लाखमण्डल महादेव मंदिर में भगवान शिव की महिमा चतुर युगों में विराजित शिवलिंगो के कारण प्रख्यात है। देवभूमि का एक और धाम जिसमे विराजित हैं चारों युगों के शिवलिंग। मंदिर और लाखमण्डल गांव की धरती के भीतर अनगिनत शिवलिंग मौजूद है।
पौराणिक इतिहास:
लाखमण्डल में लाख का अर्थ है बहुत सारे और मण्डल का अर्थ शिवलिंग। लाखमण्डल गांव क्षेत्र के मुख्य मंदिर की खोज एक गाय ने की थी। गौ रोज़ शिवलिंग पर दूध से अभिषेक किया करती थी। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार मंदिर का पौराणिक इतिहास देवभूमि के अन्य पवित्र धामो की तरह ही चारों युगों के इतिहास का साक्षी रहा है। इसी कारण यहाँ तकरीबन सवा लाख शिवलिंगों के होने की बात कही जाती है। और सारे अलग-अलग रंग और गुण शक्ति वाले है। महाभारत काल मे इस मंदिर में पांडवों का आगमन हुआ था। उनके द्वारा हरे रंग के शिवलिंग की स्थापना भी करवाई गई थी।
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स्तोत्र:अमर उजाला |
पुराणों में वर्णित राजा दक्ष के चर्चित यज्ञ का आयोजन इसी स्थान पर हुआ था। माता सती के यज्ञ की अग्नि में भस्म हो जाने के पश्चात् देवादिदेव शिव ने यहीं अपने रुद्र रूप वीरभद्र को दक्ष के अंत के लिए प्रकट किया था। उस घटना से एक गुलाबी शिवलिंग की स्थापना हुई थी।
महाभारत काल की ही एक अति महत्वपूर्ण घटना लाखमण्डल मंदिर से जोड़कर बताई जाती है। कौरवों ने पांडवों को मारने के लिये लाक्षाग्रह का निर्माण करवाया था। इसी स्थान को लाक महल के लिये चुनाव किया था। फिलहाल इस बात के साक्ष्य मंदिर में उपलब्ध नहीं है किंतु केवल एक गुप्त सुरंग जो पांडवों को भागने के लिये बनवाई गई थी। यह सुरंग मंदिर और गांव के एक कोने तक बिछी हुई है। यह सुरंग तकरीबन सवा एक किमी लंबी है।
लाक्षाग्रह के सटीक स्थान को ले के अगणित दावे अनन्य ऐतिहासिक और पौराणिक स्थानों पर कोई गये हैं। इनमें प्रमुख स्थान देश की राजधानी दिल्ली के पास मेरठ और बागपत अधिक माने गये हैं। लाखमण्डल के निवासी अपने पुरखों, मंदिर के पुजारियों द्वारा सदियों पुरानी कथाओं और मान्यताओं के आधार पर इस बात का दावा करते आ रहे हैं। लाक्षाग्रह किस स्थान पर असल मे हुआ करता था यह बताना थोड़ा कठिन कार्य है।
इतिहास:
आधिकारिक जानकारी के अनुसार लाखमण्डल मंदिर का निर्माण 12-13 वी सदी का बताया जाता है। किंतु कुछ अन्य शिलालेखों में 6थीं सदी अंकित है। मंदिर का निर्माण सिंहपुर की राजकुमारी ईश्वरा ने जलंधर के राजा चन्द्रगुप्त के पुत्र की भार्या के नाते, उनकी आत्मा की मोक्षप्राप्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिये करवाया था।
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कलयुगीन शिवलिंग स्तोत्र:गूगल |
लाखमण्डल महादेव मंदिर:
लाखमण्डल महादेव मंदिर समुद्र तल से 1372 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर का कुछ हिस्सा बाद में कत्यूरी राजाओं के काल में करवाया गया था। नागर शैली में बने इस मंदिर के निर्माण में कांठ का भी उपयोग किया गया है। यहां आने के बाद केदारनाथ ज्योतिर्लिंग जाने की परंपरा भी रही है।
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युधिष्ठिर स्थापित शिवलिंग |
सत्युग से प्रारम्भ हो कर कलयुग के आगमन तक के शिवलिंग पूरे गांव में कुल सवा लाख शिवलिंगों को स्थापित करवाया गया था। इसका प्रमाण इस गाँव के वासी स्वयं बताते है। मंदिर परिसर और पूरे गांव में इस काल तक शिवलिंग खुदाई करने पर प्रकट हो रहे हैं।
- मंदिर में गर्भ गृह में सत्युग का शिवलिंग विराजमान है।
- दोसर अष्टदल पर बना शिवलिंग कलयुगीन है जिस पर मनुष्य या किसी भी वस्तु का प्रतिबिंब दिखाई देता है।
- तीसरा शिवलिंग, त्रेतायुगीन भगवान राम द्वारा सेतुबंध रामेश्वर में विराजित शिवलिंग जैसा है।
- लाक्षाग्रह की लाल इंठों की श्रंखला आज भी मंदिर के बाहर दिख जाती है।
- राजा युधिष्ठिर द्वारा बनाया गया चौकोर शिवलिंग विराजित है।
- मंदिर में माँ देवी पार्वती के पदचिन्हों के निशान भी एक मंदिर में पूजित किये जाते हैं।
- मंदिर को दाईं दीवार पर महिषासुर मर्दिनी मुद्रा में माँ दुर्गा को मूर्ति प्रभावशाली है।
वर्ष 2007 में पुरातत्व विभाग को खुदाई के दौरान मंदिर में कुछ शिवलिंग और विग्रह प्राप्त हुए। हर वर्ष मंदिर से 200-300 मीटर के दायरे में कोई न कोई अवशेष य्या मूर्ति मिलते रहती है।
लाखमण्डल मंदिर रहस्य:
लाखमण्डल मंदिर के मुख्य मंदिर के पीछे सतह पर एक गोल पत्थर है। इस पत्थर के ठीक सामने दाएं और बाएं दो द्वरपालों की मूर्तियां खंडित अवस्था में पश्चिम की तरफ मुख करके खड़ी है। प्राचीन समय से इस पत्थर पर मृत शरीर रख कर एक रहस्यमय क्रिया की जाती थी। इस क्रिया में मृत व्यक्ति कुछ समय के लिये जीवित हो उठता और वापिस शरीर त्याग देता। इन दोनों के मध्य मंदिर के पुजारी उसे गंगा-यमुना का जल पिला कर दूध-भात खिलाते। तदनन्तर शिव मंत्र का उच्चारण करते। फिर इससे उस मनुष्य को सदैव के लिये संसार के बंधनों से मुक्ति मिल जाती।
हर रोज संध्या 7 सात बजे गांव वासी और आगन्तुक पर्यटक भक्तिभाव से आरती में सम्मिलीत होते है। रात्री 8 बजे मंदिर पट बंद कर दिये जाते हैं।
लाखमण्डल मंदिर कैसे पहुँचे:
निकटतम शहर राजधानी देहरादून से लाखमण्डल मंदिर पहुँचने के लिए सड़क मार्ग से लगभग 6 घण्टे 30 मिनट का समय लगता है। देहरादून के जॉली ग्रांट हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन से यह दूरी 132 किमी और 118 किमी की है। देहरादून के अलावा मसूरी हिल स्टेशन से लाखमण्डल मंदिर को दूरी 75 किमी है जो ढाई घण्टे में पूरी की जा सकती है।
✒️ स्वप्निल. अ
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