बांग्लादेश की राजधानी ढाका से 237 किमी दूर माँ शैल महालक्ष्मी भैरवी महापीठ स्तिथ है। यह शक्तिपीठ बांग्लादेश के महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिर और तीर्थो में सर्वोत्तम माना गया है। इस महापीठ के बनने और स्थापना की कथा दुर्लभ है।
"सनातन भूमि भारत से अलग होकर बने बांग्लादेश में हिंदू तीर्थों की कमी नहीं हैं। भारत में पश्चिम बंगाल की ही तरह बांग्लादेश में भी कुछ अति विशेष देवी मंदिर हैं। इस बात की जानकारी भारत वर्ष में भी कहीं मिलना नगण्य है।"
भारत से अलग होकर बने बांग्लादेश के सिलहट नगर का प्राचीन नाम श्रीहट्टा जाना जाता था। इसके पीछे का कारण कुछ विद्वानों द्वारा बताया गया है 'कंडता या हट्टा' जिसका अर्थ कंधा य्या गला(ग्रीवा) होता है। वहीं श्री'शैल' का अर्थ संस्कृत में पर्वत सो सिलहट नाम के अर्थ का मूल यह हो सकता है।
माँ शैल महालक्ष्मी मंदिर पौराणिक एवं आधुनिक इतिहास:-
भारतीय उपमहाद्वीप पर कुल 51 शक्तिपीठों में से चार आदि शक्तिपीठ हैं तो अठारह महापीठ हैं।
माँ शैल महालक्ष्मी मंदिर वह स्थान हैं जहां माता सती की ग्रीवा(गर्दन) गिरी थी। यह जानकारी 250 वर्ष पूर्व किसी को नहीं थी। फिर उस समय के एक जमींदार देवी प्रसाद ने सड़क का निर्माण कार्य शुरू करवाया। मजदूरों को सड़क निर्माण के दौरान एक पत्थर पर चोट लगने से रक्त प्रवाह होने लगा। फिर एक रात माँ ने जमींदार को स्वप्न में दर्शन दिए। माँ ने भैरवी महालक्ष्मी रूप में देवीप्रसाद को शक्तिपीठ होने का अवगत करवाया तथा ग्रीवा रूपी पत्थर की विशेष पूजा करने का आदेश दिया। ततपश्चात मंदिर निर्माण भी शुरू किया गया। माँ के आदेश अनुसार मंदिर में चारों दीवारों को बनवाकर छत खुली छोड़ दी गई ताकी माँ धूप,बारिश और ठंड महसूस कर सके।
श्री महालक्ष्मी भैरवी महापीठ में तीन बार नित्य पूजा की जाती है। चैत्र और शारदीय नवरात्रों में
सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथियों पर भक्तों का विशेष तांता देखा जाता है।
महापीठ के मुख्य गर्भ गृह में बलि नहीं दी जाती है। बलि चढ़ाने की व्यवस्था मंदिर के बाहर बनाई गई है। इसे 'निटटो पूजा' कहा जाता है।
माँ के इस दुर्लभ शक्तिपीठ में स्वर्ण के आभूषण श्रृंगार माँ की ग्रीवा पर नहीं चढ़ाए जाते। शिला ग्रीवा पर रोज़ एक नई साड़ी पहनाई जाती है।
माता की पवित्र ग्रीवा |
चैत्र और फाल्गुन नवरात्री की सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथियों पर मंदिर में भक्तों का तांता देखा जा सकता है। मंदिर सुबह 9 बजे दर्शन के लिए खोल दिया जाता है और रात्री 8 बजे बंद कर दिया जाता है।
माँ चामुंडा रक्तपीठ, देवास, मध्यप्रदेश
महादेव भैरव:
महालक्ष्मी भैरवी महापीठ में भैरव महादेव भी स्थापित है। मंदिर के पुजारी और स्थानीय निवासियों अनुसार महादेव भैरव के पूर्वी कोने में होने की जानकारी संत ब्रह्मानंद गिरी महाराज और उनके शिष्य को स्वप्न में पता चली थी।
महादेव भैरव महालक्ष्मी पीठ से पश्चिम की ओर एक पहाड़ी पर विराजित हैं। ब्रह्मानंद गिरी महाराज जी के एक शिष्य आचार्य शंकर 13वी सदी के एक महान संत थे। वे दशनामी सम्प्रदाय के संत थे। महादेव भैरव के स्वप्न मे बताई जगह को खोज निकालने के पूर्व उन्होंने समाधी ले ली। उन्हीं के साथ उनके गुरु ब्रह्मानंद गिरी जी एक और महान शिष्य और बाद में संत हुए - जिनका नाम बिरजानाथ न्यायबगीश था।
लिंग रूपी भैरव |
संत बिरजानाथ के दो शिष्य थे। कैलाश चन्द्र भट्टाचार्य और कृष्ण कुमार भट्टाचार्य। सन् 1286 के माघ महीने की एक रात्री संत बिरजानाथ को विचित्र स्वप्न में उनके गुरु ब्रह्मानंद जी महाराज उसी टीले पे चढ़ते हुए दिखे। उनके साथ उनके बिरजानाथ के शिष्य भी इस इस कार्य में लगे हुए ऐसा दृश्य वे देखते हैं। स्वप्न में गुरुदेव ब्रह्मानंद कहते हैं "यह वही स्थल है जहां प्रभु दर्शन देंगे"। खुदाई पर भगवान शिव का लिंग प्रकट हो जाता है।
संत जी के दोनों शिष्यों को भी ईश्वर इकच्छा से वही स्वप्न उसी रात्री को आया। संत बिरजानाथ तुरंत अपने शिष्यों और अनुयायियों के साथ जाकर शिवलिंग खोज निकाले।
नोट: पाँच अगस्त 2024 में बांग्लादेश में राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल के बाद मंदिरों पर हमले शुरू हो गए। इस समय श्री महालक्ष्मी भैरवी महापीठ मंदिर का क्या हाल है इस बात की कोई जानकारी नहीं मिल पाई है। जो दर्शक इस लेख को पढ़ रहे हो, अगर उन्हें कोई जानकारी है तो कृपया अवश्य कमेंट कर बताएं।
- स्वप्निल. अ
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