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गुरुवार, 25 मई 2023

माँ बम्बलेश्वरी मंदिर, डोंगरगढ़ , छत्तीसगढ़

  डोंगरगढ़ के पर्वत पर बसा माँ बम्बलेश्वरी का मंदिर लगभग 2200 वर्ष पुरानी एक प्रेम कहानी की गाथा की गवाही दे रहा है। सोहला सौ फीट पर बना मंदिर जैसे डोंगरगढ़ पर्वत पर माता रानी के मुकुट की भांति सजा दिखता हो। इतनी ऊंचाई पर बना माता का धाम छतीसगढ़ राज्य में कहीं और नहीं हैं। इस प्राचीन मंदिर की अदिष्ठात्री देवी अष्टम महाविद्या माँ बगलामुखी हैं। 

प्राचीन समय मे डोंगरगढ़ को कामाख्या नगरी के नाम से जाना जाता था। कामाख्या नगरी से डोंगरगांव नाम पड़ना और माधवनल - कामकंदला प्रेमी जोड़े की कथा यहाँ आनेवाले तीर्थयात्री भी अनभिज्ञ हैं।

इतिहास:

बम्बलेश्वरी माता मंदिर के बनने की कथा के पीछे राजा वीरसेन और उनकी भगवान शिव और माता भक्ति की असीम श्रद्धा से जुड़ी है। राजा वीरसेन की कोई संतान नहीं थी। प्राचीन काल से यहाँ केवल माँ का पिंडी रूप ही था और सो राजा अपनी रानी के साथ यहां आकर माता से संतान के लिए प्रार्थना की और एक वर्ष के भीतर उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ती हुई। इस पुत्र का नाम उन्होंने मदनसेन रखा। 



 

राजा मदनसेन को एक पुत्र हुआ कामसेन जो अगले राजा बने। इनके राज दरबार एक कामकंदला नाम की एक सुंदर और कुशल नर्तकी थी जिसका नृत्य सारे दरबारियों को मोह लेता था। एक बार राजा ने अनजाने में कामकंदला के प्रतिभाशाली नृत्य की अपेक्षा करते हुए माधवानल(संगीतज्ञ) को पुरस्कृत कर दिया जो उसी समय कामकंदला के नृत्य को संगीत दे रहा था। अपनी प्रेयसी कि प्रतिभा की उपेक्षा होते देख माधवनल ने राजा के सामने वह पुरस्कार उसे ही दे दिया। राजा कामसेन को क्रोध आया और तुरंत माधवानल को राज्य से निकल जाने के लिए कहा।


माधवानल राज्य से बाहर जाने के बजाए डोंगरगढ़ की गुफाओं को अपना स्थाई निवास बना लिया। प्रेम में तड़पती कामकंदला चोरी-चोरी उससे मिलने आया करती थी। वहीं दूसरी ओर कामसेन का पुत्र मदनादित्य राजसी-तामसी प्रवृतियों वाला था और कामकंदला से मन-ही-मन प्रेम करता था। मदनादित्य को माधवानल - कामकंदला का चुपके से मिलना अच्छा नहीं लग रहा था। उसे समझ आ गया था कि वह कामकंदला को पा नहीं सकता इसीलिए उसने कामकंदला को राजद्रोह के आरोप में फंसवा कर माधवानल से अलग कर दिया। राज्य में अस्थिरता की स्थिति उतपन्न हो गयी। 


अपने समक्ष अन्याय होता देख माधवनल सीमा पार कर अवन्तिकापुरी जा पहुंचा और उस समय के भारतवर्ष के सर्वश्रेष्ठ राजा; सम्राट विक्रमादित्य, अपनी न्यायप्रियता के लिए जाने जाते थे, उन्हें सारी व्यथा सुनाई। दयावान राजा विक्रमादित्य ने न्याय करने के लिए अपनी सेना लेकर कामाख्या नगरी पर हमला बोल दिया। कई दिनों के युद्ध के बाद राजा मदनादित्य की पराजय हुई। माधवानल ने मदनादित्य को मार डाला लेकिन इसके बाद कामख्या नगरी पूरी उजड़ गयी। नगर में केवल डोंगड़ पहाड़ियाँ बची और तब से इसे डोंगड़गढ़ कहा जाने शुरू हुआ।





 

कामकंदला को पता चला कि माधवानल युद्ध मे मारा गया है और इस वेदना को सेहन ना कर पायी। यह बात असत्य थी किंतु इसके पहले यह स्पष्टीकरण होता इससे पूर्व कामकंदला ने एक सरोवर में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। इस सरोवर को कामकंदला सरोवर के नाम से भी जाना जाता है। अपनी प्रेमिका के प्राणोत्सर्ग का समाचार सुनकर माधवानल ने भी प्राण त्याग दिए।


भारी उथल - पुथल और कार्य सिद्ध ना होता देख, माता अपने जागृत रूप में पहाड़ी में विराजित होने के लिए राजा विक्रमादित्य ने आह्वाहन किया।तब से माता बम्बलेश्वरी मंदिर की अदिष्ठात्री देवी है।


रोपवे (उड़नखटोला)

छीरपानी तालाब


माँ बम्बलेश्वरी मंदिर:


मंदिर का ऐतिहासिक सम्बंध उज्जैन और राजा विक्रमादित्य से रहा है क्योंकि माँ बम्बलेश्वरी राजा विक्रमादित्य के वंश की कुलदेवी थी। उस समय के पूर्व का डोंगड़गढ़ के इतिहास के कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं है। सोलहवीं सदी से डोंगड़गढ़ मंदिर गोंड राजाओं के राज्य के अधीन आ गया। गोंड राजाओं के समृद्ध और कुशल शासन के अंदर मंदिर की महत्व आस पड़ोस के राज्यों में फैला। 


मंदिर के अन्य मंदिरों में नाग वासुकी मंदिर, शीतला माता मंदिर, दादी माँ मंदिर और बजरँगबली मंदिर है।


  • देवी मंदिर तक कुल 1100 सीढियां चढ़ने पर माता के दर्शन होते हैं। 

  • मंदिर पहाड़ी के नीचे छीरपानी तालाब है जिसमे बोटिंग की व्यवस्थता है। 

  • मंदिर में उड़नखटोला(रोपवे) की व्यवस्था हफ्ते के 6 दिन उपलब्ध रहती है।



राजनांदगांव से डोंगरगढ़ जाते समय राजनांदगांव में मां पाताल भैरवी(महाकाली) दस महाविद्या पीठ मंदिर है, जो अपनी भव्यता के चलते दर्शनीय है। जानकार बताते हैं कि विश्‍व के सबसे बडे शिवलिंग के आकार के मंदिर में मां पातालभैरवी विराजित हैं। तीन मंजिला इस मंदिर में पाताल में मां पाताल भैरवी, प्रथम तल में दस महाविद़़यापीठ और ऊपरी तल पर भगवान शंकर का मंदिर है।


मंदिर दर्शन का श्रेष्ठ समय:

 मंदिर का पट सुबह चार बजे से दोपहर एक बजे तक और फिर दोपहर दो बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता है। रविवार को सुबह चार बजे से रात दस बजे तक मंदिर लगातार खुला रहता है। नवरात्रि के मौके पर मंदिर का पट चौबीसों घंटे खुला रहता है ।
साल भर श्रद्धालु मंदिर में जीवन से जुड़े जरूरी संस्कार जैसे यज्ञ या मुंडन संस्कार भी करवाते रहते है । 

कैसे पहुँचे:

राजनादगांव से 35 व राजधानी रायपुर से यह 105 किलोमीटर दूर है। हावड़ा-मुंबई रेलमार्ग से भी यह जुड़ा हुआ है। यहां रेल और सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
डोंगरगढ़ राजनांदगांव जिला मुख्यालय से 57 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। वहाँ जाने के लिए सबसे अच्छा साधन है ट्रेन, बस, और फिर खुद की ट्रांसपोर्ट व्यवस्था है। अगर आप ट्रेन से यात्रा करना चाहते है तो निकटतम रेल्वे स्टेशन है डोंगरगढ़।
फ्लाइट से: निकटतम हवाई अड्डा है रायपुर। जो घरेलु उड़ानों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

।। जय माँ बम्बलेश्वरी ।।

🙏🌷🙏

✒️स्वप्निल.अ

(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)

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