनकेश्वर, बंकनाथ कोपेश्वर के दर्शन कर लेगा तो उसके हर दुर्लभ मनोरथ और इक्छाएँ पूर्ण होंगी। इस वरदान का देव, दानव, गन्धर्व, ऋषि और मानव दुरुपयोग करने लगे थे। इसका उपाय श्री हरि के पास ही उपलब्ध था। इस मंदिर के गर्भ गृह में पहुँचने पर सबसे पहले ध्यान भगवान विष्णु के लिंग के ऊपर आता है। सबसे प्रथम श्री हरि जो दोपेश्वर के रूप में विराजित हैं। यह संसार का एक मात्र मंदिर है जहां भगवान हरि लिंग रूप में पौराणिक महत्व से विराजित है।




इतिहास और मंदिर:


मंदिर का निर्माण 7 वी सदी से चालुक्य शासन में शुरू हुआ और शिलाहार राजाओं के शासन में समाप्त हुआ। चालुक्य शासन के समय वेसरा मंदिर वास्तुकला में मंदिरों का बड़ा निर्माण हुआ सो कोपेश्वर मंदिर भी उन्हीं में से एक है। मंदिर के चार भाग गर्भ-ग्रह,सभा मंडप, अंतराल कक्ष और स्वर्ग मंडप हैं। मंदिर पूर्व विमुख है तथा इसका आधार गजपीठ पर बना है। प्रवेश द्वार पर द्वारपाल है और मंदिर को 95 छोटे हाथी अपनी पीठ पर उठाते हुए दिखाई देते हैं। पृष्ठ भाग की दीवार पर देव कोष्टी(मंदिर खिड़की) है। इसके ऊपर भगवान महादेव, माता पार्वती, ब्रह्मा और विष्णु के शिल्प किये हुए हैं।

      


स्वर्ग मंडप




मंदिर का स्वर्ग मंडप गोलाकार है और आगन्तुकों का ध्यानाकर्षित करता है। इसके भीतर रंग शिला और ऊपर कार्तिकेय स्वामी के साथ आठ दिशाओं के दिगपाल की मूर्तियां तराशी गयी है। इन मूर्तियों के ऊपर 48 स्तंभ बने हुए हैं। सामान्यतः स्वर्ग मंडप के खुले होने का कारण मंदिर में होनेवाले यज्ञ और हवन से निकलने वाले धुएं के बाहर जाने का मार्ग बताया जाता है। स्वर्ग मंडप की सुंदरता को चार चांद इनपर की गई कलात्मक नक्काशी खूबसूरत बनाती है।

    
      
गर्भ-गृह कुष्टी

स्वर्ग मंडप स्तम्भ




कृष्ण नदी के तट पर बने इस अद्वितीय संरचना और आस्था के केंद्र को औरंगज़ेब के शासन काल शती पहुँचाने का प्रयत्न किया गया था। उनका परिणाम आज मंदिर परिसर और दीवारों पर शिल्प की गई मूर्तियाँ तितर-बितर खंडित अवस्था मे पड़ी हुई हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग अब मंदिर के रख-रखाव कर रहा है।


     

शिवजी संग लिंग रूप में विष्णुजी


कोपेश्वर मंदिर महत्त्व:


कोपेश्वर मंदिर के स्वर्ग मंडप में हर वर्ष की कार्तिक पूर्णिमा पर चंद्रमा मंडप के सटीक मध्य में आ ठहर जाता है। मंदिर में स्वर्ग मंडप को खगोल और ज्योतिष शास्त्र के अध्ययन के लिए बनाया गया ऐसा माना गया है। 


       



   
मंदिर प्रवेश द्वार



इस शिव धाम की दूसरी विशेषता है इसमें नन्दी बैल का लिंग के सम्मुख ना होना। मंदिर पूर्वमुख है और नन्दी मन्दिर से दूर महाराष्ट्र-कर्नाटक की सीमा पर यदूर गांव के नन्दी मंदिर में प्रतीक्षा की मुद्रा में बैठे है। 


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।) 


 

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