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बुधवार, 1 मई 2024

भोजपुर शिव मंदिर, रायसेन, मध्यप्रदेश

 भोजपुर शिव मंदिर को प्राचीन भारत मे पूर्व का सोमनाथ भी बुलाया जाता था। प्राचीन भारत में यह मंदिर अपनी ऊंचाई और विशाल शिव लिंग के पूजन के लिये सर्व प्रसिद्ध था। वर्तमान समय मे भी मंदिर में पूजा अर्चना जीवित मंदिर परंपरा के अंतर्गत की जाती है। इस समय मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग के अंदर संरक्षित है।


सबसे विशाल शिवलिंग
भोजपुर शिवलिंग


भोजपुर शिव मंदिर का पूरा इतिहास:


भोजपुर शिव मंदिर का इतिहास पौराणिक काल में से महाभारत काल का बताया जाता है। पांडवों की माता कुंती के पिता राजा कुंतीभोज ने पहला भोजपुर शिव मंदिर का निर्माण करवाया था। अपने तेरह वर्षों के वनवास के समय पांडवों यहाँ कुछ समय निवास किया था। कुंती पुत्र महाबली भीम मंदिर में शिव की पूजा किया करते थे। कलयुग में परमार वंश के महान राजा भोज ने पुराने मंदिर का पुनः निर्माण और जीर्णोद्बर कराया था। राजा भोज को कला, साहित्य, संगीत,वास्तुकला इत्यादि विषयों में बहुत रुचि थी। स्वयं राजा ने 11 ग्रँथ लिखे थे। इसी प्रेम के चलते राजन ने अपने शासन में मध्य भारत में कई भव्य और विशाल मंदिरों का निर्माण करवाया था। इस कर्मश्रंखला में भोजपुर मंदिर का नाम भी लिया जाता है।  मंदिर में जीवित परम्परा के अनुसार पूजा की जाती है।


द्वापरयुग में कुंती द्वारा कर्ण को बेतवा नदी में टोकरी में बहाने की किंवदंती भी स्थानीय लोगों में प्रचलित है।




भोजपुर शिव मंदिर :


भोजपुर शिव मंदिर अपने समय से लेकर आज तक अपनी भव्यता सुसंगत बनाये हुए है। इसमें मंदिर के उस समय बनाने वाले शिल्पकारों और वास्तुकारों को अपने आप पर अवश्य ही बड़ा गर्व महसूस होआ होगा। इस मंदिर की ऊंचाई और अंदर प्रतिष्ठित शिवलिंग भारत वर्ष में मंदिर निर्माण के इतिहास में आज तक कहीं और नहीं बनाये गये हैं। 





भोजपुर मंदिर वास्तुकला:


भोजपुर शिव मंदिर का निर्माण चतुर पदार्थ वास्तुकला के हिसाब से बनवाया गया था। इसको बनाने में लाल बलुआ पत्थर का सबसे अधिक उपयोग किया गया था। मंदिर 35 फ़ीट लंबे,82 फ़ीट चौड़े और 13 फ़ीट ऊंचे मचान पर बना है। अन्य किसी भी मंदिर से अलग भोजपुर मंदिर में मंडप गर्भ-गृह से जुड़ा नहीं है। गर्भ गृह से मंदिर के द्वार की दूरी 10 मीटर है। दीवारों पर शिव के गण और अप्सराओं की मुद्राएं बनी है। अंदर प्रवेश करने पर 12 मीटर के चार अष्टकोणीय स्तम्भ खड़े हैं। इन स्तम्भों में प्रत्येक प्लास्टर जुड़े है। प्लास्टर और स्तम्भों की जोड़ी व उपखंड बनाती है जिस पर मंदिर की सुंदर गुम्बद वाली छत टिकी है। यह गुम्बदीय शिखर के समक्ष छत सीधी चौकोर आकर की है।  


भोजपुर मंदिर के चारों कोनों की आधारशिला में चार देव जोड़ियां - ब्रह्म-शक्ति, शिव-पार्वती,राम-सीता और लक्ष्मी-विष्णु की मूर्तियाँ शिल्पित की गई हैं। मंदिर के ऊपर खाली जगह - बिना खिड़कियों और मात्र दिखाने वाली बालकनी बनी है। उत्तरी दीवार पर मकर प्रणाली से शिवलिंग पर होने वाले अभिषेक की जल-सामग्री को निकालने को व्यवस्था की गई थी। 



भोजपुर शिवलिंग:


भोजपुर शिवलिंग को पूरी ऊंचाई 12 मीटर है। शिवलिंग वर्गाकार का एक के ऊपर एक बड़े-बड़े चूना पत्थरों को रख कर बनाया गया है। केवल लिंग की ऊंचाई 2.3 मीटर और परिधी 5.4 मीटर है। चारों कोनों का 6.6 मीटर है। एक सामान्य से अधिक ऊंचाई वाले मनुष्य भी शिवलिंग के सामने खड़े रहने पर बौना दिखाई देता है। 


अधूरे भोजपुर मंदिर का सम्भ्रम और रहस्य:


प्राचीन समय में मंदिर के पास एक बड़ा सरोवर था। इस सरोवर में जल का स्तोत्र पास में बहती बेतवा नदी पर बना बांध जिसे राजा भोज द्वारा बनवाया गया था। समीप ही मेंदुआ नामक एक गांव था जिसके पास दूसरा सरोवर था। इस सरोवर को भोपाल शहर के पास छोटी कलियासोत नदी से जोड़ा गया था। भोपाल के पास पहाड़ियों के मध्य में तीसरा बांध बना कर उससे निकलनेवाले जल को दुआरे बांध तक पहुंचाया जाता था। कुल मिलाकर तीन बांध थे जिनका पानी अंत में  भोजपुर मंदिर के वाले सरोवर में जा मिलता था। मध्य युग में होशंग शाह ने तीन में से दो जलाशयों का जल निकाल कर दो को तुड़वा दिया था।




भोजपुर शिव मंदिर की वास्तुकला और बाहर दिखते मलबे से पुरातत्व विदों ने पहले इसे एक राजकीय अंत्येष्टि स्मारक होने की पुष्टि की थी। कुछ पुरातात्विक साक्ष्यों, इतिहासविदों और प्राचीन मंदिर वास्तुकला के जानकारों की माने तो मंदिर राजा भोज या उनके के निकटस्थ रिश्तेदारों की अंत्येष्टि के पश्चात् बनवाया गया था। ऐसे मंदिर मृतक के स्वर्ग तक जाने के वाहन के रूप में जाना जाता है। संस्कृत में इन्हें "स्वर्गर्फन प्रसाद" कहा जाता है। ऐसे प्रमाण कुछ टुकड़ो में मिले प्राचीन दस्तावेज़ों में पाये गये हैं। इन सब के अतिरिक्त  प्राकृतिक आपदा या अचानक युद्ध की घोषणा के सिद्धान्त भी मंदिर के अपूर्ण रहने की वजह प्रतिपादित की गई है। स्पष्ट पुरातात्विक साक्ष्यों के अभाव में इन बातों को और बल नहीं मिल पाया किंतु आज मंदिर को बाहर और अंदर से देखने पर मन में वही सारे प्रश्न दुबारा उठते हैं। 




 

मंदिर से केवल कुछ दूरी पर उत्तर-पूर्व दिशा में कृत्रिम ढलान दिखाई देती है। ढलान को बनाने में बलुआ पत्थर के विशाल स्लैब 39*20*16 इंच का उयोग हुआ था। पूरे ढलान की कुल लंबाई 91 मीटर और ऊँचाई 12 मीटर है। भोजपुर शिव मंदिर की बाहर की दीवारों पर कई मूर्तियां अपवित्र और षत-विक्षिप्त अवस्था में देखी जा सकती है। भारतीय पुरातत्व विभाग की देख-रेख में मंदिर और मंदिर के बाहर का एक बड़ा हिस्सा जीर्णोद्बर करवाया गया है। इस क्षेत्र की पहाड़ी के अन्य मंदिरों का काम भी करवाया गया था पुरातत्व विभाग का निरीक्षण और जीर्णोद्बर का कार्य प्रख्यात पुरातत्वविद के.के. मुहम्मद द्वारा किया गया था।


भोजपुर शिव मंदिर में प्रतिवर्ष राज्य सरकार द्वारा भोजपुर मेले का आयोजन किया जाता है। भक्त, श्रद्धालू और पर्यटकों की भारी भीड़ दिखाई देती है। सावन और महाशिवरात्री में जल अर्पण करने और पूजा के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है।





भोजपुर मंदिर कैसे पहुँचे:


भोजपुर शिव मंदिर के लिये सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन भोपाल का रेलवे स्टेशन है। हवाई मार्ग के लिये राजा भोज अंतराष्ट्रीय एयरपोर्ट से पहुँचा जा सकता है। भोपाल से मंदिर की दूरी 50 किमी है। 


✒️स्वप्निल. अ

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