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बुधवार, 1 मई 2024

भोजपुर शिव मंदिर, रायसेन, मध्यप्रदेश

 भोजपुर शिव मंदिर को प्राचीन भारत मे पूर्व का सोमनाथ भी बुलाया जाता था। प्राचीन भारत में यह मंदिर अपनी ऊंचाई और विशाल शिव लिंग के पूजन के लिये सर्व प्रसिद्ध था। वर्तमान समय मे भी मंदिर में पूजा अर्चना जीवित मंदिर परंपरा के अंतर्गत की जाती है। इस समय मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग के अंदर संरक्षित है।

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

बाबा कीनाराम

 बाबा कीनाराम के चमत्कार 


"जो न दे राम वो दे बाबा कीनाराम"


 सनातन धर्म मे तंत्र के महानतम अवधूतों में से एक थे "अवधूत बाबा कीनाराम"। तंत्र के विषय मे बाबा कीनाराम का जीवन अनेकों अविश्वसनीय से या पौराणिक कथाओं जैसे लगने वाले कार्य लोकहित के के लिये किये थे। अघोरी शब्द सुनते ही जादू टोना, टोटका, श्मशान प्रेत आत्माएँ मानव खोपड़ी-कंकाल के दृश्य मन मस्तिष्क में घूमने लगते है। डर का साया और श्मशान में निवास करने वाले साधकों की छवि घूमने लगती है। मानव समाज में व्याप्त सांसारिकता और भौतिकवादी मानसिकता के कारण कुछ तांत्रिकों ने तंत्र और वाममार्ग साधना की एक अत्यंत वीभत्स और घृणित तस्वीर देश और दुनिया में स्थापित कर दी है। इसके विपरित तंत्र वह नहीं जो सामान्यतः माना जाता रहा है। अपने समय से भी आगे रहकर बाबा स्त्री सम्मान, व्यक्तिगत शुचिता और नशे से बचने की मुहिम जन-जन में जगाई थी। इन बातों से एक सच्चे धर्म परायण तांत्रिक की छवि बाबा ने बनाई थी। बाबा कीनाराम का अवतरण मानो तंत्र को नई दिशा देने के लिये हुआ था। 



रविवार, 24 मार्च 2024

लाखमण्डल महादेव मंदिर, देहरादून,उत्तराखंड

 लाखमण्डल महादेव मंदिर में भगवान शिव की महिमा चतुर युगों में विराजित शिवलिंगो के कारण प्रख्यात है। देवभूमि का एक और धाम जिसमे विराजित हैं चारों युगों के शिवलिंग। मंदिर और लाखमण्डल गांव की धरती के भीतर अनगिनत शिवलिंग मौजूद है।

मंगलवार, 12 मार्च 2024

पाताल भुवनेश्वर,पिथोरागढ़, उत्तराखंड

पौराणिक इतिहास:

पाताल भुवनेश्वर का इतिहास सतयुग से प्रारंभ होता है। स्कंद पुराण के मानस खण्ड के 800 वें श्लोक में इस पवित्र गुफा के होने का विवरण मिलता है। भगवान शिव ने जब पुत्र गणेश का अनजाने में धड़ अलग कर दिया तो वह मानव धड़ इस गुफा में तब तक रखा गया था जब तक प्रभु ने श्री गणेश को गजेंद्र का धड़ न लगाया था। इसके साक्ष्य इस गुफा में एक गज के आकार की शिला के रूप में मिलते हैं। 



   



पाताल भुवनेश्वर गुफा:


पाताल भुवनेश्वर गुफा समुद्र तल से 1350 फ़ीट ऊपर और 90 फ़ीट की गहराई में है। गुफा द्वार से 100 सीढियां उतरकर मंदिर के अंदर तक पहुंचा जाता है।कुल लंबाई 160 फीट है। भीतर प्रवेश करने से पहले बाहर एक शिवलिंग है जिसका भक्त दर्शन करना नहीं भूलते। गुफा के बाहर से लेकर अंदर नीचे तक लोहे की चेन बांध दी गयी है ताकि अंदर दर्शन करने जाने वाले आगन्तुक रास्ता भूल या नहीं जाएं। पूर्ण रूप से गुफा के विद्युतीकरण हो रखा है। गुफा चूना पत्थर की प्राकृतिक संरचना है जो करोड़ों वर्षों से धरती में होने वाले भूगर्भीय हलचल और रासायनिक बदलावों के बाद बनते हैं। 


कलयुग में इस गुफा को आदि गुरु शंकराचार्य ने ढूंढा था। गुफाओं को धार्मिक महत्वता देने और जीर्णोद्धार करने में चन्द्र और कत्यूरी राजाओं का योगदान रहा है। इन दो राजाओं के समय से मंदिर में भंडारी पुजारियों को पूजा करने का अधिकार दिया गया था। पाताल भुवनेश्वर की गुफा में मुख्य रूप से केवल भगवान शिव के लिंग की पूजा होती ही। इस शिवलिंग को आदि गुरु शंकराचार्य द्वार स्थापित है। इस शिवलिंग की पूजा हर सवेरे मंदिर के पुजारी 6 बजे विधिवत करते हैं। 




भगवान शिव की जटाओं का रूप बड़ी लंबी शिलाओं में देखने मिलता है।मंदिर गुफा के प्रवेश द्वार से ही सर्प जैसी आकृति दिखाई देने लगती है। जैसे किसी सर्प की रीढ़ की हड्डी और शरीर की चमड़ी हो। 




फिलहाल मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। इसके रखरखाव का कार्य जारी है।

गुफा मंदिर साल भर में बारिश के महीनों में बंद रहता है। सबसे उत्तम समय यहाँ दर्शन के लिये ग्रीष्म ऋतु है।


रविवार, 14 जनवरी 2024

आघोरी बामाखेपा

"अघोर साधना में तीन प्रकार के साधक होते हैं। पहले पशु जो अपनी पशुओं वाली मूल इच्छाओं को पूरा करने के लिए साधना करते हैं, दूसरे वीर जो मूल इच्छाओं को त्याग ऊपर उठने के लिए साधना करते है और तीसरे वे दिव्य आत्माएं जो इन सारे सांसारिक इकच्छाओं से भी आगे ईश्वर में लीन होना चाहते हैं। अघोरी बामाखेपा उन्हीं दिव्य अवधूतों की प्रजाति में आते थे।"

मंगलवार, 18 जुलाई 2023

मां बगलामुखी कौन है?

मां बगलामुखी कौन है?

दशम महाविद्याओं में से अष्टम महाविद्या - माता बगलामुखी है। माता बगलामुखी का वैदिक नाम वल्गामुखी जिसका अर्थ है "लगाम"। इसके अनुरूप माँ को बगला, वलगामुखी, वल्गामुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या और पीताम्बरा नामों से पुकारा जाता है। वेदों कि "वल्गा" तंत्र में "बगलामुखी" है। 

माता बगलामुखी अष्टम महाविद्या है और इन्हें मूलतः"स्तम्भनकारी महाविद्या" के रूप में भी जाना जाता है। भगवान नारायण और माता त्रिपुर सुंदरी, दोनों के तेज से निकलने के कारण इनका कुल श्रीकुल है और यह वैष्णव शक्ति है। 


माँ की साधना में पीत रंग सामग्री का प्रयोग अति आवश्यक है। जिसमे आसन से लेके माँ को चढ़ाया जाने वाला प्रशाद भी पीले रंग का होता है। पीली बाती, पीला चोला, पीला आसन और माता की पीले फूलों की माला। माता को हल्दी की माला चढ़ाने से मात अति प्रसन्न होती हैं। 


माँ पीताम्बरा बगलामुखी


माँ पीताम्बरा

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 माता बगलामुखी के तीन चमत्कारिक मंदिर है। पहला मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में, दूसरा पीताम्बरा पीठ, दतिया धाम में माता धूमावती माता का और तीसरा उज्जैन के पास नलखेड़ा, मध्यप्रदेश में। 

यह तीन धाम माता की असीम शक्तियों से लैस हैं। यहां पहुँचने वालों मैं राजा भी होते हैं और रंक भी। यहां माता की सच्चे हृदय से मांगी गई हर इच्छा पूरी होती है। चाहे शत्रु पर विजय हो या मारण, मोहन वशीकरण से मुक्ति पाना। 


हम जानेंगे शाक्त-तंत्र परम्परा में यह मंदिर क्यों इतने गुप्त और रहस्यमयी हैं। इनके पीछे के बनने की कथा  और इनहें स्थापित करने वाले योगीयों के जीवन के रहस्य। 


नलखेड़ा धाम

कांगड़ा धाम


धूमावती माता, दतिया धाम

 

यमशिला का रहस्य

  भगवान जगन्नाथ की पृरी मंदिर सदियों से रहस्यों से भरा हुआ है। जगन्नाथ मंदिर को साक्षात वैकुंठ धाम भी कहा जाता है क्योंकि मंदिर में एक बार भ...