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मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

जागेश्वर महादेव, अल्मोड़ा, उत्तराखंड

उत्तराखंड के सांस्कृतिक केंद्र और राजधानी कहे जाने वाले अल्मोड़ा में बसा भगवान शिव का वो तीर्थ जिसे कुछ पुराणों में 12 में से एक ज्योतिर्लिंग बताया गया है और अन्य ग्रँथ में शिव के शिशिन(लिंग) रूप में पूजा की उत्तपत्ति वाला स्थान। यह धाम है जागेश्वर महादेव जो देवदार के घने वृक्षों के मध्य बसा है। अनोखी बात इस धाम की यह बी है कि यहाँ देवादिदेव पूरे 125 लिंगों के समूह में विराजे हैं। इतने सारे मंदिरों को एकत्रित कर एक स्थान और देखने पर आगंतुक भूल जाते हैं किस मंदिर के प्रथम दर्शन करें। 

 यह धाम अनगिनत विशेषताओं सर परिपूर्ण है।

जो कोई भी जागेश्वर धाम के दर्शन कर वापिस जाता है, इस अलौकिक स्थली की भव्यता देखकर मौन व्याख्यान ही कर पाता है। 


पौराणिक इतिहास:


जागेश्वर महादेव का विवरण स्कंद पुराण, लिंग पुराण और शिव महापुराण में मिलता है। इसी स्थान पर महादेव ने सप्तऋषियों के साथ मिलके तपस्या की थी। महादेव जागृत रूप में विराजे थे सो यहीं से लिंग और जागृत इन दोनों रूपों की पूजा शुरू हुई थी। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि मंदिर में माँ पार्वती और महादेव दोनों विराजे है जो तीर्थों में इसे दुर्लभ स्थान बनाता है। अल्मोड़ा के जंगलों में पाए जाने वाले देवदार के वृक्षों को शिवशक्ति का अर्धनारीश्वर रूप माना गया है। रामायण काल मे लव-कुश ने यहां पर कई दिनों तक यज्ञ कर महादेव को प्रसन्न किया था। अपने पिता से अश्वमेध यज्ञ पश्चात जो युद्ध हुआ उसका प्रायश्चित करने लवकुश यहां आए थे। महाभारत काल मे पांडवो का आगमन इस पवित्र स्थली पर हुआ था। 


यहाँ के निवासी सदियों से अपने पूर्वजों की कहि सुनी मानते आए हैं। 


जागेश्वर मंदिर समूह

इतिहास:


जागेश्वर मंदिर समूह के बनने के कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। हालांकि मंदिर के अंदर की नक्काशियां कत्यूरी राजाओं ने बनवाई थी तथा भीतर चन्द्रवँश के राजाओं दीपचंद, निर्मलचंद और पवंनचंद की मूर्तियां भी बने है। राजा शालिवन ने अपने काल मे मंदिर में कुछ नवीनीकरण का कार्य भी करवाया।  पिछले दो से तीन हज़ार वर्ष के काल मे यहां अलग-अलग शासकों ने मंदिर में अपने काल की वास्तुकला की छाप छोड़ी है। 




जागेश्वर धाम मंदिर:


जागेश्वर मंदिर नागर शैली में बनाया गया है। मंदिर का निर्माण 10 वी से 13 वी सदी ईसवी के मध्य संपूर्ण हुआ था। भगवान भोले और अन्य देवता सतयुग और द्वापरयुग के समय से प्रतिष्ठित हैं। जागेश्वर मंदिर के बाहर द्वार पर शिव के गन, नंदी और भृंगी द्वारपाल रूपी मूर्तियाँ हैं। ज्योतिर्लिंग की छवि अभी तक उपलब्ध नहीं है। आदि गुरु शंकराचार्य इस स्थान पर केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की तरफ जाने के पूर्व आकर यहां पूजा और साधना की थी। इस अनूप धाम को उस समय आदि गुरु ने संपुटित कर दिया। यहाँ पर बाबा जागेश्वर जागृत रूप में त्वरित फल दे देते थे तथा इसका आभास होने पर गुरु ने यहां विराजे महादेव के लिंग की शक्तियों का अनुचित लाभ कोई अधर्मी, षठ मनुष्य ना ले सके तो इसे मंत्रो से ढंक दिया। 


जागेश्वर प्रवेश द्वार 


इस युक्ति के विपरित अगर कोई यहां आकर महादेव की कठिन साधना जैसे 2.5 - 4 लाख माला का जप करे तो उसे महादेव तुरंत फल देते हैं।


आदिगुरु ने कैदारनाथ ज्योतिर्लिंग आने के पहले यहाँ समय व्यतीत किया था। उस समय केदारनाथ की अति कठिन डगर को पार कर पाना बहुत कठिन था इसीलिए जागेश्वर धाम को ही ज्योतिर्लिग का स्थान प्राप्त था। 


पुराणों में वर्णित एक श्लोक में जागेश्वर धाम की महिमा इस प्रकार लिखी गयी है -


 " मा वैद्यनाथ मनुषा वजंतु,

काशीपुरी शंकर बल्लभावां।

मायानगयां मनुजा न् यान्तु, 

जागीश्वराख्यं तू हरं व्रजंतु"।


 अर्थ:मनुष्य वैद्यनाथ न जा सके शंकर प्रिय काशी, हरिद्वार भी ना जा सके किंतु जागेश्वर अवश्य जाकर महादेव के दर्शन करे।


किंवदंती अनुसार जागेश्वर धाम के मंदिरों के बारे में यह बताया जाता है की यहाँ सारे मंदिर केवल एक रात में बनाये गए थे। हर मंदिर की ऊंचाई एक दूसरे से भिन्न है। अधिकतर मंदिर एक रात में बन गए और कुछ मंदिर एक ऊंचाई पर बनकर रुक गए। 

जागेश्वर मंदिर(नागेश्वर दारुका), पुष्टि माता मंदिर, मृत्युंजय मंदिर, हनुमान मंदिर, बटुक भैरव मंदिर, नव ग्रह मंदिर, नौ दुर्गा मंदिर, सूर्य मंदिर, नीलकंठ मंदिर, कालिका देवी, कुबेर मंदिर, केदारनाथ मंदिर, लकुलिश मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर और कमल कुंड मंदिर। 


★ मृत्युंजय मंदिर देश का इकलौता मृत्युंजय मंदिर है। इस मंदिर में भगवान शिव महामृत्युंजय रूप में विराजे है। इसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। मंदिर स्थापना के पहले महामृत्युंजय मंदिर के स्थान पर लोग प्राणोत्सर्ग किया करते थे तो आदि गुरु ने मंदिर बनवाकर कील कर दिया। इस मंदिर के दर्शन करने पर अकाल मृत्यु का डर समाप्त हो जाता है। 


★ बटुक भैरव मंदिर के दर्शन अगर आगंतुक ना करे तो बटुकनाथ तरह-तरह से दंड देते है।


★ पुष्टि भगवती 51 भगवतियों में से एक है। इनके दर्शन से ही इस तीर्थ में आने का फल प्राप्त अथवा यात्रा संपूर्ण होती है। 


         


ज्योतिर्लिंग विवाद:


स्कंद और लिंग पुराण अनुसार जागेश्वर धाम को आंठवा ज्योतिर्लिंग भी कहा गया है इसीलिए अल्मोड़ा वासी जागेश्वर को असली नागेश्वर ज्योतिलिंग के रूप में पूजते हैं। पुराणों में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को दारुक वन के समीप बताया गया है किंतु आदि काल में ना जाने किस भ्रांति के कारण दारुक वन द्वारका वन मान लिया गया और नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थान हिन्दू जन मानस में सदा के लिए द्वारका जो गुजरात मे स्थित है स्वीकार कर लिया गया। 


सारे देवों के गर्भ-गृह में कोई भी फ़िल्म फ़ोटो खींचने वाले या रिकॉर्ड करने वाले उपकरण ले जाना प्रतिबंधित है। 

जागेश्वर धाम कैसे पहुँचे:


 जागेश्वर धाम अल्मोड़ा से 36 किमी दूरी पर स्तिथ है। इस दूरी को सवा 1 घण्टे में पूरा किया जा सकता है।  ट्रेन से जागेश्वर पहुँचने के लिए काठगोदाम आना पड़ता है। काठगोदाम से प्राइवेट टैक्सी की सेवा उपलब्ध है। 


सबसे करीबी हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा 328 किमी है। इस दूरी को 7.30 घण्टे के समय में पूरा किया जाता है। 


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


शनिवार, 9 सितंबर 2023

औंध नागनाथ मंदिर, हिंगोली

हिंगोली, मराठवाड़ा में धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण पांडव कालीन मंदिर हैं जिसे औंध नागनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर ज्योतिर्लिंग के रूप में भी कुछ विद्वानों के मतानुसार माना गया है।





औंध नागनाथ मंदिर



पौराणिक इतिहास:


सबसे पहला औंधा नागनाथ मंदिर राजा युधिष्ठिर और बाकी पांडवों द्वारा उनके 12 साल के वनवास के समय बनवाया गया था। दारूका वन में पांडवों ने कुछ समय बिताया था। पांडवो के पास कपिला नामक गौ थी। एक दिन अचानक कपिला ने दूध देना बंद कर दिया। कारण पता चलने पर ज्ञात हुआ कि वहां एक तेजोमय शिवलिंग था जिस पर कपिला अपना दूध छोड़ देती थी। महाबली भीम ने उस शिवलिंग को उठाकर झील से बाहर लाया और पांचों पांडवों ने मिलकर उसकी स्थापना की। 




इतिहास:


दूसरा मंदिर सिओना यादव वंश ने बनवाया था 13वी सदी में बनवाया था। मंदिर उस समय सात मंजिला बनाया गया था। मुग़ल वंश के क्रूर शासक औरंगज़ेब ने शिवलिंग भंग करने और मंदिर तोड़ने के लिए आक्रमण किया। औरंगज़ेब ने तलवार उठाई जिससे शिवलिंग वहीं धरती में धंस गया सो आज भी भक्त गर्भ ग्रह में उतरकर दर्शन करते हैं। 


कई दशकों बाद मंदिर का जीर्णोद्धार इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने कराया था। मंदिर का ऊपरी भाग का निर्माण उनके बाद पेशवाओं के शासन में करवाया गया था हेमदपंती शैली में बनाया गए इस मंदिर में काला पत्थर और चुना पत्थर का उपयोग किया गया है। 


 मंदिर 670 वर्ग मीटर में फैला है और ऊंचाई है 18.29 मीटर जबकि मंदिर का कुल क्षेत्रफल 60,000 वर्ग फ़ीट है। मंदिर में 12 अन्य छोटे मंदिर 12 ज्योतिर्लिंग के लिए हैं और 108 मंदिर, 68 छोटे तीर्थ औंधा नागनाथ मंदिर परिसर में स्थापित हैं। 


भारत की आजादी के बाद मंदिर को पुरातत्त्व विभाग के हाथों में सौंप दिया गया था।


"अन्य शिवालयों की तरह मंदिर का मुख उत्तर या पूर्व दिशा में ना हो कर पश्चिम की तरफ है।"





तीन नागेश्वर ज्योतिर्लिंग विवाद:


यह विवाद काफी लंबे समय से अनसुलझा है। मूल नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के सम्भ्रम की जड़ शिव महापुराण में मिलती है। इस विवाद में महादेव के तीन बड़े-मंदिरों की सूची है। इसमें नागेश्वर मंदिर, (पहला)द्वारका(ज्योतिर्लिंग), (दूसरा)जागेश्वर महादेव मंदिर, अल्मोड़ा और (तीसरा) औंधा नागनाथ मंदिर, हिंगोली है। शिव महापुराण के कोटि रुद्र संहिता के 29वें अध्याय में नागर्श्वर ज्योतिलिंग का स्थान का केवल एक मात्र संकेत मिलता हैं। पुराण बताते है, नागेश्वर ज्योतिलिंग विंध्याचल के दक्षिण-पश्चिम में समुद्र के पास स्थित है था वहाँ देवधर के वन है, अब देवधर वन द्वारका क्षेत्र में कहीं भी पाए नहीं जाते हैं। इसीलिए इन तीनों में कौन सा नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है, संदेह का विषय बना हुआ है।


दारूका वन एक रानी जो राक्षसों की रानी दारूका से भी सम्बंधित है।

शिव महापुराण में दारूका वन के बारे में बताया गया है जो समय के साथ लेखन में द्वारका हो गया। दारूका वन यानी देवधर के वृक्ष जिसके नीचे ऋषि-मुनि, महादेव की आराधना किया करते थे और यह विवरण उत्तरखण्ड देवभूमि के जागेश्वर महादेव मंदिर पर सबसे सटीक प्रमाणित होता है। किंतु प्रचलित मान्यता में द्वारका स्थित नागेश्वर मंदिर ही ज्योतिर्लिंग के रूप में सदैव माना गया है। 


दारुक-दारूका वध कथा:


सतयुग में इस क्षेत्र में दारुक और दारूका नाम के राक्षस-राक्षसी रहा करते थे। दारूका माँ पार्वती की आराधना किया करती थी। एक बार एक ब्राह्मण जिसका नाम सुप्रिया था इस क्षेत्र में आया और दारुक ने दारूका से कहकर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया। इस राक्षस जोड़ी का हर समय यहाँ आनेवाले हर प्राणी को सताना और डराना रहता था। उसी दिन मौके का लाभ उठाते हुए दारुक ने सुप्रिया और इस क्षेत्र के सारे प्राणियों को समुद्र के भीतर बंधक बना लिया। 


सुप्रिया ने दारूका वन वासियों को इक्कठा कर महादेव की आराधना शुरू की। राक्षस दम्पति से परेशान हुए भक्तों को तुरंत मुक्ति दिलाने के लिए महादेव ने दर्शन दे कर दोनों का वध किया। सुप्रिया की सूझ-बूझ और भक्ति के परिणाम स्वरूप उस ज्योतिर्लिंग को नागेश्वर ज्योतिलिंग कहा गया। यहां महादेव नागेश्वर और माता पार्वती नागेश्वरी के रूप में विराजित है। 


समस्त ज्योतिर्लिंगों में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग दसवां ज्योतिर्लिंग है।

 प्रमुख आकर्षण:


औंधा नागनाथ मंदिर की दीवारों पर उकेरी गई पांच भव्य मूर्तियां देखने को मिलती है। यह मंदिर की अद्धभुत कलाकृति का उदाहरण है।


कैलाश पर्वत पर विराजे महादेव पार्वती और रावण पर्वत हिलाने के प्रयत्न करता हुआ।


भगवान विष्णु का दशावतार रूप।


महादेव का अर्धनारीश्वर रूप।


नटराज नृत्य करते भगवान शिव।


विकराल रूप में वीर भद्र।



त्यौहार और आवश्यक पूजा:


◆ माघ महीने से शरू हो कर फाल्गुन महीने की शरुआती दिनों तक औंध नागनाथ मंदिर में सुंदर मेला लगता है।


दशहरे पर हर वर्ष बड़े उल्ल्हास के साथ भगवान नागनाथ की पालखी पूरे गाँव मे निकाली जाती है। 


◆ कोजागिरी पूर्णिमा पर सवेरे 5 से 7 के बीच ककड़ी से विशेष पूजा-आरती और भजन किये जाते है। 


◆ महाशिवरात्रि पर लाखों की संख्या में भक्तों का सैलाब उमड़ता है और रथोत्सवम का आयोजन होता है जिससे पर्वतों के बीच औंध गांव खिल उठता है। 




संत नामदेव और गुरु नानक:


औंधा नागनाथ मंदिर महाराष्ट्र के विख्यात भगवान के विठ्ठल भक्त नामदेव और वारकरी सम्प्रदाय के लिए भी प्रसिद्ध है। संत नामदेव के समकालीन संत दन्यानेश्वर और विसोबा केचरा का इस शिव धाम से विशेष जुड़ाव है। 


नामदेव का उल्लेख सिख पंथ के धर्म ग्रँथ श्री गुरु ग्रँथ साहब में भगत नामदेव के नाम से वर्णन है। गौरतलब है कि सिख पंथ के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने नामदेव के जन्म स्थान नरसी बामनी होते हुए औंध नागनाथ मंदिर आये थे।

 


मंदिर महत्त्व:


पूरे देश में कालसर्प दोष निवारण के लिए केवल दो मंदिर जाने जाते हैं। पहला मंदिर है हर शिवभक्त का प्रिय शिवधाम त्रियंबकेश्वर जो नासिक में स्थित है और दोसरा कम जाना जानेवाला औंधा नागनाथ मंदिर, हिंगोली में। 




कैसे पहुँचे:


  हिंगोली जिले के लिए महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों से भली भांति जुड़ा हुआ है। 


औंधा नागनाथ मंदिर से हिंगोली डेक्कन रेलवे स्टेशन 25 किमी की दूरी पर है। हिंगोली का पड़ोसी शहर परभणी है जिसके रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी सड़क मार्ग से 51 किमी है। 


औरंगाबाद की औंध से दूरी 210 किमी और मुंबई से 580 किमी है। हवाई मार्ग से भी आसानी से पहुँचा जा सकता हैं। 


नागपुर से शहर से हिंगोली 360 किमी है जिसे सड़क और रेल मार्ग से आसानी से पूरा किया जा सकता हैं। 


महाराष्ट्र राज्य सरकार बस परिवहन, प्राइवेट बस औंधनाथ मंदिर के लिये अपनी सेवाएं देने सदैव उपलब्ध रहती है। 


✒️Swapnil. A


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


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यमशिला का रहस्य

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