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शनिवार, 30 मार्च 2024

माँ त्रिपुर सुंदरी मंदिर, बांसवाड़ा, राजस्थान

 इतिहास:

 माना जाता है कि बांसवाडा के माँ त्रिपुर सुंदरी मंदिर की स्थली पर सत्युग में माता सती की एक उंगली का भाग यहाँ गिरा जिसके उपरांत यहाँ माता का मंदिर बनवाया गया था। इसे शक्तिपीठ के रूप में भी माना गया है। मंदिर का इतिहास राजा कनिष्क के काल के भी पहले का बताया गया है। किंतु सबसे प्रथम साक्ष्यों के अनुसार मंदिर का निर्माण राजा कनिष्क के काल में हुआ था। उस काल में अरावली पहाड़ियों के निकट तीन पुरियां - सीतापुरी, विष्णुपुरी और शिवपुरी हुआ करती थी। । पांचाल समाज के पाता भाई को माँ त्रिपुर सुंदरी ने एक भिक्षुणी के रूप में दर्शन दिए थे। तद पश्चात् पांचालों ने माता के मंदिर का जीर्णोद्धार का कार्य शुरू करवाया था। सन् 1157 में जीर्णोद्धार का कार्य प्रारंभ हुआ। मालवा, मारवाड़ और गुजरात के राजवंशों ने 11-12 सदी से मंदिर में आराधना शुरू की और अपनी कुलदेवी मानना आरंभ किया। 


माँ त्रिपुर सुंदरी

 

माँ त्रिपुर सुंदरी मंदिर:

 

देवी राज राजेश्वरी माँ त्रिपुर सुंदरी का दिव्य सुंदर मंदिर नागर वास्तु कला एक अप्रतिम भवन है। मुख्य गर्भ गृह के दरवाजे चांदी के बने हैं। अंदर माता का विग्रह काले रंग का है। माता की मूर्ति जागृत रूप में है। सवेरे कन्या रूप में, दिन में स्त्री रूप और संध्या से रात्री तक माता प्रौढ़ रूप में दर्शन देती हैं। मूर्ति में अठारह भुजाएँ तथा माता के चरणों मे श्रीयंत्र विराजमान हैं। मूर्ति के नव ग्रह नौ दुर्गा रूप को दर्शाते हैं। मंदिर प्रवेश करने पर तीन गुंबद दिखाई देते हैं। गुंबद के बाहर बनी छत्री में नन्दी जी विराजमान है। 


 

सौम्य रूपा माँ त्रिपुर सुंदरी दश महाविद्याओं में तीसरी महाविद्या हैं। माँ के इस रूप में माँ के तंत्र और नौ दुर्गा रूप विद्यमान हैं। इसीलिये इस मंदिर में माता महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती रूप में विराजी है। 


परिसर
स्तोत्र:गूगल


मंदिर एक शक्तिपीठ के साथ एक सिद्धपीठ भी माना गया हैं। यहाँ अनन्य साधु संतो ने माता की साधना की हैं। नवरात्री और गुप्त नवरात्री पर भक्त विशेष पूजा-अनुष्ठान करने आते हैं। माता का राजराजेश्वरी रूप भौतिक या आध्यात्मिक, इच्छा और प्रगती पूरा करने वाला है। 


नन्दी महाराज
स्तोत्र:गूगल

सुबह ब्रह्म महूर्त से माँ की वंदना शंकराचार्य पद्धति से प्रारंभ की जाती है। देवी सुरेश्वरि का नित्य श्री दुर्गासप्तशती पाठ, श्री ललित सहस्त्रनाम से आवह्न किया जाता है। 


पुराने मंदिर को बनाने का कार्य 1930 में मंदिर के शिखर निर्माण के साथ आरंभ हुआ था। सन् 1977 से 1991 के बीच मंदिर का पुनः जीर्णोद्बर कराया गया है। इन वर्षों के बीच में 109 कुंडीय महायज्ञ का आयोजन 1981 में कराया गया। 


मंदिर प्रवेश द्वार

आधुनिक मंदिर:


पुराने मंदिर की इमारत में आधुनिक निर्माण कार्य कराये गये। सन् 2006 से कुछ अद्धभुत बदलाव और जोड़ किये गए। इनमें स्वर्ण कीर्ति स्तम्भ और बाहरी परिसर बनवाया गया। पहली शिला का 23 जून 2011 और अंतिम शिला 24 अप्रैल 2016 में हवन से पूजन कर उदघाटित किया गया। पांचाल समाज द्वारा मंदिर का संचालन किया जाता हैं। समाज के 1233 यजमानों ने 1889 स्तम्भों को पूजन कर मंदिर को समर्पित किया था।


यात्रियों के विश्राम और भोजन करने हेतु एक भोजनालय और धर्मशाला भी बनी है। 


    

कीर्ति स्तम्भ
स्तोत्र:गूगल



     

          

माँ त्रिपुर सुंदरी मंदिर कैसे पहुँचे:


माँ त्रिपुर सुंदरी मंदिर राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में है। इसकी सीमा मध्यप्रदेश के रतलाम जिले के नजदीक है। रतलाम से मंदिर की दूरी 65 किमी है। 


✒️स्वप्निल.अ

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