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शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

बाबा कीनाराम

 बाबा कीनाराम के चमत्कार 


"जो न दे राम वो दे बाबा कीनाराम"


 सनातन धर्म मे तंत्र के महानतम अवधूतों में से एक थे "अवधूत बाबा कीनाराम"। तंत्र के विषय मे बाबा कीनाराम का जीवन अनेकों अविश्वसनीय से या पौराणिक कथाओं जैसे लगने वाले कार्य लोकहित के के लिये किये थे। अघोरी शब्द सुनते ही जादू टोना, टोटका, श्मशान प्रेत आत्माएँ मानव खोपड़ी-कंकाल के दृश्य मन मस्तिष्क में घूमने लगते है। डर का साया और श्मशान में निवास करने वाले साधकों की छवि घूमने लगती है। मानव समाज में व्याप्त सांसारिकता और भौतिकवादी मानसिकता के कारण कुछ तांत्रिकों ने तंत्र और वाममार्ग साधना की एक अत्यंत वीभत्स और घृणित तस्वीर देश और दुनिया में स्थापित कर दी है। इसके विपरित तंत्र वह नहीं जो सामान्यतः माना जाता रहा है। अपने समय से भी आगे रहकर बाबा स्त्री सम्मान, व्यक्तिगत शुचिता और नशे से बचने की मुहिम जन-जन में जगाई थी। इन बातों से एक सच्चे धर्म परायण तांत्रिक की छवि बाबा ने बनाई थी। बाबा कीनाराम का अवतरण मानो तंत्र को नई दिशा देने के लिये हुआ था। 



 बाबा कीनाराम ने तंत्र को कुछ सदियों के अंतराल पर वापिस सनातन भारत में फैलाने का कार्य किया है। तंत्र का प्रयोग दुसरो को हानी पहुँचाने के विरुद्ध उनका मुख्य उपदेश था। जहाँ-जहाँ उन्हें दीन दुखी लोग, असहाय परिस्थिति में मिले वे उनका कल्याण करते गए। महादेव का अंश अवतार कहे तो वे शिव के कल्याण रूप थे। मेरे स्वयं के अनुभव अनुसार तंत्र तुरंत आध्यात्मिक प्रगती प्रदान करने वाला सबसे उत्तम मार्ग है। तंत्र मार्ग अपने इष्ट के निकट जाने और मन की इच्छाओं को पूर्ण करने का सटीक तरीका है। किंतु इसका सहारा लेकर अगर किसी कप हानी पहुँचाने पर मनुष्य कर्म बंधन में बंध जाता है। यही उपदेश अघोराचार्य कीनाराम अनुयायियों को अघोर की शिक्षा में बताते थे।


अघोरेश्वर संत कीनाराम

तंत्र और अघोरियों के इतिहास में बाबा कीनाराम का नाम लिये बिना अघोरपंथ की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। उनके समकालीन बनारस के बाबा तैलंग स्वामी महाराज की आयु कूर्म बराबर थी। इस दीर्घायु संत शिरोमणि के अगणित प्रसंग और कहानियों की मौलिक प्रतियाँ इनके शिष्य बीजाराम जी ने भोज पत्र पर लिखी थी। अब ज्यादातर प्रतियाँ समय में लुप्त हो चुकी है - जिनमें से कुछ प्रतियों से आज भी बनारस के राज घराने के महल में सहेजी हैं। इनमें अघोर पंथ के काफी सिद्धांत बाबा ने स्वयं भी लिख कर अपने शिष्यों को दिये थे।



बाबा कीनाराम का जन्म:


  बाबा कीनाराम का जन्म भाद्रपद महीने में सन् 1601 में बनारस के पास चंदौसी जनपद में एक क्षत्रिय रघुवंशी परिवार में हुआ था। पिता का नाम अकबल सिंह और माता का नाम मनसा देवी था। दोनो को प्रौढ़ अवस्था मे कदम रखने पर माता पिता बनने का सुख प्राप्त हुआ। एक रात स्वप्न में मनसा देवी जी को भगवान शिव नन्दी से उतरकर उनके गर्भ में प्रवेश करते दिखे। जन्म पश्चात् यह शिशु तीन दिन तक न रोया और न ही स्तनपान किया। अकबल सिंह और मनसा देवी दोनों चिंतित थे। तब तीन साधुओं का आगमन इनके घर हुआ। यह तीनों त्रिदेव थे। इन्होंने बालक को अपनी गोद में स्नेह करने को इच्छा जताई। गोद में जाने उपरांत बालक दूध पीने और रोने लगा। बालक के नामकरण के प्रश्न पर किसी ने अकबल मनसा को सुझाव दिया कि इस आयु में पुत्र का सुख मिल पाया है। इसीलिये इस पुत्र को तुम बेच दो और वापिस खरीद लो। चूंकि राशि नाम शिवराम था इसीलिए बालक को बेच कर खरीद लिया गया। इसे 'कीन ने' की प्रक्रिया कहा जाता है। ऐसे बालक का नामकरण हुआ "कीनाराम"। 


जब कीनाराम 11 बरस के हुए तो विवाह इनका विवाह कात्यायनी देवी से हुआ था। कात्यायनी देवी और कीनाराम के गोहने का दिन पास आया, उस दिन बालक कीनाराम ने दूध-भात खाने का हट्ठ किय। माँ के मना करने के बावजूद कीनाराम ने हठ्ठ पूरा करवाया। उन दिनों दूध-भात किसी सगे सम्भन्धी के मृत्यु पशउपरांत खाया जाता था। अगले सवेरे संदेश आया कि कात्यायनी देवी का स्वर्गवास कल हो गया था। माता-पिता को समझ आ गया कि यह बालक साक्षात शिवरूप है। फिर बाबा कीनाराम आजीवन अखंड ब्रह्मचारी रहे।



सन्यासी जीवन का आरंभ:


 ग्रह त्यागने के पश्चात् इन्हें गुरु शिव दास जी मिले। शिव दास जी ने इनकी परीक्षा लेने के लिये गङ्गा घाट पर अपने वस्त्र दे कर गङ्गा स्नान करने के लिये भेजा और स्वयं झाड़ियों में जा कर छिप गये। दूर से टकटकी लगा कर कीनाराम पर दृष्टि रख रहे थे। जैसे ही गंगा तट पर पहुँचे तो तुरंत ही गङ्गा की शांत सी दिख लहरें तरतरा कर इनके चरण धोने लगी। शिव दास को समझ आ गया यह बहुत सिद्ध आत्मा है जिसकी वो परीक्षा ले रहे थे। बाबा शिवदास ने अपने शिष्य को ध्यान और साधना सिखाई। जिसके उपरांत बाबा कीनाराम ने उनका त्याग कर आगे की आधात्मिक यात्रा स्वतंत्र हो कर आरंभ की। बाबा श्मशान में दिगम्बर की भांति रहते, चिलम पीते और कहते —


कीनाराम फकीरी सहज नहीं है,

पग धरते निकले दूध छठी का।

लोटा थाली से कम नहीं,

कंबल चाहिये पाँच पटी का।

 मेवा मिष्ठान से काम नहीं

चना चाहिये मुठ्ठीभर,

अटारी से काम नहीं,

मढ़ी चाहिये पूस का।


बनारस के राजा एक दिन हाथी पर बैठकर शहर में घूमने निकले। राजा जी वैसे जब भी भृमण करने निकलते तो रास्ते में दिखने वाले हर साधु सन्यासी को प्रणाम करते किंतु उस दिन कीनाराम को अनदेखा कर दिये। बाबा को अपने निरादर से अधिक राजा के अहंकार पर क्रोध आया। महावत हाथी को आगे लेता चला जा रहा था। तभी बाबा कीनाराम ने एक दीवार को आदेश दिया राजा के आगे चलते जाने जाने के लिये कहा - अंत तक हाथी के समक्ष जा कर खड़ी हो गयी। कुछ लोगों ने देखा हाथी वहीं रुका हुआ है। यह देखकर राजा को अपनी भूल याद दिलाई। राजा अघोरेश्वर को समाधी मुद्रा में पहुँचे और क्षमा मांगी। दीवार ने अपना स्थान बदल लिया। इस प्रकार अघोरेश्वर ने राजा का अहंकार समाप्त किया था।


मात्र कथा दर्शाने हेतू


बाबा धरती पादुकाओं को धारण कर धरती कुछ इंच ऊपर हो कर चलते थे। यह उनके सिद्बियों की शक्ति का परिणाम था। जहाँ यात्रा करने का मन करता इसी तरह से पहुँच जाते। 


बाबा कीनाराम का आगमन एक दिन ग़ाज़ीपुर हुआ। उन्होंने देखा एक बूढ़ी माँ अपने पुत्र के जीवन के लिये कुछ ज़मींदारों के समक्ष रो रही है। उधार होने की समस्या से परेशान बेचारी माँ के पुत्र को जमींदार बंधक बनाये हुए थे। बिना पैसे दिये नहीं छोड़ने वाले थे। तभी बाबा ने हस्तक्षेप कर उस जमींदार को बच्चे के नीचे की ढाई हाथ पर ज़मीन खोदने के लिये कहा। धरा के नीचे उतना ही धन मिलेगा जितना कर्ज होगा। और ठीक उतना ही धन निकला। जमींदार बाबा के चरणों में गिर गया। बूढ़ी माँ के मन को सुख महसूस हुआ। उस माँ ने अपने पुत्र जिसका नाम बीजाराम था बाबा को आजीवन सेवा के लिये सौंप दिया। बाबा के काफी मना करने पर भी वह नहीं मानी। और बीजाराम को बाबा का सानिध्य मिला। 


कथा दर्शाने हेतू

बीजाराम के साथ बाबा कीनाराम निकल कर गुजरात में गिरनार और वहां से होते हुए हिंगलाज भवानी शक्तिपीठ(बलूचिस्तान,पाकिस्तान) और अफ़ग़ानिस्तान में कंधार कर कश्मीर होते हुए काशी पहुँचे। इस समस्त प्रवास के बीच कई अद्धभुत प्रसंग हुए। वहाँ एक कुलीन महिला बाबा के लिये प्रतिदिन भोजन लाया करती और एक बालक झाड़ू ले कर सफाई किया करता था। कुछ दिन बीतने के बाद महिला और बालक ने असली रूप दिखाया - वह महिला माता हिंगलाज थी। बटुक भैरव बाल रूप में थे। माता ने बाबा कीनाराम को बताया की वह अब काशी के केदारखंड जा रही हैं। वहां 'क्रीं कुंड' में निवास करने, और जब भी वे स्मरण करेंगे तो वे दर्शन देने पहुँच जायेंगी। 


बाबा जब बीजाराम के साथ जूनागढ़ में गिरनार पर्वत पर ध्यान लगाने पहुँचे तब जूनागढ़ के नवाब ने सारे संत और फकीरों को अपने राज्य में भिक्षा मांगने पर कठोर प्रतिबंध लगा दिया। बीजाराम भिक्षण कर रहे थे तब नवाब के सिपाहियों ने उन्हें देख लिया और कारागृह ले गये। बाबा ने अंतर दृष्टि से सब जान लिया - बाबा तो बाबा कीनाराम थे अपने शिष्य को ऐसी विषम स्तिथि में कैसे छोड़ देते। बाबा ने ऐसा कार्य किया कि स्वयं भी उसी कारागृह में पहुँच गए। वहां देखा कई साधु संत चक्की चला रहे थे। इन चक्कियों की संख्या 800-900 के करीब थे। बाबा को इन चक्कियों को चलाने का दंड मिला जैसे अन्य साधुओं को मिला था। नवाब को सबक सिखाने का निर्णय किया। औघड़ बोले चक्की चल और चक्की चलने लगी। जब नवाब को यह संदेश मिला तो वह तुरंत आकर बाबा के चरणों में गिर गया। उपहार स्वरूप कुछ रत्न प्रसतुत किये जो बाबा ने अपने मुंह में मानो फल मानकर रखे और थूक दिये - नवाब हैरान हो कर सब देखता रहा, फिर बाबा ने आदेश दिया। जूनागढ़ में अब किसी साधू सन्यासी को सताया न जाय और प्रत्येक के लिये भिक्षा में ढाई पाव आटा दान किया जाये। नवाब ने आदेश सहजता से स्वीकार कर लिया।


पवित्र गिरनार पर्वत

बाबा  को गुजरात में गिरनार पर्वत अत्यंत प्रेम था। गिरनार की पहाड़ी पर बाबा ने कठोर तपस्या कर भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न कर उनके दर्शन किये। भगवान ने उन्हें तत्व ज्ञान और दूरदृष्टि का वरदान दिया था। तत्त्व ज्ञान से बाबा ने अघोरपंथ की समस्त सिद्धियाँ प्राप्त की थी। त्रिदेव रूपी देव ने बाबा को समाज कल्याण का आदेश दिया था। बाबा को गिरनार छोड़ने की अनिच्छा को जानकर उन्हें एक आशीर्वाद और दिया - बाबा कीनाराम का एक अंश गिरनार में एक शिला के रूप में बाबा कालूराम और स्वयं दत्तात्रेय के बीच आज भी पूजा जाता है। एक कहावत भी प्रसिद्ध है - " दत्त गोरख की एक ही माया बीच मे गोरख आय समाया"।






जब बाबा कीनाराम काशी पहुँचे तो माँ हिंगलाज के आदेश पर गुरु कालूराम के साथ  क्रीं कुंड के विग्रह की साधना करने लगे। राजा हरिश्चंद्र घाट पर एक दिन अचानक एक शव गङ्गा में बहता हुआ दिखा। गुरु कालूराम जी ने कहा वह देखो एक शव बह रहा है। बाबा कीनाराम ने बोला शव नहीं - जीवित है। शव उठकर आने के लिये कहा - पुनः जीवन मिलने के बाद नाम पड़ा "जियावन राम"- औघड़ की शक्ति के प्रभाव से मृत शरीर जीवित हो उठा। जियावन ने अपना नया जीवन बाबा के साथ अघोर सन्यास में बिताया और सेवा की। 


भगवान दत्तात्रेय


"बाबा कीनाराम केचमत्कार"


बनारस की नर्तकी:


बाबा कीनाराम के अघोर तपोबल की एक कथा बनारस के राज दरबार से जुड़ी है। बनारस के राजा के दरबार में एक कुशल नृत्यांगना थी। दरबारियों के समक्ष नृत्य करते समय उसने एक पग इतना खींचा की उसकी पग की त्वचा पर सफेद दाग स्पष्ट दिखने लगा। यह दाग कोढ़, जो उस सदी में सबसे गंभीर बीमारियों में गिना जाता था। राजा ने नर्तकी को दरबार त्यागने का आदेश दिया। नर्तकी ने आत्महत्या का मन बनाया तब उसे बाबा कीनाराम मिले - अपने तप के प्रभाव की शक्ति के बारे में बाबा विख्यात थे।  बाबा ने अपने आश्रम स्थित कुंड में सात दिनों तक लगातार रात्री के समय स्नान करने का उपाय बताया। हर रात्री पुराने वस्त्र को त्याग करने का नियम था। छ्ठे दिन नर्तकी कोढ़ मुक्त ही गयी - पहले से अधिज स्वस्तग5,सुंदर और प्रतिभावान हो चुकी थी। 


बाबा कीनाराम को स्वयं संगीत में रुची थी। वे उत्कृष्ट सितार वादक भी थे। नर्तकी को पुनः राजा दरबार मे बुलाया - राजा उसे पहचान न पाये तब बाबा ने रहस्य खोला। राजा उस चमत्कार से मंत्रमुग्ध थे। नर्तकी से विवाह का मन बनाया और किया भी। इस कथा से बाबा द्वारा उस कोढ़ ग्रस्त नर्तकी के समस्त बुरे कर्मो को अपने ऊपर लेने की बात समझ आती है। इस प्रकार बाबा कीनाराम ने अगणित लोगों के पाप हरे। 


विधवा मुक्तिदान:


बाबा कीनाराम जब सूरत पहुँचे तो कुछ लोग एक विधवा को एलक पेड़ से बांधकर यातनाएं देना शुरू करने वाले ही थे की बाबा ने उन सबसे यह करने के पीछे का कारण पूछा। वह स्त्री विधवा थी। एक पुरूष से प्रेम में पड़कर माँ बन गयी। अब वह लोग उसे और शिशु का अंत करना चाहते थे। उनकी दृष्टि में वह विधवा एक कुलटा थी। मृत्यु से ही उस कलंक से मुक्ति पा सकती है ऐसा उनका मानना था। बाबा ने सबको चेतावनी दी - उनके भूत, वर्तमान और भविष्य खोलने की बात कह डाली। किसके कितने कैसे सद्कर्म-दुष्कर्मो का चिट्ठा उसी क्षण दिखाने की बात कही की सबको अपने किये पर पश्चाताप हुआ। उस स्त्री और शिशु को मुक्तिदान प्रदान करवाकर नरसिंह की समाधीरे पर भेजने के लिये का प्रबंध करवाया। आधुनिक युग से 4 सदि पहले, स्त्रियों के पुनः विवाह के प्रति जन मानस में जा कर बाबा ने खूब प्रचार किया और जड़ जमाते रूढ़िवाद को समाप्त करने का भरपूर प्रयत्न किया था।



श्रापित शाहजहाँ


  कंधार से काशी आते समय बाबा कीनाराम की भेंट उस काल के मुग़ल शासक शाहजहाँ से हुई थी। शाहजहाँ बाबा की शक्तियों के बारे में पहले से परिचित था।  कीर्तिलोभवश होकर बाबा का तुरंत सत्कार किया - प्रसन्न होकर बाबा ने शाहजहाँ को इच्छाएं पूरी होने का आशीर्वाद दिया। शाहजहाँ आशीर्वाद मिलने के उपरांत अपने मद में खो गया। महल और बड़ी बड़ी इमारतें बनवाने के आदेश दिया। बाबा का फिर एक बार उससे भेंट हुई। महल में पहुँचने पर इस बार उसने बाबा की अनदेखी कर दी जिससे बाबा ने कुपित होकर तत्काल श्राप दे दिया। बाबा ने उसे उसकी सत्ता जाने की चेतावनी दी। ठीक कुछ समय बाद वह अपने क्रूर पुत्र औरंगजेब द्वारा कैद करवा लिया गया।



बंगाल का साधक - शिष्य:


 अघोर पंथ के अनुसार बाबा कीनाराम अपने शिष्यों की तपस्या कि क्षमता को भांप कर ही किसी साधना के लिये आज्ञा देते थे। ऐसे में एक बार उनका बंगाली साधक जिसका नाम हिरण्य मुखर्जी था, बाबा से भैरव सिद्ध करने की अनुमति मांगी। बाबा के मना करने पर भी वह न माना और मंत्र लेने के उपरांत उसके साथ कुछ दुर्घटना हुई जिसका मूल्य उसे अपना जीवन देकर चुकाना पड़ा। बाबा गङ्गा सागर के लिये निकल चुके थे। गुरु होने के नाते उसकी आत्मा की सद्गति के लिये बाबा ने साधना कि - तब जाकर उसकी आत्मा की मुक्ति प्रशस्त हुई। 



श्री राम भक्त कीनाराम और तुलसीदास:


बाबा कीनाराम और गोसाईं तुलसीदास के जीवन का एक विख्यात प्रसंग है। एक निसन्तान ब्राह्मण स्त्री तुलसीदास के पास पहुँचकर संतान होने के उपाय पूछने लगी। सन्त ने उसे रामशालकावली से उत्तर निकाल कर बताया कि उसके अगले सात जन्मों तक संतान का सुख नहीं है। स्त्री निराश हो कर बाबा कीनाराम के पास पहुँची। बाबा कीनाराम ने उसका दारुण दुख सुनकर उपाय किया। अघोर तंत्र के अंतर्गत। खंडन मंडन विद्या से अपने शरीर से मांस के टुकड़े निकाले और चार पुत्र दे कर उस महिला की सूनी गोद भर दी। वह महिला तुलसीदास जी को प्रयागराज में अपने पुत्रों के साथ दिखी - तुलसीदास की आश्चर्य की सीमा न थी जब महिला ने उत्तर दिया, काशी के अघोरी कीनाराम से - तुलसीदास स्तब्ध रह गये। अपने आश्रम पहुँचे, इष्ट को पुकारा और बात बताई। इष्ट ने तुलसीदास को ताजा मानव मांस लाने को कहा - गोसाईं तुलसीदास ने इसे असंभव कार्य बताया। प्रभु ने गोसाईं तुलसीदास को कीनाराम के पास जाने के लिये कहा। शिवाला स्तिथ क्रीं कुंड में ध्यान मग्न बाबा कीनाराम से इस उपाय को व्यर्थ बताया। तुलसीदास की आकुलता देखते हुए बाबा कीनाराम ने शरीर से मांस के टुकड़े निकालकर दिए। वापिस आश्रम आए और इष्ट ने दर्शन देकर इस लीला का निष्कर्ष समझाया। प्रभु ने कहा कि मांस के टुकड़े तो तुलसी स्वयं भी दे सकते थे। किंतु एक अघोरी के तप में इतना प्रभाव होता है की वह 'रेख मैं मेख' अथार्त विधि के विधान को भी बदल सकता है। इस प्रकार बाबा ने तुलसीदास के पांडित्य के अभिमान को नष्ट किया।



बाबा का देह त्याग:


बाबा कीनाराम ने आकाश गमन पूर्व शिष्यों को बुलाकर अपनी समाधी माता हिंगलाज के श्री यंत्र के पूर्वमुख बनाने के निर्देश दिये। बाबा ने चिलम मंगाई और समय और तिथि अनुसार बाबा ने देह त्याग किया। उनके शिष्यों अनुसार देह त्याग पूर्व एक भूकंप आया जिसके उपरांत एक दिव्य रोशनी हुई और बाबा के मस्तिष्क से एक तेज प्रकाश निकल कर उस पदिव्य रोशनी में समाहित हो गयी थी। स्मरण करने पर भक्त वत्सल की सहायता के लिये सदैव आते रहेंगे यह बाबा कहते थे।

     
                          
बाबा कीनाराम समाधी 


बाबा कीनाराम ने जो धूनी प्रज्वलित की थी वह आज भी आश्रम में 400 वर्षों से बिना रुके जल रही है। आश्रम में दो कुंड भी है। एक कुंड में आगन्तुक स्नान करते है और दूसरे से जल पीने के लिये ल् जाते हैं। इस कुंड के जल को पीने से बहुत सारे रोग और व्याधियाँ समाप्त होती हैं। धूनी की भस्म से भी अनेक रोग ठीक होते हैं। 

 

क्रीं कुंड

बाबा कीनाराम आश्रम, काशी

काशी में बाबा कीनाराम का आश्रम अधिक प्रसिद्ध नहीं है। एक लिहाज से यह अच्छी बात है उनके लिये जिन्हें कुछ समय रूक कर शांति में ध्यान और साधना करनी होती है। गुरु शिवराम को स्मृति में दबाबा ने चार आश्रम वैष्णव सम्प्रदाय के स्थापित करवाये थे। उत्तर प्रदेश के मारूपुर, नाइधी,महुआरपुर और परामपुर में स्थित हैं। गुरु कालूराम जी ने भगवान् दत्तात्रेय को समर्पित मठ्ठ ने ग़ाज़ीपुर, जौनपुर, काशी और रामगढ़ में करवाई थी।काशी के बाबा कीनाराम आश्रम का नव निर्माण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी द्वारा 2019 में पुनः नवनिर्माण और उद्धघाटन करवाया गया था।


(स्तोत्र साभार: बाबा कीनाराम द्वारा रचित विवेकसार, रामगीता, रामरसल, उनमुनिराम और डॉ. गया सिंह जी द्वारा लिखी गयी संतत्रयी से लिया गया है। )

 

✒️स्वप्निल. अ



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