श्रृंगवेरपुर, प्रयाग नगरी के समीप प्रभू श्री राम से पुनीत धाम चित्रकूट के निकट बना है। यह धाम रामायण की अनसुनी कथा और इनसे जुड़े हुए कुछ अंजाने पात्र की भूमि रही है। रामायण के शुरू से लेके अंत तक इस पावन भूमि का अहम योगदान रहा है।
पौराणिक इतिहास:
श्रृंगवेरपुर का इतिहास अति रोचक कथाओं के घटनाक्रम से भरा हुआ है। इन कथाओं का वर्णन वाल्मीकि रामायण, कालिदास के रघुवंशम्, भवभती के उत्तर रामचरित, वेदव्यास के महाभारत और तुलसीकृत श्रीरामचरितमानस में है। त्रेतायुग में ऋषि कश्यप के पुत्र विभंड ने घोर तपस्या की जिससे भयभीत हो देवराज इंद्र ने अप्सरा उर्वशी को तपस्या भंग करने के लिए भेजा। विभंड उर्वशी के से मोहित हो गए और इस मिलन से एक पुत्र का जन्म हुआ। यह पुत्र ऋंगी ऋषि कहलाये। ऋषि के मस्तक पर सींग जैसा उभार होने के कारण इनका नाम ऋंगी पड़ा। उन्होंने अपने कठोर तप से अनेक शक्तियां प्राप्त की। इन शक्तियों के उपयोग से राजा दशरथ और अंगदेश के राजा रोमपद को भीषण अकाल से मुक्त करवाया।
![]() |
ऋषि श्रृंगी - देवी शांता |
श्रृंगवेरपुर की भूमी पर राजा दशरथ का पुत्रेष्ठि यज्ञ का साक्षी है। इस यज्ञ को ऋंगी ऋषि ने संपन्न करवाया था। फल स्वरूप अयोध्या में राजा दशरथ की तीन पत्नियों, कौशल्या से श्री राम, कैकई से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण शत्रुघ्न हुए।
रामचरितमानस की एक चौपाई में ऋंगी द्वारा पूर्ण करवाये गए पुत्रेष्टि यज्ञ का वर्णन इस प्रकार है –
सृंगी रिषिहि बसिष्ठ बोलावा।
पुत्रकाम सुभ जग्य करावा।।
दशरथ पुत्री शांता:
प्रभू श्री राम के पिता राजा दशरथ की एक पुत्री भी थी जिनका नाम था शांता। किंतु देवी शांता का उल्लेख वाल्मीकि कृत आद्य महाकाव्य रामायण में नहीं मिलता है। केवल ऋषि ऋंगी का वर्णन है। दक्षिण भारत के कतिपय पौराणिक आख्यानों में शांता को राजा दशरथ और उनकी पहली पत्नी कौशल्या की पुत्री होने के स्पष्ट विवरण मिलता है। माता कौशल्या की एक बहन वर्षिणी अंगदेश के राजा रोमपद की पत्नी थी। किंतु राज दम्पति के कोई संतान न थी। शांता को राजा दशरथ से वचन लेकर राजा रोमपद और रानी वर्षिणी ने गोद ले लिया था। राजा दशरथ की सहमति से ही शांता का विवाह ऋंगी ऋषि के साथ हुआ था।
प्रभू श्री राम, पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण सहित राजसी जीवन त्याग इसी पावन धरती से वनवासी जीवन आरंभ किया था। रघुनंदन आर्य सुमंत्र द्वारा चलाये रथ पर बैठ, अयोध्या से गंगा के तट पर पहुंचे और केवट द्वारा नाव में बैठकर इस स्थान पर पहली रात्रि बिताई। भ्राता भरत श्री राम को मनाकर वापिस अयोध्या लें चलने के लिए प्रथम बार यहीं रुके थे और एक रात्रि बिताई थी।
रामचरितमानस में इसका वर्णन इन चौपाईयों में मिलता है –
सीता सचिव सहित दोऊ भाई।
सृंगबेरपुर पहुंच जाई।।
सिय सुमंत्र भ्राता सहित।
कंद मूल फल खाई।।
सयन कीन्ह रघुबंसमनि।
पाय पलोट त भाई।।
श्रृंगवेरपुर धाम महत्त्व:
श्रृंगवेरपुर, प्रभू श्री राम के परम मित्रों, भक्तों में से एक निषादराज का गढ़ रहा है। निषादराज का महल भी यही बंजर अवस्था मे है।
इस पावन भूमि को इसके पौराणिक इतिहास के कारण संतान तीर्थ भी माना जाता है।
लंका से लौटते समय यहां निषादराज को श्री राम के लंका से पुष्पक विमान पर आने की सूचना भी मिली थी जिसे उन्होंने भरत तक पहुंचाया था।
देवी सीता और केवट ने यहीं निषादराज गुहा और गंगा जी से आभार प्रकट किया था।
श्रृंगवेरपुर मंदिर कैसे पहुँचे:
श्रृंगवेरपुर पहुँचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन प्रयागराज रेलवे स्टेशन है। प्रयागराज से श्रृंगवेरपुर की दूरी 32 किमी है। इसे प्रयागराज से लखनऊ हाईवे से आया जा सकता है। अयोध्या से भी श्रृंगवेरपुर 170 किमी की दूरी पर है। निकटतम हवाई अड्डा प्रयागराज का अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा है।
✒️स्वप्निल. अ
(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)