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बुधवार, 1 नवंबर 2023

निकुंभला देवी मंदिर, बैतूल, मध्यप्रदेश


माता निकुंभला कौन है?


सबसे पहले यह ध्यान में रहना ज़रूरी है कि माता निकुंभला शक्ति रूपों में कोई अलग रूप नहीं हैं और ना ही शाक्त परंपरा के बाहर माने जाने वाले रूपों में से एक है। देवी का हर अवतार शाक्त परंपरा के अंतर्गत ही देवी मार्कण्डेय पुराण और दुर्गासप्तसती में बताए गए रूपों में सूचित हैं।  माँ निकुंभला माता पार्वती के योग निद्रा रूप से निकला हुआ तीव्र अघोर रूप है। यह देवी रूप की पूजा केवल अघोरी या तंत्र के उच्चतम साधक ही करते है। सबसे उग्र और सबसे भयंकर स्वरूपों में माँ के इस रूप को केवल तंत्र और अघोर साधना से प्रसन्न किया जा सकता है।


सिंह रूपी माँ निकुंभला

माँ निकुंभला का प्रादुर्भाव:


शास्त्रों के अनुसार, माँ निकुंभला का अवतरण भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार के पश्चात की घटना है। नरसिंह अवतार लेने और असुर हिरण्यकश्यप का अंत करने के बाद भी नारायण का क्रोध शांत नहीं हो रहा था तब भगवान शिव ने शरभ अवतार धारण किया था।। शरभ अवतार आधा सिंह और और आधा पक्षी का रूप था। लंबे समय तक दोनों देवों में युद्ध चलता गया किंतु परिणाम कुछ नहीं निकला। शिव और नारायण की शक्ति एक दूसरे के बराबर थी। ब्रह्मांड के अस्तित्व पर सवाल आ गया था। 


तब समस्त देवी-देवताओं ने माँ पार्वती से प्रार्थना की। माँ भक्तों की प्रार्थना पर अपने योग निद्रा रूप से निकुंभला रूप प्रकट किया है। योग निद्रा रूप से माता ने प्रचंड गर्जना कर दोनों देवों को स्तब्ध कर दिया और इससे दोनों शांत हो अपने दैवीय रूप में लौट आए।


माँ पार्वती का निकुंभला रूप भगवान विष्णु के नरसिंह और भगवान शिव के शरभ अवतार की संयुक्त शक्ति है। इसीलिए माता यह करने में सफल हो पाई। इस नृसिंहनी रूप में माँ अच्छे और बुरे के संतुलन का प्रतिनिधित्व करती हैं। 


माता निकुंभला को कई सुंदर नामों से पुकारा जाता है। यह नाम प्रत्यंगिरा, अपराजिता, सिद्दलक्ष्मी, पूर्ण चंडी और अर्ध वर्ण भद्रकाली है। 


"रावण की कुल देवी"


माँ निकुंभला राक्षस राज रावण के परिवार की कुल देवी भी थी। रावण से अधिक उसका पुत्र मेघनाद माँ निकुंभला का भक्त और परम् उपासक था। माता के आशीर्वाद के कारण उसने इंद्र देव पर विजय पाकर इंद्रजीत कहलाया। मेघनाद के ऊपर माता की बड़ी कृपा दृष्टि थी क्योंकि वह यज्ञ, अनुष्ठान किया करता था। इसी घोर साधना के कारण उसने लक्ष्मण जी को पहले नागपाश से और फिर विषेले बाणों से मूर्छित कर दिया था। 


मेघनाद को परास्त तब तक नहीं किया जा सकता था जब तक उसके माता के लिए करवाये जा रहे यज्ञ को अवरोधित य्या भंग ना किया जाए। लंका में बने माँ निकुंभला देवी के मंदिर की जानकारी स्वयं रावण और उसके परिवार के अलावा और किसीको नहीं थी। इस बात की जानकारी विभीषण ने भगवान राम को दी और वानरों के समूह के साथ लंका के गुप्त मंदिर में जहां मेघनाद यज्ञ कर रहा था भंग कर दिया। परिणाम स्वरूप अगले दिन युद्ध में मेघनाद मारा गया।


"माँ निकुंभला देवी लंका की रक्षक देवी थी। 

रावण के वंशजों ने देवी की चरण पादुका लंका ले जाकर मंदिर बनवा दिये थे।"

 

मंदिर प्रवेश द्वार एवं परिसर


इतिहास:


 शास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग के समय बैतूल को बेताल नगरी कहा जाता था। रामायण काल मे यह रावण पुत्र मेघनाद के अधीन होने के कारण बेताल नगरी पड़ा। इसे दण्डकारण्य का हिस्सा माना जाता था। इसी बेताल नगरी में रावण पुत्र मेघनाद ने तीन साधनाएं की थी। प्रथम माँ अपराजिता, दूसरी माँ प्रत्यानगिरा और तीसरी माँ निकुंभला की। बेतुल से छिंदवाड़ा जिले के पातालकोट नाम से रहस्यमय धाम है। वहीं से एक गुप्त और गहरी सुरंग धरती के अंदर से होते हुए पाताल लोक तक जाती है।


 इसी मंदिर स्थली पर यज्ञ-तपस्या करने पर माता निकुंभला ने प्रसन्न हो कर मेघनाद को दर्शन देकर उसे एक दिव्य रथ प्रदान किया था जिस पर बैठकर वह आगे चल कर श्री राम वानर सेना के साथ युद्ध मे उतरा था। 


माँ निकुंभला




बैतूल और आस-पास बसे आदिवासी रावण और मेघनाद की पूजा भी करते हैं। हर वर्ष चैत्र महीने में होली पश्चात मेघनाद मेला भी आयोजित किया जाता है। 


➡️ माँ बम्बलेश्वरी सिद्धपीठ, डोंगरगढ़, छत्तीसगढ़

माँ निकुंभला मंदिर एवं रहस्य:


बैतूल जिले के मुख्यालय से 6 किलोमीटर दूर बैतूल बाजार में भवानीपुर में स्थित है माँ निकुंभला का देश के दो मंदिरों में से एक। 

मंदिर की देख-रेख बब्लू बाबा करते है। मंदिर और मंदिर परिसर में आस पास रात के समय रुकने की मनाही है। केवल तंत्र साधकों को रुकने की इजाज़त है। 


बैतूल के निवासियों के अनुसार माँ की असीम कृपा के कारण आज तक शहर में कभी कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आयी और ना ही दंगे आदि जैसी घटनाएं घटित हुई हैं। यह सब पिछले 150 वर्ष के बैतूल शहर के रिकॉर्ड में दर्ज है। 


देवी विग्रह


निकुंभला मंदिर कैसे पहुंचे:


बेतुल बाजार से बेतुल रेलवे स्टेशन किमी है। बैतूल रेल मार्ग से पहुंचने के लिए नागपुर और भोपाल रेलवे स्टेशन सबसे करीबी स्टेशन। दिल्ली-हैदराबद-चेन्नई रूट पर अनेकों गाड़ियों चलती है। इन गाड़ियों से बैतूल पहुंचा जा सकरा है।


मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल का राजा भोज हवाईअड्डा और नागपुर का नागपुर हवाई अड्डा सबसे करीबी हवाई अड्डा है।


 


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)

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