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गुरुवार, 18 जनवरी 2024

ममलेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग, खंडवा, मध्यप्रदेश

ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग को महादेव का चौथा ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। किंतु इस मंदिर के प्राकट्य की कथा ओंकारेश्वर मंदिर के प्राकट्य के साथ कि है। 

पौराणिक कथा:


शिव पुराण के अनुसार सत्युग में विंध्याचल पर्वत ने लंबे काल तक तप कर महादेव को प्रसन्न कर लिया था। महादेव तपस्या से खुश हो कर विंध्याचल को मनोवान्छित वर माँगने के लिए कहा। भगवान शंकर के साथ साथ अन्य ऋषि और मुनि पधारे थे। वरदान में वरदान में विंध्याचल ने  भगवान से उस स्थान पर दो लिंग स्वरूप में जन् कल्याण हेतु रहने का वरदान मांगा। भगवान ने इस स्थान और ओंकारेश्वर और ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग रूप में विराजे। दोनों शिवलिंग में भगवान की एक ही रूप और दिव्यता बस्ती है। दोनों में से किसी भी एक के दर्शन कर लेने से एक प्रकार का पुण्य और आशीर्वाद प्राप्त होता है। 

 


ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग गर्भ-गृह

                  

एक और कथा अनुसार राजा मांधाता ने कड़ी भगवान शिव की कड़ी तपस्या करके भगवान को यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजने का वर मांगा था। पुराणों में ममलेश्वर महादेव को अमलेश्वर या अमरेश्वर भी बोला गया है। 


➡️ भोजपुर शिव मंदिर, रायसेन, मध्यप्रदेश

इतिहास:


ममलेश्वर ज्योतिर्लिग मांधाता पर्वत पर बसा है। मांधाता पर्वत नर्मदा नदी के मध्य में है। यहां पर नर्मदा दो धाराओं में बहती है। उत्तर और दकहिं किंतु दक्षिण की धारा को ही असली धारा माना गया है। मध्यप्रदेश और भारत के अन्य ज्योतिर्लिंग और धर्म नगरों के मंदिरों की तरह आज दिख रहे ममलेश्वर मंदिर को इंदौर की रानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा बनवाया गया था। 





 

वी अहिल्या बाई के समय से यहाँ शिव पार्थिव पूजन होता रहा है, २२ ब्राह्मण प्रतिदिन सवा लाख पार्थिव शिव लिंगों द्वारा ममलेश्वर महादेव का पूजन किया जाता था | इसका भुगतान ब्राह्मणों को दान पारिश्रमिक भुगतान होलकर राज्य द्वारा किया जाता था |वर्तमान में यह संख्या घटकर ११ और फिर ५ ब्राम्हणों तक सिमित हो गई है | 


ममलेश्वर महादेव मंदिर


ममलेश्वर मंदिर 500 मीटर की ऊंचाई पर सिथत है। मंदिर पूरे पांच मंजिला है और हर मंदिर में एक देवालय है। मंदिर ग्रेनाइट के बड़े बड़े पत्थरों से बना है। नागर और मराठा वास्तुकला में बनाया गया है। गर्भ-गृह में विराजित ममलेश्वर महादेव का शिवलिंग ओंकारेश्वर शिवलिंग की तरह हूबहू स्वयम्भू है। ज्योतिर्लिंग के दूसरी और नन्दी विराजे है। मंदिर की दीवारों पर शिव महिमा स्तोत्र सन् 1063 से अंकित है। 


ममलेश्वर की महिमा ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के बराबर ही मानी गयी है। एक मान्यता और भी है, जिसके अनुसार ज्योर्तिलिंग ओंकारेश्वर में और पार्थिव लिंग ममलेश्वर में विराजित है। ओंकारेश्वर मंदिर और ममलेश्वर मंदिर के बीच  1000 मीटर की दूरी है। अधिकतर आगंतुक ओंकारेश्वर और फिर ममलेश्वर के दर्शन के करते हैं।


       


ममलेश्वर के प्रांगण में अन्य मंदिर भी है। शिव के ममलेश्वर रूप के अलावा वृद्धकालेश्वर, बाणेश्वर, मुक्तेश्वर, कर्दमेश्वर और तिलभांडेश्वर मंदिर में भी।  दो से तीन मंदिररों के अलावा बाकी मंदिरों में दर्शन नहीं किये जा सकते हैं। इस ज्योतिलिंग में गायकवाड़ राजाओं के समय के ब्राह्मणों द्वारा पूजा, अनुष्ठान किये जा रहे है। पहले इनकी संख्या 22 थी और वर्तमान समय में5 ब्राह्मण सेवारत हैं। 


          



ओंकारेश्वर की तरह ममलेश्वर में भी साल के बारह महीने भीड़ रहती है। मंदिर खुलने कक समय सुबह 6 बजे और बंद रात्रि 9 बजे का है। 


ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुँचे:


ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग पहुँचने के लिए ओंकारेश्वर के लिए खंडवा रेलवे स्टेशन की दूरी 70 किमी है। खंडवा देश के सारे शहरों से समर्पक में है।

ओंकारेश्वर से ओंकारेश्वर बस अड्डे तक कि दूरी 650 मीटर है। 


हवाई मार्ग से इंदौर के देवी अहिल्याबाई हवाई अड्डा और भोपाल का राजा भोज अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा सबसे निकटतम हवाई अड्डा है।


ममलेश्वर में पूजा सामग्री और होटल रात 8 से 9 बजे के के बीवः बंद हो जाते है। 


✒️स्वप्निल. अ



(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई)


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