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शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

पावागढ़ महाकाली मंदिर, चंपानेर, गुजरात

गुजरात राज्य के चंपानेर जिले में माँ काली एक दिव्य शक्तिपीठ पावागढ़ स्तिथ है। पश्चिम भारत में पावागढ़ महाकाली मंदिर एक मात्र देवी मंदिर है जो सर्वाधिक ऊंचाई पर बसा माँ का दिव्य दरबार है।

पौराणिक इतिहास:

पावागढ़ मंदिर का पौराणिक इतिहास सतयुग के आरंभ के काल का है। इस धाम की उत्तपत्ति माता सती के देह से कट के गिरे अंगों में से निर्मित हुई थी। हालांकि यह स्पष्ट नहीं कि यहाँ माता के शरीर का कौन सा अंश गिरा था। पुराणों में कहीं माँ के किसी एक पैर की 5 उंगलियाँ तो कहीं वक्ष स्थल कहा गया है। इस मंदिर के नाम करण के पीछे का सत्य स्पष्ट रूप से वर्णित नहीं है। क्योंकि पावागढ़ का नाम तो माता के पांव से गिरी उंगलियों के कारण या तो गुजरात के इस भूभाग में पवन के अति वेग से चलने की वजह से पड़ा हो सकता है। 

                  



                



माँ सति के पुनीत अंगों से बनी इस भूमि पर माँ काली के विग्रह को ऋषि विश्वामित्र ने स्थापित किया था। विश्वमित्र के नाम पर चंपानेर क्षेत्र की नदी विश्वमित्री नाम से जानी जाती है। इस धाम में भगवान श्री राम का भी आगमन रावण के वध पश्चात हुआ था। रावण वध के ब्राह्मण हत्या के दोष के निवारण हेतु प्रभू ने यहीं प्राश्चित किया था। भगवान के दोनों पुत्र लव-कुश के भी याँ आने की बात यहाँ के निवासी मानते हैं।


मध्यकालीन इतिहास:


पावागढ़ के उपलब्ध साक्ष्यों के अनुसार काली मंदिर का इतिहास 1000 वर्षों का माना गया है। उस समय मंदिर में माँ के दर्शन बहुत दुर्लभ हुआ करते थे। घने जंगलों के मध्य पहाड़ी पर बने मंदिर पर अधिकांश सौराष्ट्र वासी नहीं चल पाते थे। 

 मुग़ल काल के भारत में सत्ता लेने के बाद सन् 1484 में क्रूर इस्लामी हमलावर महमूद बेगड़ा ने पावागढ़ पहाड़ीपर सेना के साथ चढ़ाई कर मंदिर क्षतिग्रस्त कर दिया और पीर सदन शाह की दरगाह बनवा दी। 


पावागढ़ मंदिर:


पावागढ़ मंदिर को प्राचीन समय में शत्रुंजय मंदिर कहा जाता था। माँ महाकाली के इस भव्य और अद्धभुत मंदिर कुल 1525 फ़ीट(550मीटर) की ऊंचाई पर है। इसकी चढ़ाई में 2500 से ज़्यादा सीढियां चढ़नी पढ़ती है। सन् 2017 से 2022 के बीच मंदिर से पीर सदन शाह की दरगाह हटाकर पहाड़ी के अन्य स्थान पर करवाया गया है। माँ काली दक्षिण मुख किये हुई हैं। माँ की पूजन विधि तंत्र परम्परा के नियमों के अंतर्गत होती है। जैसे के अन्य शक्तिपीठों और देवी मंदिरों में देखने को मिलता है, पावागढ़ मंदिर में माता काली के साथ माँ लक्ष्मी और माँ सरस्वती विराजी हैं। 

            



मंदिर पूरे 500 वर्षों के बाद माँ के विग्रह के ऊपर शिखर बनवाई गई है और ध्वजारोहण भी किया गया है। यह प्रशंसनीय कार्य माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्य सरकार के भरपूर प्रयास से संभव हो पाया है। एक और कारण, पावागढ़ गुजरात के प्रमुख तीर्थो में से एक है। वर्ष 2017 से पहाड़ी के शिखर से दरगाह हटाने का कार्य 2022 मे निष्पादित हुआ जिसके बाद दरगाह पहाड़ी के अन्य कोने में स्थानांतरित करवा दि गयी।


माँ काली के दुर्लभ से सुलभ दर्शन की यात्रा का इतिहास पावागढ़ मंदिर ने रचा है।


पहाड़ पर चढ़ाई करते समय आगंतुक मध्य में दुधिया और तलइया तालाब देख सकते हैं। रोपवे से ऊपर-नीचे जाते समय नज़ारा और भी विहंगम दिखाई देता है।  सीढ़ियों की शुरुआत से लेके रोपवे के अंत स्टेशन तक यहाँ भक्तों के उपयोग की हर खाद्य और दूसरी वस्तुएं यहाँ बनी दुकानों में उपलब्ध रहती है।






नवरात्र में माता काली यह प्राचीन मंदिर भक्तों को पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान और बाकी राज्यो से खींच लाता है। दूर से पावागढ़ की पहाड़ी पर मंदिर मानों माँ का मुकुट जैसा प्रतीत होता है।


पावागढ़ माँ काली गरबा:


गुजरात पावागढ़ की महाकाली को समर्पित एक प्रेम और भक्ति से परिपूर्ण गरबा लिखा गया है जिसे गुजरात मे हर वर्ष नवरात्रों और अन्य उत्सवों में गाया और मनाया जाता है। गरबे की पंक्तियां यह रही- 


पावली लई ने हूँ तो पावागढ़ गयी थी,

पावली लई ने हूँ तो पावागढ़ गयी थी,

पावागढ़ वाली मने दर्शन दे, दर्शन दे। 


नई तो मारी पावली पाछी दे, 

नई तो मारी पावली पाछी दे।


अर्थ: भक्त माँ से नटखट और प्रेममय भाव से कह रहा है "पावागढ़ वाली माँ के लिए मैं 5 पैसे लेके गई थी, पावागढ़ वाली मुझे दर्शन दो, नहीं तो मेरे 5 पैसे वापिस दो। 


पावागढ़ मंदिर समयसारिणी:


पावागढ़ मंदिर खुलने का समय सुबह 5 बजे और बंद होने का समय संध्या 7 बजे का है। माँ काली की आरती का समय सुबह 5 बजे और संध्या 6:30 बजे का है।


पावागढ़ मंदिर कैसे पहुँचे:


पावागढ़ पहुँचने के लिए रास्ता दो भागों में बंटा है। 

पावागढ़ के सबसे निकट पहले वडोदरा और दूसरा अहमदाबाद शहर है। दोनों की दूरी 46 और 150 किमी है। 


चंपानेर से अहमदाबाद और वडोदरा सड़क मार्ग से अच्छे से समर्पक में है तथा रेल और हवाई मार्ग से देश के अन्य कोनों से भी जुड़े हुए हैं। चंपानेर के बस स्टैंड से बस दिन के हर समय चलती है। 


चंपानेर पहुंचकर ऑटो या टैक्सी में पहले 5 किमी अंदर का सफर कर मंदिर के पहाड़ के नीचे पहुंचना होता है। और पश्चात रोपवे(उड़नखटोला) से कुछ ही मिनट में मंदिर के नीचे पहुंचा जा सकता है। 

यहां से 250 सीढियां और चढ़कर मा काली के दर्शन किये जाते हैं।


✒️स्वप्निल.अ

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