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शनिवार, 17 फ़रवरी 2024

मोढेरा सूर्य मंदिर, मेहसाणा, गुजरात

पौराणिक इतिहास:

गुजरात के मेहसाणा जिले के मोढेरा के सूर्य मंदिर का इतिहास त्रेतायुग में लंका दिग्विजय पश्चात् के समय का माना जाता है। प्रभू श्री राम अपने गुरु वशिष्ट ऋषि के आदेश पर इस स्थान पर आए थे; रावण वध से हुए ब्राह्मण हत्या के पाप प्रायश्चित किया था। इसका वर्णन स्कंद पुराण और ब्रह्म पुराण में मिलता है। उस समय इसे 'धर्मारण्य' नाम से जाना जाता था। इसी स्थान पर श्री राम ने यज्ञ भी करवाया था। 


           

           

इतिहास:


मोढेरा सूर्य मंदिर का निर्माण राजा भीम देव प्रथम ने सन् 1026-1027 CE के मध्य करवाया था। वे चालुक्य वंश के थे और इनके कुल देवता सूर्य देव थे जिस कारण वे सूर्य वंशी भी कहलाते थे। उस काल में गुजरात के इस भाग ने इस्लामी आक्रांताओं के अनेकों हमले झेले और अनगिनत मंदिरों का विनाश होते देखा। महमूद गज़नी सोमनाथ मंदिर में रक्तपात,लूट और विध्वंस करते हुए मोढेरा पहुँचा। मोढेरा मंदिर को बचाने के लगभग असफल प्रयास में तकरीबन 20,000 योद्धाओं ने अपना बलिदान दिया। इतिहासकार ए.के.मजूमदार के अनुसार मोढेरा सूर्य मंदिर का निर्माण मोढेरा पर हुए हमले के बचने के उत्साह में बनवाया गया था। पश्चिमी दीवार के एक पत्थर पर लापरवाही से लिखे देवनागरी में सन् 1083 इसवी की तारीख लिखी है जो मंदिर बनने के असल वर्ष को 1026-27CE दर्शाता है। इसे पुख्ता प्रमाण नहीं माना जाता है क्योंकि इसके अलावा और कोई तारीख का वर्णन मंदिर के किसी दूसरे स्थान पर नहीं है। उस तारीख को मंदिर के निर्माण की जगह मंदिर के ध्वस्त की तारीख माना गया है। बाहर बने सरोवर का निर्माण पहले किया जा चुका था और इसके अंदर छोटे-छोटे मंदिर राजा भीम देव के सत्ता में लौटने के बाद बनाये गए थे। बारहवीं सदी के तीसरे भाग में राजा कर्ण द्वारा नृत्य मंडप जोड़ा गया था।





इस्लामी विध्वंस


बारहवीं सदी में मंदिर आक्रांता अल्लाउदीन खिलजी ने हमला किया था। इस हमले में मंदिर में अधिक विध्वंस हुआ। खिलजी ने मंदिर के गर्भ से सूर्य देव की सोने की मूर्ति जो हीरे से जड़ित थी अपने साथ ले गया। बाकी मूर्तियाँ भी तोड़ी गयी और मंदिर की दीवारों पर बने देवी देवताओं के सुंदर शिल्प खंडित हो गये।


मोढेरा सूर्य मंदिर:


 मोढेरा सूर्य मंदिर उस समय मध्य भारत की प्रचलित गुर्जर-मारू शैली में बनाया गया था। मंदिर को बनाने में ग्रेनाइट के पत्थर का उपयोग है किंतु चूने का उपयोग इंठों को चिपकाने के लिए नहीं किया गया है।इस मंदिर का विमान आड़ा बनाया गया था और शिखर मेरु पर्वत जैसा जो काफी सदियों पहले गिर चुका था। मंदिर का आधार उलटे रखे कमल के आकार पर बना है। मंदिर के तीन भाग है, गर्भ-गृह, सभामंडप, और कुंड। गर्भ-गृह गूढ़ मंडप का भाग है।



 गर्भगृह की लंबाई अंदर से 51 फ़ीट 9 इंच और चौड़ाई 25 फीट 8 इंच है। यह तीनों, मंदिर संकुल का अक्षीय गठबंधन है। सभामंडप गूढ़मंडप के समककक्ष नहीं है बल्कि अलग बना है। इन दोनों को छत लंबे समय पहले गिर गयी थी, अब केवल नीचे का भाग बचा है। मंदिर के बाहर की तरफ की दीवारों पर कई देवी-देवताओं के शिल्प खंडित है। हिंदू परंपरा अनुसार एक खंडित मंदिर में पूजा कभी नहीं होती है।गूढ़मंडप की बाहरी दीवार पर तीन खिड़कियां बनी है। बगल में सूर्य देव की मूर्ति रथ में अश्वों द्वारा खींचते हुए बनी है। और तो और सूर्य की अलग-अलग मुद्राओं में मूर्तियाँ बनी है जो सूर्य की प्रति महीने रहने वाली स्तिथि को दर्शाती है। 


   सभामंडप में 52 स्तम्भ है जो एक वर्ष में बावन हफ़्तों का प्रतिनिधित्त्व करते हैं। साल के 365 दिनों के प्रतिनिधित्त्व के लिए 365 हाथी बने हैं। स्तम्भों को देखने पर मंदिर नीचे की ओर से अष्टकोणाकर और ऊपर से देखने पर गोल दिखाई देता है। मंदिर के अंदर और बाहर मूर्तियों को बारीकी से तराशा गया है। इन मूर्तियों में समस्त हिंदु देवी-देवताओं को उनके वाहन के साथ बनाया गया है। जैसे अग्नि देव को भेड़ के साथ दिखाया गया है। आंठ दिशाओं के दिगपालों की मूर्तियों को उनकी दिशाओं के अनुसार स्थान पर शिल्पित किया गया है। भगवान सूर्य की एक मूर्ति गर्भगृह की बाहर की दीवार पर दोनों पत्नीयों, छाया और संध्या के साथ दिखाया है। सभामंडप के अंदर ध्यानाकर्षण करते है, रामायण, महाभारत के प्रसंगों को सटीकता उकेरा गया है।


मंदिर न केवल अभियांत्रिक पक्ष से उत्कृष्टता की निशानी है बल्कि धर्म और अध्यात्म के संगम को रोचकता से समझाने के लिये भी निर्मित है।इस समय मंदिर का रख रखाव भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा किया जा रहा है। मंदिर राष्ट्रीय स्मारकों की सूची में शामिल है और यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर की सूची में दिसम्बर 2022 में शामिल किया गया था।


सूर्य मंदिर विज्ञान और रहस्य:


मोढेरा के सूर्य मंदिर की सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस मंदिर के गर्भगृह पर साल के दो दिन - 21 मार्च और 21 जून को सूर्य की किरणे सीधी गिरती है। साल का सबसे लंबा दिन 21 जून(Summer Solstice) है जिसे अंग्रेज़ी में समर सोलस्टिस कहते है। और 21 मार्च(Equinox) के दिन, दिन और रात्री समान अवधि की होती है। सूर्य देव का यह मंदिर कोई साधारण मंदिर नहीं अपितु वैदिक खगोलशास्त्र की वेदशाला होने का अनुमान है। कर्क रेखा पृथ्वी पर 23.6° अक्षांश पर गुजरती है और मंदिर बीबी ठीक इसी दायरे में बनाया गया है। इन दो दिनों पर कोई व्यक्ति दिन के उजाले में खड़ा रहे तो उसकी या किसी भी वस्तु की परछाई धरातल पर नहीं दिखती है।पर्यटक इस बात को आंखोंदेखी कर अनुभव कर सकते हैं।


हर वर्ष पृथ्वी का अक्षीय झुकाव बदलते रहता है। फिर भी इस झुकाव का एक सीमित दायरा है। मोढेरा का मंदिर कुछ वर्षों में इस दृश्य की अनुभूति करता रहता है। अनुसंधानकर्ताओं ने इस पर समग्र शोध किया है किंतु मंदिर का हजार वर्ष पहले बिना किसी आधुनिक तकनीक के कैसे निर्माण हुआ यह कल्पना से परेह है। 


गर्भगृह के नीचे कुछ अनुसंधानकर्ताओं द्वारा पता करने पर एक विशाल गढ़े के होने की जानकारी मिली थी जिसे अब बंद करके रखा गया है। उनके अनुसार इस गड्ढे में सूर्य देव की सोने की हीरों से जड़ित मूर्ति हुआ करती थी। यह मूर्ति हवा में किसी विद्युतीय उपकरण द्वारा मैग्नेटिक लेविटेशन प्रणाली से तैर सकती थी। सूर्यदेव की इस मूर्ति का क्या हाल हुआ इसकी कोई जानकारी नहीं है। हालांकि सोने की मूर्ति आदि बात केवल मिथ्या मनोरंजन के लिए गढ़ी गयी हो यह भी माना जा सकता है - वैसे ऐसी बात भारत के प्राचीन मंदिरों के संदर्भ में अगर कहि जा रही हो तो उसमें लेशमात्र सत्य तो होगा ही। 


कर्क रेखा को मंदिर के मध्य से गुजरता दर्शाने के लिये मंदिर की बाहरी दीवार पर दो लकीरें खींची दिखाई देती हैं।


राम कुंड


  मंदिर के प्रमुख आकर्षणों में से एक इस कुंड को श्री राम कुंड, सूर्य कुंड और 'सीता नी चोड़ी' भी कहा जाता है। कीर्ती तोरण से होते हुए कुंड की तरफ रास्ता है। इसे चारों तरफ से पत्थरों से बनाया गया है।पश्चिम दिशा में मुख्य प्रवेश द्वार है। कुंड आयताकार आकर का बनाया गया है। उत्तर से दक्षिण की ओर 176 फ़ीट और पूर्व से पश्चिम की ओर 120 फ़ीट क्षेत्र में है। कुंड के जल तक पहुँचने के लिये चारों ओर से छत बनी है जिसके नीचे से सीढियां है।  इसमें 28 सीढियां हैं जो महीने के 28 दिनों का प्रतीक हैं। ब्रह्मांड में 27 नक्षत्रों को दिखाने के लिये राम कुंड में 27 छोटे-बड़े मंदिर भी बने है जिनमे वैष्णव देवों के विग्रह विराजीतहैं। कुंड के निर्माण के बाद इसमें सातों महाद्वीपों का जल एकत्रित कर मिलाया गया था।






मोढेरा नृत्य महोत्सव:


गुर्जरत पर्यटन विभाग द्वारा हर वर्ष मकर संक्रांति पर सूर्य देव के उत्तरायण होने पर मोढेरा सूर्य मंदिर के बाहर भव्य नृत्य कार्यक्रम किया प्रस्तुत किया जाता है। इसमें देश-विदेश के लोग भाग लेते हैं और देखने पहुँचते हैं।





मोढेरा सूर्य मंदिर कैसे पहुँचे:


मोढेरा सूर्य मंदिर से मेहसाणा रेलवे स्टेशन की दूरी तकरीबन 30 किमी है। यह दूरी 40 मिनट में प्राइवेट कैब या सरकारी बस द्वारा पूरी की जा सकती है। 


मेहसाणा से सबसे नजदीक गुजरात का अहमदाबाद शहर है। यह दूरी 76 किमी है और 2 घण्टे में चार पहिया द्वारा पूरी की जा सकती है। 


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)

 

रविवार, 4 फ़रवरी 2024

मेंढक शिव मंदिर, लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश

मेंढक मंदिर उत्तर प्रदेश का एक उत्सुक्ता से भर देनेवाला मंदिर है जिसका नाम सुनने से मन अचंभित हो कर दिमाग सोचने में लग जाता है। यह मंदिर अपना विचित्र इतिहास के लिए जुड़ा हुआ है।

  

बुधवार, 31 जनवरी 2024

तिलभांडेश्वर मंदिर, काशी, उत्तर प्रदेश

तिलभांडेश्वर नाम मात्र से संकेत मिल जाता है मंदिर के खास होने का। महादेव की नगरी काशी के प्रमुख शिव मंदिरों में से एक है तिलभांडेश्वर मंदिर। विश्वनाथ मंदिर के दर्शन के बाद यह शिव मंदिर भोलेनाथ को ध्यान, साधना,जप के लिये काशी में सबसे उत्तम मंदिर है। 


इस मंदिर के पीछे का इतिहास भी इसके नाम कि ही तरह अनोखा और अनसुना है। 



सोमवार, 29 जनवरी 2024

कोपेश्वर महादेव मंदिर, खिद्रापुर, महाराष्ट्र

पौराणिक इतिहास:

पौराणिक कथा अनुसार दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती द्वारा प्राण त्यागने पश्चात् दक्ष को महादेव ने वीरभद्र द्वारा मृत्यु दंड दिया था। सति की मृत्यु पर महादेव कुपित हो गए। इसी कथा अनुसार भगवान शिव के कोप को शांत कर संसार को सर्वनाश से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने उन्हें इस स्थान और लेकर आये थे।

 


एक अन्य कथा में इस स्थान का पौराणिक महत्त्व भगवान विष्णु के लिंग रूप में अवतरित होने का उल्लेख है। भगवान शिव के इस शिवलिंग रूप के साथ साथ अगर कोई एक समय में सनकेश्वर, बंकनाथ कोपेश्वर के दर्शन कर लेगा तो उसके हर दुर्लभ मनोरथ और इक्छाएँ पूर्ण होंगी। इस वरदान का देव, दानव, गन्धर्व, ऋषि और मानव दुरुपयोग करने लगे थे। इसका उपाय श्री हरि के पास ही उपलब्ध था। इस मंदिर के गर्भ गृह में पहुँचने पर सबसे पहले ध्यान भगवान विष्णु के लिंग के ऊपर आता है। सबसे प्रथम श्री हरि जो दोपेश्वर के रूप में विराजित हैं। यह संसार का एक मात्र मंदिर है जहां भगवान हरि लिंग रूप में पौराणिक महत्व से विराजित है।



मंगलवार, 23 जनवरी 2024

ऋंगी-शांता मंदिर, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश

श्रृंगवेरपुर, प्रयाग नगरी के समीप प्रभू श्री राम से पुनीत धाम चित्रकूट के निकट बना है। यह धाम रामायण की अनसुनी कथा और इनसे जुड़े हुए कुछ अंजाने पात्र की भूमि रही है। रामायण के शुरू से लेके अंत तक इस पावन भूमि का अहम योगदान रहा है।

पौराणिक इतिहास:


श्रृंगवेरपुर का इतिहास अति रोचक कथाओं के घटनाक्रम से भरा हुआ है। इन कथाओं का वर्णन वाल्मीकि रामायण, कालिदास के रघुवंशम्, भवभती के उत्तर रामचरित, वेदव्यास के महाभारत और तुलसीकृत श्रीरामचरितमानस में है। त्रेतायुग में ऋषि कश्यप के पुत्र विभंड ने घोर तपस्या की जिससे भयभीत हो देवराज इंद्र ने अप्सरा उर्वशी को तपस्या भंग करने के लिए भेजा। विभंड उर्वशी के से मोहित हो गए और इस मिलन से एक पुत्र का जन्म हुआ। यह पुत्र ऋंगी ऋषि कहलाये। ऋषि के मस्तक पर सींग जैसा उभार होने के कारण इनका नाम ऋंगी पड़ा। उन्होंने अपने कठोर तप से अनेक शक्तियां प्राप्त की। इन शक्तियों के उपयोग से राजा दशरथ और अंगदेश के राजा रोमपद को भीषण अकाल से मुक्त करवाया। 


ऋषि ऋंगी - माता शांता
ऋषि श्रृंगी - देवी शांता

     

         



श्रृंगवेरपुर की भूमी पर राजा दशरथ का पुत्रेष्ठि यज्ञ का साक्षी है। इस यज्ञ को ऋंगी ऋषि ने संपन्न करवाया था। फल स्वरूप अयोध्या में राजा दशरथ की तीन पत्नियों, कौशल्या से श्री राम, कैकई से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण शत्रुघ्न हुए। 


   


रामचरितमानस की एक चौपाई में ऋंगी द्वारा पूर्ण करवाये गए पुत्रेष्टि यज्ञ का वर्णन इस प्रकार है –


सृंगी रिषिहि बसिष्ठ बोलावा।

पुत्रकाम सुभ जग्य करावा।।



➡️ जगत शिरोमणि कृष्ण मंदिर, जयपुर, राजस्थान


दशरथ पुत्री शांता:


प्रभू श्री राम के पिता राजा दशरथ की एक पुत्री भी थी जिनका नाम था शांता। किंतु देवी शांता का उल्लेख वाल्मीकि कृत आद्य महाकाव्य रामायण में नहीं मिलता है। केवल ऋषि ऋंगी का वर्णन है। दक्षिण भारत के कतिपय पौराणिक आख्यानों में शांता को राजा दशरथ और उनकी पहली पत्नी कौशल्या की पुत्री होने के स्पष्ट विवरण मिलता है। माता कौशल्या की एक बहन वर्षिणी अंगदेश के राजा रोमपद की पत्नी थी। किंतु राज दम्पति के कोई संतान न थी। शांता को राजा दशरथ से वचन लेकर राजा रोमपद और रानी वर्षिणी ने गोद ले लिया था। राजा दशरथ की सहमति से ही शांता का विवाह ऋंगी ऋषि के साथ हुआ था। 




प्रभू श्री राम, पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण सहित राजसी जीवन त्याग इसी पावन धरती से वनवासी जीवन आरंभ किया था। रघुनंदन आर्य सुमंत्र द्वारा चलाये रथ पर बैठ, अयोध्या से गंगा के तट पर पहुंचे और केवट द्वारा नाव में बैठकर इस स्थान पर  पहली रात्रि बिताई। भ्राता भरत श्री राम को मनाकर वापिस अयोध्या लें चलने के लिए प्रथम बार यहीं रुके थे और एक रात्रि बिताई थी। 


रामचरितमानस में इसका वर्णन इन चौपाईयों में मिलता है –


  1. सीता सचिव सहित दोऊ भाई।

सृंगबेरपुर पहुंच जाई।।


  1. सिय सुमंत्र भ्राता सहित।

कंद मूल फल खाई।।


  1. सयन कीन्ह रघुबंसमनि।

पाय पलोट त भाई।।


श्रृंगवेरपुर धाम महत्त्व:


  • श्रृंगवेरपुर, प्रभू श्री राम के परम मित्रों, भक्तों में से एक निषादराज का गढ़ रहा है। निषादराज का महल भी यही बंजर अवस्था मे है।


  • इस पावन भूमि को इसके पौराणिक इतिहास के कारण संतान तीर्थ भी माना जाता है। 


  • लंका से लौटते समय यहां निषादराज को श्री राम के लंका से पुष्पक विमान पर आने की सूचना भी मिली थी जिसे उन्होंने भरत तक पहुंचाया था।


  • देवी सीता और केवट ने यहीं निषादराज गुहा और गंगा जी से आभार प्रकट किया था।


➡️ प्रभु श्री राम का ननिहाल - चंदखुरी, रायपुर, छत्तीसगढ़

 

श्रृंगवेरपुर मंदिर कैसे पहुँचे:


श्रृंगवेरपुर पहुँचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन प्रयागराज रेलवे स्टेशन है। प्रयागराज से श्रृंगवेरपुर की दूरी 32 किमी है। इसे प्रयागराज से लखनऊ हाईवे से आया जा सकता है। अयोध्या से भी श्रृंगवेरपुर 170 किमी की दूरी पर है। निकटतम हवाई अड्डा प्रयागराज का अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा है।


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


रविवार, 21 जनवरी 2024

जगत शिरोमणि मंदिर, आमेर, राजस्थान

जगत शिरोमणि मंदिर राजस्थान के आमेर के प्रमुख धार्मिक और ईतिहासिक विरासतों में से एक है जिसका इतिहास जयपुर की सीमा के बाहर सर्वजन के ज्ञान में नहीं है।

मध्यकालीन इतिहास:


आमेर के राजा सेनापति मानसिंह और उनकी पत्नी द्वारा जगत शिरोमणि मंदिर का निर्माण करवाया गया था। इन दोनों का एक पुत्र हुआ जिसका नाम था जगत सिंह। जगत सिंह 18 वर्ष की आयु में एक युद्ध के लिए निकल पड़े। युद्धभूमि मे जाते समय कुछ हमलावरों ने उनकी हत्या कर दी। अल्प आयु में अपने इकलौते पुत्र को खोने के वियोग में रानी कनकवती ने उसकी स्मृति में एक भव्य इमारत बनाने को सोची। वासुदेव श्रीकृष्ण की उपासक रानी ने भगवान श्री कृष्ण को समर्पित यह मंदिर बनवाया। सन् 1599 से 1608 के बीच मंदिर बनकर तैयार हुआ।


श्रीकृष्ण-मीराबाई



जगत शिरोमणि मंदिर:


मंदिर का नामकरण रानी के पुत्र जगत और श्री कृष्ण के एक और नाम शिरोमणि से मिलाकर रखा गया है। आमेर के पुरातन मंदिरों में से एक जगत शिरोमणि मंदिर राजपुताना महामेरू वास्तुकला में बना है। इसमें मकराना से मंगवाए गए सफेद और मलाई रंग के संगमरमर का उपयोग किया गया है। मंदिर में एक बरोठा, मंडप, स्वर्ग मंडप और गर्भ गृह है। मंडप दो मंजिला जिसके दो भाग एक दूसरे को काट रहे है। आमेर की मुख्य सड़क से मंदिर का मुख्य द्वार सम्पर्क में है। तथा राज महल से मंदिर के पीछे बने द्वार तक भी एक दरवाजा जुड़ा है। 

     
      


छत पर मंदिर के सामने भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ देव बने हुए हैं। गर्ब ग्रह के द्वार पर विष्णु जी के दशावतारों और निवास, क्षीरसागर का दृश्य मंदिर को को दिव्यता प्रदान करता है। बाहर खड़े विष्णु जी के द्वारपाल जय-विजय शिल्पित हैं। भगवान श्री कृष्ण उरुश्रृंगों और कर्णश्रृंगों से क्रमबद्ध सुशोभित है। मंदिर बनाने में उस समय के मूल्य अनुसार 9 लाख रुपये का खर्च आया था। जगत शिरोमणि मंदिर के द्वार पर ऊंचा भव्य तोरण बना हुआ है जिसपे देवी देवता और दो हाती आगन्तुकों का स्वागत करती मुद्रा में देखे जाते हैं। 


स्वर्ग मंडप
स्वर्ग मंडप



"श्री कृष्ण के साथ अमूमन राधा रानी या रुक्मिणी/सत्यभामा बगल में दिखती हैं। किंतु इस मंदिर में उनकी परम भक्त मीराबाई साथ में विराजी हैं।"



मंदिर महत्व:


जगत शिरोमणि मंदिर के बारे में माना गया है कि गर्भ-गृह में श्री हरि का वही विग्रह प्रतिष्ठित है जिसकी मीराबाई 600 वर्ष पहले पूजा किया करती थी। आखरी समय मे मीराबाई द्वारका में इसी श्री कृष्ण के विग्रह के साथ देखी गयी थी। और मीराबाई की देह इसके पश्चात् नहीं मिली सो माना यही गया कि कृष्ण के प्रेम में वे देह सहित वैकुंठ प्रस्थान कर गयी या विग्रह में समा गई थी मीराबाई के विग्रह होने के पीछे का कारण यह समझा गया की, क्योंकि राधा रानी या देवी रुक्मिणी का विग्रह श्री कृष्ण के बराबर रखी जाती है किंतु इस मंदिर में मीराबाई का विग्रह कृष्ण से सिमटे हुए ना हो के नीचे अलग रखी गयी है। किसी कृष्ण भक्त के साथ यह मूर्ति महाराणा प्रताप के राज्य में आ पहुंची। हल्दीघाटी के युद्ध मे मुग़ल सेना के हमलों में बचते बचाते इस मूर्ती को आमेर के सेनापति राजा मानसिंह को किसी के द्वारा प्राप्ति हुई और फिर उन्होंने मंदिर में प्राण प्रतिष्ठिता की। 








जगत शिरोमणि मंदिर कहाँ है?


जगत शिरोमणि मंदिर जयपुर के आमेर में देवी सिंहपुरा में स्तिथ है। मंदिर की जयपुर रेलवे स्टेशन से दूरी 11 किमी और जयपुर अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे से 19 किमी है। पर्यटक स्थलों के लिये प्राइवेट कैब और टैक्सी की सेवा उपलब्ध रहती है। साथ ही सरकारी बसें भी आमेर के किलों तक सुविधा प्रदान करती हैं।


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


गुरुवार, 18 जनवरी 2024

ममलेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग, खंडवा, मध्यप्रदेश

ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग को महादेव का चौथा ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। किंतु इस मंदिर के प्राकट्य की कथा ओंकारेश्वर मंदिर के प्राकट्य के साथ कि है। 

पौराणिक कथा:


शिव पुराण के अनुसार सत्युग में विंध्याचल पर्वत ने लंबे काल तक तप कर महादेव को प्रसन्न कर लिया था। महादेव तपस्या से खुश हो कर विंध्याचल को मनोवान्छित वर माँगने के लिए कहा। भगवान शंकर के साथ साथ अन्य ऋषि और मुनि पधारे थे। वरदान में वरदान में विंध्याचल ने  भगवान से उस स्थान पर दो लिंग स्वरूप में जन् कल्याण हेतु रहने का वरदान मांगा। भगवान ने इस स्थान और ओंकारेश्वर और ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग रूप में विराजे। दोनों शिवलिंग में भगवान की एक ही रूप और दिव्यता बस्ती है। दोनों में से किसी भी एक के दर्शन कर लेने से एक प्रकार का पुण्य और आशीर्वाद प्राप्त होता है। 

 


ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग गर्भ-गृह

                  

एक और कथा अनुसार राजा मांधाता ने कड़ी भगवान शिव की कड़ी तपस्या करके भगवान को यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजने का वर मांगा था। पुराणों में ममलेश्वर महादेव को अमलेश्वर या अमरेश्वर भी बोला गया है। 


➡️ भोजपुर शिव मंदिर, रायसेन, मध्यप्रदेश

इतिहास:


ममलेश्वर ज्योतिर्लिग मांधाता पर्वत पर बसा है। मांधाता पर्वत नर्मदा नदी के मध्य में है। यहां पर नर्मदा दो धाराओं में बहती है। उत्तर और दकहिं किंतु दक्षिण की धारा को ही असली धारा माना गया है। मध्यप्रदेश और भारत के अन्य ज्योतिर्लिंग और धर्म नगरों के मंदिरों की तरह आज दिख रहे ममलेश्वर मंदिर को इंदौर की रानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा बनवाया गया था। 





 

वी अहिल्या बाई के समय से यहाँ शिव पार्थिव पूजन होता रहा है, २२ ब्राह्मण प्रतिदिन सवा लाख पार्थिव शिव लिंगों द्वारा ममलेश्वर महादेव का पूजन किया जाता था | इसका भुगतान ब्राह्मणों को दान पारिश्रमिक भुगतान होलकर राज्य द्वारा किया जाता था |वर्तमान में यह संख्या घटकर ११ और फिर ५ ब्राम्हणों तक सिमित हो गई है | 


ममलेश्वर महादेव मंदिर


ममलेश्वर मंदिर 500 मीटर की ऊंचाई पर सिथत है। मंदिर पूरे पांच मंजिला है और हर मंदिर में एक देवालय है। मंदिर ग्रेनाइट के बड़े बड़े पत्थरों से बना है। नागर और मराठा वास्तुकला में बनाया गया है। गर्भ-गृह में विराजित ममलेश्वर महादेव का शिवलिंग ओंकारेश्वर शिवलिंग की तरह हूबहू स्वयम्भू है। ज्योतिर्लिंग के दूसरी और नन्दी विराजे है। मंदिर की दीवारों पर शिव महिमा स्तोत्र सन् 1063 से अंकित है। 


ममलेश्वर की महिमा ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के बराबर ही मानी गयी है। एक मान्यता और भी है, जिसके अनुसार ज्योर्तिलिंग ओंकारेश्वर में और पार्थिव लिंग ममलेश्वर में विराजित है। ओंकारेश्वर मंदिर और ममलेश्वर मंदिर के बीच  1000 मीटर की दूरी है। अधिकतर आगंतुक ओंकारेश्वर और फिर ममलेश्वर के दर्शन के करते हैं।


       


ममलेश्वर के प्रांगण में अन्य मंदिर भी है। शिव के ममलेश्वर रूप के अलावा वृद्धकालेश्वर, बाणेश्वर, मुक्तेश्वर, कर्दमेश्वर और तिलभांडेश्वर मंदिर में भी।  दो से तीन मंदिररों के अलावा बाकी मंदिरों में दर्शन नहीं किये जा सकते हैं। इस ज्योतिलिंग में गायकवाड़ राजाओं के समय के ब्राह्मणों द्वारा पूजा, अनुष्ठान किये जा रहे है। पहले इनकी संख्या 22 थी और वर्तमान समय में5 ब्राह्मण सेवारत हैं। 


          



ओंकारेश्वर की तरह ममलेश्वर में भी साल के बारह महीने भीड़ रहती है। मंदिर खुलने कक समय सुबह 6 बजे और बंद रात्रि 9 बजे का है। 


ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुँचे:


ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग पहुँचने के लिए ओंकारेश्वर के लिए खंडवा रेलवे स्टेशन की दूरी 70 किमी है। खंडवा देश के सारे शहरों से समर्पक में है।

ओंकारेश्वर से ओंकारेश्वर बस अड्डे तक कि दूरी 650 मीटर है। 


हवाई मार्ग से इंदौर के देवी अहिल्याबाई हवाई अड्डा और भोपाल का राजा भोज अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा सबसे निकटतम हवाई अड्डा है।


ममलेश्वर में पूजा सामग्री और होटल रात 8 से 9 बजे के के बीवः बंद हो जाते है। 


✒️स्वप्निल. अ



(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई)


गिरजाबंध हनुमान मंदिर, बिलासपुर, छतीसगढ़

  यूं तो भगवान श्रीराम भक्त हनुमान के देश में कई और विदेशों में कुछ मंदिर है, किंतु भारत के गांवों दराजों में ऐसे मंदिर है जिनकी खबर किसी को...