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सोमवार, 24 जुलाई 2023

चमत्कारी पीताम्बरा पीठ, दतिया, मध्यप्रदेश

दतिया शहर एक आध्यात्मिक नगरी है। पीताम्बरा पीठ को मध्यप्रदेश का छोटा-वृंदावन भी कहा जाता है। यहां साल भर भक्त अपने कार्यों की सिद्धि के लिए यहां आते रहते हैं। सामान्य नागरिक से ज्यादा यहां ऊंची हस्तियां खासकर नेता और उच्च अधिकारी यहां अक्सर देखे जाते हैं। दशम विद्याओं में से दो, माता बगलामुखी औऱ माता धूमावती को समर्पित है। यह दोनों विद्याएं शत्रु नाश और कठिन कार्यों की सिद्धि के लिए जानी जाती है। दतिया धाम के बाहर रहनेवाले निवासी, पीताम्बरा पीठ में घटी तीन चमत्कारी ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में नहीं जानते है। दतिया धाम में बैठी माँ बगलामुखी 

राजा को रंक और रंक को राजा बनाने की शक्ति रखती है।




 

पीताम्बरा पीठ मंदिर इतिहास:


पीताम्बरा पीठ की स्थापना, एक रहस्यमयी संत स्वामीजी महाराज ने की थी। इनका असली नाम आज तक किसी को ज्ञात नहीं है बस इतना पता है कि स्वामीजी के बनारस के रहने वाले थे और 1925 के बाद इनका आगमन दतिया धाम में हुआ। तब यह क्षेत्र वनों से घिरा हुआ था। सन् 1935 में इन्होंने दतिया के राजा शत्रुजीत सिंह बुंदेला के पूर्ण सहयोग से पीताम्बरा पीठ की स्थापना की थी। यहीं धूमावती माता के मंदिर के स्थापना के कुछ समय पश्चात स्वामीजी महाराज ब्रम्हलीन हो गए।


पीताम्बरा पीठ मंदिर में एक, महाभारत के समकालीन शिवलिंग भी स्थापित है। इसे वनखण्डेशर महादेव के नाम से जाना जाता है। यहां श्रावण मास और महाशिवरात्री के दिनों में भक्त वशेष पूजा करवाने पहुँचते है।


  प्रमुखतः माँ बगलामुखी को समर्पित पीताम्बरा पीठ में माता भक्तों को तीन अलग अलग रूपों में दर्शन देती है। दिन के तीन अलग-अलग प्रहर पर माता के भिन्न स्वरूप की अनुभूति होती है। 


मंदिर में बाबा भैरव, बजरँगबली, लक्ष्मी-नारायण और श्री कृष्ण के मंदिरों के दर्शन भी किये जा सकते हैं।




धूमावती मंदिर: 


धूमावती मंदिर स्थापना स्वामीजी महाराज ने 1980 में की थी। इसका कारण माता केवल शनिवार को अपने दर्शन केवल दो घण्टों के लिए देती है। पीताम्बरा पीठ में मुख्य आकर्षण अगर धूमावती माता को समर्पित मंदिर कहा जाए तो गलत नहीं होगा। सिर्फ शनिवार के दिन  सुबह 7 से सुबह 9 बजे के लिए देवी के मंदिर के पाट भक्तों के दर्शन के लिए खुलते है। हफ्ते के अन्य दिन केवल माँ की आरती के लिए खुलते हैं, शनिवार के दिन का महत्व इसलिये है क्योंकि इस दिन माँ लक्ष्मी रूप में रहती है। धूमावती माता के मंदिर में विवाहित स्त्रियों का आना वर्जित है। चूंकि माता पार्वती विधवा रूप में है सो इन्हें विधवा महिलाएं, पुरुष और बच्चे ही दर्शन कर सकते है। 


माँ धूमावती



स्वामीजी महाराज






माता धूमावती उग्र देवी है इसिलिए इन्हें नमकीन प्रसाद का भोग ही स्वीकार्य है। भोग में नमकीन चिवड़ा, सेव, समोसे, कचौड़ी, भजिया और मूंगोड़े चढ़ाए जाते है। 


महा माई धूमावती का मंदिर सवेरे 7 से 9 और संध्या 8 से बजे केवल 15 मिनट के लिए आरती के लिए खुलता है। शनिवार के दिन विशेषतः भीड़ देखी जाती है और भंडारे का आयोजन मंदिर के प्रति आस्था रखने वाले श्रद्धालु करवाते हैं। इतने कम समय के माई के मूर्ति दर्शन के पीछे मेरे स्वयं की समझ से सौभाग्यशाली महिलाओं के भूल से भी दर्शन ना हो, इस कारण रखा गया है।


यह मान्यता है कि माँ के दर पे जो कोई सात सनीचर मत्था टेक हाज़िरी लगा जाए उसके सारे मनोरथ पूर्ण होते हैं।




पीतांबरा पीठ क्यों प्रसिद्ध है?


ऐतिहासिक चमत्कार


कठिन से कठिन कार्यों के अचूक निवारण के लिए प्रख्यात इस शक्तिशाली पीठ की ख्याति से सबसे पहले परिचय पंडित जवाहरलाल नेहरू का हुआ जिन्होंने अपने एक सलाहकार के कहने पर यहां 51 कुंडीय महायज्ञ करवाया। जब चीन ने भारत और सन् 1962 में हमला कर दिया तब स्वामीजी ने यहां माता बगलामुखी का आव्हान किया। कुछ योगियों, अघोरी और साधुओं के साथ मिलके आहुतियां दी गयी। ग्याहरवें दिन दिल्ली से खबर आई के चीन ने अपनी सेना वापिस बुला ली है, यह संदेश स्वामीजी तक पहुंचा, जिसके पश्चात यज्ञ सम्पन्न हुआ। वह हवन कुंड आज भी मंदिर के प्रांगण में आज भी देखा जा सकता है। 

 

इसी प्रकार सन् 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय भी यहां गुप्त यज्ञ करवाये गए और माता बगलामुखी के आशीर्वाद से देश सुरक्षित रहा। उन वर्षों के बाद पीताम्बर पीठ की प्रसिद्दी बढ़ती चले गयी। राजनेता, जज, आईएएस और अधिकारी का खासा जमावड़ा होने लगा।


मैं माई के दरबार के बाहर



पीताम्बरा पीठ मंदिर सरोवर:


स्वामी जी महाराज की समाधी स्थल मंदिर और माँ धूमावती के मंदिर के बीच में एक मनमोहक सरोवर बना है। यह सरोवर माँ पीताम्बरा की हरिद्रा सरोवर से जन्म की कथा के प्रतीक के रूप में बनाया गया है। यह संगमरमर पत्थर 100*120 फ़ीट का बना हुआ है। इसकी गहराई 3-9 फ़ीट है तथा ऊपर सारी तरफ से जाली से बंद है। 


सरोवर कूर्म(कछुए। के आकार का है। कूर्म आकार के पीछे का कारण समुद्रमंथन की कथा से लिया गया है। जब समुद्र मंथन के समय मन्द्राचल पर्वत को अपनी पीठ पर लिए कूर्म रूप में भगवन असुंतलित हो रहे थे तब यह देख माँ बगलामुखी उन्हें सहारा देने पहुंची और मन्द्राचल को स्थायित्व प्रदान किया और मंथन का कार्य सफल हुआ। 


 तीनो बाजू ऊपर भगवान विष्णु, नारद और महादेव की मूर्तियां माँ बगलामुखी की स्तुति में रखी है। सरोवर में निर्मल जल एक गौमुख से प्रवाहित होता है। सरोवर के मध्य माँ बगलामुखी का तंत्र स्तोत्र है जिसकी साधना से धर्म, अर्थ काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। 


पीताम्बरा पीठ कैसे पहुँचे:


 दतिया रेल, हवाई और सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। 

दर्शनार्थी झांसी स्टेशन से दतिया के लिए बस या प्राइवेट कैब लेके दतिया धाम आ सकते है। दतिया और झांसी की दूरी 20 किमी है और आधे घण्टे में पुरी की जा सकती है। 

अगर आप सीधे दतिया रेलवे स्टेशन उतरते है तो मंदिर  तक दूरी 3 किमी रह जाती है। यहां से ऑटो या टैक्सी उचित दामों पर मिल जाती है। 


सबसे निकटतम हवाई अड्डा ग्वालियर हवाई अड्डा है जो 75 किमी पर स्थित है। राज्य के मुख्य शहर उज्जैन और भोपाल से भारत के सभी प्रमुख शहरों से उड़ाने भरी जाती है।



त्यौहार: 


मंदिर में विशेष रूप से चैत्र और फाल्गुन नवरात्र, गुप्त नवरात्र, महाशिवरात्रि और श्रावण मास उत्साह से मनाया जाता है। नवरात्र और गुप्त नवरात्र में पूजा अनुष्ठान किये जाते है। श्रावण मास में भी भक्तों की भीड़ हर दिन बनी रहती है। 


मंदिर के बाहर नमकीन और मिठाई की बहुत दुकाने है। यहाँ हमेशा ताज़ा प्रशाद खरीदा जा सकता है बाजार के मूल्य पे। पुराना माल यहां नहीं बचा जाता। 


।। जय माँ पीताम्बरा ।।

।। जय माँ धूमावती ।।

🙏🌷🕉️🔱🙏


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


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