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गुरुवार, 7 दिसंबर 2023

मुंडेश्वरी मंदिर,कैमूर,बिहार

पौराणिक इतिहास:

बिहार के मुंडेश्वरी देवी मंदिर का इतिहास सतयुग के समय का है और यहां सबसे पहले महादेव का शिवलिंग था और इसके पश्चात माता पार्वती का मुंडेश्वरी रूप में विराजमान हुई। मुंडेश्वरी मंदिर स्थान का सबसे पहले विवरण स्कंद पुराण में मिलता है। इसके अलावा मार्कण्डेय पुराण अनुसार यही वह स्थल है जहां माँ दुर्गा ने काली रूप धर, चंड-मुंड नामक राक्षस का वध किया था। राक्षस मुंड का सिर कैमूर को इस पहाड़ी पर गिरने की वजह से यह मंदिर मुंडेश्वरी मंदिर कहलाया।




प्राचीन इतिहास: 


मंदिर का सबसे पहला शिलालेख साल 389 ईसवी का बताया जाता है। इस बात का दावा यहां मिले शिलालेख में मिलता है। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध से बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध के बीच कई अंग्रेज़ अधिकारियों ने इस क्षेत्र का दौरा कर मंदिर की जानकारी जुटाई। मुंडेश्वरी माता का यह स्वर्ग से धाम भी देश के लाखों मंदिरों की  ही तरह मुग़लों और दिल्ली सलतनत के हमलों से बच ना पाया। देवी मुंडेश्वरी वराही रूप में है। वराही को काशी की रक्षिका देवी भी माना जाता है। 



         

कुल मिलाकर पौराणिक और प्राचीन इतिहास को मिलाकर देखें तो यह देवी मंदिरों में और भगवान शिव, विष्णु आदि देवों से भी अधिक पुराना है। 

मुंडेश्वरी मंदिर:


पँवरा पहाड़ी पर बसे मुंडेश्वरी मंदिर 608 फ़ीट की ऊंचाई पर स्तिथ है। मंदिर काले पत्थर से बना अष्टकोणीय आकर में है और दोनों बगल में बहुत सारे टूटे हुए अवशेष बिखरे पड़े है। मंदिर के पश्चिम में विशाल नंदी कि मूर्ति है और पूर्व मुख् किये हुए आज भी उसी तरह तटस्थ बैठे है। माता की मूर्ति में इतनी शक्ति होने के कारण मूर्ति को ज़्यादा समय ना देखने की हिदायत यहां के पुजारी आनेवाले भक्तों को दे देते हैं। माँ मुंडेश्वरी मंदिर में वराही रूप में विराजी है।



माता मुंडेश्वरी मूर्ति


देश के अनेकों मंदिर मुग़ल और इस्लामी शासन काल में  तहस-नहस कर दिए गए थे उनमें से एक माँ मुंडेश्वरी का यह मंदिर भी है। मात्र इतना फर्क है कि जहाँ अनेकों मंदिरों पर दरगाह और मस्जिदें बना दी गयी वहीं मुंडेश्वरी धाम मेन मंदिर ईश्वर की विशेष कृपा से बचा रहा। काफी सदियों तक आम जनता की दृष्टि से दूर रहने के कारण मंदिर 


ऐसी बलि और कहीं नहीं:


मंदिर में किसी भक्त की मनोकामना पूरी होने के पूर्व बलि देने का संकल्प लेके मनोकामना पूरी होने पर बकरे की बलि माता को समर्पित करते हैं। मुंडेश्वरी मंदिर में दी जाने वाली पशु बली में पशु के शरीर से रक्त की एक बूंद भी नहीं निकलती क्योंकि पशु को केवल माता की मूर्ति के नीचे रख कर कुछ चावल चढ़ा कर मंत्र बोले जाते हैं। कुछ ही क्षण में बकरा बेशुद्ध हो कर वापिस होश में आ जाता है मानो जैसे परलोक से लौटकर आया हो। 



यह केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि उससे कहीं ज़्यादा एक आध्यात्मिक रीति है जो 1700 वर्ष से मंदिर में निर्बाधित चली आ रही है। 


 पँवरा पहाड़ी के नीचे बने संग्रहालय में पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित मंदिर के अनेक अवशेष जैसे खंडित मूर्तियाँ, स्तम्भ इत्यादि संग्रहित है। इन मूर्तियों में भगवान, गणेश, कालभैरव, विष्णु, सरस्वती और महालक्ष्मी है। 


पंचमुखी शिवलिंग:


मंदिर महादेव का पंचमुखी शिवलिंग विराजमान है जो दिन के तीन पहर में तीन बार रूप बदलता है। जिस पत्थर से यह पंचमुखी शिवलिंग निर्मित किया गया है उसमे सूर्य की स्थिति के साथ साथ पत्थर का रंग भी बदलता रहता है।


  बलि की यह सात्विक परंपरा पुरे भारतवर्ष में अन्यत्र कहीं नहीं है I एक तरफ मंदिर तक पहुँचने के लिए  524 फीट तक सड़क मार्ग की सुविधा है जहाँ हल्की गाड़ियाँ जा सकती है I राजधानी पटना से प्रतिदिन कई वातानुकूलित एवं सामान्य गाड़ियाँ भभुआ के लिए प्रस्थान करती है। वाराणसी तथा पटना से रेल द्वारा  आने के लिए गया -मुगलसराय रेलखंड पर  स्थित भभुआ रोड (मोहनियाँ) स्टेशन उतरना होता है


पंचमुखी शिवलिंग




मुंडेश्वरी माता मंदिर सुबह 6 से 7 बजे तक दर्शन के लिये खुला रहता है।


बौद्ध मंदिर?

हाल ही के दशकों में मुंडेश्वरी मंदिर को एक बौद्ध मंदिर साबित करने की काफी कोशिशें नव-बौद्धों द्वारा मार्क्सवादी और वामपंथी विचारधारा और षड्यंत्र के चलते करने की कोशिश की गई है। अनर्गल तथ्य बिना किसी ईतिहासिक प्रमाण के चलते यह दिव्य रचना नव बौद्धों के हाथों में जाने से बची है। 


यहाँ मिली लगभग हर मूर्ति को भगवान का रूप बताने का प्रयास किया गया है। किंतु यह प्रामाणित नहीं हो पाया क्योंकि मंदिर पक्ष के पास इसके कुछ लिखित साक्ष्य संरक्षित मिले हैं। जैसे बौद्ध मंदिरों में जो शिलालेख मिलते है वह केवल पाली लिपी में होते हैं जबकि प्राचीन मंदिरों में ब्राह्मी लिपी, संस्कृत या तमिल भाषा का उपयोग होता है। 


यहां देवियों की मूर्ति जिनपे स्त्री संकेत स्पष्ट दिखाई देते हैं, नव बौद्ध इसे भी भगवान बुद्ध की कहकर मूर्खता करते है।


मुंडेश्वरी मंदिर कैसे पहुँचे:


कैमूर से निकटतम शहर वाराणसी और पटना है। वाराणसी से कैमूर 101 किमी है और साढ़े 3 घण्टे में पहुँचा जा सकता है। पटना से कैमूर की दूरी 223 किमी है। यह दूरी 6 घण्टे में पूरी की जा सकती है। 

पटना और वाराणसी रेलवे स्टेशन देश के बाकी शहरों अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। 

वाराणसी का लालबहादुर शास्त्री हवाई अड्डा और पटना हवाई अड्डा से देश के अन्य राज्यों के लिए विमान सर्व उपलब्ध रहती है।


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)



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