गोरखपुर से कुछ किमी दूर स्थित है एक बिना छत का प्राचीन शिव मंदिर है। यह मंदिर झारखंडी शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर और इसके इर्द -गिर्द का हिस्सा अपने अंदर बहुत सारे रहस्य लिए समाया है।
इतिहास:
गोरखपुर के पास सरैया तिवारी गांव में एक रहस्यम शिव मंदिर श्रावण और महाशिवरात्री के समय हर साल एक तीर्थ का स्थान ले लेता हैं। सदियों पहले यहां झाड़-झंकडियाँ थी सो इस मंदिर का नाम झारखंडी पड़ा। इस मंदिर का कोई पौराणिक इतिहास तो है नहीं और साथ ही लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है। बस इतना ज्ञात है कि यहाँ भगवान भोले के शिवलिंग पर 11वीं सदी में लुटेरे मुहम्मद ग़ज़नवी ने आक्रमण किया था।
सन् 1971 में यहां खुदाई की गई जिसमें अनेकों मूर्तियाँ धरती के अंदर से प्राप्त हुई। गोरखपुर के कलेक्टर के कार्यालय में आज भी यह मूर्तियाँ रखी हैं।
शिवलिंग प्राकट्य:
गांव के बुजुर्गों का मानना है की यहां भोलेनाथ लिंग रूप में 5000 वर्षोँ से स्वयुम्भू रूप में विराजित है। सरिया तिवारी गांव के बुज़ुर्गों के अनुसार इस क्षेत्र में उनके पूर्वजों ने विशालकाय कंकाल यहां के जंगलों में देखे थे।
यहां एक जमींदार हुआ करते थे गब्बू दास नाम से। उन्हें महादेव ने स्वप्न में दर्शन दे कर झारखंडी में लिंग रूप के प्रकट होने की बात कही। अगली सुबह सारे गांव वासी और भक्त उनके साथ उस जगह गड्ढा खोद ढूंढने लगे और दूसरे प्रयास में शिव लिंग ढूंढने में सफल हुए।
शिवलिंग रहस्य:
मध्यकाल में मुसलमान आक्रांताओं का हमला उत्तर भारत में बढ़ता जा रहा रहा था। मुहम्मद ग़ज़नवी जब इस गांव से गुज़र रहा था तब उसकी नज़र इस शिवालय पर पड़ी। उसे बताया गया इस मंदिर की शक्ति और महत्त्व के बारे में सो उसने मंदिर को ध्वस्त करने के आदेश दिए। मंदिर को तोड़ते समय जब भी प्रहार किया जाता, उसमें से रक्त की धारा निकल आती। शिवलिंग की जड़ खोजने पर शिवलिंग धरती में और गहरा होते जाता।
निराश होकर कुंठा में गजनवी ने शिवलिंग पर कुरान की आयत अरबी में गुदवा दी। यह आयत है 'ला इलाह इल अल्लाह', ताकि हिंदू इस मंदिर में पूजा ना कर पाएं। लेकिन इसके उलट यहां भक्तों की आस्था बढ़ती चली गयी और मंदिर की मान्यता भी।
मंदिर पर आज तक कोई छत नहीं बन पाई है। जब भी कोई प्रयत्न किया जाता तो वह छत पूर्ण रूप से नहीं बन पाती या कोई बाधा बीच में आ जाती। भगवान भोले का मानिए जैसे संकेत हो नाग की आकृति लिए पीपल के पेड़ की छाया में रहना।
मंदिर के बगल में एक पोखरा(सरोवर जैसा) जिसे पोखड़ा बुलाते हैं, इसके अंदर स्नान करने से सारे चर्म रोग ठीक हो जाते हैं। इक्कीस दिन अगर कोई इस पोखरे में स्नान कर ले तो त्वचा के सारे रोगों से मुक्ति पा लेता है।
मंदिर के प्रमुख पुजारी के अनुसार लाल बिहारी दास के पहले यहां कोई भी पुजारी नहीं टिक पाता था। एक पैर पर खड़े हो कर साधना करने पर महादेव ने दर्शन
दे कर उनकी विंन्नति सुन आशीर्वाद दिया। फिर महंत और पंडित टिकने लगे।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का इस मंदिर से विशेष लगाव है। योगीजी यर वर्ष इस शिवालय में श्रावण और महाशिवरात्रि में दर्शन करने आते है।
कैसे पहुँचे:
गोरखपुर रेलवे स्टेशन, गोरखपुर हवाई अड्डा और बस स्टैंड, झारखंडी मंदिर से बराबर 1-1 घण्टे की दूरी पे स्थित है।
✒️Swapnil. A
(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)
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