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बुधवार, 22 नवंबर 2023

लक्ष्मी नरसिंह स्वामी मंदिर, वारंगल, तेलंगाना

स्थानीय किंवदंती:

मल्लुर, वारंगल का यह क्षेत्र अपनी लाल मिर्च की पैदावार के लिए बहुत प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र से जुड़ी हुई प्रचलित किंवदंती है। एक गरीब किसान था जिसके पास धन बिल्कुल नहीं था सिवाय मिर्च के एक पौधे के। किसान ने उस पौधे से कुछ मिर्च उगाई और भगवान नरसिंह स्वामी की इस मूर्ति को अर्पित कर दी। तब से इस क्षेत्र की मिर्च उत्कृष्ट किस्म की और सबसे अधिक उगाई जाती है। 




भगवान नरसिंह देव

इतिहास:


नरसिंह स्वामी मंदिर का पहला प्रमाण देखा हुआ प्रमाण 6वी सदी का है जबकि मंदिर तकरीबन 5000 वर्ष पुराना है। अगस्त्य ऋषि ने इस पर्वत को हेमाचल् नाम दिया था। इसी स्थान पर भगवान राम ने खर और दूषण समेत 14000 राक्षसों का वध भी किया था। तथा यह क्षेत्र दशानन रावण ने अपनी बहन शूर्पणखा को उपहार स्वरूप भेंट दिया था।


 नरसिंह देव की मूर्ति के प्राकट्य की कथा कुछ रहस्यों से घिरी हुई है। हेमाचल की पहाड़ियों में भगवान की मूर्ति एक तेज प्रकाश के फैलने के बाद खोजी गयी थी। यह मंदिर मल्लुर के सागर गांव में स्थित और यहां के निवासी बताते हैं कि यहां पहले अनायस कभी भी आग लग जाया करती थी। फिर पंडितों ने बताया कि भगवान नरसिंह उग्र रूप लिए हुए और उनके तेज के कारण आग लग जाती थी। इसका निवारण भगवन को यःज्ञ- अनुष्ठान से प्रसन्न कर शांत किया गया और आग लगने की घटना पर विराम लगा।




लक्ष्मी नरसिंह स्वामी मंदिर


लक्ष्मी नृसिंह स्वामी मंदिर समुद्र से 1500 फ़ीट ऊपर हेमाचल की पहाड़ी पर घने पुत्तकोंडा जंगलों के बीच स्थित है। प्रभु दर्शन करने के लिए 150 सीढियां चढ़नी पड़ती है। नरसिंह मंदिर के रास्ते मे बजरँगबली को समर्पित मंदिर भी आता है। इस मंदिर ने बजरंगी शिखानजने के रूप में विराजे है। शिखानजने इस मल्लुर क्षेत्र के क्षेत्रपाल(राजा) कहलाये जाते हैं।




 

विष्णु अवतार नरसिंह की मूर्ति ज्वालामुखी पर्वत में स्वयम्भू प्रकट हुई थी। नरसिंह स्वामी कक विग्रह 9.2 फ़ीट का है। इस हैरत के देने वाली मूर्ति के अलावा संसार में ऐसी कोई देव प्रतिमा नहीं जो किसी मानव शरीर जैसी नरम हो। यहां के पुजारी बताते है कि इस मूर्ति में अगर कोई अपनी उंगली दबाता है तो उस गड्ढे के निशान उंगली उठाने पर साफ दिखाई देते है। मूर्ति के शरीर पर मानव जैसे बाल भी देखे जाते हैं। पूरे पर्वत की जांच-पड़ताल करने पर भी एक भी दूसरा कोई ऐसा पत्थर ना मिला जी भगवान की मूर्ति जितना मुलायम हो। यह ताज्जुब कर देने वाली बात आज भी शोधकर्ताओं के लिए बड़ा विषय बना हुआ है। 


भगवान की नाभी से पवित्र जल निकलता है। पुजारी नाभि की हल्दी का लेप से लगाये रहते हैं। भक्त इसे पवित्र तीर्थम मान अपने साथ ले जाते हैं। इसमें अनेक बीमारियाँ और पाप ठीक करने की चमत्कारिक शक्ति मानी जाती है। जब रानी रुद्रमादेवी एक भयानक रोग से ठीक नहीं हो पा रही थी तब एक वैद्य के सुझाव पे भगवान नरसिंह के दिव्य तीर्थम जल का सेवन कर ठीक हो गयी। इस जल को कोनेरू कहा जाता है। इसकी सुगंध चंदन जैसी होती है सो इसे "चंदना ध्वरम" कहा जाता है। विदेश से आनेवाले भक्त भी इसे अपने साथ बोतल में बंद कर ले जाते हैं। इस जल की धारा का अंत कहाँ होता है इसका आज तक ज्ञान किसी को ना हुआ।






मंदिर शाम 5 बजे के बाद बंद कर दिया जाता है क्योंकि भगवान नरसिंह स्वयं इस क्षेत्र में सिंह रूप में घूमते है। सिंह की दहाड़ यहां मंदिर अगल-बगल वन क्षेत्र में सुनी जाने का दावा किया गया है। 


राज्य सरकार ने इस विस्मय कर देनेवाले धाम को अभी तक ज़्यादातर बाहर की जनता को अनभिज्ञ कर रखा है। मंदिर आज भी तेलंगाना राज्य सरकार के कब्जे में है। मंदिर को जड़ी-बूटियों की जैव विविधता क्षेत्र की श्रेणी में रखा गया है। 


हर 12 वर्ष होनेवाले गोदावरी पुष्कर मेले का आयोजन किया जाता हैं। सन् 2003 के मेले में मंदिर का पुनरूत्थान किया गया था। 


 त्यौहार और उत्सव:


मंदिर में वैकुंठ एकादशी, श्री ब्रह्मोत्सवम और नरसिंह जयंती विशेषतः मनाई जाती है। लाखों की संख्या में इन तिथियों पर भक्त मंदिर नरसिंह भगवान की झलक पाने पहुँचते हैं। 

 

मंदिर गर्भ-गृह


मंदिर दर्शन समय सारिणी:


रविवार से शनिवार सुबह 8 से ही बजे तक शाम 3 से 5 बजे तक।

  

पूजा और सेवा का समय:


सुप्रभातम -  सुबह 4 से 4:30 बजे तक

बिंदर तीर्थम - सुबह 4:30 कम से 5 बजे तक 

बाल भोगम - सुबह 5 से 5:30 बजे तक 

निजभिषेकम- सुबह 5:30 से 6:30 बजे तक

अर्चन- सुबह 6:30 से 7:15 बजे तक

दर्शन- सुबह 7:15 से 11:30 बजे तक


मल्लुर अन्य मंदिर:


मल्लुर में लक्ष्मी नरसिंह मंदिर के अलावा मलाग्नि मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर, समक्का सरलम्मा मंदिर और श्री रामलिंगेस्वर मंदिर भी दर्शनीय है।


लक्ष्मी नरसिंह मंदिर कैसे पहुँचे:


मंदिर से सबसे निकट हवाई अड्डा हैदराबद का शमशाबाद हवाई अड्डा है। 


सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन मानुगुरु रेलवे स्टेशन है।


सड़क मार्ग से एडुलपुरम रोड पर वारंगल के लिए बहुत सारी बसे और प्राइवेट गाड़ियां उपलब्ध रहती है ।






✒️स्वप्निल. अ

(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)




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