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मंगलवार, 18 जुलाई 2023

माँ बगलामुखी, दस महविद्या

 माता बगलामुखी कौन है?


दशम महाविद्याओं में से अष्टम महाविद्या - माता बगलामुखी है। माता बगलामुखी का वैदिक नाम वल्गामुखी जिसका अर्थ है "लगाम"। इसके अनुरूप माँ को बगला, वलगामुखी, वल्गामुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या और पीताम्बरा नामों से पुकारा जाता है। वेदों कि "वल्गा" तंत्र में "बगलामुखी" है। 

माता बगलामुखी अष्टम महाविद्या है और इन्हें मूलतः"स्तम्भनकारी महाविद्या" के रूप में भी जाना जाता है। भगवान नारायण और माता त्रिपुर सुंदरी, दोनों के तेज से निकलने के कारण इनका कुल श्रीकुल है और यह वैष्णव शक्ति है। 


माँ की साधना में पीत रंग सामग्री का प्रयोग अति आवश्यक है। जिसमे आसन से लेके माँ को चढ़ाया जाने वाला प्रशाद भी पीले रंग का होता है। पीली बाती, पीला चोला, पीला आसन और माता की पीले फूलों की माला। माता को हल्दी की माला चढ़ाने से मात अति प्रसन्न होती हैं। 


माँ पीताम्बरा बगलामुखी


माँ पीताम्बरा

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 माता बगलामुखी के तीन चमत्कारिक मंदिर है। पहला मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में, दूसरा पीताम्बरा पीठ, दतिया धाम में माता धूमावती माता का और तीसरा उज्जैन के पास नलखेड़ा, मध्यप्रदेश में। 

यह तीन धाम माता की असीम शक्तियों से लैस हैं। यहां पहुँचने वालों मैं राजा भी होते हैं और रंक भी। यहां माता की सच्चे हृदय से मांगी गई हर इच्छा पूरी होती है। चाहे शत्रु पर विजय हो या मारण, मोहन वशीकरण से मुक्ति पाना। 


हम जानेंगे शाक्त-तंत्र परम्परा में यह मंदिर क्यों इतने गुप्त और रहस्यमयी हैं। इनके पीछे के बनने की कथा  और इनहें स्थापित करने वाले योगीयों के जीवन के रहस्य। 


नलखेड़ा धाम

कांगड़ा धाम

धूमावती माता, दतिया धाम

बगलामुखी साधना महत्व:


देवी की स्तुति साधना करने से विफल हो रहे दुर्लभ से भी दुर्लभ कार्य सिद्ध होते हैं। भीतर से भीतर बैठे हुए  शत्रुओं के दमन में अग्रणी देवी माता बगलामुखी ही है। 

देवी की साधना के पूर्व यह अति आवश्यक है कि साधक अपने अंदर के शत्रु जैसे अनाचार, काम, क्रोध इत्यादि का अंत करे। इसमें माता बगलामुखी स्वयं सहायता करती है। साधक को अपने काज माता द्वारा सिद्ध करवाने के पूर्व अपने अंदर छिपी बुराइयों के अंत के लिए प्रार्थना करना चाहिए और उसके पश्चात साधना में लीन। 


आप चित्र में देखते हैं माता दाएं हाथ में गदा और बाएं हाथ मे राक्षस की जिभ्हा पकड़े हुए हैं। यह सूचित करता है माँ की उच्चाटन शक्ति को जिससे माँ बोलने की शक्ति दे औऱ ले दोनों ही सकती है। 


माता की तंत्र साधना किसी भी निरपराध को मारने, सताने या हानि पहुंचाने पर उल्टा असर करती है। अगर शत्रु आप पर गौण कर्म कर रहा हो, मुकदमे मे या कोई लम्बा राजकीय विवाद चल रहा हो तो माता की आराधना शीघ्र फल देती है। अगर प्रेत-भूत सता रहे हो या कार्यो में सिद्धि ना मिल रही हो जिन बगलामुखी के सिद्ध पीठ से कोई भी अपने कार्य बिना सिद्ध किये नहीं लौटता। 


बगलामुखी ग्रन्थ ऊत्तपति:(संक्षेप)


भगवती बगलामुखी की उपासना प्रजापती ब्रह्मंजी द्वारा सबसे पहले वैदिक रीति से की गई। तब वह सृष्टि संरचना में सफल हुए। उनसे सनत्तकुमार और सनतकुमारों से नारद जी को बगलामुखी उपदेश का ज्ञान हुआ।सांख्यान नामक परमहंस ने 36 पटलों में "बगला तंत्र" जैसे अनमोल ग्रन्थ की रचना की। फिर भगवन नारायण, प्रभु परशुराम और अंत उनके शिष्य आचार्य द्रोण ने इस ग्रँथ का ज्ञान लिया। महर्षि च्यवन ने इसी विद्या से इंद्र के वज्र का स्तम्भन किया था। आदि गुरु शंकराचार्य ने रेवा नदी की धारा का स्तम्भन भी बगला ग्रँथ की स्तुति से किया था। लंका युद्ध में मेघनाथ लंका के राज मंदिर में माता बगलामुखी को उपासना किया करता था जिसके फल स्वरूप ही लक्ष्मण जी को मूर्छित कर पाया। रावण के दरबार में अंगद ने स्तम्भन शक्ति से अपना पाँव दरबार के बीच दबाए रखा था, जिसे कोई सरका ओर हिला भी ना पाया था। 


माँ बगलामुखी मंत्र:


माँ बगलामुखी पीताम्बरा केचमत्कारिक महामंत्र को बिना गुरु दीक्षा के कभी ना पढ़े या माला जपें। मंत्र की साधना किसी अच्छे गुरु के परामर्श पर या यज्ञ हवन आदि में ही साधना योग्य है।



माँ बगलामुखी प्रादुर्भाव कथा:


एक बार भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय, ऋषि मार्कण्डेय और आदि देवगन माता काली के मुख से सृष्टि की संरचना और स्वयं उनके प्रादुर्भाव की कथा सुन रहे थे। तब माता ने दस महाविद्याओं की कथा बताना प्रारंभ किया। 


एक चतुर और बहुत बुद्धिमान असुर, त्रिकुरासुर ने भगवान ब्रह्मा का घोर तप किया और तप मैं दो(अनुचित) वरदान मांग लिए। पहले वरदान में एक ब्रह्मामडिय बवंडर उतपन्न करना और दूसरे वरदान में उसे इस संसार मे विद्यमान कोई भी विद्या परास्त ना कर सके। ब्रह्मंजी ने विषाद हो के त्रिकुरासुर को वरदान दे दिया। उसके पश्चात उसे अहंकार आ गया और उसने सारे देवों को अपना दास बनाना चाहा। ब्रह्नदियाँ बवंडर बनने के बाद सारे संसार में त्राहिमाम होने लगी - उल्कापिंड, ग्रह नक्षत्र बवंडर में समाने लगे। 


भगवान नारायण चिंतित हो उठे और ब्रह्मंजी से इसके उपाय पर चर्चा की, त्रिपुरारी महादेव से मिलके। महादेव ने बताया इसका उपाय केवल एक नई विद्या के आह्वाहन से ही होगा। इसके लिए भगवान नारायण और ब्रह्मंजी अर्धरात्रि सौराष्ट्र के तेजपुंज हरिद्रा तट पर आकर भगवती त्रिपुर सुंदरी की घोर तपस्या की। माँ त्रिपुर सुंदरी से माता बगलामुखी प्रकट हुई। माँ बगलामुखी के अवतरण का दिन था मंगल और तिथी चतुर्दशी की थी।


माँ पीताम्बरा के दर्शन से दोनों देव प्रसन्न हुए और सारी व्यथा सुनाई। माता क्रोधित हो त्रिकुरासुर के वध के लिए निकली और उसका अंत स्तम्भन द्वारा किया। "अपना अंत निकट आता देख त्रिकुरासुर ने माता से विंनंति की के उसके अंत के बाद उसको माता के साथ, माता द्वारा उसकी जिभ्हा पकड़े हुए दर्शाया जाए।" ने माता का जयकारा लगाया और धन्यवाद बोला। माता को कठिन से कठिन समय में जो भक्त पुकारता है माता उसकी पीड़ा का ज़रूर अंत करती है। 


।। जय माँ पीताम्बरा ।।


 🙏🌷🙏


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


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