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शनिवार, 18 नवंबर 2023

ककनमठ मंदिर का रहस्य, मोरेना, मध्यप्रदेश

मध्यप्रदेश के मोरेना जिले में लह-लहाते बाजरे के खेतों के बीच बसा है मध्य भारत के चुनिंदा रहस्यमय मंदिरों में शायद सबसे अनूठा मंदिर। यह है ककनमठ मंदिर जो अपने अंदर कई अनसुलझी गुत्थियां बांधे बैठा है। 




इतिहास:


 ककनमठ मंदिर का निर्माण कच्छपघट वंश के राजा कीर्तिराज ने सन् 1015-1035 के बीच करवाया था। इसका प्रमाण ग्वालियर के सास-बहू मंदिर में मिलता है। उमापति महादेव को समर्पित इस प्राचीन मंदिर को राजा सूरजपाल ने अपनी रानी ककनावती के नाम पर बनाया था किंतु इसके ऐतिहासिकता पर आज भी संशय बना हुआ है। वहीं इसके नाम के पीछे एक दूसरा अर्थ भी है। इतिहासविदों के अनुसार ककनमठ का असल नाम कनकमठ था जो अलग-अलग करने पर कनक यानी सोना मठ यानी (शिव मंदिर) कहा जाने लगा।




मध्यकाल में राजा दुर्गाप्रसाद ने मंदिर का पुनरुथान करवाया था और इसकी स्मृति में एक स्तम्भ भी बनवाया था। तोमर वंश के राजा डुंगर के काल में सन् 1497 में देकाना नामक एक आगंतुक के मंदिर आगमन भी का किस्सा भी मंदिर के एक स्तम्भ में दर्ज है। 





ग्वालियर और आगरा जैसे सत्ता के केंद्रों के बीच बसे ककनमठ मंदिर को सबसे पहले हमारे देश के वामपंथी इतिहासकारों ने एतिहासिक और आध्यात्मिक धरोहरों की सूची से दूर कर दिया और रही बची कसर हिंदुओं ने भी इस रहस्यमय मंदिर की अवहेलना कर पूरी कर दी। और सदियों तक इसी प्रकार मंदिर गुमनामी में रहा।


 इस समय मंदिर का भारतीय पुरातत्व विभाग की निगरानी में जीर्णोद्धार किया जा रहा है। मंदिर को विशेष राष्ट्रीय स्मारकों की सूची में भी स्थान दिया गया है।


गर्भ-गृह शिवलिंग


ककनमठ मंदिर:


हज़ार वर्ष पुराना ककनमठ मंदिर गुर्जर-प्रतिहार मंदिर शैली में बना है। मंदिर देखने पर हैरत कर देने वाली बात है इसके निर्माण में किसी प्रकार के चुना, गारू मिट्टी से पत्थर चिपकाने के लिए बने लेप का इस्तेमाल का ना होना। मंदिर की दीवारों की ईंट एक दूसरे के ऊपर साधरण तरह से रखें हुए हैं और इसके विपरीत भौतिकी के नियमों को पिछली10 सदियों से चुनौती देता हुआ मंदिर यूं का यूँ खड़ा है। हालांकि ऐसा नहीं है कि मंदिर पूर्ण रूप से बिना क्षति हुए अपनी कथा सुना रहा हो, मंदिर के मुख्य मंदिर को सहायता देने के लिए प्राचीन समय में अगल बगल में तीन सहायक मंदिर भी थे किंतु यह मंदिर दुर्भाग्यवश भूकंप और मुग़ल इस्लामी काल के आक्रमण की भेंट चढ़ गए। आज उन सहायक मंदिरों की मूर्तियां, स्तम्भों और दीवारों के केवल अवशेष मात्र देखने के लिए बचे हैं।





ड्रोन से ली गयी तस्वीरें देखने पर साफ समझ आता है की मंदिर का 30 मीटर का शिखर मानो आकाश में तैर रहा हो। मंदिर भव्य अलंकृत पीठ पर बना है। मंदिर भवन में एक बरोठा, गूढ़ मंडप और मुख मंडप है। मुख्य मंदिर में एक चक्करदार पथ है जिसके तीन भाग है। गूढ़ मंडप में चार-चार स्तम्भों के झुंड है। यह स्तम्भों का झुंड बरोठा से गठबंधित है। 


 पुरातत्व विभाग ने मंदिर की लगातार खुदाई की और पाया कि मंदिर की आधार शिला काफी गहरी है जिससे मंदिर आज भी अत्यंत दृढ़ और मजबूती से खड़ा हुआ है। मंदिर में एक 




मंदिर के गर्भ गृह में जानेवाले कमरे के पहले, बाहर दरवाजे की दहलीज में बनी हुई सीढ़ियों में से एक सीढ़ी  के मध्य में यहां आने वाले भक्त एक पहियेनुमा चक्र सपाट सीढ़ी में बनाया हुआ देखेंगे। किंतु घुमाने की कोशिश करने पर भी यह नहीं फिरता। पुरातत्व विभाग के कर्मचारी बताते हैं कि इस चक्के का कंट्रोल उस गुप्त सुरंग के दरवाजे की ओर लेके जाती है जिससे पास ही एक प्राचीन हनुमान मंदिर है। 


पास आने पर समझ आता है कि मंदिर शत-विक्षित हालात में आज भी जीवित है। अधिकतर मूर्तियाँ और नक्काशियां नष्ट की जा चुकी है। इनको नष्ट करने वाले और कोई नहीं इस्लामी आक्रांता रहे है। इसमें प्रमुख नाम औरंगज़ेब का आता है जिसने किंचित विचार न करते हुए हिंदुओं की आस्था पर विराम लगाने में कोई कसर ना छोड़ी। 

मुख्य गर्भ गृह में विराजित शिवलिंग की 2.5 फ़ीट का है किंतु लिंग की गहराई की कोई सीमा नहीं है।


दो भव्य सिंहों की मूर्तियां मंदिर की मुख्य द्वार पर पहले

खड़ी मुद्रा में रखी हुई थी जो अब ग्वालियर के संग्रहालय में बाकी अवशेषों में सुंरक्षित रखी है।


ककनमठ मंदिर के रास्ते में ही थोड़ा पहले बजरँगबली का 500 वर्ष पुराना दर्शनीय मंदिर दिखता है जिसे यहां के पुजारी और गांववासी तुलसीदास जी के द्वारा स्थापित बताते है। यह बजरँगबली की मूर्ति स्वयम्भू है ऐसी मान्यता है। इस मंदिर के नीचे एक अति गुप्त सुरंग है जो सीधा ककनमठ मंदिर से जुड़ती है।


                                                            


ककनमठ मंदिर रहस्य:


● मंदिर को भूतों ने केवल एक रात में भगवान शिव के आदेश पर बनाया था पर मंदिर पूरा बन ना सका क्योंकि वे भूत उस रात की सुबह ब्रह्म महूरत में निर्माण कार्य अधूरा छोड़ भाग गए।


● मंदिर बनाने में इस्तेमाल किये गये लाल-भूरे पत्थरों मोरेना जिले में पाए नहीं जाते।


● गांववासी मानते हैं की अगर 9 काने दूल्हे और केवल नाई जाती के बारात लेकर इस मंदिर के सामने से गुजरें तो मंदिर नीचे ढह जाएगा। 


 वैज्ञानिकों और उनकी टीमों ने नेक-अनेक खोज करने मंदिर के इस प्राचीन रहस्यों को समझना चाह





 आज के तर्कशास्त्रियों का विरोधाभास और दोगलेपन की कोई सीमा नहीं ही। इनके अनुसार भूतों द्वारा मंदिर बनाने की बातें केवल हिंदुओं द्वारा फैलाया अंधविश्वास मात्र है किंतु मंदिर में उपयोग में लाये लाल पत्थर के विषय मे इनकी ज़बान और मस्तिष्क को लकवा मार जाता है।







आवश्यक सूचना:


मंदिर में संध्या 5 बजे के बाद सरकार आदेशानुसार य

रुकना या प्रवेश करना सख्त मना है।


 ककनमठ मंदिर कैसे पहुँचे:


ककनमठ मंदिर पहुँचने के लिए सिहोनिया से मोरेना रेलवे स्टेशन की दूरी 35 किमी की है जो 1 घण्टे में हॉस्पिटल रोड से पूरी की जा सकती है। 


सिहोनिया से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा ग्वालियर हवाई अड्डा है। जिसकी दूरी 55 किमी है और सवा 1 घण्टे में तानसेन रोड के जरिये पूरी की जा सकती है। 

  

✒️स्वप्निल.अ

 

नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।







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