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सोमवार, 8 जनवरी 2024

श्री कालभैरव मंदिर, उज्जैन, मध्यप्रदेश

पौराणिक इतिहास:

कालभैरव मंदिर की पौराणिक कथा ब्रह्माजी के हठ्ठ से जुड़ी है। सत्युग के समय सृष्टि निर्माण और चार वेदों की रचना पश्चात्, ब्रह्माजी वेदों से भी विशाल ग्रँथ की रचना करने का मन बनाया है। भगवान शिव को ज्ञान हुआ और वे इस ग्रँथ की रचना का फल भलीभांति जानते थे। इस ग्रँथ के बनने से कलयुग अपने निर्धारित समय से पहले आ जाता। सो भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र के मध्य भौओं से बटुक भैरव को उतपन्न कर भगवान ब्रह्मा के इस कर्म को रोकने का कार्यभार सौंपा। बटुक भैरव ब्रह्माजी के पास जा कर बार-बार निवेदन किये। किंतु ब्रह्माजी उनको बालक समझ कर अपमान करते हैं। तब बटुकनाथ भैरव मदिरा का सेवन कर बड़े हो जाते हैं, काल भैरव रूप में आ जाते हैं। अपने एक उंगली के नख से ब्रह्माजी के 5 वे मुख का छेदन कर देते हैं। ब्रह्माजी का वह सिर बटुक भैरव के उंगली में फंस कर कट जाता है। बटुकनाथ ब्रह्म हत्या के दोषी हो जाते हैं और इस दोष के निवारण के लिए महादेव के पास जाते हैं। महादेव उन्हें संपूर्ण भारत के भ्रमण के लिए जाते है। ब्रह्माजी के मस्तक बटुक भैरव के हाथ से छूटकर जिस स्थान पर गिरता है वह स्थान फिर ब्रह्मकपालिक तीर्थ के नाम से विख्यात हो जाता है। उस स्थान पर ब्रह्मकपालिक क्रिया संपन्न हो जाती है किंतु ब्रह्म हत्या के पाप का निवारण नहीं होता और तब बटुक नाथ महाकाल वन(उज्जैन नगरी) आते हैं। यहां संकटमोचन घाट पर बैठकर स्नान करते हैं और शिव की आराधना कर दोष का निवारण होता है।


बाबा कालभैरव
पिंडी रूप में कालभैरव

             

मंदिर प्रवेश द्वार


 इतिहास:


कालभैरव मंदिर पुरातात्त्विक और लिखित इतिहास के अनुसार 2500 ईसा पूर्व का है। राजा भद्रसेन, इस स्थान के पास से युद्ध के लिए गुजरते समय रुके और भगवान कालभैरव से युद्ध में विजय प्राप्ति की मन्नत मांगी और विजयी होने पर भैरव जी के मंदिर का निर्माण करवाया। आगे चलकर राजा विक्रमादित्य के वंश में राजा भोज ने यहाँ पुनरुथान करवाया था। पेशवा-मराठों के युग मे मंदिर में कई सारे निर्माण और बदलाव किए गए थे। 



                  

कालभैरव मंदिर और रहस्य:


उज्जैन में भैरवगढ़ की पहाड़ी पर कालभैरव जी का रहस्यमय मंदिर बसा है। मंदिर पृथ्वी से 6 फ़ीट की ऊंचाई पर बना है। गर्भ गृह मे विराजे कालभैरव के एक गुंबदनुमा छत के नीचे है। भगवान पिंडी रूप में सिंदूर और कुमकुम से रंगी बड़ी-बड़ी आंखों के साथ और जीभ बाहर किये हुए हैं। भगवान पर मराठाओं द्वारा मुग़लों पर विजय प्राप्ति पश्चात लाल पगड़ी चढ़ाई गयी थी। तब से यह परंपरा आज भी कायम है।


 यहीं से क्षिप्रा नदी मंदिर को छूते हुए गुजरती है। यह मंदिर मराठा और परमार वंश की नागर शैली का मिश्रित रूप में बनाया गया है। मंदिर में पाताल भैरव और गुरु दत्तात्रेय का मंदिर भी है। इसकी वास्तुकला परमार नागर और मराठा शैली में बनी है। मराठों के शासन काल के चरम पर पहुँचने पर मंदिर के दाएं ओर एक दीप स्तम का निर्माण मंदिर मे करवाया गया था। इसे संध्या होते ही प्रज्वल्लित किया जाता है। इच्छाओं की पूर्ती के लिए इस दीप स्तम्भ में भक्त सरसो के तेल का दिया जलाते हैं। 

 

अवन्तिकापुरी के इस कालभैरव मंदिर को अत्यंत गुप्त मंदिरों में से एक माना गया है। ऐसा इसीलिए क्योंकि यह उन चंद मंदिरों म् से हैं जहां वाम मार्ग के नियमगत पूजा होती है। प्राचीन समय मे यहाँ विशुद्ध परंपरागत तरिके से तांत्रिक अनुष्ठानों में पंच मक्कारों (मांस, मछली, मदिरा, मुद्रा और मैथुन) में उपयोग किये जानेवली सामग्री होती थी। इसमें शव साधना जैसी भयभीत कर देनेवाली क्रियाएं भी की जाती थी। कुछ दशक पहले आम जनता के दर्शन के लिए 5 अनुष्ठानों में से केवल मदिरा का सतत भोग लगाया जा रहा है।

       
             



यहां आनेवाला हर श्रद्धालूँ कालभैरव को मदिरा का भोग चढ़ाता है। अचंभित कर देने वाली बात है की (उग्रता के प्रतीक) भैरवजी सारी शराब पी जाते है। इस पर अमरीकी, की स्पेस एजेंसी, नासा द्वारा भी फ़िजूल का शोध किया गया था जिसके कोई ठोस कारण उन्हें नहीं मिल पाए। सनातन धर्म के हर विषय को वैज्ञानिकता की कसौटी पर खड़ा रखकर तौलना पश्चिम का रवैय्या सदैव से मात्र सनातन को इस देश और इसकी संस्कृती को समाप्त करने के उद्देश्य से ही रहा है।

              
           
दीप स्तम्भ


पुराने समय मे मंदिर में देसी मदिरा का भोग लगाया जाता था और अब विदेशी ब्रांडेड मदिरा का भोग लगाया जाता है। मदिरा के अलावा कालभैरव को लड्डू और चूरमे का सात्विक भोग भी चढ़ाया जाता है।

कालभैरव एक मात्र ऐसे देवता है जिनकी हर महीने की अष्टमी को प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। इनका मंदिर जिस शहर गांव में होता है वे उस नगर के कोतवाल कहलाये जाते हैं। 


कालभैरव मंदिर के अलावा यहां पाताल भैरवी का भी मंदिर है। यह गुफा एक तरफा है और इसका महत्त्व तंत्र से जुड़ा है।


हर वर्ष मध्यप्रदेश सरकार वार्षिक पूजा अनुष्ठान भी करवाती है।


ज्ञातव्य: कालभैरव मंदिर कुल मिलाकर एक तांत्रिक सिद्धपीठ है। महाकाल की नगरी में महाकाल के दर्शन के साथ-साथ कालभैरव के दर्शन त्वरित फल देने वाले होते है। यहां मदिरा की बोतल का मूल्य

बाजार में मिलनेवाली बोतल से दुगने मूल्य पर मिलता है।

✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)



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