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मंगलवार, 11 जुलाई 2023

शिव मंदिर गुफाएँ, पचमढ़ी, मध्य प्रदेश

देश के हृदय जिसे आप मध्य प्रदेश के नाम से जानते है, इस राज्य में सतपुड़ा की मनमोहक वादियों में बसा है देव भूमि उत्तराखंड के पवित्र तीर्थों का एहसास करानेवाला एक पवित्र तीर्थ स्थल जिसका नाम है पचमढ़ी। इस पर्यटन स्थल के पहाड़ों पर घने जंगलों और मन लुभावने झरनों और यहाँ की जानेवाली ट्रैकिंग के लिए जाना जाता है। इतना मनमोहक होने के बावजूद, पचमढ़ी केवल मध्यप्रदेश राज्य की सीमाओं के अंदर ही जाना जाता है। 

पचमढ़ी के प्रसिद्ध शिव तीर्थ:

पचमढ़ी आनेवाले सैलानी और महादेव भक्त यह मानते है कि यहां केवल महादेव के मंदिर ही नहीं पर साथ-साथ स्वयं महादेव अपने अस्तित्वभक्तों को यहां पहाड़ों, झरनों और झाड़ियों में महसूस कराते हैं। फिर बाकी जाकी रही भावना जैसी। 

महादेव भक्तों के लिए साधना करने का मध्यप्रदेश कि भूमि में यह सबसे प्राकृतिक और मनोरम स्थान है। 


पचमढ़ी एक ऐसा पवित्र पर्वतीय तीथ है जो केवल महादेव को समर्पित मन्दिरों के लिए जाना जाता है। इनके नाम है - चौरागढ़ महादेव मंदिर, नागद्वारी, बड़ा महादेव मंदिर गुफा, जटाशंकर और पांडव गुफाएं हैं। बाकी बचे गैर धार्मिक स्थल, हौनडी खो, बाईसन लॉज, बीफाल वॉटरफॉल, रिचगढ़ की गुफाएं और रिचगढ़ गुफाएं हैं। 





पचमढ़ी इतिहास:


पचमढ़ी सतपुड़ा की पहाड़ियों में बसा एक बहुत सुंदर हिल स्टेशन ही नहीं किंतु अपने प्राचीन शिव मंदिरों के लिए भी प्रसिद्ध है। पचमढ़ी नाम की उत्पत्ति 'पंच' और 'मढ़ी' मने गुफाओं से हुआ है। कहते है यहां महाभारत काल में पांचों पांडवों अज्ञातवास के समय तप किया था और कुछ समय के लिए रुके थे। यहीं से पचमढ़ी को पंचमढ़ी नाम मिला है। 


अठारहवीं सदी में पचमढ़ी मराठा सेना साहेब महाराज राजे रघुजी भोंसले के राज्य के अंदर शासित होने लगा था। मराठाओं के बाद पचमढ़ी गोंड राजा भागवत सिंह के नियंत्रण में आ गया और आखिर में अंग्रेजों ने इसे अपने अंदर कब्ज़ा कर लिया था। अंततः उन्होंने इसे एक हिल स्टेशन बनाने के साथ अपनी छावनी भी बना ली और तब से यहां एक छावनी भी देखी जा सकती है।




चौरागढ़ मंदिर:


सतपुड़ा की घनी पहाड़ियों मैं चौरागढ़ मंदिर 1326 फ़ीट पर बसा है। चौरागढ़ के लिए रास्ता गुप्त महादेव मंदिर से निकलके जाता है। मंदिर दर्शन करने से पहले आप अपनी पूरी तैयारी के साथ ही आएं। ऊपर चढ़ाई करने में आसानी हो इसीलिए हो सके तो ढीले ढाले कपड़े पहनना ही उत्तम है। 


मान्यता है के यहाँ चौरा बाबा नाम के एक तपस्वी ने तप किया था जिससे प्रसन्न हो कर त्रिपुरारी भगवान शंकर ने दर्शन दिए सो यहीं से इसे छोटी को चौरागढ़ नाम मिला था। इस नाम के अलावा चौरेश्वर महादेव नाम से भी चौरागढ़ जाना जाता है। यहां सावन के महीने में और महाशिवरात्रि के समय भक्तों की भारी भीड़ देखी जाती है। भक्त अपने कंधे पे त्रिशूल लिए 1300 सीढियां सीढियां चढ़ते है और एक त्रिशूल प्रभु महादेव को चढ़ाते है। यहां आनेवाले भक्त त्रिशूल मानते है के त्रिशूल चढ़ाने से महादेव सारी मनोकामना पूरी करते है। मंदिर के एक बाजू त्रिशूल का बड़ा गुच्छा से बना आप देखेंगे जिसका यहां यहां रहने वाले बताते हैं कोई स्पष्ट रिकॉर्ड नहीं है उनके पास के कब से यहां इतनी मात्रा में यहां जमा हुए हैं।





चौरागढ़ मंदिर





बड़ा महादेव मंदिर गुफा:


एक अत्यंत पवन-पवित्र गुफा बड़ा महादेव, पचमढ़ी से 10 किमी दूर है। बड़ा महादेव मंदिर की गुफ़ा के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी है। सतयुग में जब भस्मासुर नामक राक्षस महादेव से वर पाने पर अपनी शक्तियों से अहंकारी हो गया तो उसे विचार आया देवादिदेव महादेव का अंत करने का जिससे वह महादेव के ऊपर अपना हाथ रखने पीछे भागा, उसे वरदान प्राप्त हुआ था। महादेव कैलाश से भृमण करते हुए यहां इस गुफा में आ पहुंचे सो यहाँ भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके चतुरता से भस्मासुर का अंत किया। 


यहां एक बड़ा त्रिशूल देखा जा सकता है जो मराठा साम्राज्य के समय से यहां गड़ा हुआ है। यह त्रिशूल यहां के निवासी बताते है के यह शिवजी महाराज ने स्वयं रखा था। 



  
 

गुप्त महादेव मंदिर:


पचमढ़ी के सबसे अनमोल और प्रसिद्ध मंदिरों में गुप्त महादेव का नाम सबसे पहले याद आता है।

गुफा के प्रवेश से 40फ़ीट अंदर है गुप्त महादेव मंदिर। अंदर जाने का रास्ता बेहद संकरा है के बिना दीवार को छुए आप अंदर पहुंच नहीं सकते है। एक समय पे औसत 6-7 लोग ही अंदर प्रार्थना कर सकते हैं। 


"मन्दिर के भीतर कोई भी विद्युतीय वस्तु आप नहीं ले जा सकते है।"


गुप्त महादेव प्रवेश द्वार

गुप्त महादेव गुफा

  

जटाशंकर:


मंदिर से दो कदम पहले आपको एक मंदिर मिलेगा जिससे आपको समझ आएगा यही जटाशंकर मंदिर है किंतु यह असल में बजरँगबली जी का मंदिर है।

 जटाशंकर महादेव मंदिर की गुफाऐं अपनी बड़ी-बड़ी पत्थरों से बनी हुई देवी-देवताओं की मूर्तियों के लिए जाना जाता है। यह मूर्तियां काफी सालों पहले एक आदिवासी किशन लाल बिशेल द्वारा बनाई गई थी। काफी सुंदर और अचंभित कर देने वाली आकृतियां विविध रूपों में आप यहां देख सकेंगे। इन विशालकाय तलछटयुक्त(sedimentary) चट्टानों के बीचों बीच से पानी सदैव रिस्ते रहता है। 

भीतर एक तकरीबन 15 फ़ीट बड़ा एक पत्थर मगरमच्छ के आकर का आप देखेंगे जिसपे अनेकों शिव लिंग प्राकृतिक रूप से बने हुए है। यहां पर पहाड़ों से बहते झरने और रिस्ते हुए जल से बना एक कुंड भी है जिसमे भक्त स्नान करते है। 


जटाशंकर गुफा मंदिर



एक अति-विशेष आकर्षण और श्रद्धा का केंद्र है, इस मंदिर के भीतर रखा एक ऐसा पत्थर जो राम सेतु बनाने में उपयोग किया गया था। यह पत्थर भी राम सेतु के पत्थरों की तरह पानी के ऊपर तैरते रहता है।



नागद्वारी गुफा:


नागद्वरी अर्थार्त नाग लोक की दिशा में जाने वाला द्वार जो एक भीषण कंटीले जंगल जैसे मार्ग से हो कर पहुंचा जाता है। यहां नागद्वारी में पढशेष मंदिर नाग देवता को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। मंदिर की पहाड़ी नाग के फन का रूप लिए हुए है। यहां आने वाले श्रद्धालु यही कहते हैं के नागद्वार की यात्रा अमरनाथ की यात्रा से कमत्तर नहीं है।  बारह किमी लंबा पहाड़ी सफर पर भक्त सुबह भोर से पहले निकल चलते है। नागद्वारी का दर्शन पूरे दो दिन में किया जाता है। नाग देवता के दर्शन करने से मान्यता है की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। 

यहां हर नागपंचमी सावन की शुरुआत के समय के पश्चात मेले का आयोजन किया जाता है। बड़ी संख्या में भक्त पड़ोसी राज्य, विशेषत महाराष्ट्र और छतीसगढ़ से आते है। 

 

- नागद्वारी के अंदर चिंतामणि की गुफा है। यह गुफा 100 फीट लंबी है। इस गुफा में नागदेव की कई मूर्तियां हैं। 

- स्वर्ग द्वार चिंतामणि गुफा से लगभग आधा किमी की दूरी पर एक गुफा में स्थित है। स्वर्ग द्वार में भी नागदेव की ही मूर्तियां हैं। 

 

- सुबह से श्रद्धालु नाग देवता के दर्शन के लिए निकलते हैं। 12 किमी की पैदल पहाड़ी यात्रा पूरी कर लौटने में भक्तों को दो दिन लगते हैं। नागद्वारी मंदिर की गुफा करीब 35 फीट लंबी है। 

 

 * गुफा में आपका सामना नागों से हो सकता है, किंतु यह नाग भक्तों को बिल्कुल हानि नहीं पहुंचाते हैं।*


नागद्वारी की गुफा के अंदर चिंतामणि की गुफा है जो 100 फ़ीट लंबी है। यहां भी आपको नाग देवता की मूर्तियां मिलेगी। ठीक इसी तरह स्वर्गद्वारी में भी नाग देवता की मूर्तियों के दर्शन किये जा सकते है। यह गुफा चिंतामणि गुफा से आधा किमी दूर्री पर है। 

 






नागद्वारी गुफा


 

विशेष मान्यताएं:

 

  1. अनूठी मान्यता है की गोविंदगिरी पहाड़ी पर एक गुफा में विराजे महादेव के लिंग में काजल लगाने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।


  1. यहां की पहाड़ियां की एक रहस्यम बात यह है की यहां के पहाड़ियों पर पगडंडियां सर्पाकार रूप बनी हुई है सो नागद्वारी आने पर कलसर्प दोष ठीक हो जाता है।


पांडव गुफाएं:


चौथी से पांचवी सदी(AD) गुप्त राजवंश के समय की मानी जाने वाली पांडव गुफाएं का आज जो रूप देखते है उसे सबसे पहले आकर देना कुछ बौद्ध बिक्षुओं ने दिया था बौद्ध धर्म के फैलाव के समय। एक बौद्ध भिखु भगवक द्वारा यह गुफाएं बनाई गई थी। किंतु सबसे प्राचीन मान्यताओं के अन्यसर यहां महाभारत काल मे पांडवों ने अपना समय व्यतीत किया था।


पांडव गुफाएँ




पचमढ़ी दर्शन का उत्तम समय:


पचमढ़ी के मंदिरों के दर्शन का उत्तम समय सावन मास या महाशिवरातत्री का है। खास कर श्रावण मास में भक्त दूर-दूर से यहाँ दर्शन करने आते है। 



कैसे पहुँचे:


पचमढ़ी देश के आठों कोनो से रेल, सड़क और विमान द्वारा अच्छे से जुड़ा हुआ है। यहां से सबसे निकटम रेलवे स्टेशन होशंगाबाद, पिपरिया, छिंदवाड़ा और भोपाल का है। सड़क द्वारा टैक्सी/कैब सर्विस उचित मूल्य पर ऊपर लिखित शहरों से चलाई जाती है। यह शहर 5 से 6 घण्टे में पचमढ़ी की दूरी तय करते है। 

 निकटतम हवाई अड्डा भोपाल और इंदौर का राजा भोज और महारानी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा है, जो भारत भर के सभी शहरों से हवाई मार्ग से जुड़े हुए हैं।


पचमढ़ी से बड़ा महादेव मंदिर, जयशंकर मंदिर और पांडव गुफाओं के लिए जिप्सी/जीप या स्कूटी/बाइक न्यूनतम शुल्क पर उपलब्ध रहती है। 


।। हर हर महादेव ।।

🙏🕉️🌷🌿🚩🔱

✒️स्वप्निल. अ

(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


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