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बुधवार, 20 सितंबर 2023

बड़ा गणेश मंदिर, उज्जैन, मध्यप्रदेश


अवन्तिकापुरी उज्जैन में जगह-जगह पर प्यारे और रहस्यमय मंदिर श्रद्धालुओं को मिल जाएंगे। इसी सूची में भगवान श्री गणेश का अद्धभुत मंदिर है। 


श्री गणेश


बड़ा गणेश मंदिर के नाम यह मंदिर केवल उज्जैन और आस पड़ोस के गॉंवों तक में ही प्रसिद्ध है। महाकाल के मंदिर के निकट ही गणेश जी की एक बहुत बड़ी मूर्ति स्थापिथ है। ऐसा दावा किया जाता है की यह प्रतिमा पूरे विश्व मैं मंदिर के अंदर विराजी भगवान लम्बोदर की एक मात्र सबसे बड़ी मूर्ति है। इस मूर्ति की स्थापना महर्षि गुरु महाराज सिद्धान्तनारायण जी व्यास ने 120 वर्ष पहले करवाई थी। इस विग्रह के बनने में ढाई वर्ष का समय लगा था।


मूर्ति बनाने की सामग्री में सीमेंट के स्थान पर ईंट, रेत, चूना और बालू का उपयोग किया गया है। कुछ खाद्य सामग्री जैसे गुड़ और मेथी के दानों का भी प्रयोग किया गया है। मूर्ति में जो मिट्टी उपयोग कि गयी है, वह सारे प्रमुख तीर्थ स्थान मथुरा, उज्जैन, काशी, द्वारका, कांची और हरिद्वार से लाई गयी थी। मूर्ति निर्माण में पावन नदियों का जल उपयोग हुआ है। मूर्ति को ऊंचाई18 फ़ीट और 10 फ़ीट चौड़ी है। भगवान की सूंड दक्षिण मुख की तरफ लडडू लिए हुए है। दाएं और बाएं तरफ भगवान की दोनों पत्नियाँ रिद्धि-सिद्धि की मूर्तियां हैं। 




श्री गणेश की मूर्ति सामग्री इस मंदिर को उज्जैन नगरी और मध्यप्रदेश राज्य में अलग बनाती है। 


मंदिर में बजरँगबली और माँ काली की मूर्तियां है तो भगवान श्री कृष्ण प्रांगण में एक झूले में बनाये हुए मंदिर में विराजमान है। 





बड़ा गणेश मंदिर पता और कैसे पहुंचे:


बड़ा गणेश मंदिर उज्जैन के जयसिंगपुरा इलाके में आता है तथा अति प्रसिद्ध सिद्ध स्थली महाकालेश्वर मंदिर और माता हरसिद्धि मंदिर से 5 मिनट की दूरी पर स्तिथ है। 


✒️स्वप्निल. अ



(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)



इन्हें भी देखें:


- मंगलनाथ मंदिर, उज्जैन


माँ गढ़कालिका शक्तिपीठ, उज्जैन

गुरुवार, 4 मई 2023

श्री गणेश टेकड़ी टेम्पल, नागपुर

इतिहास:

   गणेशटेकड़ी मंदिर कम से कम 250 साल पुराना माना जाता है। मंदिर समिति के सचिव श्री एस.बी. कुलकर्णी कहते हैं कि विग्रह (मूर्ति) एक स्वयंभू मूर्ति (लगभग 4 फीट) है, जिसका अर्थ है कि कोई प्राण प्रतिष्ठा संस्कार नहीं किया गया था क्योंकि इसे प्रतिष्ठित नहीं किया गया था। विग्रह को मूल रूप से बहुत छोटा कहा जाता था जब यह 1875 में ब्रिटिश भारत के दौरान रेलवे लाइन के निर्माण के लिए पहाड़ी की चट्टानों को नष्ट करने के बाद पाया गया था और तब से इसके आकार में वृद्धि हुई है।

                                   


मंदिर एक साधारण टिन झोंपड़ी के भीतर एक मूर्ति के साथ शुरू हुआ। 1970 के दशक में सेना ने इस संगठन को संभाला और विकसित किया, हालांकि 1978 में प्राथमिक संशोधन हुआ। मंदिर का निर्माण एक प्रमुख उपक्रम के रूप में किया गया था, और उपासकों ने उदारतापूर्वक इस कारण से योगदान दिया। 1984 में, वर्तमान ढांचे ने आकार लिया। दिवंगत श्री गणपतराव जोशी और कुछ अन्य भक्तों ने इसे किया। समय बीतने के साथ, यह स्पष्ट हो गया कि मंदिर परिसर तीर्थयात्रियों की विशाल संख्या को संभाल नहीं सकता था। मंदिर के न्यासियों ने रक्षा मंत्रालय को एक आवेदन दिया, तब रक्षा मंत्रालय ने अतिरिक्त 20,000 वर्ग फुट भूमि प्राप्त करने में सहायता की।


पुरानी दुर्लभ छवि



पुरानी इमारत


Ganesh Chaturthi day

वर्तमान मंदिर:

मूर्ति को माथे पर कई सोने और चांदी के आभूषणों से सजाया गया है। गहनों में मुकुट (मुकुट) नाम का एक विशेष टुकड़ा है जिसे केवल चतुर्थी और एकादशी के अवसर पर प्रदर्शित किया जाता है।

मंदिर का हाल ही के वर्षों में जीर्णोद्वार का कार्य पूर्ण हुआ है । पहले के मुकाबले, अब मंदिर में भक्तों की चहल-पहल और ज़्यादा बढ़ गयी है । श्री गणेश की मूर्ति मूर्ति के अलावा आप यहां भगवान शिव का लिंग, श्री राम परिवार, भगवान कालभैरव, श्री राधाकृष्ण की मूर्तियों के भे दर्शन कर सकते है ।

श्रीराधाकृष्ण

हर दिन, बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में आते हैं, विशेष रूप से महत्वपूर्ण त्योहारों और धार्मिक समारोहों में। हर साल पौष महीने में संकष्टी चतुर्थी के दिन एक बड़ी यात्रा निकाली जाती है जिसे टेकड़ी गणपति यात्रा के नाम से जाना जाता है। मंदिर की विशेषता आरती समारोह है, जो प्रतिदिन चार बार (सुबह 6.30 बजे, दोपहर 12.30 बजे, शाम 7. बजे, 11.30 बजे) किया जाता है और मोदक को दिव्य उपहार के रूप में आरती के बाद वितरित किया जाता है। मंदिर के ट्रस्टी टेकड़ी गणपति मंदिर का प्रबंधन करते हैं, जो सुबह 6 बजे खुलता है। 

श्रीराम दरबार

श्री बजरंगबली

संपूर्ण देश में मनाए जानेवाले गणेशोत्सव के दसों दिन मंदिर को बड़ी भव्यता से सजाया जाता है और मंदिर परिसर में मानो मेले जैसा माहौल बना होता है। गणेशोत्सव के नौवें दिन एक विशालकाय मोतीचूर के लड्डू का भोग भगवान को चढ़ाया जाता है और शाम के समय मंदिर आनेवाले भक्तों को वितरित किया जाता है । 

मंदिर में ठीक इसी समय भक्त अपने नए वाहन सबसे पहले मंदिर में पूजा करवाके शुभारंभ करते है।

श्री गणेश की स्वयम्भू मूर्ति की अलावा मंदिर के पूर्व(मुख्य) द्वार से दाईं तरफ शिव लिंग और शिव रूप भगवान कालभैरव विराजे हैं। वहीं दक्षिण दिशा में श्री कृष्ण और राधा रानी की सुंदर सफेद संगमरमर के विग्रह है। पश्चिम दिशा में भगवान श्री राम, लक्ष्मण माता सीता और बगल में श्री हनुमान जी के विग्रह है प्रतिष्ठित है। 

महालक्ष्मी मंदिर:



मंदिर के दाहिनी ओर एक माँ महालक्ष्मी मंदिर तीन मंजिला इमारत में स्थित है । मंदिर में महालक्ष्मी की भव्य मूर्ति है जिसे राजस्थानी कलाकारों द्वारा संगमरमर से बनाया गया था। यह नागपुर की चुनिंदा महालक्ष्मी मंदिरों में से एक है। मंदिर में मूर्ति समक्ष बहुत काफी मात्रा में जगह होने के कारण यहां भक्तगण यहां ध्यान लगाते है ।

दुनिया भर के कई प्रमुख लोग अपनी परियोजनाओं और साहसिक कार्यों को शुरू करने से पहले मंदिर में आए और पूजा की। यदि आप नागपुर की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो टेकडी मंदिर में वृघ्नहर्ता के आशीर्वाद के साथ अपने दिन की शुरुआत करने का प्रयास करें।

कैसे पहुंचे :

श्री गणेशटेकड़ी मंदिर मध्य नागपुर रेलवे स्टेशन के बिल्कुल समीप स्थित है और अन्य रेलवे स्टेशन जैसे अजनी और इतवारी रेलवे स्टेशन से 5 और  3 किमी की दूरी पर है जहाँ से आपको 10 से बीस मिनट का समय लगेगा टैक्सी, ऑटो रिक्शा या बस द्वारा ।

नागपुर के बाबासाहब अम्बेडकर एयरपोर्ट से तकरीबन 20 किमी की दूरी आपको नागपुर मेट्रो से लगबग आधा घण्टे में श्री गणेश टेकड़ी से सबसे निकटम मेट्रो स्टेशन आधा घण्टे में पहुंचा देती है ।

तो जयकारा लगाइए -

 "गणपति बप्पा मोरया" 

🙏🕉️🌿🌷🚩🔱

✒️ Swapnil. A


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


मंदिर के विषय मे और जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करें:-





रविवार, 30 अप्रैल 2023

दगडूशेठ गणेश मंदिर, पुणे, महाराष्ट्र

इतिहास

डुगडूशेठ दम्पत्ती पुणे में एक मिठाई की दुकान चलाते थे। आगे चलके वे एक सफल व्यापारी बने और आज भी उनकी मूल दुकान अभी भी पुणे के दत्त मंदिर के पास "दगडूशेठ हलवाई स्वीट्स" के नाम से मौजूद है । फिर एक समय आते आते वे एक एक सफल व्यापारी और अमीर इंसान बन गए । अठारासौ के अंतिम दशक में प्लेग, हैजा महामारियां फैल रही थी जिसमे उनके इकलौते पुत्र की मृत्यु हो गई। इस त्रासदी के बाद उनसे एक एक गुरु ने भेंट की, जिन्होंने उनसे उनके पुत्र की याद में भगवान श्री गणेश को समर्पित एक मंदिर बनाने के आग्रह किया। अब जैसे उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था तोह उन्होंने अपने भतीजे गोविंदशेठ को गोद लिया जो उनकी मृत्यु के समय 9 वर्ष का था। गोविंदशेठ का जन्म 1891 में हुआ था। अभी जो मूर्ति आप मंदिर में दर्शन करते है वह मूल मूर्ति नहीं है, मूल मूर्ति अब अकरा मूर्ति चौक पर मौजूद है ।

दगदुशेठ पहले पहलवानी भी कर चुके थे और इसके प्रशिक्षक भी थे तोह उन्होंने पहलवानों के प्रशिक्षक केंद्र में भी एक मूर्ति की स्थापना की । इसे जगोबा दद तालीम के नाम से जाना जाता है । पुणे में एक चौक उनके नाम पर भी रखा गया है । इन्होंने बहुत सारे हिन्दू पर्वों को अपनी माता के साथ मिलकर संभाला । पुणे में लक्ष्मी रॉड का नाम लक्ष्मीबाई दगदुशेठ हलवाई के नाम पर रखा गया था । गोविंदशेठ की मृत्यु 1943 में हो गयी । उनके पुत्र दत्तात्रेय गोविंदशेठ का जन्म 1926 में हुआ । इन्होंने आगे चलकर एक नई गणेश मूर्ति की स्थापना की । इस मूर्ति को नवसाचा गणपति के नाम से जाना जाता है ।



मंदिर

मंदिर एक सुंदर निर्माण है और 100 से अधिक वर्षों का समृद्ध इतिहास समेटे हुए है। जय और विजय, संगमरमर से बने दो प्रहरी शुरू में ही सबका ध्यान खींच लेते हैं। निर्माण इतना सरल है कि बाहर से भी सुंदर गणेश प्रतिमा के साथ-साथ मंदिर में सभी कार्यवाहियों को देखा जा सकता है। गणेश की मूर्ति 2.2 मीटर लंबी और 1 मीटर चौड़ी है। इसे करीब 40 किलो सोने से सजाया गया है। गणेश के भक्त उन्हें सोना और पैसा चढ़ाते हैं और हर भेंट के साथ भगवान अमीर और अमीर होते जाते हैं। इसके अलावा, देवता को चढ़ाए गए नारियल के ढेर मंदिर की एक और विशेषता है। दैनिक पूजा, अभिषेक और गणेश की आरती देखने लायक है। गणेश उत्सव के दौरान मंदिर की रोशनी अद्भुत होती है। श्रीमंत दगडूशेठ गणपति ट्रस्ट मंदिर की देखरेख करता है। मंदिर शहर के केंद्र में स्थित है, स्थानीय खरीदारी बाजार भी पास का मंदिर है। ट्रस्ट द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों जैसे संगीत समारोह, भजन और अथर्वशीर्ष पाठ का आयोजन किया जाता है।

बुधवार पेठ, पुणे में स्थित श्री दत्ता मंदिर उनका आवासीय भवन था। दगडूसेठ का पोता गोविंदसेठ भी अपनी दयालुता और उदारता के लिए प्रसिद्ध था। पुणे में गोविन्द हलवाई चौक उनके नाम से प्रसिद्ध है।

बाद में उन्होंने हलवाई गणपति ट्रस्ट की स्थापना की। ब्रिटिश राज के दौरान बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक बैठकों पर रोक लगाने वाले आदेश से बचने के तरीके के रूप में गणेश उत्सव समारोह को एक सार्वजनिक रूप दिया।

मंदिर में हर साल एक लाख से अधिक तीर्थयात्री आते हैं। मंदिर के भक्तों में मशहूर हस्तियां और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शामिल हैं, जो वार्षिक दस दिवसीय गणेशोत्सव उत्सव के दौरान आते हैं। मुख्य गणेश मूर्ति का ₹10 मिलियन (US$130,000) का बीमा है। मंदिर 130 साल पुराना है। इसने 2022 में अपने गणपति के 130 साल पूरे किए हैं ।


दगडूशेठ मंदिर ट्रस्ट

श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई गणपति ट्रस्ट प्राप्त दान से परोपकारी कार्य करता है, और महाराष्ट्र में सबसे अमीर लोगों में से एक है। ट्रस्ट पुणे में कोंढवा में पिताश्री नामक एक वृद्धाश्रम का संचालन करता है। यह घर ₹15 मिलियन (US$190,000) की लागत से बनाया गया था और मई 2003 में खोला गया था। उसी इमारत में ट्रस्ट 400 निराश्रित बच्चों के लिए आवास और शिक्षा प्रदान करता है। ट्रस्ट द्वारा प्रदान की जाने वाली अन्य सेवाओं में गरीबों के लिए एम्बुलेंस सेवा और स्वास्थ्य क्लीनिक शामिल हैं। पुणे जिले के आदिवासी इलाकों में।

।। ॐ गं गणपतये नमः ।। 

🙏🕉️🌷🌿🚩🔱🙏

✒️ स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


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यमशिला का रहस्य

  भगवान जगन्नाथ की पृरी मंदिर सदियों से रहस्यों से भरा हुआ है। जगन्नाथ मंदिर को साक्षात वैकुंठ धाम भी कहा जाता है क्योंकि मंदिर में एक बार भ...