Translate

बुधवार, 11 अक्टूबर 2023

चांगु नारायण मंदिर, भक्तापुर, नेपाल

 किंवदंती: 


 नेपाल के प्राचीन रहस्यमय मंदिरों में से एक चांगु नारायण मंदिर भक्तापुर जिले के डोलागिरी या चांगु पर्वत पर स्थित है। चांगु पर्वत पूर्व दिशा में नेपाल की राजधानी काठमांडू से 12 किमी दूर है। यह क्षेत्र चमपक वृक्षों से भरा हुआ है जिसमें चांगू गाँव आता है| पर्वत के बगल से मनोहर नदी गुज़रती है जिससे मंदिर और उससे लगी घाटी का दृश्य विहंगम नज़र आता है। 


चांगु मंदिर में सारे देवी-देवताओं की 100 से अधिक मूर्तियाँ, चित्र और नक्काशियों के दर्शन किये जा सकते हैं। नेपाल के प्राचीन मंदिरों की सूची में चांगु मंदिर सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में है और इसका कारण यहां सारे आराध्य देवों की गढ़ी हुई मूर्तियाँ का होना। चांगु मंदिर में भगवान गरुड़ विष्णु(मुख्य देवता) को नेपाल के बौद्ध हरिहर वाहन के नाम से पूजते हैं।

 

चांगु नारायण मंदिर


प्राचीन किंवदंती:


इस कथा का लिखित प्रमाण किसी ग्रँथ में स्पष्ट नहीं मिलता है। यह मान्यताएं सदियों से चली आ रही हैं। एक समय मे एक ग्वाले ने सुदर्शन नामक ब्राह्मण से एक अति दुधारू गौ लायी थी। ग्वाला गौ लेकर रोज़ चंपक वृक्षों के नीचे चांगु गांव में चरवाने ले जाया करता था। हर रोज़ गौ माता जिस पेड़ की छाया के तले चरा करती थी उस पेड़ के नीचे दूध पीने एक लड़का आ जाया करता था उस गौ का दूध पीने। अचानक एक दिन जब ग्वाला गाय को वापिस घर ले आया और दूध निकलना शुरू किया तो दूध कुछ ही मात्रा में निकला। उदास हो कर वह वापिस ब्राह्मण सुदर्शन के पास पहुँच कर व्यथा सुनाई। भरपूर मात्रा में दूध ना निकलते हुए सुदर्शन ने स्वयं देखा। 


अगले दिन दोनों ने चंपक वन में गाय को चरते समय नज़रे लगा के देखा। एक वृक्ष के पीछे छुप शांति से गाय को देखते रहे। तभी एक काले रंग का लड़का वहां आया और गाय का दूध पीना शुरू कर दिया। सुदर्शन और ग्वाले को आभास हुआ उस लड़के में अवश्य कोई असुर होगा और उसकी आत्मा चंपक वृक्ष में बसती होगी। ब्राह्मण सुदर्शन ने चंपक वृक्ष काटने की सोची और जैसे ही पहला वार कुल्हाड़ी से किया तो वृक्ष से रक्त की धारा बहने लगी। उस दृश्य से भयभीत हो कर दोनों को लगा उनसे बहुत बड़ा अपराध हो गया है और दोनों रोने लगे। उन्हें रोता देख उस वृक्ष से भगवान विष्णु प्रकट हुए और सारा रहस्य सुनाया। 


भगवन बोले कि इस घटना में उनका कोई दोष नहीं था। काफी समय पहले स्वयं उनसे एक महापाप अनजाने में हुआ था। उनके हाथों सुदर्शन के पिता की हत्या अनजाने में हो गयी थी। इस कृत्य का उन्हें श्राप लगा। उन्हें सारी पृथ्वी का गरुड़ पर भृमण कर इस स्थान पर अंत मे आना पड़ा। यह क्षेत्र चांगु के नाम से जाना जाता है। भगवन ने अंत मे बताया  कि उस वृक्ष पर प्रहार कर के उनका शापोद्धार कर दिया गया है।


यह सब सुन ग्वाला और सुदर्शन प्रसन्न हो भगवन को नमन करने लगे और चांगु के वन में विष्णु जी की आराधना के लिए मंदिर बनाया। इस मंदिर में आज भी सुदर्शन ब्राह्मण के वंशज मंदिर के पुजारी ही पूजा करते पाए जा सकते हैं। ग्वाले के वंशज भी यहां रहते है जिन्हें चांगु घुटीयार कहा जाता हैं। 


मंदिर:


सन् 325 में लिच्चवी वंश रियासत के राजा हरि दत्त वर्मा द्वारा बनवाया गया था। इसके पश्चात मंदिर में अनेक निर्माण कर हुए और नेपाल की धरती भूकंपों से डोलती रही। उनक्स सदियों में मंदिर कभी भी बड़े पैमाने पे क्षतिग्रस्त नहीं हुआ। फिर मंदिर एक भयंकर आग की चपेट में आकर पूरी तरह ध्वस्त हो गया और 1702 में इसका पुनः निर्माण करवाया गया। 


माता छिन्नमस्ता मंदिर


 चांगु नारायण मंदिर नेपाल के सबसे प्राचीनतम कला और वास्तुकला का उदाहरण है। मंदिर पगोड़ा और शिखर वास्तुकला का अद्धभुत मेल कर के बनाया गया है। ऊंचे पत्थर पर बने चबूतरे पर मंदिर की दो मंजिला इमारत खड़ी है। मंदिर के चारों दरवाजे पौराणिक पशुओं की मूर्तियों से घिरे हुए हैं। 


नेपाल के ही एक अन्य प्रसिद्ध मंदिर, गोकर्ण महादेव मंदिर की तरह ही चांगु मंदिर का निर्माण हुआ है। भगवान नारायण के 10 अवतार मंदिर के दर्शन किये जाते है। दशावतार मूर्तियाँ मंदिर की छत सम्भाले हुए हैं। मंदिर का पश्चिम गेट(और यही मुख्य द्वार भी है) से आने पर एक विशाल स्तम्भ बना है जिस पर प्रभु नारायण के 4 चिन्ह: गदा, चक्र, कमल और शंख गढ़े हुए हैं। मुख्य प्रवेश द्वार पर भव्य नाग देवता मंदिर के समक्ष आने पर शोभा बढ़ाते हैं। 


मंदिर के गर्भ-ग्रह में गरुड़ नारायण की मूर्ति है, किंतु इनके दर्शन केवल मंदिर के पुजारी ही कर सकते हैं 


चांगु मंदिर नेपाल देश की अमूल्य प्राचीन धरोहरों में से एक होने के कारण विश्व धरोहरों में से शामिल किया गया है। 


मंदिर में नाग पंचमी और हरि बोधनी मुख्य रूप से मनाए जाते हैं। 


प्रमुख आकर्षण:


रुद्राक्ष वृक्ष: प्रभु शंकर के आंसू जिसे रुद्राक्ष कहा जाता है, रुद्राक्ष वृक्ष, मंदिर में आनेवाले भोले बाबा के श्रद्धलुओं को विशेषतः लुभाता है।  


मंदिर के पूर्वी द्वार से आंगन में प्रवेश करते ही कुछ अचंभित कर देने वाले स्मारक बने हैं।


  1. राजा मानदेव द्वारा सन् 464 AD में बनवाया गया ऐतिहासिक विष्णु विक्रांत स्तम्भ। 


  1. भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ की प्रतिमा।


  1. चंदा नारायण/ गरुड़ नारायण स्मारक गरुड़ पर विराजे भगवान विष्णु है (यह मूर्ति नेपाल की राष्ट्रीय मुद्रा पर भी अंकित है)। 


  1. नौंवी सदी में बनवाई गयी पथपीठ पर बैठी भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और गरुड़ की मूर्ति  जिसे श्रीधर विष्णु कहा जाता है।


  1. सोलहवीं सदी में बनवाई गई ललितासन मुद्रा में "वैकुंठ विष्णु" की मूर्ति मन प्रफुल्लित कर देने वाली है। इस मूर्ति में गरुड़ के छः हाथ है और माता लक्ष्मी भगवान विष्णु की गोद में बैठी हुई हैं। 


  1. कुरूक्षेत्र के महाभारत युद्ध मे भगवान श्री कृष्ण के विश्वरूपम की मूर्ति। 


  1. दशम्  महाविद्याओं में से एक माता छिन्नमस्ता की मूर्ति।  


  1. सातवीं सदी में बना भगवान नरसिंह का स्मारक। 

 

  1. महादेव का दो मंजिला छोटा मंदिर किलेश्वर शिव नाम से बुलाया जाता है। माना जाता है कि महादेव ने यहां दर्शन दिए थे और इस क्षेत्र की रक्षा करते हैं। 


  1. भगवान विष्णु के पांचवे अवतार वामन और राजा बली के संवाद में बनाया स्मारक। 







गरुड़ पर विष्णु

राजा मानदेव स्तम्भ


 
विष्णु विक्रांत

गरुड़ देव





नरसिंह देव 

2015 का भूकंप:


सन् 2015 में आये भयानक  भूकंप ने चांगू मंदिर की प्राचीन भव्यता को नष्ट कर दिया। जीर्णोद्धार होने के बावजूद मंदिर अपनी पुरानी अद्वित्ययता नहीं ला पाया। मुख्य मंदिर को छोड़, मंदिर संग्राहालय और बाकि हिस्सा नष्ट हो गया। श्री कृष्ण मंदिर भी भारी तरह से शतिग्रस्त हो गया था।


खतरे और चुनौतियों:


मनोहर नदी के तट के निकट अधिक पत्थर और रेत के अधिक खनन की वजह से मंदिर और आसपास के क्षेत्र पर खतरा बढ़ गया है। चंपक वन में अत्यधिक चराई की वजह से भू स्खलन की घटनाएं होती रहती हैं। यह सब रोकने में स्थानीय प्रशासन नाकामयाब रहा है।


जानकारी केंद्र:


चांगु गांव के अंदर प्रवेश पर चांगु मंदिर और गांव घूमने के लिए जानकारी केंद्र में जाके टिकट की पर्ची खरीदनी पड़ती है। यहां पीने के पानी के नल की सुविधा उपलब्ध है। एक दिन मैं केवल 150 विदेशी नागरिक ही चांगु गांव आ सकते हैं। 


  कैसे पहुँचे:


चांगु नारायण मंदिर आने के लिए प्रमुख रूप से दर्शनार्थी भारत और विदेश से आते है। 


चांगु मंदिर की काठमांडू से दूरी 20 किमी है। इसे 1 घण्टे के भीतर पूरा किया जा सकता है। काठमांडू से भक्तापुर जिले के लिए प्राइवेट कैब न्यूनतम शुल्क पर चलती है। 


✒️Swapnil. A


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)

शनिवार, 30 सितंबर 2023

डॉ हनुमान मंदिर, भिंड, मध्यप्रदेश

दंदरौआ सरकार मंदिर मे विराजे हनुमंजी - हनुमान चालीसा की पंक्ति "नासे रोग हरे सब पीड़ा, जपत निरंतर हनुमत बीरा" इसको पूर्णतः साकार करती है।

गोपी रूप और नृत्य मुद्रा में भला बजरंग बली की हमने शायद ही कल्पना की होगी। भिंड जिले के माहेगावं तहसील के दंदरौआ गांव में मनमोहक छवि लिए दर्शन देने बैठे है अंजनी पुत्र जिन्हें यहाँ डॉ हनुमान या दंदरौआ सरकार के नाम से भी बुलाया जाता है। 

 इतिहास:


दंदरौआ सरकार जी का मंदिर 500 वर्ष प्राचीन् माना गया है। रोड़ा रियासत के चंदेल राजवंश में राजा अमृत सिंह बजरँगबली के बड़े भक्त थे। लंबी साधना, सेवा के बाद राजाजी को आंजनेय ने स्वप्न में दर्शन देकर अपनी उपस्थिति विग्रह रूप में बताई। मूर्ति, नगर के पास एक तालाब के अंदर प्रकट हुई थी। उसी स्वप्न में प्रभु कहा मेरा यहां गुजारा नहीं होगा सो मुझे यहां से दंदरौआ ले के जाएं। राजा ने तुरंत आदेश पूरा किया। 


गोपी वेषधारी आंजनेय



स्वामी रामदास जी महाराज:


प्रातः स्मरणीय संत श्री रामदास जी महाराज मंदिर के महंत और प्रमुख पुजारी हैं। रामदास जी का जन्म भिंड जिले के ही मंडरौली ग्राम में एक सनाढ्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनका बचपन का नाम राम नरेश था और रामदास बनाने का कार्य इनके गुरु और मंदिर के महंत पूर्व ब्रह्मलीन 1008 संत श्री पुरुषोत्तम दास बाबाजी महाराज ने किया था।संत पुरुषोत्तम दास जी महाराज के गुरु थे ब्रह्मलीन गुरुबाबा श्री श्री 108 बाबा लछमन दास जी(उर्फ मिटे बाबा)।दंदरौआ धाम उनकी तपस्थली भी थी। 


राम नरेश को ज्योतिष का ज्ञान बालक राम नरेश ने जब कक्षा 8 वीं पास कर ली तब मंदिर के पुजारी जीवनलाल जी दृष्टि पड़ी और उन्होंने इन्हें ज्योतिष सिखाने का निश्चय किया। इस दौरान में स्वामीजी का अपने घर परिवार से सम्बंध कम होता गया। 


संत रामदास जी बालपन से शांत और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के होने के कारण उन्हें धीरे-धीरे मंदिर संभालने की जिम्मेदारी दी गयी। संत जी ने आश्रम में गौशाला भी खोली है जो वृंदावन की गौशालाओं से कम नहीं आंकी जा सकती हैं। सनातन धर्म को बुलंद करने के लिए महाराज जी ने संस्कृत विद्यालय भी बच्चों के लिए खोला है। 


पूज्य महंत स्वामी राम दासजी महाराज



दंदरौआ सरकार मंदिर:


मंदिर में हनुमान जी के विग्रह को गोपी वेश और डॉक्टर के सफेद वस्त्र पहनाया जाता है। बजरँगबली की मूर्ति चमत्कारी है। यहाँ विराजे बजरँगबली आने वाले श्रद्धालुओं की हर प्रकार की पीड़ा चाहे मानसिक या शारीरिक दोनों तरह से नष्ट करने के लिए जाने जाते है। बजरंगी डॉक्टर और मजिस्ट्रेट के बनके बिमारियों और किसी भी प्रकार के कोर्ट-कचहरी की मुश्किलों का निवारण करते है और यह अनेक भक्तों ने यहां आने के बाद अपने अनुभव साझा किए है। मंदिर में एक बार आंजनेय के डॉक्टर रूप में दिव्य दर्शन करने पर और सच्चे हृदय से प्रार्थना करने पर अवश्य पूरी होती है। इसमें कोई संदेह नहीं ऐसा दंदरौआ ग्राम के वासी बताते हैं। 


जिस किसी भी विपदा में मनुष्य फंसा हो यहां अगर कोई पाँच मंगलवार करले उसके सारे कार्य सिद्ध हो जाते है। ला इलाज बीमारियों के लिए श्रृधेय स्वामी रामदास जी महाराज भभूति और बजरँगबली को चढ़ाया गये जल के सेवन के लिए कहते है। इसके सेवन से आज तक सैंकड़ो मरीजों को हर तरह के कष्टकारी रोग से मुक्ति मिली है। 


मंदिर में हनुमान मंदिर के बाहर हनुमान जी को समर्पित एक गदा रखी गयी है। भक्त प्रभु को झूला झूला सके इसके लिए एक झूला मंदिर के भीतर बना हुआ। इसे भक्त हिलाते डुलाते है जैसे इसमें प्रभु को लेटा देख रहे हो और सेवा दे रहे हो। 


भला ऐसा हो सकता हो कि जहाँ बजरंगी का इतना विशेष मंदिर हो और वहां उनके और सबके स्वामी प्रभु श्री राम ना हो? बिल्कुल भी नहीं। इसलिए मंदिर प्रभु श्री राम, माता जानकी और लक्ष्मण का भी मंदिर बनवाया गया सरकारहैं। रामनवमी और श्री हनुमान प्राकट्य दिवस हर्षोल्लास के साथ और सारी रीतियों के साथ मनाया जाता है। 



दंदरौआ मंत्र:


सनातन वैदिक धर्म अनुसार देवी-देवताओं के नाम, शक्तियों और गाथाओं को एक विशेष प्रकार की प्रार्थना  में संघटन कर उसका पाठ किया जाता है तब उस देवता(या) उस दिव्य ऊर्जा उससे सम्बंधित पीड़ा पर पहुंच उस पर कार्य करती है। दंदरौआ धाम का चमत्कारी  मंत्र है ''ॐ श्री दं दंदरौआ हनुमंते नमः"। इस मंत्र में ॐ और बाकी शब्दों का शाब्दिक अर्थ इस प्रकार है:-

   "ॐ" में त्रिदेवों महादेव, विष्णु और ब्रह्म की शक्तियां समाहित हैं। प्रकृति के तीन गुण सत, तमस और रजस - तीनों के मनुष्य के स्वास्थ्य के आवश्यक संतुलन को दर्शाता है। उत्तम स्वास्थ्य के लिए मनुष्य शरीर में वात, पित्त और कफ भी आवश्यक है नहीं तो यह बीमारी बनने का कारण होता है। "श्री" - महालक्ष्मी को चिन्हित करता है जो पीड़ित मरीज को अच्छे स्वास्थ्य और वैभव का आशीर्वाद देती है। 'दं' -भगवान हनुमान के समक्ष दया का भाव उतपन्न करता है। 'द' - दान का जो धर्म और मोक्ष की कामना जगाता है। 'रौ' -कष्ट, दुख और रोगों के नाश को दर्शाता है। 'आ' - का अर्थ, आने वाले पीड़ित सुख और प्रसन्न हो वापिस जाते है। 



श्री हनुमान गदा

बुधवा मंगल हर वर्ष सितंबर महीने में मनाया जाता है जिसमें लाखों श्रद्धालु दर्शन करने दंदरौआ धाम आते हैं। 






 

डाक्टर हनुमान मंदिर खान पे हैं?


दंदरौआ ग्राम चिरोल और धमोर गांवों के बीच बसा है। यह क्षेत्र सड़क मार्ग से पूरी तरह से जुड़ा हुआ है। सबसे करीबी शहर ग्वालियर है। दंदरौआ पहुँचने के लिए डबरा-मौ मार्ग से ६५ -७० किमी का दूरी है। सरकारी और प्राइवेट बस और प्राइवेट कैब भी उपलब्ध रहती है। 


।। जय श्री राम ।। 


🙏🌷🚩🕉️🙏

 

 ✒️ स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)



मालिनी थान मंदिर, सियांग, अरुणाचल प्रदेश

 प्रदेशनातन भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश में के सियांग जिले में एक दिव्य अनुभूति से परिपूर्ण कर देने वाला मंदिर माँ दुर्गा को समर्पित है। 


पौराणिक कथा:


प्राचीन मान्यता अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण और माता रुक्मिणी के साथ द्वारका जा रहे थे तब यहां माँ पार्वती और भोलेनाथ यहाँ ध्यान में लीन थे। माँ पार्वती ने भगवान शिव सहित कृष्ण-रुक्मिणी का स्वागत फूलों की माला के साथ किया। श्रीकृष्ण प्रसन्न हो माता पार्वती को मालिनी बुलाने लगे। मालिनी का अर्थ बगीचे की रानी। उस काल से इस मंदिर में माता पार्वती मालिनी रूप में निवास करती है। 


मालिनीथान मंदिर (जीर्णोद्धार हुआ)

इतिहास:


मालिनी थान मंदिर चुतिया वंश के राजाओं ने निर्माण करवाया था। यह मंदिर द्वापरयुगीन है और इसके अवशेष 900 वर्ष पुराने है। एक विस्मय कर देने वाली बात है कि यहीं से 12 किमी दूर आकाशगंगा शक्तिपीठ सदैव सनातन धर्मविलम्बियों की दृष्टि ने रहा किंतु मालिनीथान मंदिर इतिहास की गहराइयों में लुप्त हो गया। 


मंदिर के अस्तित्व का पता एक भारतीय सेना के अफसर ने लगाया था जिसे माँ ने स्वप्न में आकर दर्शन दिए थे। फिर पुरातत्व विदों की टीम ने मंदिर को ढूंढना शुरू किया और ठीक इसी स्थान पर मंदिर मिला। भारतीय पुरातत्व डिपार्टमेंट ने यहां अपना बसेरा बनाकर शोध कार्य शुरू किया। मंदिर में 1968 से लेके 1971 तक खुदाई चली। आज भी मंदिर मंदिर क्षेत्र में काफी मात्रा में मूर्तियां, मंदिर दरवाजे, शिवलिंग, स्तम्भ के अवशेष मिलते है। 








मंदिर: 


 ओडिसा की मंदिर वास्तुकला शैली में मंदिर बनाया गया है। मंदिर अवशेषों में मिले लोहे के गिट्टक सादिया के तमरेश्वरी मंदिर से हूबहू मिलते हैं, जिससे मंदिर को बनाने वाले कारीगर एक होना समझ आता है। 


देवी माँ को समर्पित यह प्राचीन मंदिर शोधकर्ता बतातें है शाक्त तंत्र क्रियों का स्थल था। यह बात यहां मिले मैथुन और कामुक मुद्राओं में बनी आकृति शिल्प से पता चलता है। आदिवासी कबीले प्रकृति को अपनी माँ और प्रजनन शक्ति रूप में पूजते थे। आदिवासियों द्वारा देवी केचइखेती (Kechaikheiti) की पूजा की जाती थी।

 


मालिनी थान मंदिर से 600 मीटर की दूरी पर रुक्मिनी थान है जहां दर्शक संग्रहालय में मंदिर के सारे अवशेष देख सकते है। इन अवशेषों में मूर्तियाँ और दूसरी वस्तुएं मौजूद हैं। मंदिर के निकट ही मनमोहक आकाश गंगा झरना है जहां हर पर्यटक जाना पसंद करता है। 



 

पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिर की खुदाई में मंदिर के चबूतरे की ऊंचाई 8 फ़ीट जिसपे देवी-देवताओं की मूर्तियों के साथ पशुओं, फूल पौधों की कला कृतियाँ उकेरी पाई गई हैं। चारों कोनों में शेर और हाथियों की नक्काशियां भी बनी हुई हैं। 


 



मालिनी थान में पांच सबसे आकर्षक नक्काशियों में जो पाई गई हैं, उनमें ग्रेनाइट की बनी ऐरावत पर देवराज इंद्र, भगवान कार्तिकेय की मयूर सवारी, सूर्यदेव का रथ, श्री गणेश और मूष और नंदी बैल की नक्काशी। एक बिना मुंड के स्त्री की मूर्ति मंदिर में देखने को मिलती है जिसके साथ भगवान शिव हैं। यह मूर्ति देवी पार्वती की है ऐसा शोधकर्ता बताते है। 


पुरातत्त्व विभाग द्वारा मंदिर के बनने का सटीक समय शुरुआत का मध्यकाल बताया जाता है। उस समय वैष्णव धर्म का प्रभाव असाम के निकटतम क्षेत्रों में अधिक था। 


मालिनी थान मंदिर कैसे पहुँचे:


मालिनीथान मंदिर पहुँचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन  सिलापथार, आसाम का है। सिलापथार स्टेशन से मंदिर के लिए सरकारी बस और प्राइवेट सेवा उपलब्ध रहती हैं।

राजधानी ईटानगर से भी बस सेवा उपलब्ध रहती है। 


सबसे करीबी हवाई अड्डा दिबरूगढ़ हवाई अड्डा है। यही अलोंग में एक हेलीपैड भी बना हुआ है| यहाँ से बस सेवा सुचारु रूप से शुरू रहती है।

 

 ✒️Swapnil. A


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)



बुधवार, 20 सितंबर 2023

बड़ा गणेश मंदिर, उज्जैन, मध्यप्रदेश


अवन्तिकापुरी उज्जैन में जगह-जगह पर प्यारे और रहस्यमय मंदिर श्रद्धालुओं को मिल जाएंगे। इसी सूची में भगवान श्री गणेश का अद्धभुत मंदिर है। 


श्री गणेश


बड़ा गणेश मंदिर के नाम यह मंदिर केवल उज्जैन और आस पड़ोस के गॉंवों तक में ही प्रसिद्ध है। महाकाल के मंदिर के निकट ही गणेश जी की एक बहुत बड़ी मूर्ति स्थापिथ है। ऐसा दावा किया जाता है की यह प्रतिमा पूरे विश्व मैं मंदिर के अंदर विराजी भगवान लम्बोदर की एक मात्र सबसे बड़ी मूर्ति है। इस मूर्ति की स्थापना महर्षि गुरु महाराज सिद्धान्तनारायण जी व्यास ने 120 वर्ष पहले करवाई थी। इस विग्रह के बनने में ढाई वर्ष का समय लगा था।


मूर्ति बनाने की सामग्री में सीमेंट के स्थान पर ईंट, रेत, चूना और बालू का उपयोग किया गया है। कुछ खाद्य सामग्री जैसे गुड़ और मेथी के दानों का भी प्रयोग किया गया है। मूर्ति में जो मिट्टी उपयोग कि गयी है, वह सारे प्रमुख तीर्थ स्थान मथुरा, उज्जैन, काशी, द्वारका, कांची और हरिद्वार से लाई गयी थी। मूर्ति निर्माण में पावन नदियों का जल उपयोग हुआ है। मूर्ति को ऊंचाई18 फ़ीट और 10 फ़ीट चौड़ी है। भगवान की सूंड दक्षिण मुख की तरफ लडडू लिए हुए है। दाएं और बाएं तरफ भगवान की दोनों पत्नियाँ रिद्धि-सिद्धि की मूर्तियां हैं। 




श्री गणेश की मूर्ति सामग्री इस मंदिर को उज्जैन नगरी और मध्यप्रदेश राज्य में अलग बनाती है। 


मंदिर में बजरँगबली और माँ काली की मूर्तियां है तो भगवान श्री कृष्ण प्रांगण में एक झूले में बनाये हुए मंदिर में विराजमान है। 





बड़ा गणेश मंदिर पता और कैसे पहुंचे:


बड़ा गणेश मंदिर उज्जैन के जयसिंगपुरा इलाके में आता है तथा अति प्रसिद्ध सिद्ध स्थली महाकालेश्वर मंदिर और माता हरसिद्धि मंदिर से 5 मिनट की दूरी पर स्तिथ है। 


✒️स्वप्निल. अ



(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)



इन्हें भी देखें:


- मंगलनाथ मंदिर, उज्जैन


माँ गढ़कालिका शक्तिपीठ, उज्जैन

शनिवार, 16 सितंबर 2023

झारखण्डी महादेव मंदिर, गोरखपुर

गोरखपुर से कुछ किमी दूर स्थित है एक बिना छत का प्राचीन शिव मंदिर है। यह मंदिर झारखंडी शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर और इसके इर्द -गिर्द का हिस्सा अपने अंदर बहुत सारे रहस्य लिए समाया है।




इतिहास:


गोरखपुर के पास सरैया तिवारी गांव में एक रहस्यम शिव मंदिर श्रावण और महाशिवरात्री के समय हर साल एक तीर्थ का स्थान ले लेता हैं। सदियों पहले यहां झाड़-झंकडियाँ थी सो इस मंदिर का नाम झारखंडी पड़ा। इस मंदिर का कोई पौराणिक इतिहास तो है नहीं और साथ ही लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है। बस इतना ज्ञात है कि यहाँ भगवान भोले के शिवलिंग पर 11वीं सदी में लुटेरे मुहम्मद ग़ज़नवी ने आक्रमण किया था। 


सन् 1971 में यहां खुदाई की गई जिसमें अनेकों मूर्तियाँ धरती के अंदर से प्राप्त हुई। गोरखपुर के कलेक्टर के कार्यालय में आज भी यह मूर्तियाँ रखी हैं। 




शिवलिंग प्राकट्य:


गांव के बुजुर्गों का मानना है की यहां भोलेनाथ लिंग रूप में 5000 वर्षोँ से स्वयुम्भू रूप में विराजित है। सरिया तिवारी गांव के बुज़ुर्गों के अनुसार इस  क्षेत्र में उनके पूर्वजों ने विशालकाय कंकाल यहां के जंगलों में देखे थे।


यहां एक जमींदार हुआ करते थे गब्बू दास नाम से। उन्हें महादेव ने स्वप्न में दर्शन दे कर झारखंडी में लिंग रूप के प्रकट होने की बात कही। अगली सुबह सारे गांव वासी और भक्त उनके साथ उस जगह गड्ढा खोद ढूंढने लगे और दूसरे प्रयास में शिव लिंग ढूंढने में सफल हुए। 





शिवलिंग रहस्य:


मध्यकाल में मुसलमान आक्रांताओं का हमला उत्तर भारत में बढ़ता जा रहा रहा था। मुहम्मद ग़ज़नवी जब इस गांव से गुज़र रहा था तब उसकी नज़र इस शिवालय पर पड़ी। उसे बताया गया इस मंदिर की शक्ति और महत्त्व के बारे में सो उसने मंदिर को ध्वस्त करने के आदेश दिए। मंदिर को तोड़ते समय जब भी प्रहार किया जाता, उसमें से रक्त की धारा निकल आती। शिवलिंग की जड़ खोजने पर शिवलिंग धरती में और गहरा होते जाता।  


निराश होकर कुंठा में गजनवी ने शिवलिंग पर कुरान की आयत अरबी में गुदवा दी। यह आयत है 'ला इलाह इल अल्लाह', ताकि हिंदू इस मंदिर में पूजा ना कर पाएं। लेकिन इसके उलट यहां भक्तों की आस्था बढ़ती चली गयी और मंदिर की मान्यता भी। 


मंदिर पर आज तक कोई छत नहीं बन पाई है। जब भी कोई प्रयत्न किया जाता तो वह छत पूर्ण रूप से नहीं बन पाती या कोई बाधा बीच में आ जाती। भगवान भोले का मानिए जैसे संकेत हो नाग की आकृति लिए पीपल के पेड़ की छाया में रहना। 


 मंदिर के बगल में एक पोखरा(सरोवर जैसा) जिसे पोखड़ा बुलाते हैं, इसके अंदर स्नान करने से सारे चर्म रोग ठीक हो जाते हैं। इक्कीस दिन अगर कोई इस पोखरे में स्नान कर ले तो त्वचा के सारे रोगों से मुक्ति पा लेता है। 


 मंदिर के प्रमुख पुजारी के अनुसार लाल बिहारी दास के पहले यहां कोई भी पुजारी नहीं टिक पाता था। एक पैर पर खड़े हो कर साधना करने पर महादेव ने दर्शन 

दे कर उनकी विंन्नति सुन आशीर्वाद दिया। फिर महंत और पंडित टिकने लगे।


उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का इस मंदिर से विशेष लगाव है। योगीजी यर वर्ष इस शिवालय में श्रावण और महाशिवरात्रि में दर्शन करने आते है।



कैसे पहुँचे:


गोरखपुर रेलवे स्टेशन, गोरखपुर हवाई अड्डा और बस स्टैंड, झारखंडी मंदिर से बराबर 1-1 घण्टे की दूरी पे स्थित है। 


✒️Swapnil. A


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करें:-




मंगलवार, 12 सितंबर 2023

सुर्वचला-हनुमान मंदिर, खम्माम, तेलंगाना

वैदिक सनातन धर्म मे केवल एक देवता है जिन्हें चिरंजीवी, चिरकाल तक ब्रह्मचारी रहने का प्रण लिया है। किंतु भारत मे मंदिर है जो हनुमान जी के विवाहित होने की मान्यता पर प्रकाश देता है। तेलुगु भाषी राज्य तेलंगाना के खम्माम जिले में सुर्वचला हनुमान मंदिर, दुनिया का इकलौता हनुमान मंदिर है जहाँ भगवान ब्रह्मचारी मुद्रा की बजाए गृहस्त रूप में पत्नी सुर्वचला के साथ विराजे है। 




पौराणिक कथा:


बन्धुओं वैसे तो भगवान बजरँगबली के जीवन कार्यों का हिसाब श्री राम जी और माता सीता की सेवा के लिए समर्पित था और इसकी जानकारी हमे केवल वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण और गोस्वामी तुलसीदास जी की श्री रामचरितमानस में मिलती है। किंतु उनके जीवन के कुछ अनजाने पहलू अन्य ग्रन्थों और श्रुतियों में मिलता है। 


 पराशर संहिता में भगवान हनुमान के विवाह के बारे में सम्पूर्ण उल्लेख मिलता है। भगवान सूर्य देव बजरँगबली के गुरु थे। उन्हें अष्ट विद्याओं का ज्ञान था तो उन्हीं विद्याओं के गठन को अपने शिष्य को प्रदान करनेद

 हेतु बजरँगबली ने विवाह किया था। पराशर संहिता में बजरँगबली के विवाह उपरांत बालक करने की भी बात मिलती है। 


अष्ट सिद्धियों में से केवल 4 सिद्धियां बजरँगबली ने ग्रहण की। बाकी 4 विद्याओं का ज्ञान केवल एके गृहस्त को ही दिया जा सकता है। फिर प्रश्न एक योग्य कन्या का आया और सूर्य देव ने अपनी पुत्री सुर्वचला का नाम आगे कर शिष्य हनुमान को उनसे विवाह करने को कहा। हनुमान जी चकित हो उठे क्योंकि वे एक बाल ब्रह्मचारी थे तो सूर्य देव ने कहा के सुर्वचला एक तपस्विनी कन्या है, उनसे विवाह करने पर तुम ब्रह्मचारी ही रहोगे। सुर्वचला वापिस अपनी तपस्या में लीन हो जाएगी। इस पर अंजनी तुरंत मान गए और विवाह पूरा कर बची 4 विद्याएँ ग्रहण की। 


देवी सुर्वचला-हनुमान मंदिर


मंदिर महत्त्व


मंदिर में हज़ारों भक्तों की भीड़ देखी जाती है और इस भीड़ में ज़्यादातर विवाहित दम्पत्तियों का तांता लगा रहता है। पत्नी देवी सुर्वचला के साथ विराजे भगवान हनुमान, विवाहित जोड़ों में चल रही समस्यायों का निवारण करते है। जिन दम्पति की आपस मे ना बन रही हो या कोई अन्य विवाह में अन्य समस्या य्या विवाद हो यहां सुर्वचला देवी-भगवान हनुमान शीघ्र हल।करते है।



मंदिर परिसर


कैसे पहुँचे:


खम्माम नगर के मुन्नवरपेठ में मंदिर स्थित है और रेलवे स्टेशन से दूरी 1 किमी भी कम है।


खम्माम बस अड्डा भी इतनी ही दूरी पर है। 


निकटतम हवाई अड्डा हैदराबद का राजीव गांधी हवाई अड्डा है। खम्माम जिले से हैदराबाद शहर की दूरी 200 किमी है।


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:-




  • https://www.india.com/hindi-news/viral/shri-suvarchala-sahitha-hanuman-temple-1161011/

गिरजाबंध हनुमान मंदिर, बिलासपुर, छतीसगढ़

  यूं तो भगवान श्रीराम भक्त हनुमान के देश में कई और विदेशों में कुछ मंदिर है, किंतु भारत के गांवों दराजों में ऐसे मंदिर है जिनकी खबर किसी को...