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शनिवार, 5 अगस्त 2023

बनखंडी बगलामुखी मंदिर, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश

पौराणिक इतिहास:

वनखण्डी कस्बा, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश स्थित माता बगलामुखी धाम का पैराणिक इतिहास सतयुग के समय का है। जब  माता सती स्वयं को अपने पिता दक्ष के यज्ञ में भस्म कर चुकी थी तब महादेव विलाप में समाए हुए के सारे लोकों में उनका शरीर लेके घूम रहे थे तब भगवान नारायण ने देवी सती के अंगों को सुदर्शन चक्र से अलग-अलग अलग कर दिया। इससे माता के अंगों के विभिन्न टुकड़े आर्यव्रत की भूमि पर जा गिरे और यही शक्ति पीठ कह लाये। आ सती के अंगों से बने कुल 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माता बगलामुखी का कांगड़ा स्थित है। यहाँ माता सती का बाहिना वक्ष गिरा था किंतु यहाँ आज जो देवी को समर्पित मंदिर है, यहां के निवासी बताते है त्रेतायुग से स्थापित है। मंदिर लंकापति रावण द्वारा बनाया गया था क्योंकि वह तांत्रिक अनुष्ठान करता था और माता की उपासना अपने शत्रुओं पर विजय पाने के लिए। बगलामुखी माता लंका में एक दूसरे नाम से भी जानी जाती है। रावण का पुत्र इंद्रजीत भी माँ का उपासक था और लक्ष्मजी को मूर्छित करने में उसकी बगलामुखी उपासना ही थी। 


माँ बगलामुखी मंदिर


बनखंडी बगलामुखी मंदिर:


मंदिर पहाड़ी वास्तुकला में निर्माण किया गया है। मंदिर के अंदर बाहर और ऊपर दीवारों का रंग पीला ही रखा गया है माँ बगलामुखी के सृजन की कथा के अनुसार। माँ का गर्भ ग्रह बहुत छोटा है। इसमें केवल 6 लोग ही एक समय में प्रवेश कर दर्शन पा सकते है। माँ के दाएँ और भगवान शिव और बाएँ ओर श्रीगणेश बैठे हैं। माता की मूर्ति अत्यंत आकर्षक है। माँ सोने के आसन पर विराजी है और माता के तीन नेत्र है। माता सवर्ण के आभूषणों से सजी हुई हैं। मंदिर के बाहर द्वार पर बजरँगबली और भैरव जी की मूर्ति। दोनों देव माता की गुफा की रक्षा कर रहे हैं। यहाँ श्री कृष्ण की मूर्ति भी एक मंदिर में दर्शन किये जा सकते हैं। 


माँ बगलामुखी दर्शन


मंदिर के बाहर बनी भोजशाला में लंगर दोपह 12 से 3 बजे के बीच चलता है। लंगर के प्रशाद में पीली डाल और चावल परोसा जाता है। 


यह रहस्यमयी मंदिर कांगड़ा के इतिहास के सबसे भयानक भूकंप के इतिहास का साक्षी है जब यहां सारे मंदिर कंपन से टूट गए पर बगलामुखी माता का यह शक्तिपीठ ज्यो का त्यों बना रहा। मंदिर में केवल माता की चरण पादुका वाली शिला को कुछ क्षति पहुंची।








इन्हें भी देखें:


मंदिर यज्ञ शाला:


मंदिर के बाहर बनी यज्ञशाला में दिन भर हवन किया जाता है। यहाँ अलग-अलग प्रकार के हवन सम्पन्न किये जाते है। शत्रु पर विजय पाने के लिए, नौकरी पाने के लिए और राजसत्ता में विजय प्राप्ति के लिए यज्ञ किये जाते है। उक्त सारे कार्यों के लिए किए जानेवाले यज्ञ की सामग्री भिन्न होती है। इन यज्ञ में ज़्यादातर उपयोग में आनेवली सामग्री है लाल मिर्च जिसे यज्ञ में बाहिने हाथ को अपने सर पे गोल घुमाके अग्नि कुंड में स्वाहा किया जाता है। 

माँ बगलामुखी को यज्ञ के लिए सबसे ज़्यादा उपयुक्त दिन है शनिवार, रविवार, मंगलवार और ब्रहस्पतिवार है। माँ यहाँ करवाये यज्ञ का फल 36 दिनों में देती है। यज्ञ करवाने की न्यूनतम राशी 3100 रुपये फिर जिस प्रकार का यज्ञ करवाने की इच्छा हो राशी उसी प्रकार रहती है। यज्ञशाला के बाहर लगे टिकट काउंटर पर से टिकट लिया जाता है। यज्ञ की एडवांस बुकिंग वेबसाइट से भी करवाई जा सकती है। 



वनखण्डी महादेव:


मंदिर से नीचे, उतरते समय आप प्राचीन वनखण्डी महादेव मंदिर के दर्शन कर सकेंगे होंगे। मंदिर के अंदर महादेव के सुंदर शिवलिंग के दर्शन होंगे। इस शिवलिंग की देहरा कस्बे में बड़ी मान्यता है। 


बनखण्डेश्वर महादेव


मंदिर दर्शन समय:


खुलने का समय: 5.00 AM

सुबह की आरती: 6.00 AM

भोग प्रशाद: 12.00 PM

मंदिर बंद(भोग का समय): 12.00 PM से 12.30 PM

संध्या आरती और शैय्या: 7.30 PM

मंदिर बंद:9.30 PM


कैसे पहुँचे


हिमांचल प्रदेश में अन्य शक्ति पीठ जैसे नैनादेवी, माँ चिंतपूर्णी और माता ज्वाला देवी सब एक दूसरे से 40 से 200 किमी की दूरी पर बसे हुए हैं। इन सब से राज्य बस परिवहन अच्छे से जुड़ा हुआ है। पड़ोसी राज्य पंजाब, जम्मू और हरियाणा, दिल्ली से बसें लगभग पूरे वर्ष चलती हैं। 


।। जय माँ बगलामुखी ।। 


✒️स्वप्निल. अ


अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करें:-





  • https://lakesinhimachal.com/baglamukhi-temple-kangra-a-historical-and-religious-marvel-2/


 

गुरुवार, 27 जुलाई 2023

विश्व स्वरूपम शिव, नाथद्वार, राजस्थान

वीर महाराणाओं की पावन धरती राजस्थान पर दुनिया की सबसे विशाल औऱ ऊंची महादेव की मूर्ति बनाई गई है। राजस्थान के शहर राजसमंद में भोलेनाथ की इस विशाल काय मूर्ति को बनवाने वाले है, मिराज समूह के अध्यक्ष मदन पालीवाल और मूर्तिकार है नरेश कुमावत।


यहां महादेव की विशाल मूर्ति बनाने के पीछे नाथद्वार वासियों की एक मान्यता है। जब महादेव एक समय नाथद्वारा आये थे तो उन्हीने यही आसन ग्रहण किया था। देवों के देव महादेव की मूर्ति ध्यान मुद्रा में है। और भला भोलेनाथ अपनी सवारी नन्दी के बिना कैसे दिख सकते हैं? सो नन्दी की मूर्ति पास ही मानो नृत्य करती हुई मुद्रा में दिखती है।


विश्व स्वरूपम


विश्व स्वरूपम पीछे से




 प्रक्रिया औऱ सामग्री:


विश्व स्वरूपम(Statue of Belief) राजसमंद की गणेश टेकरी पहाड़ी पर बनाया गया है। 

मूर्ति का काम 2018 में शुरू हुआ और लोकार्पण 29 अक्टूबर 2023 को राजस्थान के मुख्यमंत्री जी द्वारा करवाया गया। मूर्ति की ऊँचाई पहले 251 फ़ीट रखी गयी थी किंतु गंगा की जलधारा जोड़ने के चलते ऊंचाई 369 फ़ीट कर दी गयी। मूर्ति का आधार110 फ़ीट में पसरा है। कुल वजन 30000 टन है जो इसे एशिया की किसी भी मूर्ति से सबसे भारी और ऊंची करती है। तांबे का पेंट से रँगी मूर्ति अगले 20 वर्ष तक चमकती रहेगी। मूर्तिकार नरेश कुमावत बताते हैं की मूर्ति अगले 2500 साल तक यूं कि यूं बनी रहेगी चाहे कोई भी प्राकृतिक आपदा क्यों ना आ जाए। मूर्ति बनाने में कुल 30000 टन धातु(पंच धातु) जिसमे 2,600 टन स्टील 2,601 टन लोहा 26,618 क्यूबिक मीटर सीमेंट कंक्रीट 30x25 मीटर उपयोग हुआ है। नन्दी महाराज की ऊंचाई 25 फ़ीट और चौड़ाई 37 फीट की है। मूर्ति का ऊपरी भाग 250किमी तक तेज चलनेवाली हवाओं को भी झेलने की क्षमता रखता है। मूर्ति को बनाने में 90 इंजीनियरों औऱ 900 कारीगरों ने बनाकर तैयार किया है। मूर्त्ति के ऊपरी हिस्से में जाने के लिए 4 लिफ्ट, एक एलेवेटर और 3 कांच सीढ़ियों की व्यवस्था है। श्रद्धालुओं के लिए अंदर एक हॉल की व्यवस्था भी की गई है।



रात्री शिव दर्शन



 महादेव की जटाओं वाले भाग पर दो पानी की टँकीयां लगी है। एक टँकी जलाभिषेक के लिए और दूसरी आपातकाल के लिए। लगाई गई है। मूर्ति के भीतर कुल 15000 लोगों को लेने की क्षमता है। एक दिन में केवल 700 लोग को ही महादेव के अंदर के दर्शन की अनुमति है। एक बार में 60 लोगों को प्रवेश मिलेगा और 10-10 लोगों के जत्थे प्रवेश करते हैं। 


विश्व स्वरूपम मूर्ति को पूरा देखने में दर्शनार्थियों को कम से कम 4 घंटों का समय लगेगा। मूर्ति के ऊपर पहुँचने पर राजसमंद शहर का लुभावना दृश्य देखते ही बनता है। 


मूर्ति दर्शन समय:


  • सुबह 5 से 12:30 बजे तक
  • दोपहर 3 से रात्री 8:30 बजे तक
विश्व स्वरूपम में प्रवेश करने के लिए टिकट की जानकारी, www.statueofbelief.com पर जाके की जा सकती है। 

कैसे पहुँचे:


हवाई मार्ग- राजसमंद से सबसे नजदीकी एयरपोर्ट उदयपुर का महाराणा प्रताप एयरपोर्ट है जो विश्व स्वरूपम मूर्ति से 57 किमी दूर है। 


रेल मार्ग- राजसमंद से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन मावली रेलवे स्टेशन है। विश्व स्वरूपम मूर्ति की स्टेशन से दूरी कुल 29.9 किमी दूर है। 


✒️Swapnil. A


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करें:-


  • http//hindi.revoi.in/369-feet-high-shiva-statue-vishvas-swaroopam-inaugurated-in-nathdwara-rajasthan/amp/






इन्हें भी देखे:


सोमवार, 24 जुलाई 2023

चमत्कारी पीताम्बरा पीठ, दतिया, मध्यप्रदेश

दतिया शहर एक आध्यात्मिक नगरी है। पीताम्बरा पीठ को मध्यप्रदेश का छोटा-वृंदावन भी कहा जाता है। यहां साल भर भक्त अपने कार्यों की सिद्धि के लिए यहां आते रहते हैं। सामान्य नागरिक से ज्यादा यहां ऊंची हस्तियां खासकर नेता और उच्च अधिकारी यहां अक्सर देखे जाते हैं। दशम विद्याओं में से दो, माता बगलामुखी औऱ माता धूमावती को समर्पित है। यह दोनों विद्याएं शत्रु नाश और कठिन कार्यों की सिद्धि के लिए जानी जाती है। दतिया धाम के बाहर रहनेवाले निवासी, पीताम्बरा पीठ में घटी तीन चमत्कारी ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में नहीं जानते है। दतिया धाम में बैठी माँ बगलामुखी 

राजा को रंक और रंक को राजा बनाने की शक्ति रखती है।




 

मंगलवार, 18 जुलाई 2023

मां बगलामुखी कौन है?

मां बगलामुखी कौन है?

दशम महाविद्याओं में से अष्टम महाविद्या - माता बगलामुखी है। माता बगलामुखी का वैदिक नाम वल्गामुखी जिसका अर्थ है "लगाम"। इसके अनुरूप माँ को बगला, वलगामुखी, वल्गामुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या और पीताम्बरा नामों से पुकारा जाता है। वेदों कि "वल्गा" तंत्र में "बगलामुखी" है। 

माता बगलामुखी अष्टम महाविद्या है और इन्हें मूलतः"स्तम्भनकारी महाविद्या" के रूप में भी जाना जाता है। भगवान नारायण और माता त्रिपुर सुंदरी, दोनों के तेज से निकलने के कारण इनका कुल श्रीकुल है और यह वैष्णव शक्ति है। 


माँ की साधना में पीत रंग सामग्री का प्रयोग अति आवश्यक है। जिसमे आसन से लेके माँ को चढ़ाया जाने वाला प्रशाद भी पीले रंग का होता है। पीली बाती, पीला चोला, पीला आसन और माता की पीले फूलों की माला। माता को हल्दी की माला चढ़ाने से मात अति प्रसन्न होती हैं। 


माँ पीताम्बरा बगलामुखी


माँ पीताम्बरा

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 माता बगलामुखी के तीन चमत्कारिक मंदिर है। पहला मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में, दूसरा पीताम्बरा पीठ, दतिया धाम में माता धूमावती माता का और तीसरा उज्जैन के पास नलखेड़ा, मध्यप्रदेश में। 

यह तीन धाम माता की असीम शक्तियों से लैस हैं। यहां पहुँचने वालों मैं राजा भी होते हैं और रंक भी। यहां माता की सच्चे हृदय से मांगी गई हर इच्छा पूरी होती है। चाहे शत्रु पर विजय हो या मारण, मोहन वशीकरण से मुक्ति पाना। 


हम जानेंगे शाक्त-तंत्र परम्परा में यह मंदिर क्यों इतने गुप्त और रहस्यमयी हैं। इनके पीछे के बनने की कथा  और इनहें स्थापित करने वाले योगीयों के जीवन के रहस्य। 


नलखेड़ा धाम

कांगड़ा धाम


धूमावती माता, दतिया धाम

 

मंगलवार, 11 जुलाई 2023

शिव मंदिर गुफाएँ, पचमढ़ी, मध्य प्रदेश

देश के हृदय जिसे आप मध्य प्रदेश के नाम से जानते है, इस राज्य में सतपुड़ा की मनमोहक वादियों में बसा है देव भूमि उत्तराखंड के पवित्र तीर्थों का एहसास करानेवाला एक पवित्र तीर्थ स्थल जिसका नाम है पचमढ़ी। इस पर्यटन स्थल के पहाड़ों पर घने जंगलों और मन लुभावने झरनों और यहाँ की जानेवाली ट्रैकिंग के लिए जाना जाता है। इतना मनमोहक होने के बावजूद, पचमढ़ी केवल मध्यप्रदेश राज्य की सीमाओं के अंदर ही जाना जाता है। 

पचमढ़ी के प्रसिद्ध शिव तीर्थ:

पचमढ़ी आनेवाले सैलानी और महादेव भक्त यह मानते है कि यहां केवल महादेव के मंदिर ही नहीं पर साथ-साथ स्वयं महादेव अपने अस्तित्वभक्तों को यहां पहाड़ों, झरनों और झाड़ियों में महसूस कराते हैं। फिर बाकी जाकी रही भावना जैसी। 

महादेव भक्तों के लिए साधना करने का मध्यप्रदेश कि भूमि में यह सबसे प्राकृतिक और मनोरम स्थान है। 


पचमढ़ी एक ऐसा पवित्र पर्वतीय तीथ है जो केवल महादेव को समर्पित मन्दिरों के लिए जाना जाता है। इनके नाम है - चौरागढ़ महादेव मंदिर, नागद्वारी, बड़ा महादेव मंदिर गुफा, जटाशंकर और पांडव गुफाएं हैं। बाकी बचे गैर धार्मिक स्थल, हौनडी खो, बाईसन लॉज, बीफाल वॉटरफॉल, रिचगढ़ की गुफाएं और रिचगढ़ गुफाएं हैं। 




रविवार, 18 जून 2023

श्री कालकाजी मंदिर, नई दिल्ली

कालकाजी मंदिर, दिल्ली शहर का एक प्राचीन् हिन्दू मंदिर माता काली को समर्पित है। इसीलिए कालकाजी का हिस्सा माता कालका के नाम पर रखा गया है। वैसे तोह इस सुंदर मंदिर के बारे में बहुत लोगों ने सुन रखा है पर अगर लोग कुछ नहीं जानते है तोह वह है इसका पौराणिक इतिहास, महत्व और अन्य कभी ना पढ़ी विशेषताएं। यहाँ पर बैठी माता काली की दिव्य मूर्ति जो भक्तों की चिन्ताएं और भय का अंत कर देती है। कालका महाकाली भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करती है।  

 
Maa Kalkaji

पौराणिक इतिहास :


कालकाजी मंदिर के बारे में माना गया है के यह तकरीबन 3000 वर्ष पुराना है। यहां माता की मूर्ति स्वयंभू मानी जाती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार दो दैत्य 'शुम्भ और निशुम्भ" ने दवताओं को बहुत परेशान कर रखा था। तोह एक दिन सारे देवता ब्रह्माजी के पास पहुँचे और प्रार्थना करने लगे जिससे ब्रह्म देव ने उनसे अनुरोध किया के इन दुष्टों का अंत केवल माता पार्वती ही कर सकती है। सो इस समस्या के हल हेतु वे सारे माता पार्वती के पास जाएं और उनसे प्रार्थना करें। 


माता पार्वती ने उन्हें निश्चिंत होने के लिए कहा और अपने आच्छद से देवी कौशिकी को प्रकट किया। माँ कौशिकी और शुम्भ-निशुम्भ में भीषण युद्ध हुआ जिसका अंत नहीँ हो पा रहा था क्योंकि जब भी माँ उन राक्षश का अंत करती तब उनका रक्त धरती पे गिर जाता जिससे और राक्षसों का जन्म हो जाता। यह सब देख माता ने अपनी भौओं से देवी महाकाली को उतपन्न किया; अब माता महाकाली उन राक्षसों को मारने के पश्चात उनका रक्त अपने खप्पर में लेकर पी जाती जिसे अतः उनका अंत हुआ और युद्ध विराम हो गया। सारे देवताओं ने उत्साह मनाते हुए माता की जयकार करने के पश्चात माता से विनंती की के वे यहां अपने भक्तों के लिए विराजे और उस समय से यह कालिका माँ के निवास नाम से जाना जाने लगा जिसे अब कालका जी के नाम से जाना जाता है।


इसके अतिरिक्त कालकाजी मंदिर में पांडवों ने भी माँ काली के दर्शन लिए थे। यह साफ नहीं के यह दर्शन, अज्ञात वास या तेरह वर्ष के वनवास के समय के समय का था। इतनी जानकारी है कि यहाँ उन्होंने माता से वर किसी भी युद्ध मे शक्ति, उत्साह, दृढ़ता और विजय का वरदान मांगा था। 


माँ पार्वती और माँ कौशिकी

 देवी और शुम्भ-निशुम्भ युद्ध

शुम्भ-निशुम्भ वध



इतिहास:

कालकाजी मंदिर 17वी सदी में मुगल तानाशाह औरंगज़ेब द्वारा तुड़वाया गया था क्योंकि उसे भारत और दिल्ली के हर कोने में इस्लामी साम्राज्य कायम करनी थी। पांच दशक सभी ज़्यादा लंबे क्रूरता भरे शासन के बाद उसकी मृत्यु हुई। फिर काफी समय पश्चात सन् 1764 के में मराठाओं की दिल्ली फतह के बाद कालकाजी मंदिर का पुनः निर्माण किया गया था। अकबर के पेशकर और मिर्ज़ा राजा किदार नाथ द्वारा सन् 1816 में कुछ और निर्माण कार्य करवाया था। 


महत्व:

मंदिर दर्शन पर मैंने जाना के यहां विराजी देवी महाकाली को "काल चक्र स्वामिनी" माना जाता है। कालकाजी "मनोकामना पीठ" और "जयंती पीठ" कहा जाता है। कालकाजी की महाकाली सारे मनोरथ पूरी करती है।


आज जो मंदिर का ढाँचा आप देख सकते है, इसका निर्माण मंदिर में 1900 के आरम्भ के वर्षों में यहां आनेवाले भक्तों ने दान से बनवाया गया था। आठ तरफा आधुनिक मंदिर का निर्माण काले झांवा पत्थरों और संगमरमर से किया गया है।





काली माता मंदिर:


मंदिर के निर्माण में लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर का उपयोग किया गया है। मंदिर का प्राथमिक मंदिर देवी काली को समर्पित है, जिन्हें कलश के रूप में एक अमृत कलश के रूप में चित्रित किया गया है। मंदिर परिसर में, भगवान शिव और भगवान हनुमान के लिए अलग-अलग मंदिर हैं। मंदिर में देवी देवी दुर्गा की पूजा करने वाला एक मंदिर भी है।


माँ कालकाजी



मंदिर के दैनिक पूजा अनुष्ठान:


  • हर दिन सुबह माता की पूजा दूध के स्नान के साथ शुरू होती है और सुबह की आरती के साथ समाप्त होती है।


  • हर दिन दो बार माता की आरती की जाती है। इसमें संध्या में होने वाली आरती को तांत्रिक आरती माना जाता है।


  • ग्रीष्म ऋतु और सर्दी के समय आरती का समय बदल जाता है।


  • पूजारी अपनी-अपनी बारी आने पर आरती करते है।


  • माता की एक झलक पाने हेतू भक्त आरती के समय बाहर खड़े रहकर प्रतीक्षा करते है। 


मंदिर में आने वाले भक्त गण भोग थाली लेकर आते हैं। जिसमे एक सब्जी, एक दाल, रोटी, चावल, मिष्ठान अर्पित करने का नियम है। बिना लहसुन-प्याज का सात्विक भोग ही स्वीकार किया जाता है।




                            



ग्रहण:


यह एक मात्र मंदिर है जो ग्रहण के समय बंद नहीं होता है। मंदिर के महंत सुरेन्द्रनाथ अवधूत बताते है के मंदिर के अंदर सारे नव ग्रह निवास करते है जो माता काली को बालक समान है। सारे ग्रह माता को नमन करते हैं। 


ग्रहण के समय बहुत सारे भक्त इस शक्तिशाली मंदिर में दर्शन करने चले आते हैं, जब बाकी मन्दिरों के कपाट पे ताले लग जाते है। यह इस मंदिर की विशेषता है।


मुंडन संस्कार:


श्री कालकाजी मंदिर में बच्चों का मुंडन संस्कार करवाने के लिए अक्सर भक्त आते है। मुंडन करवाने का समय सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक रहता है।


कालकाजी के नजदीकी मेट्रो स्टेशन :


नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से श्री कालकाजी मंदिर की दूरी 21किमी है और 45 मिनट का समय पहुँचने में लगता है। दिल्ली मेट्रो की वायलेट लाइन पर दौड़ने वाली मेट्रो से आप कालकाजी मेट्रो स्टेशन पहुँचते है। 


श्री कालकाजी मंदिर से कालकाजी मेट्रो स्टेशन की दूरी मात्र 500 मीटर है।


मेट्रो के अलावा कालकाजी आने के लिए दिल्ली शहर की बस सेवा भी उपलब्ध रहती है। 


मंदिर के खुलने का समय:


सुबह 04:00 AM से 11:30 AM दोपहर 12:00 से दोपहर 03:00 बजे तक शाम 4:00 बजे से 11:30 बजे तक खुला रहता है।

आरती का समय :


सुबह : 06:00 पूर्वाह्न से 07:30 पूर्वाह्न (सर्दी) प्रातः 05:00 से प्रातः 6:30 (ग्रीष्मकालीन) शाम : 06:30 अपराह्न से 08:00 अपराह्न (सर्दी) 07:00 अपराह्न से 08:30 अपराह्न (गर्मी)।


।। जय माता कालका ।। 

🙏🕉️🌷🌿🚩🔱


✒️स्वप्निल. अ




(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)

कालकाजी मंदिर के बारे में और जानकारी के लिए इन लिंक्स पर क्लिक करें:-


  1. www.thedivineindia.com/amphi/kalkaji-mandir.html
  2. https://www.tourguidence.com/kalkaji-temple-delhi/
  3. https://www.bhaktibharat.com/mandir/shri-kalkaji-mandir

सोमवार, 12 जून 2023

जगन्नाथ मंदिर, जाजपुर, ओडिशा

हम सबने चार धामों में से एक, पुरी के विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के बारे में तोह सुना ही होगा पर क्या आप जानते हैं ओडिसा एक और पुरातन जगन्नाथ मंदिर के बारे में? तो आइए जानते है छतिया बाटा के बारे में जिसे ओडिसा के छोटे जगन्नाथ धाम के रूप में भी पूजा जाता है।  इस बात की जानकारी अधिक लोगों को नहीं पता है। चाटिया जगन्नाथ मंदिर, पुरी के जगन्नाथ मंदिर जितना ही रहस्यमयी है। 

गुरुवार, 25 मई 2023

माँ बम्बलेश्वरी मंदिर, डोंगरगढ़ , छत्तीसगढ़

  डोंगरगढ़ के पर्वत पर बसा माँ बम्बलेश्वरी का मंदिर लगभग 2200 वर्ष पुरानी एक प्रेम कहानी की गाथा की गवाही दे रहा है। सोहला सौ फीट पर बना मंदिर जैसे डोंगरगढ़ पर्वत पर माता रानी के मुकुट की भांति सजा दिखता हो। इतनी ऊंचाई पर बना माता का धाम छतीसगढ़ राज्य में कहीं और नहीं हैं। इस प्राचीन मंदिर की अदिष्ठात्री देवी अष्टम महाविद्या माँ बगलामुखी हैं। 

प्राचीन समय मे डोंगरगढ़ को कामाख्या नगरी के नाम से जाना जाता था। कामाख्या नगरी से डोंगरगांव नाम पड़ना और माधवनल - कामकंदला प्रेमी जोड़े की कथा यहाँ आनेवाले तीर्थयात्री भी अनभिज्ञ हैं।

इतिहास:

बम्बलेश्वरी माता मंदिर के बनने की कथा के पीछे राजा वीरसेन और उनकी भगवान शिव और माता भक्ति की असीम श्रद्धा से जुड़ी है। राजा वीरसेन की कोई संतान नहीं थी। प्राचीन काल से यहाँ केवल माँ का पिंडी रूप ही था और सो राजा अपनी रानी के साथ यहां आकर माता से संतान के लिए प्रार्थना की और एक वर्ष के भीतर उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ती हुई। इस पुत्र का नाम उन्होंने मदनसेन रखा। 



 

राजा मदनसेन को एक पुत्र हुआ कामसेन जो अगले राजा बने। इनके राज दरबार एक कामकंदला नाम की एक सुंदर और कुशल नर्तकी थी जिसका नृत्य सारे दरबारियों को मोह लेता था। एक बार राजा ने अनजाने में कामकंदला के प्रतिभाशाली नृत्य की अपेक्षा करते हुए माधवानल(संगीतज्ञ) को पुरस्कृत कर दिया जो उसी समय कामकंदला के नृत्य को संगीत दे रहा था। अपनी प्रेयसी कि प्रतिभा की उपेक्षा होते देख माधवनल ने राजा के सामने वह पुरस्कार उसे ही दे दिया। राजा कामसेन को क्रोध आया और तुरंत माधवानल को राज्य से निकल जाने के लिए कहा।


माधवानल राज्य से बाहर जाने के बजाए डोंगरगढ़ की गुफाओं को अपना स्थाई निवास बना लिया। प्रेम में तड़पती कामकंदला चोरी-चोरी उससे मिलने आया करती थी। वहीं दूसरी ओर कामसेन का पुत्र मदनादित्य राजसी-तामसी प्रवृतियों वाला था और कामकंदला से मन-ही-मन प्रेम करता था। मदनादित्य को माधवानल - कामकंदला का चुपके से मिलना अच्छा नहीं लग रहा था। उसे समझ आ गया था कि वह कामकंदला को पा नहीं सकता इसीलिए उसने कामकंदला को राजद्रोह के आरोप में फंसवा कर माधवानल से अलग कर दिया। राज्य में अस्थिरता की स्थिति उतपन्न हो गयी। 


अपने समक्ष अन्याय होता देख माधवनल सीमा पार कर अवन्तिकापुरी जा पहुंचा और उस समय के भारतवर्ष के सर्वश्रेष्ठ राजा; सम्राट विक्रमादित्य, अपनी न्यायप्रियता के लिए जाने जाते थे, उन्हें सारी व्यथा सुनाई। दयावान राजा विक्रमादित्य ने न्याय करने के लिए अपनी सेना लेकर कामाख्या नगरी पर हमला बोल दिया। कई दिनों के युद्ध के बाद राजा मदनादित्य की पराजय हुई। माधवानल ने मदनादित्य को मार डाला लेकिन इसके बाद कामख्या नगरी पूरी उजड़ गयी। नगर में केवल डोंगड़ पहाड़ियाँ बची और तब से इसे डोंगड़गढ़ कहा जाने शुरू हुआ।





 

कामकंदला को पता चला कि माधवानल युद्ध मे मारा गया है और इस वेदना को सेहन ना कर पायी। यह बात असत्य थी किंतु इसके पहले यह स्पष्टीकरण होता इससे पूर्व कामकंदला ने एक सरोवर में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। इस सरोवर को कामकंदला सरोवर के नाम से भी जाना जाता है। अपनी प्रेमिका के प्राणोत्सर्ग का समाचार सुनकर माधवानल ने भी प्राण त्याग दिए।


भारी उथल - पुथल और कार्य सिद्ध ना होता देख, माता अपने जागृत रूप में पहाड़ी में विराजित होने के लिए राजा विक्रमादित्य ने आह्वाहन किया।तब से माता बम्बलेश्वरी मंदिर की अदिष्ठात्री देवी है।


रोपवे (उड़नखटोला)

छीरपानी तालाब


माँ बम्बलेश्वरी मंदिर:


मंदिर का ऐतिहासिक सम्बंध उज्जैन और राजा विक्रमादित्य से रहा है क्योंकि माँ बम्बलेश्वरी राजा विक्रमादित्य के वंश की कुलदेवी थी। उस समय के पूर्व का डोंगड़गढ़ के इतिहास के कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं है। सोलहवीं सदी से डोंगड़गढ़ मंदिर गोंड राजाओं के राज्य के अधीन आ गया। गोंड राजाओं के समृद्ध और कुशल शासन के अंदर मंदिर की महत्व आस पड़ोस के राज्यों में फैला। 


मंदिर के अन्य मंदिरों में नाग वासुकी मंदिर, शीतला माता मंदिर, दादी माँ मंदिर और बजरँगबली मंदिर है।


  • देवी मंदिर तक कुल 1100 सीढियां चढ़ने पर माता के दर्शन होते हैं। 

  • मंदिर पहाड़ी के नीचे छीरपानी तालाब है जिसमे बोटिंग की व्यवस्थता है। 

  • मंदिर में उड़नखटोला(रोपवे) की व्यवस्था हफ्ते के 6 दिन उपलब्ध रहती है।



राजनांदगांव से डोंगरगढ़ जाते समय राजनांदगांव में मां पाताल भैरवी(महाकाली) दस महाविद्या पीठ मंदिर है, जो अपनी भव्यता के चलते दर्शनीय है। जानकार बताते हैं कि विश्‍व के सबसे बडे शिवलिंग के आकार के मंदिर में मां पातालभैरवी विराजित हैं। तीन मंजिला इस मंदिर में पाताल में मां पाताल भैरवी, प्रथम तल में दस महाविद़़यापीठ और ऊपरी तल पर भगवान शंकर का मंदिर है।




मंदिर दर्शन का श्रेष्ठ समय:

 मंदिर का पट सुबह चार बजे से दोपहर एक बजे तक और फिर दोपहर दो बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता है। रविवार को सुबह चार बजे से रात दस बजे तक मंदिर लगातार खुला रहता है। नवरात्रि के मौके पर मंदिर का पट चौबीसों घंटे खुला रहता है ।
साल भर श्रद्धालु मंदिर में जीवन से जुड़े जरूरी संस्कार जैसे यज्ञ या मुंडन संस्कार भी करवाते रहते है । 

कैसे पहुँचे:

राजनादगांव से 35 व राजधानी रायपुर से यह 105 किलोमीटर दूर है। हावड़ा-मुंबई रेलमार्ग से भी यह जुड़ा हुआ है। यहां रेल और सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
डोंगरगढ़ राजनांदगांव जिला मुख्यालय से 57 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। वहाँ जाने के लिए सबसे अच्छा साधन है ट्रेन, बस, और फिर खुद की ट्रांसपोर्ट व्यवस्था है। अगर आप ट्रेन से यात्रा करना चाहते है तो निकटतम रेल्वे स्टेशन है डोंगरगढ़।
फ्लाइट से: निकटतम हवाई अड्डा है रायपुर। जो घरेलु उड़ानों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

।। जय माँ बम्बलेश्वरी ।।

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✒️स्वप्निल.अ

(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)

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