पौराणिक इतिहास:
माँ चामुंडा और माता तुलजा भवानी शक्तिपीठ की कथा माता सती की देह से बने 52 शक्तिपीठों से जुड़ी है। देवास की इस टेकरी पर माता के रक्त की वर्षा हुई थी। इसीलिये देवास के निवासी इसे रक्तपीठ भी कहते है।
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माँ चामुंडा |
दूसरी कथा अनुसार माता चामुंडा और माँ तुलजा दोनों बहनों का निवास इस स्थान पर था। एक समय दोनों में किसी बात पर विवाद उतपन्न हुआ। छोटी माता तुलजा पर्वत को चीरते हुए ऊपर की ओर निकल पड़ी और माँ चामुंडा नीचे पाताल की तरफ निकल पड़ी। तभी भगवान भैरवनाथ और बजरंगबली ने चामुंडा माँ को स्थान छोड़के न जाने का निवेदन किया। इस निवेदन को माता ने स्वीकार कर टेकड़ी कभी न छोड़ने का आश्वासन दिया।
दोनों देवीयों का क्रोध शांत हुआ; तब बड़ी माता जो पाताल के अंदर आधी समा चुकी थी - रुक गयी। वहीं छोटी माता अपने स्थान से ऊपर की ओर जाने लगी। इसी स्थिति में आज तक दोनों बहनें स्वयंभू रूप में विराजी हैं। माताएँ अपने जागृत रूप में विराजी हैं। माना जाता है कि जिन्हें संतान का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता वे इस मंदिर में माँ के दरबार में आकर सच्चे मन से अगर कामना करें तो माता उनकी गोद भर देती है।
देवास टेकरी माता मंदिर:
देवास टेकरी मंदिर तक पहुँचने के लिये 410 सीढियां चढ़नी होती है। दोनों देवियों के मंदिर की दूरी 600 मीटर की है। बड़ी माता माँ चामुंडा और छोटी माता माँ तुलजा भवानी है। माँ तुलजा भवानी का मंदिर बड़ा और भव्य है। मंदिर कक गर्भ गृह चांदी में जड़ा हुआ है। माता की मूर्ति पर बहुत तेज दिखाई देता है। माँ के मुख की शोभा मस्तक पर चढ़े चांदी के मुकुट और नाक की नथनी दुगनी कर देती है। माँ चामुंडा मंदिर में माता की मूर्ति 10 फ़ीट लंबी है।
माँ प्रतिदिन हर संध्या आरती उज्जैन के मंदिरों की पारम्परिक आरतियों की तरह ही होती है। ढोल-नगाड़ा और मंजीरों के साथ भक्त हर्षोल्लास के साथ आरती में भाग लेते हैं।
देवास की टेकरी से पूरा देवास शहर का मनोहारी दिखाई देता है। टेकरी की परिसीमा में अन्य मंदिर दर्शनीय है है। इनमें राम-हनुमान मंदिर, कुबेर मंदिर, खो-खो माता मंदिर, कालिका मंदिर और अष्टभुजी देवी मंदिर है। खो-खो माता जा मंदिर खांसी से पीड़ित श्रद्धालुओं के लिये विख्यात है। इन मंदिरों में एक एल कर दर्शन करते करते पूरे देवास टेकरी की परिक्रमा पूर्ण की जाती है।
इंदौर पर राज करने वाले क्षत्रिय वँशो में से एक होलकर राजवंश की कुल देवी माता तुलजा भवानी थी। माता चामुंडा पवार वंश की कुल देवी रही हैं।
चामुंडा माता मंदिर के बाहर की दीवार माँ जगदम्बा के अनेकों रूप को शिल्पित किया गया है। टेकरी पर बाबा कालभैरव का मंदिर एक अत्यंत छोटी गुफा में है। भगवान भैरव की सिंदूर से बनी मूर्ति विराजित है। भक्त भगवान भैरवनाथ के दर्शन किये बिना टेकरी से नहीं लौटते हैं।
मंदिर प्रातः सवेरे 6 बजे से रात्रि 11 तक आगन्तुकों के लिये खुला रहता है। टेकरी पर चढ़ाई के तीन रास्ते हैं। पहली सड़क मार्ग द्वारा और दूसरा उड़न खटोले(ropeway) द्वारा और तीसरा सीढ़ियों द्वारा है।
नवरात्रों में खासी भक्तों की भीड़ देखी जाती है। सड़क और सीढ़ियों द्वारा आते समय, बीच-बीच में फल-फूल, खाने पीने और अन्य वस्तुओं की दुकानें खुली रहती है।
✒️स्वप्निल. अ
(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)
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