Translate

रविवार, 18 जून 2023

श्री कालकाजी मंदिर, नई दिल्ली

कालकाजी मंदिर, दिल्ली शहर का एक प्राचीन् हिन्दू मंदिर माता काली को समर्पित है। इसीलिए कालकाजी का हिस्सा माता कालका के नाम पर रखा गया है। वैसे तोह इस सुंदर मंदिर के बारे में बहुत लोगों ने सुन रखा है पर अगर लोग कुछ नहीं जानते है तोह वह है इसका पौराणिक इतिहास, महत्व और अन्य कभी ना पढ़ी विशेषताएं। यहाँ पर बैठी माता काली की दिव्य मूर्ति जो भक्तों की चिन्ताएं और भय का अंत कर देती है। कालका महाकाली भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करती है।  

 
Maa Kalkaji

पौराणिक इतिहास :


कालकाजी मंदिर के बारे में माना गया है के यह तकरीबन 3000 वर्ष पुराना है। यहां माता की मूर्ति स्वयंभू मानी जाती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार दो दैत्य 'शुम्भ और निशुम्भ" ने दवताओं को बहुत परेशान कर रखा था। तोह एक दिन सारे देवता ब्रह्माजी के पास पहुँचे और प्रार्थना करने लगे जिससे ब्रह्म देव ने उनसे अनुरोध किया के इन दुष्टों का अंत केवल माता पार्वती ही कर सकती है। सो इस समस्या के हल हेतु वे सारे माता पार्वती के पास जाएं और उनसे प्रार्थना करें। 


माता पार्वती ने उन्हें निश्चिंत होने के लिए कहा और अपने आच्छद से देवी कौशिकी को प्रकट किया। माँ कौशिकी और शुम्भ-निशुम्भ में भीषण युद्ध हुआ जिसका अंत नहीँ हो पा रहा था क्योंकि जब भी माँ उन राक्षश का अंत करती तब उनका रक्त धरती पे गिर जाता जिससे और राक्षसों का जन्म हो जाता। यह सब देख माता ने अपनी भौओं से देवी महाकाली को उतपन्न किया; अब माता महाकाली उन राक्षसों को मारने के पश्चात उनका रक्त अपने खप्पर में लेकर पी जाती जिसे अतः उनका अंत हुआ और युद्ध विराम हो गया। सारे देवताओं ने उत्साह मनाते हुए माता की जयकार करने के पश्चात माता से विनंती की के वे यहां अपने भक्तों के लिए विराजे और उस समय से यह कालिका माँ के निवास नाम से जाना जाने लगा जिसे अब कालका जी के नाम से जाना जाता है।


इसके अतिरिक्त कालकाजी मंदिर में पांडवों ने भी माँ काली के दर्शन लिए थे। यह साफ नहीं के यह दर्शन, अज्ञात वास या तेरह वर्ष के वनवास के समय के समय का था। इतनी जानकारी है कि यहाँ उन्होंने माता से वर किसी भी युद्ध मे शक्ति, उत्साह, दृढ़ता और विजय का वरदान मांगा था। 


माँ पार्वती और माँ कौशिकी

 देवी और शुम्भ-निशुम्भ युद्ध

शुम्भ-निशुम्भ वध



इतिहास:

कालकाजी मंदिर 17वी सदी में मुगल तानाशाह औरंगज़ेब द्वारा तुड़वाया गया था क्योंकि उसे भारत और दिल्ली के हर कोने में इस्लामी साम्राज्य कायम करनी थी। पांच दशक सभी ज़्यादा लंबे क्रूरता भरे शासन के बाद उसकी मृत्यु हुई। फिर काफी समय पश्चात सन् 1764 के में मराठाओं की दिल्ली फतह के बाद कालकाजी मंदिर का पुनः निर्माण किया गया था। अकबर के पेशकर और मिर्ज़ा राजा किदार नाथ द्वारा सन् 1816 में कुछ और निर्माण कार्य करवाया था। 


महत्व:

मंदिर दर्शन पर मैंने जाना के यहां विराजी देवी महाकाली को "काल चक्र स्वामिनी" माना जाता है। कालकाजी "मनोकामना पीठ" और "जयंती पीठ" कहा जाता है। कालकाजी की महाकाली सारे मनोरथ पूरी करती है।


आज जो मंदिर का ढाँचा आप देख सकते है, इसका निर्माण मंदिर में 1900 के आरम्भ के वर्षों में यहां आनेवाले भक्तों ने दान से बनवाया गया था। आठ तरफा आधुनिक मंदिर का निर्माण काले झांवा पत्थरों और संगमरमर से किया गया है।





काली माता मंदिर:


मंदिर के निर्माण में लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर का उपयोग किया गया है। मंदिर का प्राथमिक मंदिर देवी काली को समर्पित है, जिन्हें कलश के रूप में एक अमृत कलश के रूप में चित्रित किया गया है। मंदिर परिसर में, भगवान शिव और भगवान हनुमान के लिए अलग-अलग मंदिर हैं। मंदिर में देवी देवी दुर्गा की पूजा करने वाला एक मंदिर भी है।


माँ कालकाजी



मंदिर के दैनिक पूजा अनुष्ठान:


  • हर दिन सुबह माता की पूजा दूध के स्नान के साथ शुरू होती है और सुबह की आरती के साथ समाप्त होती है।


  • हर दिन दो बार माता की आरती की जाती है। इसमें संध्या में होने वाली आरती को तांत्रिक आरती माना जाता है।


  • ग्रीष्म ऋतु और सर्दी के समय आरती का समय बदल जाता है।


  • पूजारी अपनी-अपनी बारी आने पर आरती करते है।


  • माता की एक झलक पाने हेतू भक्त आरती के समय बाहर खड़े रहकर प्रतीक्षा करते है। 


मंदिर में आने वाले भक्त गण भोग थाली लेकर आते हैं। जिसमे एक सब्जी, एक दाल, रोटी, चावल, मिष्ठान अर्पित करने का नियम है। बिना लहसुन-प्याज का सात्विक भोग ही स्वीकार किया जाता है।




                            



ग्रहण:


यह एक मात्र मंदिर है जो ग्रहण के समय बंद नहीं होता है। मंदिर के महंत सुरेन्द्रनाथ अवधूत बताते है के मंदिर के अंदर सारे नव ग्रह निवास करते है जो माता काली को बालक समान है। सारे ग्रह माता को नमन करते हैं। 


ग्रहण के समय बहुत सारे भक्त इस शक्तिशाली मंदिर में दर्शन करने चले आते हैं, जब बाकी मन्दिरों के कपाट पे ताले लग जाते है। यह इस मंदिर की विशेषता है।


मुंडन संस्कार:


श्री कालकाजी मंदिर में बच्चों का मुंडन संस्कार करवाने के लिए अक्सर भक्त आते है। मुंडन करवाने का समय सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक रहता है।


कालकाजी के नजदीकी मेट्रो स्टेशन :


नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से श्री कालकाजी मंदिर की दूरी 21किमी है और 45 मिनट का समय पहुँचने में लगता है। दिल्ली मेट्रो की वायलेट लाइन पर दौड़ने वाली मेट्रो से आप कालकाजी मेट्रो स्टेशन पहुँचते है। 


श्री कालकाजी मंदिर से कालकाजी मेट्रो स्टेशन की दूरी मात्र 500 मीटर है।


मेट्रो के अलावा कालकाजी आने के लिए दिल्ली शहर की बस सेवा भी उपलब्ध रहती है। 


मंदिर के खुलने का समय:


सुबह 04:00 AM से 11:30 AM दोपहर 12:00 से दोपहर 03:00 बजे तक शाम 4:00 बजे से 11:30 बजे तक खुला रहता है।

आरती का समय :


सुबह : 06:00 पूर्वाह्न से 07:30 पूर्वाह्न (सर्दी) प्रातः 05:00 से प्रातः 6:30 (ग्रीष्मकालीन) शाम : 06:30 अपराह्न से 08:00 अपराह्न (सर्दी) 07:00 अपराह्न से 08:30 अपराह्न (गर्मी)।


।। जय माता कालका ।। 

🙏🕉️🌷🌿🚩🔱


✒️स्वप्निल. अ




(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)

कालकाजी मंदिर के बारे में और जानकारी के लिए इन लिंक्स पर क्लिक करें:-


  1. www.thedivineindia.com/amphi/kalkaji-mandir.html
  2. https://www.tourguidence.com/kalkaji-temple-delhi/
  3. https://www.bhaktibharat.com/mandir/shri-kalkaji-mandir

सोमवार, 12 जून 2023

जगन्नाथ मंदिर, जाजपुर, ओडिशा

हम सबने चार धामों में से एक, पुरी के विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के बारे में तोह सुना ही होगा पर क्या आप जानते हैं ओडिसा एक और पुरातन जगन्नाथ मंदिर के बारे में? तो आइए जानते है छतिया बाटा के बारे में जिसे ओडिसा के छोटे जगन्नाथ धाम के रूप में भी पूजा जाता है।  इस बात की जानकारी अधिक लोगों को नहीं पता है। चाटिया जगन्नाथ मंदिर, पुरी के जगन्नाथ मंदिर जितना ही रहस्यमयी है। 

योगमाया मंदिर,मेहरौली,दिल्ली

देश की राजधानी दिल्ली के दक्षिण में स्तिथ  माँ योगमाया का शक्तिपीठ मंदिर है। देवी योगमाया भगवान श्री कृष्ण की बड़ी बहन हैं। मेहरौली इलाके में...