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मंगलवार, 22 अगस्त 2023

उनाकोटी, कैलासहर, त्रिपुरा

उनाकोटी कैलासहार तहसील में है। यहाँ पर रघुनन्दन पहाड़ियों के पत्थरों पर उकेरी गई देवी देवताओं की मूर्तियों अपने में अजीब रहस्य ली हुई दिखाई देती हैं। 


उनाकोटी जिसका तिब्बत-बर्मा की भाषा कोकबोरक में 'सुब्राई खुंग' (Subrai Khung) कहा जाता है। इसका अर्थ है एक करोड़ में एक कम। यहां 99 लाख, 99 हज़ार, नौ सौ निन्यानवे 999 मूर्तियां है। 



 इतिहास:


 मूर्तियों 6-7वी सदी (AD) में बनाई गई हैं। उस समय यहां किसी शाही परिवार का शासन नहीं था। पन्द्रवीं सदी के अंत मे यहां त्रिपुरा में चन्द्रवंश के माणिक्य राजाओं का शासन आरम्भ हुआ।  पत्थरों पर देव प्रतिमाएं और भित्ति चित्र हरे-भरे पर्वतों के छाया में स्वर्ग सा अनुभव कराते हैं। सबसे विशाल प्रतिमाओं में भगवान शिव, भगवान गणेश और कालभैरव की मूर्तियां है जो यहां पहुंचने वालों का हृदय मोह लेती हैं। भगवान कालभैरव की प्रतिमा तकरीबन 30 फ़ीट ऊंचाई में है। शिव प्रतिमा के पास ही माँ दुर्गा की प्रतिमा सिंह पर बैठे दिखाई देती है। भगवान शिव के वाहन नंदी की मूर्तियां है जो धरती के अंदर आधी समाई हुई हैं। अनेक दूसरे देवी देवताओं की प्रतिमाएं रघुनन्दन पर्वत में दर्शनीय है। 


 सदियों से उपेक्षा झेलने के पश्चात हाल के वर्षों में पुरातत्व विभाग द्वारा उनाकोटी को अपने अंदर लिया गया है। इसके जीर्णोद्धार के लिए सरकार द्वारा कार्य प्रारंभ हुआ है। दिसंबर, 2022 में उनाकोटी को UNESCO ने विश्व धरोहर की सूची में स्थान दिया है। 



माँ दुर्गा और कालभैरव

किंवदन्तियाँ:


पहली किंवदंती:

 

पहली किवदंती का कोई पौराणिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। किसी भी शास्त्र या पुराण में विवरण नहीं मिलता है। 

एक प्रचलित मान्यता है कि प्राचीन् समय मे भगवान शिव अपने साथी देवताओं के साथ काशी की ओर जाने के लिए निकले तो रास्ते में एक रात बाकी देवता निद्रा करने के लिए रुके और भोर होते ही जब निकलने का समय आया तब यह देवी-देवता नहीं उठे तो भगवान शिव ने उन्हें श्राप दे कर पत्थर की मूर्तियां बना दी। तब  ही से यह सारे देव शिला रूप लिए हुए हैं। 


भगवान शिव



दूसरी किंवदंती:


कल्लू कुम्हार नाम का एक लोहर रहता था। जिसने भगवान महादेव से जिद्द पकड़ ली, कैलाश पर्वत साथ चलने की। इस पर पर महादेव ने अपनी तरफ से एक शर्त रखी, की अगर वह एक रात में एक करोड़ मूर्तियां बना देगा तब वह अगली सुबह कैलाश के लिए उनके साथ आ सकता है। अगली सुबह उससे एक करोड़ से एक कम मूर्ति ही बन पाई फिर महादेव अकेले कैलाश प्रस्थान कर गए। कल्लू कुम्हार वहीं रह गया अपनी बनाई मूर्तियों के बीच।


उक्त किंवदंतियों के अलावा और कोई लिखित या ठोस पुरातात्विक प्रमाण उपलब्ध नहीं है जो इन मूर्तियों के रहस्य से पर्दा उठा पाए। 


त्यौहार:


उनाकोटी में हर वर्ष अप्रैल में अशोकष्टमी मेला लगता है जिसमे हज़ारों श्रद्धालू मेला देखने और मूर्तियों के दर्शन करने आते हैं। इस मेले के अलावा और दूसरे त्योहार भी मनाए जाते किंतु कम हर्षोल्लास से। 


कैसे पहुँचे:


उनाकोटी का सबसे निकटतम हवाई अड्डा राजधानी अगरतला का सिंगरभिल हवाई अड्डा है। यहां से कोलकाता और अन्य शहरों से जुड़ी हुई उड़ाने चलती है। दूसरा निकटतम शहर है सिलचर जहां से अगरतला की दूरी 295 किमी है। लुमडिंग-सबरूम खंड पर धर्मनगर रेलवे स्टेशन उनकोटी से 19 किमी दूर है। धर्मनगर रेलवे स्टेशन से उनकोटी का सफर 50 मिनट में पूरा किया जाता है। 


✒️Swapnil. A


(नोट:- ब्लॉग में अधिकतर तस्वीरें गूगल से निकाली गई हैं।)


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