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मंगलवार, 23 जनवरी 2024

ऋंगी-शांता मंदिर, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश

श्रृंगवेरपुर, प्रयाग नगरी के समीप प्रभू श्री राम से पुनीत धाम चित्रकूट के निकट बना है। यह धाम रामायण की अनसुनी कथा और इनसे जुड़े हुए कुछ अंजाने पात्र की भूमि रही है। रामायण के शुरू से लेके अंत तक इस पावन भूमि का अहम योगदान रहा है।

पौराणिक इतिहास:


श्रृंगवेरपुर का इतिहास अति रोचक कथाओं के घटनाक्रम से भरा हुआ है। इन कथाओं का वर्णन वाल्मीकि रामायण, कालिदास के रघुवंशम्, भवभती के उत्तर रामचरित, वेदव्यास के महाभारत और तुलसीकृत श्रीरामचरितमानस में है। त्रेतायुग में ऋषि कश्यप के पुत्र विभंड ने घोर तपस्या की जिससे भयभीत हो देवराज इंद्र ने अप्सरा उर्वशी को तपस्या भंग करने के लिए भेजा। विभंड उर्वशी के से मोहित हो गए और इस मिलन से एक पुत्र का जन्म हुआ। यह पुत्र ऋंगी ऋषि कहलाये। ऋषि के मस्तक पर सींग जैसा उभार होने के कारण इनका नाम ऋंगी पड़ा। उन्होंने अपने कठोर तप से अनेक शक्तियां प्राप्त की। इन शक्तियों के उपयोग से राजा दशरथ और अंगदेश के राजा रोमपद को भीषण अकाल से मुक्त करवाया। 


ऋषि ऋंगी - माता शांता
ऋषि श्रृंगी - देवी शांता

     

         



श्रृंगवेरपुर की भूमी पर राजा दशरथ का पुत्रेष्ठि यज्ञ का साक्षी है। इस यज्ञ को ऋंगी ऋषि ने संपन्न करवाया था। फल स्वरूप अयोध्या में राजा दशरथ की तीन पत्नियों, कौशल्या से श्री राम, कैकई से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण शत्रुघ्न हुए। 


   


रामचरितमानस की एक चौपाई में ऋंगी द्वारा पूर्ण करवाये गए पुत्रेष्टि यज्ञ का वर्णन इस प्रकार है –


सृंगी रिषिहि बसिष्ठ बोलावा।

पुत्रकाम सुभ जग्य करावा।।



➡️ जगत शिरोमणि कृष्ण मंदिर, जयपुर, राजस्थान


दशरथ पुत्री शांता:


प्रभू श्री राम के पिता राजा दशरथ की एक पुत्री भी थी जिनका नाम था शांता। किंतु देवी शांता का उल्लेख वाल्मीकि कृत आद्य महाकाव्य रामायण में नहीं मिलता है। केवल ऋषि ऋंगी का वर्णन है। दक्षिण भारत के कतिपय पौराणिक आख्यानों में शांता को राजा दशरथ और उनकी पहली पत्नी कौशल्या की पुत्री होने के स्पष्ट विवरण मिलता है। माता कौशल्या की एक बहन वर्षिणी अंगदेश के राजा रोमपद की पत्नी थी। किंतु राज दम्पति के कोई संतान न थी। शांता को राजा दशरथ से वचन लेकर राजा रोमपद और रानी वर्षिणी ने गोद ले लिया था। राजा दशरथ की सहमति से ही शांता का विवाह ऋंगी ऋषि के साथ हुआ था। 




प्रभू श्री राम, पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण सहित राजसी जीवन त्याग इसी पावन धरती से वनवासी जीवन आरंभ किया था। रघुनंदन आर्य सुमंत्र द्वारा चलाये रथ पर बैठ, अयोध्या से गंगा के तट पर पहुंचे और केवट द्वारा नाव में बैठकर इस स्थान पर  पहली रात्रि बिताई। भ्राता भरत श्री राम को मनाकर वापिस अयोध्या लें चलने के लिए प्रथम बार यहीं रुके थे और एक रात्रि बिताई थी। 


रामचरितमानस में इसका वर्णन इन चौपाईयों में मिलता है –


  1. सीता सचिव सहित दोऊ भाई।

सृंगबेरपुर पहुंच जाई।।


  1. सिय सुमंत्र भ्राता सहित।

कंद मूल फल खाई।।


  1. सयन कीन्ह रघुबंसमनि।

पाय पलोट त भाई।।


श्रृंगवेरपुर धाम महत्त्व:


  • श्रृंगवेरपुर, प्रभू श्री राम के परम मित्रों, भक्तों में से एक निषादराज का गढ़ रहा है। निषादराज का महल भी यही बंजर अवस्था मे है।


  • इस पावन भूमि को इसके पौराणिक इतिहास के कारण संतान तीर्थ भी माना जाता है। 


  • लंका से लौटते समय यहां निषादराज को श्री राम के लंका से पुष्पक विमान पर आने की सूचना भी मिली थी जिसे उन्होंने भरत तक पहुंचाया था।


  • देवी सीता और केवट ने यहीं निषादराज गुहा और गंगा जी से आभार प्रकट किया था।


➡️ प्रभु श्री राम का ननिहाल - चंदखुरी, रायपुर, छत्तीसगढ़

 

श्रृंगवेरपुर मंदिर कैसे पहुँचे:


श्रृंगवेरपुर पहुँचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन प्रयागराज रेलवे स्टेशन है। प्रयागराज से श्रृंगवेरपुर की दूरी 32 किमी है। इसे प्रयागराज से लखनऊ हाईवे से आया जा सकता है। अयोध्या से भी श्रृंगवेरपुर 170 किमी की दूरी पर है। निकटतम हवाई अड्डा प्रयागराज का अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा है।


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


बुधवार, 1 नवंबर 2023

निकुंभला देवी मंदिर, बैतूल, मध्यप्रदेश


माता निकुंभला कौन है?


सबसे पहले यह ध्यान में रहना ज़रूरी है कि माता निकुंभला शक्ति रूपों में कोई अलग रूप नहीं हैं और ना ही शाक्त परंपरा के बाहर माने जाने वाले रूपों में से एक है। देवी का हर अवतार शाक्त परंपरा के अंतर्गत ही देवी मार्कण्डेय पुराण और दुर्गासप्तसती में बताए गए रूपों में सूचित हैं।  माँ निकुंभला माता पार्वती के योग निद्रा रूप से निकला हुआ तीव्र अघोर रूप है। यह देवी रूप की पूजा केवल अघोरी या तंत्र के उच्चतम साधक ही करते है। सबसे उग्र और सबसे भयंकर स्वरूपों में माँ के इस रूप को केवल तंत्र और अघोर साधना से प्रसन्न किया जा सकता है।


सिंह रूपी माँ निकुंभला

माँ निकुंभला का प्रादुर्भाव:


शास्त्रों के अनुसार, माँ निकुंभला का अवतरण भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार के पश्चात की घटना है। नरसिंह अवतार लेने और असुर हिरण्यकश्यप का अंत करने के बाद भी नारायण का क्रोध शांत नहीं हो रहा था तब भगवान शिव ने शरभ अवतार धारण किया था।। शरभ अवतार आधा सिंह और और आधा पक्षी का रूप था। लंबे समय तक दोनों देवों में युद्ध चलता गया किंतु परिणाम कुछ नहीं निकला। शिव और नारायण की शक्ति एक दूसरे के बराबर थी। ब्रह्मांड के अस्तित्व पर सवाल आ गया था। 


तब समस्त देवी-देवताओं ने माँ पार्वती से प्रार्थना की। माँ भक्तों की प्रार्थना पर अपने योग निद्रा रूप से निकुंभला रूप प्रकट किया है। योग निद्रा रूप से माता ने प्रचंड गर्जना कर दोनों देवों को स्तब्ध कर दिया और इससे दोनों शांत हो अपने दैवीय रूप में लौट आए।


माँ पार्वती का निकुंभला रूप भगवान विष्णु के नरसिंह और भगवान शिव के शरभ अवतार की संयुक्त शक्ति है। इसीलिए माता यह करने में सफल हो पाई। इस नृसिंहनी रूप में माँ अच्छे और बुरे के संतुलन का प्रतिनिधित्व करती हैं। 


माता निकुंभला को कई सुंदर नामों से पुकारा जाता है। यह नाम प्रत्यंगिरा, अपराजिता, सिद्दलक्ष्मी, पूर्ण चंडी और अर्ध वर्ण भद्रकाली है। 

सोमवार, 15 मई 2023

प्रभु श्रीराम का ननिहाल, चंदखुरी, छत्तीसगढ़

छतीसगढ़ के आदिवासियों से भरे वन क्षेत्र के पास दुनिया से दूर है एक प्राचीन मंदिर। यह मंदिर प्रभु श्री राम की माता कौशल्या का है। वाल्मिकी रामायण और रामचरितमानस के अनुसार माता कौशल्या के पिता राज्य इसी क्षेत्र में था।छतीसगढ़ी आदिवासी आज भी इसे दक्षिण कौशल प्रदेश मानते हैं।

मंगलवार, 2 मई 2023

रामटेक श्रीराम मंदिर, नागपुर

 इतिहास:

रामटेक में एक प्राचीन राम मंदिर देखा जा सकता है। रामटेक को इसका नाम इसलिए मिला क्योंकि ऐसा माना जाता है कि हिंदू नायक राम ने अपना वनवास रामटेक में बिताया था और वहीं विश्राम किया था। हिंदू ऋषि अगस्त्य का आश्रम हिंदू परंपरा के अनुसार रामटेक के करीब कहा जाता है। नागपुर के मराठा राजा रघुजी भोंसले, जिन्होंने छिंदवाड़ा में देवगढ़ के किले को हराया था, ने 18वीं शताब्दी में वर्तमान मंदिर का निर्माण किया था।

 यह पवित्र स्थल संस्कृत कवि कालिदास से भी जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि मेघदाता को रामटेक पहाड़ियों में कालिदास ने लिखा था।

रामटेक मंदिर, जिसे राम धाम, राम मंदिर और रामटेक किला मंदिर भी कहा जाता है, में व्रत लेने पर व्यक्ति का जीवन धन्य हो जाएगा। मंदिर समुद्र तल से 345 मीटर ऊपर स्थित है और इसका 600 साल का इतिहास है। 350 फुट लंबी ओम संरचना जो हनुमान, साईं बाबा और गजानन महाराज की मूर्तियों से सजी हुई है और रामायण के विवरण हैं जो इसे इतना प्रसिद्ध बनाती है। भगवान राम के 'पादुका' (दिव्य पैर) यहां पूजनीय हैं।

इन्हें भी देखे:

-कोराडी माता मंदिर, नागपुर

 शांतिनाथ का जैन मंदिर:

रामटेक अपने प्राचीन जैन मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें जैन तीर्थंकरों की कई मूर्तियाँ हैं। सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ की मुख्य मूर्ति लोककथाओं से घिरी हुई है। यह 1993, 1994, 2008, 2013 और 2017 में प्रसिद्ध हो गया, जब आचार्य विद्यासागर, एक प्रसिद्ध दिगंबर जैन आचार्य, रामटेक चले गए और बरसात के मौसम में चार महीने के चातुर्मास के लिए अपने संघ के साथ वहाँ रहे। उनके प्रभाव से एक विशाल जैन मंदिर का निर्माण हुआ। गोंड राजाओं ने सोलहवीं शताब्दी तक इस क्षेत्र पर शासन किया, जब नागपुर के भोंसले शासकों ने नियंत्रण पर कब्जा कर लिया।

संस्कृत कवि कालिदास का भी इस स्थान से संबंध है। माना जाता है कि मेघदाता को रामटेक पहाड़ियों में कालिदास ने लिखा था।

सिंदूर बावली किले के मंदिर के ठीक बगल में, पार्किंग स्थल के करीब स्थित है। हालांकि इस लोकेशन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। यहां तक कि गूगल मैप्स पर भी हम उसका पता नहीं लगा पाए। हमने इस बाओली को केवल क्षेत्र की खोज करके खोजा। मैं जिस पर्यटक से मिला उसके अनुसार, माता सीता धार्मिक अनुष्ठानों और स्नान के लिए सिंदूर बावली का उपयोग करती थीं।

 जब भी आप भारत की शीतकालीन राजधानी की यात्रा करें तो पूरे उत्साह के साथ इस कम प्रसिद्ध रामधाम की यात्रा अवश्य करें ।

मंदिर दर्शन का सबसे उत्तम समय सर्दीयों के महीने का होता है जब नागपुर, विदर्भ क्षेत्र का मौसम घूमने फिरने के अनुकूल मन जाता है। 

पहुंचे कैसे:

श्री राम रामटेक मंदिर की दूरी नागपुर रेलवे स्टेशन से 55 किमी दूर है और टैक्सी या बस द्वारा 2 घण्टे का समय पहुंचने में लगता है ।

नागपुर विमानतल से श्री राम रामटेक मंदिर लगभग 80 किमी दूर है । बस और टैक्सी के सेवा सदैव सेवा में रहती है ।

।। जय श्री राम ।। 🙏🌷🚩🙏

✒️Swapnil. A



Sindoor Baoli

Aereal Top view







मंदिर के बारे में अधिक जानकारी के लिए इन लिंक्स पर क्लिक कीजिए:-




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