तिलभांडेश्वर नाम मात्र से संकेत मिल जाता है मंदिर के खास होने का। महादेव की नगरी काशी के प्रमुख शिव मंदिरों में से एक है तिलभांडेश्वर मंदिर। विश्वनाथ मंदिर के दर्शन के बाद यह शिव मंदिर भोलेनाथ को ध्यान, साधना,जप के लिये काशी में सबसे उत्तम मंदिर है।
इस मंदिर के पीछे का इतिहास भी इसके नाम कि ही तरह अनोखा और अनसुना है।
पौराणिक इतिहास:
स्कंद पुराण सतयुग के काशी खण्ड में विभाण्ड नाम के ऋषि के बारे में उल्लेख है जो दक्षिण भारत से काशी आकर विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के स्थान पर काशी के मध्य वन में तपस्या करने लगे। ऋषि की तपस्या से प्रसन्न हो कर महादेव ने लिंग रूप में विराजित होने का वरदान दिया। त्रिपुरारी शिव ने विभाण्ड ऋषि की तपस्या का फल संपूर्ण मानव सजाती के उद्धार और मनोकामना पूरी करने के हेतु यही लिंग रूप में विराजित हो गए। प्रभू ने इसके साथ लिंग के हर दिन तिल-तिल कर बढ़ने का वचन भी विभाण्ड ऋषि को दे कर निःचिन्त किया।
कलयुग में शिवलिंग के प्राकट्य की एक कथा अनुसार इस भूमी पर तिल की खेती की जाती थी। फिर एक किसान को खेत जोतते समस्य एक शिला के होने का एहसास हुआ और फिर खुदाई करने पर महादेव स्वयम्भू शिवलिंग रूप में प्रकट हुए।
।। जितने कंकड़ उतने शंकर ।।
आधुनिक तिलभांडेश्वर मंदिर का इतिहास:
मंदिर 18 वी सदी में बनकर तैयार हूआ था। उस सदी के अंत मे अंग्रेजों ने भारत पर अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी थी। बनारस उस समय बंगाल प्रेसीडेंसी में आता था। अंग्रेज़ो ने शिवलिंग की कथा को वैज्ञानिक कसौटी पर परखने की कोशिश की। अंग्रेज अफसरों ने शिवलिंग को एक रात्रि के लिए शिवलिंग को रस्सी से नीचे बांध मंदिर के द्वार अच्छे से बंद कर देने के लिए पुजारियों को कहा जिससे तिल-तिल कर लिंग का आकार बढ़ने की बात मात्र मिथ्या बन कर रह जाये। किंतु अगली सुबह उनके संदेह असत्य साबित हो गए। रस्सी टूट गयी और अंग्रेज महादेव के समक्ष नतमस्तक हो गए।
वर्तमान में शिवलिंग का व्यास 3 फ़ीट और ऊंचाई 3 .5 फ़ीट है जो भारत के अन्य किसी भी शिव मंदिर के शिवलिंग के स्वरूप के समानांतर नहीं है।
तिलभांडेश्वर मंदिर महत्त्व:
तिलभांडेश्वर मंदिर बाहर से सिमटा हुआ नजर आता किंतु प्रवेश करने पश्चात् अंदर सीढ़ियों से प्रवेश करते हुए मंदिर का पूर्ण विस्तारित रूप दिखने लगे जाता है। मंदिर धरातल से 25 फ़ीट ऊपर है। तिलभांडेश्वर एक मठ भी है जिसमे साधु-सन्यासी रहते हैं।
मुख्य स्वयम्भू शिवलिंग के अलावा मंदिर में शिव कोटि स्तम्भ भी स्थापित है जिस पर आंध्र सी भक्तों ने 12 करोड़ बार भगवान का नाम अंकित किया है। इसकी 12 परिक्रमा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
मंदिर में कालभैरव,गणेश, दुर्गा, श्री राम सीता, विष्णु, हनुमान, कार्तिकेय स्वामी और शिव परिवार के विग्रह स्थापित हैं। इसके सफेद और काले पत्थर के शिवलिंग भी स्थापित हैं। श्रीदुर्गा का एक मंदिर एक अति प्राचीन पीपल वृक्ष के नीचे बना है। भगवान शिव की काले पत्थर से बनी मूर्ति ध्यान मुद्रा में बनी है।
भारत के किसी और मंदिर में हर देवता के गर्भ गृह के बाहर कभी भी उस देवता के आवाहन स्तोत्र या चालीसा नहीं देखने के लिए मिलता है किंतु तिलभांडेश्वर मंदिर यह अविस्मरणीय विशेषता है। यहां हर विग्रह के बाहर द्वार पर उस देवता का चालीसा अथवा मंत्र स्तोत्र लिखे हुए हैं।
अगर कोई मनुष्य शनि की साढ़े साती और ढैय्या से त्रस्त है तो इस मंदिर में आकर महादेव से प्रार्थना करने से उस पर शनि का प्रभाव का अंत या कम हो जाता है।
तिलभांडेश्वर मंदिर त्यौहार और महोत्सव:
अपने नाम अनुरूप तिल के महत्त्व के कारण मकर संक्रांति को भक्तों को भारी भीड़ दिखती है। महाशिवरातत्री और श्रावण महीने में भक्तों का तांता विशेष उपाय और अनुष्ठान करने के लिए आता है। साल के अन्य दिनों पर मंदिर में अधिकतर शांति बनी रहती है।
✒️स्वप्निल. अ
मंदिर समय सारिणी:
तिलभांडेश्वर सवेरे 4 बजे खुल जाता है और रात्री 10 बजे तक आगन्तुकों के लिए खुला रहता है।
✒️स्वप्निल. अ
(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)
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