Translate

Unknown Temples लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Unknown Temples लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 29 जनवरी 2024

कोपेश्वर महादेव मंदिर, खिद्रापुर, महाराष्ट्र

पौराणिक इतिहास:

पौराणिक कथा अनुसार दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती द्वारा प्राण त्यागने पश्चात् दक्ष को महादेव ने वीरभद्र द्वारा मृत्यु दंड दिया था। सति की मृत्यु पर महादेव कुपित हो गए। इसी कथा अनुसार भगवान शिव के कोप को शांत कर संसार को सर्वनाश से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने उन्हें इस स्थान और लेकर आये थे।

 


एक अन्य कथा में इस स्थान का पौराणिक महत्त्व भगवान विष्णु के लिंग रूप में अवतरित होने का उल्लेख है। भगवान शिव के इस शिवलिंग रूप के साथ साथ अगर कोई एक समय में सनकेश्वर, बंकनाथ कोपेश्वर के दर्शन कर लेगा तो उसके हर दुर्लभ मनोरथ और इक्छाएँ पूर्ण होंगी। इस वरदान का देव, दानव, गन्धर्व, ऋषि और मानव दुरुपयोग करने लगे थे। इसका उपाय श्री हरि के पास ही उपलब्ध था। इस मंदिर के गर्भ गृह में पहुँचने पर सबसे पहले ध्यान भगवान विष्णु के लिंग के ऊपर आता है। सबसे प्रथम श्री हरि जो दोपेश्वर के रूप में विराजित हैं। यह संसार का एक मात्र मंदिर है जहां भगवान हरि लिंग रूप में पौराणिक महत्व से विराजित है।



मंगलवार, 23 जनवरी 2024

ऋंगी-शांता मंदिर, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश

श्रृंगवेरपुर, प्रयाग नगरी के समीप प्रभू श्री राम से पुनीत धाम चित्रकूट के निकट बना है। यह धाम रामायण की अनसुनी कथा और इनसे जुड़े हुए कुछ अंजाने पात्र की भूमि रही है। रामायण के शुरू से लेके अंत तक इस पावन भूमि का अहम योगदान रहा है।

पौराणिक इतिहास:


श्रृंगवेरपुर का इतिहास अति रोचक कथाओं के घटनाक्रम से भरा हुआ है। इन कथाओं का वर्णन वाल्मीकि रामायण, कालिदास के रघुवंशम्, भवभती के उत्तर रामचरित, वेदव्यास के महाभारत और तुलसीकृत श्रीरामचरितमानस में है। त्रेतायुग में ऋषि कश्यप के पुत्र विभंड ने घोर तपस्या की जिससे भयभीत हो देवराज इंद्र ने अप्सरा उर्वशी को तपस्या भंग करने के लिए भेजा। विभंड उर्वशी के से मोहित हो गए और इस मिलन से एक पुत्र का जन्म हुआ। यह पुत्र ऋंगी ऋषि कहलाये। ऋषि के मस्तक पर सींग जैसा उभार होने के कारण इनका नाम ऋंगी पड़ा। उन्होंने अपने कठोर तप से अनेक शक्तियां प्राप्त की। इन शक्तियों के उपयोग से राजा दशरथ और अंगदेश के राजा रोमपद को भीषण अकाल से मुक्त करवाया। 


ऋषि ऋंगी - माता शांता
ऋषि श्रृंगी - देवी शांता

     

         



श्रृंगवेरपुर की भूमी पर राजा दशरथ का पुत्रेष्ठि यज्ञ का साक्षी है। इस यज्ञ को ऋंगी ऋषि ने संपन्न करवाया था। फल स्वरूप अयोध्या में राजा दशरथ की तीन पत्नियों, कौशल्या से श्री राम, कैकई से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण शत्रुघ्न हुए। 


   


रामचरितमानस की एक चौपाई में ऋंगी द्वारा पूर्ण करवाये गए पुत्रेष्टि यज्ञ का वर्णन इस प्रकार है –


सृंगी रिषिहि बसिष्ठ बोलावा।

पुत्रकाम सुभ जग्य करावा।।



➡️ जगत शिरोमणि कृष्ण मंदिर, जयपुर, राजस्थान


दशरथ पुत्री शांता:


प्रभू श्री राम के पिता राजा दशरथ की एक पुत्री भी थी जिनका नाम था शांता। किंतु देवी शांता का उल्लेख वाल्मीकि कृत आद्य महाकाव्य रामायण में नहीं मिलता है। केवल ऋषि ऋंगी का वर्णन है। दक्षिण भारत के कतिपय पौराणिक आख्यानों में शांता को राजा दशरथ और उनकी पहली पत्नी कौशल्या की पुत्री होने के स्पष्ट विवरण मिलता है। माता कौशल्या की एक बहन वर्षिणी अंगदेश के राजा रोमपद की पत्नी थी। किंतु राज दम्पति के कोई संतान न थी। शांता को राजा दशरथ से वचन लेकर राजा रोमपद और रानी वर्षिणी ने गोद ले लिया था। राजा दशरथ की सहमति से ही शांता का विवाह ऋंगी ऋषि के साथ हुआ था। 




प्रभू श्री राम, पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण सहित राजसी जीवन त्याग इसी पावन धरती से वनवासी जीवन आरंभ किया था। रघुनंदन आर्य सुमंत्र द्वारा चलाये रथ पर बैठ, अयोध्या से गंगा के तट पर पहुंचे और केवट द्वारा नाव में बैठकर इस स्थान पर  पहली रात्रि बिताई। भ्राता भरत श्री राम को मनाकर वापिस अयोध्या लें चलने के लिए प्रथम बार यहीं रुके थे और एक रात्रि बिताई थी। 


रामचरितमानस में इसका वर्णन इन चौपाईयों में मिलता है –


  1. सीता सचिव सहित दोऊ भाई।

सृंगबेरपुर पहुंच जाई।।


  1. सिय सुमंत्र भ्राता सहित।

कंद मूल फल खाई।।


  1. सयन कीन्ह रघुबंसमनि।

पाय पलोट त भाई।।


श्रृंगवेरपुर धाम महत्त्व:


  • श्रृंगवेरपुर, प्रभू श्री राम के परम मित्रों, भक्तों में से एक निषादराज का गढ़ रहा है। निषादराज का महल भी यही बंजर अवस्था मे है।


  • इस पावन भूमि को इसके पौराणिक इतिहास के कारण संतान तीर्थ भी माना जाता है। 


  • लंका से लौटते समय यहां निषादराज को श्री राम के लंका से पुष्पक विमान पर आने की सूचना भी मिली थी जिसे उन्होंने भरत तक पहुंचाया था।


  • देवी सीता और केवट ने यहीं निषादराज गुहा और गंगा जी से आभार प्रकट किया था।


➡️ प्रभु श्री राम का ननिहाल - चंदखुरी, रायपुर, छत्तीसगढ़

 

श्रृंगवेरपुर मंदिर कैसे पहुँचे:


श्रृंगवेरपुर पहुँचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन प्रयागराज रेलवे स्टेशन है। प्रयागराज से श्रृंगवेरपुर की दूरी 32 किमी है। इसे प्रयागराज से लखनऊ हाईवे से आया जा सकता है। अयोध्या से भी श्रृंगवेरपुर 170 किमी की दूरी पर है। निकटतम हवाई अड्डा प्रयागराज का अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा है।


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


रविवार, 21 जनवरी 2024

जगत शिरोमणि मंदिर, आमेर, राजस्थान

जगत शिरोमणि मंदिर राजस्थान के आमेर के प्रमुख धार्मिक और ईतिहासिक विरासतों में से एक है जिसका इतिहास जयपुर की सीमा के बाहर सर्वजन के ज्ञान में नहीं है।

मध्यकालीन इतिहास:


आमेर के राजा सेनापति मानसिंह और उनकी पत्नी द्वारा जगत शिरोमणि मंदिर का निर्माण करवाया गया था। इन दोनों का एक पुत्र हुआ जिसका नाम था जगत सिंह। जगत सिंह 18 वर्ष की आयु में एक युद्ध के लिए निकल पड़े। युद्धभूमि मे जाते समय कुछ हमलावरों ने उनकी हत्या कर दी। अल्प आयु में अपने इकलौते पुत्र को खोने के वियोग में रानी कनकवती ने उसकी स्मृति में एक भव्य इमारत बनाने को सोची। वासुदेव श्रीकृष्ण की उपासक रानी ने भगवान श्री कृष्ण को समर्पित यह मंदिर बनवाया। सन् 1599 से 1608 के बीच मंदिर बनकर तैयार हुआ।


श्रीकृष्ण-मीराबाई



जगत शिरोमणि मंदिर:


मंदिर का नामकरण रानी के पुत्र जगत और श्री कृष्ण के एक और नाम शिरोमणि से मिलाकर रखा गया है। आमेर के पुरातन मंदिरों में से एक जगत शिरोमणि मंदिर राजपुताना महामेरू वास्तुकला में बना है। इसमें मकराना से मंगवाए गए सफेद और मलाई रंग के संगमरमर का उपयोग किया गया है। मंदिर में एक बरोठा, मंडप, स्वर्ग मंडप और गर्भ गृह है। मंडप दो मंजिला जिसके दो भाग एक दूसरे को काट रहे है। आमेर की मुख्य सड़क से मंदिर का मुख्य द्वार सम्पर्क में है। तथा राज महल से मंदिर के पीछे बने द्वार तक भी एक दरवाजा जुड़ा है। 

     
      


छत पर मंदिर के सामने भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ देव बने हुए हैं। गर्ब ग्रह के द्वार पर विष्णु जी के दशावतारों और निवास, क्षीरसागर का दृश्य मंदिर को को दिव्यता प्रदान करता है। बाहर खड़े विष्णु जी के द्वारपाल जय-विजय शिल्पित हैं। भगवान श्री कृष्ण उरुश्रृंगों और कर्णश्रृंगों से क्रमबद्ध सुशोभित है। मंदिर बनाने में उस समय के मूल्य अनुसार 9 लाख रुपये का खर्च आया था। जगत शिरोमणि मंदिर के द्वार पर ऊंचा भव्य तोरण बना हुआ है जिसपे देवी देवता और दो हाती आगन्तुकों का स्वागत करती मुद्रा में देखे जाते हैं। 


स्वर्ग मंडप
स्वर्ग मंडप



"श्री कृष्ण के साथ अमूमन राधा रानी या रुक्मिणी/सत्यभामा बगल में दिखती हैं। किंतु इस मंदिर में उनकी परम भक्त मीराबाई साथ में विराजी हैं।"



मंदिर महत्व:


जगत शिरोमणि मंदिर के बारे में माना गया है कि गर्भ-गृह में श्री हरि का वही विग्रह प्रतिष्ठित है जिसकी मीराबाई 600 वर्ष पहले पूजा किया करती थी। आखरी समय मे मीराबाई द्वारका में इसी श्री कृष्ण के विग्रह के साथ देखी गयी थी। और मीराबाई की देह इसके पश्चात् नहीं मिली सो माना यही गया कि कृष्ण के प्रेम में वे देह सहित वैकुंठ प्रस्थान कर गयी या विग्रह में समा गई थी मीराबाई के विग्रह होने के पीछे का कारण यह समझा गया की, क्योंकि राधा रानी या देवी रुक्मिणी का विग्रह श्री कृष्ण के बराबर रखी जाती है किंतु इस मंदिर में मीराबाई का विग्रह कृष्ण से सिमटे हुए ना हो के नीचे अलग रखी गयी है। किसी कृष्ण भक्त के साथ यह मूर्ति महाराणा प्रताप के राज्य में आ पहुंची। हल्दीघाटी के युद्ध मे मुग़ल सेना के हमलों में बचते बचाते इस मूर्ती को आमेर के सेनापति राजा मानसिंह को किसी के द्वारा प्राप्ति हुई और फिर उन्होंने मंदिर में प्राण प्रतिष्ठिता की। 








जगत शिरोमणि मंदिर कहाँ है?


जगत शिरोमणि मंदिर जयपुर के आमेर में देवी सिंहपुरा में स्तिथ है। मंदिर की जयपुर रेलवे स्टेशन से दूरी 11 किमी और जयपुर अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे से 19 किमी है। पर्यटक स्थलों के लिये प्राइवेट कैब और टैक्सी की सेवा उपलब्ध रहती है। साथ ही सरकारी बसें भी आमेर के किलों तक सुविधा प्रदान करती हैं।


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


बुधवार, 20 सितंबर 2023

बड़ा गणेश मंदिर, उज्जैन, मध्यप्रदेश


अवन्तिकापुरी उज्जैन में जगह-जगह पर प्यारे और रहस्यमय मंदिर श्रद्धालुओं को मिल जाएंगे। इसी सूची में भगवान श्री गणेश का अद्धभुत मंदिर है। 


श्री गणेश


बड़ा गणेश मंदिर के नाम यह मंदिर केवल उज्जैन और आस पड़ोस के गॉंवों तक में ही प्रसिद्ध है। महाकाल के मंदिर के निकट ही गणेश जी की एक बहुत बड़ी मूर्ति स्थापिथ है। ऐसा दावा किया जाता है की यह प्रतिमा पूरे विश्व मैं मंदिर के अंदर विराजी भगवान लम्बोदर की एक मात्र सबसे बड़ी मूर्ति है। इस मूर्ति की स्थापना महर्षि गुरु महाराज सिद्धान्तनारायण जी व्यास ने 120 वर्ष पहले करवाई थी। इस विग्रह के बनने में ढाई वर्ष का समय लगा था।


मूर्ति बनाने की सामग्री में सीमेंट के स्थान पर ईंट, रेत, चूना और बालू का उपयोग किया गया है। कुछ खाद्य सामग्री जैसे गुड़ और मेथी के दानों का भी प्रयोग किया गया है। मूर्ति में जो मिट्टी उपयोग कि गयी है, वह सारे प्रमुख तीर्थ स्थान मथुरा, उज्जैन, काशी, द्वारका, कांची और हरिद्वार से लाई गयी थी। मूर्ति निर्माण में पावन नदियों का जल उपयोग हुआ है। मूर्ति को ऊंचाई18 फ़ीट और 10 फ़ीट चौड़ी है। भगवान की सूंड दक्षिण मुख की तरफ लडडू लिए हुए है। दाएं और बाएं तरफ भगवान की दोनों पत्नियाँ रिद्धि-सिद्धि की मूर्तियां हैं। 




श्री गणेश की मूर्ति सामग्री इस मंदिर को उज्जैन नगरी और मध्यप्रदेश राज्य में अलग बनाती है। 


मंदिर में बजरँगबली और माँ काली की मूर्तियां है तो भगवान श्री कृष्ण प्रांगण में एक झूले में बनाये हुए मंदिर में विराजमान है। 





बड़ा गणेश मंदिर पता और कैसे पहुंचे:


बड़ा गणेश मंदिर उज्जैन के जयसिंगपुरा इलाके में आता है तथा अति प्रसिद्ध सिद्ध स्थली महाकालेश्वर मंदिर और माता हरसिद्धि मंदिर से 5 मिनट की दूरी पर स्तिथ है। 


✒️स्वप्निल. अ



(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)



इन्हें भी देखें:


- मंगलनाथ मंदिर, उज्जैन


माँ गढ़कालिका शक्तिपीठ, उज्जैन

मंगलवार, 12 सितंबर 2023

सुर्वचला-हनुमान मंदिर, खम्माम, तेलंगाना

वैदिक सनातन धर्म मे केवल एक देवता है जिन्हें चिरंजीवी, चिरकाल तक ब्रह्मचारी रहने का प्रण लिया है। किंतु भारत मे मंदिर है जो हनुमान जी के विवाहित होने की मान्यता पर प्रकाश देता है। तेलुगु भाषी राज्य तेलंगाना के खम्माम जिले में सुर्वचला हनुमान मंदिर, दुनिया का इकलौता हनुमान मंदिर है जहाँ भगवान ब्रह्मचारी मुद्रा की बजाए गृहस्त रूप में पत्नी सुर्वचला के साथ विराजे है। 




पौराणिक कथा:


बन्धुओं वैसे तो भगवान बजरँगबली के जीवन कार्यों का हिसाब श्री राम जी और माता सीता की सेवा के लिए समर्पित था और इसकी जानकारी हमे केवल वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण और गोस्वामी तुलसीदास जी की श्री रामचरितमानस में मिलती है। किंतु उनके जीवन के कुछ अनजाने पहलू अन्य ग्रन्थों और श्रुतियों में मिलता है। 


 पराशर संहिता में भगवान हनुमान के विवाह के बारे में सम्पूर्ण उल्लेख मिलता है। भगवान सूर्य देव बजरँगबली के गुरु थे। उन्हें अष्ट विद्याओं का ज्ञान था तो उन्हीं विद्याओं के गठन को अपने शिष्य को प्रदान करनेद

 हेतु बजरँगबली ने विवाह किया था। पराशर संहिता में बजरँगबली के विवाह उपरांत बालक करने की भी बात मिलती है। 


अष्ट सिद्धियों में से केवल 4 सिद्धियां बजरँगबली ने ग्रहण की। बाकी 4 विद्याओं का ज्ञान केवल एके गृहस्त को ही दिया जा सकता है। फिर प्रश्न एक योग्य कन्या का आया और सूर्य देव ने अपनी पुत्री सुर्वचला का नाम आगे कर शिष्य हनुमान को उनसे विवाह करने को कहा। हनुमान जी चकित हो उठे क्योंकि वे एक बाल ब्रह्मचारी थे तो सूर्य देव ने कहा के सुर्वचला एक तपस्विनी कन्या है, उनसे विवाह करने पर तुम ब्रह्मचारी ही रहोगे। सुर्वचला वापिस अपनी तपस्या में लीन हो जाएगी। इस पर अंजनी तुरंत मान गए और विवाह पूरा कर बची 4 विद्याएँ ग्रहण की। 


देवी सुर्वचला-हनुमान मंदिर


मंदिर महत्त्व


मंदिर में हज़ारों भक्तों की भीड़ देखी जाती है और इस भीड़ में ज़्यादातर विवाहित दम्पत्तियों का तांता लगा रहता है। पत्नी देवी सुर्वचला के साथ विराजे भगवान हनुमान, विवाहित जोड़ों में चल रही समस्यायों का निवारण करते है। जिन दम्पति की आपस मे ना बन रही हो या कोई अन्य विवाह में अन्य समस्या य्या विवाद हो यहां सुर्वचला देवी-भगवान हनुमान शीघ्र हल।करते है।



मंदिर परिसर


कैसे पहुँचे:


खम्माम नगर के मुन्नवरपेठ में मंदिर स्थित है और रेलवे स्टेशन से दूरी 1 किमी भी कम है।


खम्माम बस अड्डा भी इतनी ही दूरी पर है। 


निकटतम हवाई अड्डा हैदराबद का राजीव गांधी हवाई अड्डा है। खम्माम जिले से हैदराबाद शहर की दूरी 200 किमी है।


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:-




  • https://www.india.com/hindi-news/viral/shri-suvarchala-sahitha-hanuman-temple-1161011/

सोमवार, 15 मई 2023

प्रभु श्रीराम का ननिहाल, चंदखुरी, छत्तीसगढ़

छतीसगढ़ के आदिवासियों से भरे वन क्षेत्र के पास दुनिया से दूर है एक प्राचीन मंदिर। यह मंदिर प्रभु श्री राम की माता कौशल्या का है। वाल्मिकी रामायण और रामचरितमानस के अनुसार माता कौशल्या के पिता राज्य इसी क्षेत्र में था।छतीसगढ़ी आदिवासी आज भी इसे दक्षिण कौशल प्रदेश मानते हैं।

गुरुवार, 4 मई 2023

श्री गणेश टेकड़ी टेम्पल, नागपुर

इतिहास:

   गणेशटेकड़ी मंदिर कम से कम 250 साल पुराना माना जाता है। मंदिर समिति के सचिव श्री एस.बी. कुलकर्णी कहते हैं कि विग्रह (मूर्ति) एक स्वयंभू मूर्ति (लगभग 4 फीट) है, जिसका अर्थ है कि कोई प्राण प्रतिष्ठा संस्कार नहीं किया गया था क्योंकि इसे प्रतिष्ठित नहीं किया गया था। विग्रह को मूल रूप से बहुत छोटा कहा जाता था जब यह 1875 में ब्रिटिश भारत के दौरान रेलवे लाइन के निर्माण के लिए पहाड़ी की चट्टानों को नष्ट करने के बाद पाया गया था और तब से इसके आकार में वृद्धि हुई है।

                                   


मंदिर एक साधारण टिन झोंपड़ी के भीतर एक मूर्ति के साथ शुरू हुआ। 1970 के दशक में सेना ने इस संगठन को संभाला और विकसित किया, हालांकि 1978 में प्राथमिक संशोधन हुआ। मंदिर का निर्माण एक प्रमुख उपक्रम के रूप में किया गया था, और उपासकों ने उदारतापूर्वक इस कारण से योगदान दिया। 1984 में, वर्तमान ढांचे ने आकार लिया। दिवंगत श्री गणपतराव जोशी और कुछ अन्य भक्तों ने इसे किया। समय बीतने के साथ, यह स्पष्ट हो गया कि मंदिर परिसर तीर्थयात्रियों की विशाल संख्या को संभाल नहीं सकता था। मंदिर के न्यासियों ने रक्षा मंत्रालय को एक आवेदन दिया, तब रक्षा मंत्रालय ने अतिरिक्त 20,000 वर्ग फुट भूमि प्राप्त करने में सहायता की।


पुरानी दुर्लभ छवि



पुरानी इमारत


Ganesh Chaturthi day

वर्तमान मंदिर:

मूर्ति को माथे पर कई सोने और चांदी के आभूषणों से सजाया गया है। गहनों में मुकुट (मुकुट) नाम का एक विशेष टुकड़ा है जिसे केवल चतुर्थी और एकादशी के अवसर पर प्रदर्शित किया जाता है।

मंदिर का हाल ही के वर्षों में जीर्णोद्वार का कार्य पूर्ण हुआ है । पहले के मुकाबले, अब मंदिर में भक्तों की चहल-पहल और ज़्यादा बढ़ गयी है । श्री गणेश की मूर्ति मूर्ति के अलावा आप यहां भगवान शिव का लिंग, श्री राम परिवार, भगवान कालभैरव, श्री राधाकृष्ण की मूर्तियों के भे दर्शन कर सकते है ।

श्रीराधाकृष्ण

हर दिन, बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में आते हैं, विशेष रूप से महत्वपूर्ण त्योहारों और धार्मिक समारोहों में। हर साल पौष महीने में संकष्टी चतुर्थी के दिन एक बड़ी यात्रा निकाली जाती है जिसे टेकड़ी गणपति यात्रा के नाम से जाना जाता है। मंदिर की विशेषता आरती समारोह है, जो प्रतिदिन चार बार (सुबह 6.30 बजे, दोपहर 12.30 बजे, शाम 7. बजे, 11.30 बजे) किया जाता है और मोदक को दिव्य उपहार के रूप में आरती के बाद वितरित किया जाता है। मंदिर के ट्रस्टी टेकड़ी गणपति मंदिर का प्रबंधन करते हैं, जो सुबह 6 बजे खुलता है। 

श्रीराम दरबार

श्री बजरंगबली

संपूर्ण देश में मनाए जानेवाले गणेशोत्सव के दसों दिन मंदिर को बड़ी भव्यता से सजाया जाता है और मंदिर परिसर में मानो मेले जैसा माहौल बना होता है। गणेशोत्सव के नौवें दिन एक विशालकाय मोतीचूर के लड्डू का भोग भगवान को चढ़ाया जाता है और शाम के समय मंदिर आनेवाले भक्तों को वितरित किया जाता है । 

मंदिर में ठीक इसी समय भक्त अपने नए वाहन सबसे पहले मंदिर में पूजा करवाके शुभारंभ करते है।

श्री गणेश की स्वयम्भू मूर्ति की अलावा मंदिर के पूर्व(मुख्य) द्वार से दाईं तरफ शिव लिंग और शिव रूप भगवान कालभैरव विराजे हैं। वहीं दक्षिण दिशा में श्री कृष्ण और राधा रानी की सुंदर सफेद संगमरमर के विग्रह है। पश्चिम दिशा में भगवान श्री राम, लक्ष्मण माता सीता और बगल में श्री हनुमान जी के विग्रह है प्रतिष्ठित है। 

महालक्ष्मी मंदिर:



मंदिर के दाहिनी ओर एक माँ महालक्ष्मी मंदिर तीन मंजिला इमारत में स्थित है । मंदिर में महालक्ष्मी की भव्य मूर्ति है जिसे राजस्थानी कलाकारों द्वारा संगमरमर से बनाया गया था। यह नागपुर की चुनिंदा महालक्ष्मी मंदिरों में से एक है। मंदिर में मूर्ति समक्ष बहुत काफी मात्रा में जगह होने के कारण यहां भक्तगण यहां ध्यान लगाते है ।

दुनिया भर के कई प्रमुख लोग अपनी परियोजनाओं और साहसिक कार्यों को शुरू करने से पहले मंदिर में आए और पूजा की। यदि आप नागपुर की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो टेकडी मंदिर में वृघ्नहर्ता के आशीर्वाद के साथ अपने दिन की शुरुआत करने का प्रयास करें।

कैसे पहुंचे :

श्री गणेशटेकड़ी मंदिर मध्य नागपुर रेलवे स्टेशन के बिल्कुल समीप स्थित है और अन्य रेलवे स्टेशन जैसे अजनी और इतवारी रेलवे स्टेशन से 5 और  3 किमी की दूरी पर है जहाँ से आपको 10 से बीस मिनट का समय लगेगा टैक्सी, ऑटो रिक्शा या बस द्वारा ।

नागपुर के बाबासाहब अम्बेडकर एयरपोर्ट से तकरीबन 20 किमी की दूरी आपको नागपुर मेट्रो से लगबग आधा घण्टे में श्री गणेश टेकड़ी से सबसे निकटम मेट्रो स्टेशन आधा घण्टे में पहुंचा देती है ।

तो जयकारा लगाइए -

 "गणपति बप्पा मोरया" 

🙏🕉️🌿🌷🚩🔱

✒️ Swapnil. A


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


मंदिर के विषय मे और जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करें:-





मंगलवार, 2 मई 2023

रामटेक श्रीराम मंदिर, नागपुर

 इतिहास:

रामटेक में एक प्राचीन राम मंदिर देखा जा सकता है। रामटेक को इसका नाम इसलिए मिला क्योंकि ऐसा माना जाता है कि हिंदू नायक राम ने अपना वनवास रामटेक में बिताया था और वहीं विश्राम किया था। हिंदू ऋषि अगस्त्य का आश्रम हिंदू परंपरा के अनुसार रामटेक के करीब कहा जाता है। नागपुर के मराठा राजा रघुजी भोंसले, जिन्होंने छिंदवाड़ा में देवगढ़ के किले को हराया था, ने 18वीं शताब्दी में वर्तमान मंदिर का निर्माण किया था।

 यह पवित्र स्थल संस्कृत कवि कालिदास से भी जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि मेघदाता को रामटेक पहाड़ियों में कालिदास ने लिखा था।

रामटेक मंदिर, जिसे राम धाम, राम मंदिर और रामटेक किला मंदिर भी कहा जाता है, में व्रत लेने पर व्यक्ति का जीवन धन्य हो जाएगा। मंदिर समुद्र तल से 345 मीटर ऊपर स्थित है और इसका 600 साल का इतिहास है। 350 फुट लंबी ओम संरचना जो हनुमान, साईं बाबा और गजानन महाराज की मूर्तियों से सजी हुई है और रामायण के विवरण हैं जो इसे इतना प्रसिद्ध बनाती है। भगवान राम के 'पादुका' (दिव्य पैर) यहां पूजनीय हैं।

इन्हें भी देखे:

-कोराडी माता मंदिर, नागपुर

 शांतिनाथ का जैन मंदिर:

रामटेक अपने प्राचीन जैन मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें जैन तीर्थंकरों की कई मूर्तियाँ हैं। सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ की मुख्य मूर्ति लोककथाओं से घिरी हुई है। यह 1993, 1994, 2008, 2013 और 2017 में प्रसिद्ध हो गया, जब आचार्य विद्यासागर, एक प्रसिद्ध दिगंबर जैन आचार्य, रामटेक चले गए और बरसात के मौसम में चार महीने के चातुर्मास के लिए अपने संघ के साथ वहाँ रहे। उनके प्रभाव से एक विशाल जैन मंदिर का निर्माण हुआ। गोंड राजाओं ने सोलहवीं शताब्दी तक इस क्षेत्र पर शासन किया, जब नागपुर के भोंसले शासकों ने नियंत्रण पर कब्जा कर लिया।

संस्कृत कवि कालिदास का भी इस स्थान से संबंध है। माना जाता है कि मेघदाता को रामटेक पहाड़ियों में कालिदास ने लिखा था।

सिंदूर बावली किले के मंदिर के ठीक बगल में, पार्किंग स्थल के करीब स्थित है। हालांकि इस लोकेशन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। यहां तक कि गूगल मैप्स पर भी हम उसका पता नहीं लगा पाए। हमने इस बाओली को केवल क्षेत्र की खोज करके खोजा। मैं जिस पर्यटक से मिला उसके अनुसार, माता सीता धार्मिक अनुष्ठानों और स्नान के लिए सिंदूर बावली का उपयोग करती थीं।

 जब भी आप भारत की शीतकालीन राजधानी की यात्रा करें तो पूरे उत्साह के साथ इस कम प्रसिद्ध रामधाम की यात्रा अवश्य करें ।

मंदिर दर्शन का सबसे उत्तम समय सर्दीयों के महीने का होता है जब नागपुर, विदर्भ क्षेत्र का मौसम घूमने फिरने के अनुकूल मन जाता है। 

पहुंचे कैसे:

श्री राम रामटेक मंदिर की दूरी नागपुर रेलवे स्टेशन से 55 किमी दूर है और टैक्सी या बस द्वारा 2 घण्टे का समय पहुंचने में लगता है ।

नागपुर विमानतल से श्री राम रामटेक मंदिर लगभग 80 किमी दूर है । बस और टैक्सी के सेवा सदैव सेवा में रहती है ।

।। जय श्री राम ।। 🙏🌷🚩🙏

✒️Swapnil. A



Sindoor Baoli

Aereal Top view







मंदिर के बारे में अधिक जानकारी के लिए इन लिंक्स पर क्लिक कीजिए:-




गिरजाबंध हनुमान मंदिर, बिलासपुर, छतीसगढ़

  यूं तो भगवान श्रीराम भक्त हनुमान के देश में कई और विदेशों में कुछ मंदिर है, किंतु भारत के गांवों दराजों में ऐसे मंदिर है जिनकी खबर किसी को...