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मंगलवार, 12 मार्च 2024

पाताल भुवनेश्वर,पिथोरागढ़, उत्तराखंड

पौराणिक इतिहास:

पाताल भुवनेश्वर का इतिहास सतयुग से प्रारंभ होता है। स्कंद पुराण के मानस खण्ड के 800 वें श्लोक में इस पवित्र गुफा के होने का विवरण मिलता है। भगवान शिव ने जब पुत्र गणेश का अनजाने में धड़ अलग कर दिया तो वह मानव धड़ इस गुफा में तब तक रखा गया था जब तक प्रभु ने श्री गणेश को गजेंद्र का धड़ न लगाया था। इसके साक्ष्य इस गुफा में एक गज के आकार की शिला के रूप में मिलते हैं। 



   



पाताल भुवनेश्वर गुफा:


पाताल भुवनेश्वर गुफा समुद्र तल से 1350 फ़ीट ऊपर और 90 फ़ीट की गहराई में है। गुफा द्वार से 100 सीढियां उतरकर मंदिर के अंदर तक पहुंचा जाता है।कुल लंबाई 160 फीट है। भीतर प्रवेश करने से पहले बाहर एक शिवलिंग है जिसका भक्त दर्शन करना नहीं भूलते। गुफा के बाहर से लेकर अंदर नीचे तक लोहे की चेन बांध दी गयी है ताकि अंदर दर्शन करने जाने वाले आगन्तुक रास्ता भूल या नहीं जाएं। पूर्ण रूप से गुफा के विद्युतीकरण हो रखा है। गुफा चूना पत्थर की प्राकृतिक संरचना है जो करोड़ों वर्षों से धरती में होने वाले भूगर्भीय हलचल और रासायनिक बदलावों के बाद बनते हैं। 


कलयुग में इस गुफा को आदि गुरु शंकराचार्य ने ढूंढा था। गुफाओं को धार्मिक महत्वता देने और जीर्णोद्धार करने में चन्द्र और कत्यूरी राजाओं का योगदान रहा है। इन दो राजाओं के समय से मंदिर में भंडारी पुजारियों को पूजा करने का अधिकार दिया गया था। पाताल भुवनेश्वर की गुफा में मुख्य रूप से केवल भगवान शिव के लिंग की पूजा होती ही। इस शिवलिंग को आदि गुरु शंकराचार्य द्वार स्थापित है। इस शिवलिंग की पूजा हर सवेरे मंदिर के पुजारी 6 बजे विधिवत करते हैं। 




भगवान शिव की जटाओं का रूप बड़ी लंबी शिलाओं में देखने मिलता है।मंदिर गुफा के प्रवेश द्वार से ही सर्प जैसी आकृति दिखाई देने लगती है। जैसे किसी सर्प की रीढ़ की हड्डी और शरीर की चमड़ी हो। 




फिलहाल मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। इसके रखरखाव का कार्य जारी है।

गुफा मंदिर साल भर में बारिश के महीनों में बंद रहता है। सबसे उत्तम समय यहाँ दर्शन के लिये ग्रीष्म ऋतु है।


मंगलवार, 11 जुलाई 2023

शिव मंदिर गुफाएँ, पचमढ़ी, मध्य प्रदेश

देश के हृदय जिसे आप मध्य प्रदेश के नाम से जानते है, इस राज्य में सतपुड़ा की मनमोहक वादियों में बसा है देव भूमि उत्तराखंड के पवित्र तीर्थों का एहसास करानेवाला एक पवित्र तीर्थ स्थल जिसका नाम है पचमढ़ी। इस पर्यटन स्थल के पहाड़ों पर घने जंगलों और मन लुभावने झरनों और यहाँ की जानेवाली ट्रैकिंग के लिए जाना जाता है। इतना मनमोहक होने के बावजूद, पचमढ़ी केवल मध्यप्रदेश राज्य की सीमाओं के अंदर ही जाना जाता है। 

पचमढ़ी के प्रसिद्ध शिव तीर्थ:

पचमढ़ी आनेवाले सैलानी और महादेव भक्त यह मानते है कि यहां केवल महादेव के मंदिर ही नहीं पर साथ-साथ स्वयं महादेव अपने अस्तित्वभक्तों को यहां पहाड़ों, झरनों और झाड़ियों में महसूस कराते हैं। फिर बाकी जाकी रही भावना जैसी। 

महादेव भक्तों के लिए साधना करने का मध्यप्रदेश कि भूमि में यह सबसे प्राकृतिक और मनोरम स्थान है। 


पचमढ़ी एक ऐसा पवित्र पर्वतीय तीथ है जो केवल महादेव को समर्पित मन्दिरों के लिए जाना जाता है। इनके नाम है - चौरागढ़ महादेव मंदिर, नागद्वारी, बड़ा महादेव मंदिर गुफा, जटाशंकर और पांडव गुफाएं हैं। बाकी बचे गैर धार्मिक स्थल, हौनडी खो, बाईसन लॉज, बीफाल वॉटरफॉल, रिचगढ़ की गुफाएं और रिचगढ़ गुफाएं हैं। 




यमशिला का रहस्य

  भगवान जगन्नाथ की पृरी मंदिर सदियों से रहस्यों से भरा हुआ है। जगन्नाथ मंदिर को साक्षात वैकुंठ धाम भी कहा जाता है क्योंकि मंदिर में एक बार भ...