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शनिवार, 19 अगस्त 2023

मंगलनाथ मंदिर, उज्जैन, मध्यप्रदेश

महाकाल की नगरी मानी जानेवाली उज्जैन में वैसे तो मंदिरों और तीर्थों का भरमार है किंतु इनमें कुछ मंदिर ऐसे है जिनके बारे में सनातन धर्मावलंबियों को शायद ही कोई जानकारी होगी। शिप्रा नदी के तट पर थोड़ी दूरी पे आपको कोई ना कोई मंदिर अवश्य दर्शन करने मिल जाएगा। 


इस सूची में मंगलनाथ मंदिर एक ऐसा मंदिर है जहाँ दिन की 365 दिन लोग आते हैं। मंगलनाथ मंदिर को ही मंगल ग्रह का जन्म स्थान पुराणों के अनुसार माना जाता है।




पौराणिक कथा:


अंधकासुर वध


मंगल ग्रह के जन्म से जुड़ी सर्व मान्य कथा अंधकासुर नामक असुर से जुड़ी हुई है। यह कथा

स्कंद, मत्स्य और लिंग पुराण में मिलती है। इन सभी पुराणों में भिन्न-भिन्न विवरण है। 


सत्युग में एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव के दोनों नेत्र बंद कर दिए थे, जिससे संसार में अंधकार हो गया। सो महादेव अपना तीसरा नेत्र खोल देते है जिससे वातावरण ग्रीष्म हो गया। माता पार्वती को पसीना आने लगता और फिर अंधकासुर का जन्म हुआ। माँ पार्वती ने त्रिपुरारी शिव से पूछा के यह बालक किसका है तो भोले ने उसे अपना बालक बता दिया। अंधकासुर का जन्म अंधकार में होने के कारण नाम अंधकासुर पड़ा। 


फिर, इस बालक को असुरों के राजा हिरण्याक्ष को भगवान शिव ने सौंप दिया। असुरों के बीच अंधकासुर पला बड़ा सो इसके कारण उसने सारे लोकों पर आधिपत्य करने की सोची और महादेव ने उसे उसकी तपस्या स्वरूप वर दिया। वर में उसने 1000 भुजाएं, 1000 पैर और 1000 नेत्र मांगे। इसके पश्चात उसका वध करना सारे देवों के लिए कठिन हो गया।


स्कंदपुराण के अवंतिका खण्ड के अनुसार, इतने शक्तिशाली वर मांगने पर अंधकासुर ने अवंतिका नगरी में विनाश करना शुरू किया सो देवादिदेव महादेव ने उसके वध का दायित्व उठाया। 


अवंतिका नगरी में भगवान शिव ने उसका वध किया और उस वध से महादेव को पसीना छूटा और उस पसीने से धरती फट गई जिससे मंगल ग्रह का जन्म हुआ। मंगल देवता ने असुर के शरीर से प्रवाहित रक्त को अपने भीतर समा लिया। इसीलिए मंगल ग्रह का रंग लाल है।  भगवान शिव ने मंगल ग्रह को आदेश देकर दूर सौर्य मण्डल में स्थान दिया। 






मंगलनाथ मंदिर:


मंगल देवता यहां शिव लिंग रूप में स्थापित है। मंदिर काफी प्रचीन है किंतु आज जो मंदिर का ढांचा दिखता है इसे सिन्धिया राज घराने ने बनावाया था। 

आज मंदिर लाल रंग में दिखाई देता है पर इससे पहले मंदिर का रंग सफेद संगमरमर में था। मंगलवार के दिन यहां भक्तों का समुंदर निश्चित रूप से दिखता है।


मंदिर और खगोल:


मंगलनाथ मंदिर महाकाल मंदिर की तरह खगोलशास्त्र में बहुत महत्त्व रखता है। कर्क रेखा पृथ्वी पर उज्जैन से हो कर गुजरती है, जिसमे यह दोनों मंदिर आते हैं।  इसीलिए इनका न केवल खगोल पर इसके साथ साथ ज्योतिष और आधात्मिक दृष्टि से 


मंदिर महत्त्व:


मंगलनाथ मंदिर संसार के उन चुनिंदा मंगल ग्रह मंदिरों में से एक है। यहां भक्त अपने मंगल दोष निवारण की पूजा करवाने आते है। मंगल ग्रह के उग्र स्वभाव होने के कारण शिवलिंग पर दही-भात और पंचामृत मिश्रित कर लेप लगाया जाता है। जिनके कुंडली में चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भाव में मंगल देवता उग्र रूप लिए बैठे हैं वे यहाँ पूजा करवाते हैं। मंगल देवता शांत होकर उनके सर्व कार्य सिद्ध करते है। नवविवाहित जोड़े भी मंदिर के दर्शन से लाभान्वित होते हैं। 


मार्च महीने में आनेवाली अंगारक चतुर्थी पर यहां विशेष पूजा, यज्ञ और हवन करवाये जाते है। मंगल ग्रह मेष और वृश्चिक राशी के स्वामी ग्रह है।


मंदिर में जो एक विचित्र दृश्य दिखता है वो है यहां सुबह की आरती के समय मंडराने वाले मिठ्ठू जिन्हें प्प्रसाद का दाना ना देने पर शोर मचाने लगते है। यहाँ के पंडित बताते है कि यह स्वयं मंगल देवता प्रतिदिन आकर सेवा करने का अवसर देते हैं।


।। ॐ नमः शिवाय ।। 


🙏🌿🌷🕉️🔱


✒️स्वप्निल. अ


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


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